इस चमक दमक की दुनियां में
रंगों की महफ़िल ,सजी हुई !
मोहक प्रतिमाएं थिरक रहीं
दामिनि जैसा श्रृंगार किये !
इस समाज में इस महफ़िल में,
कौन भला मातम गायेगा ?
कौन भला मातम गायेगा ?
मेहँदी रचित हाथ लेकर , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
सूरज की पहली किरन साथ
फागुन के रंग बरसते हैं !
संध्या होने से पहले ही ,
स्वागत होता दीवाली का !
नव मस्ती के इस योवन में ,
रोदन क्यों कोई गायेगा ?
रोदन क्यों कोई गायेगा ?
हाला, मधुबाला साथ लिए, अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
हर मन में चाहत , रंगों की ,
महसूस व्यथा को कौन करे ?
गर्वित हों अपने योवन से
अहसास पराया कौन करे ?
रणभेरी बजते अवसर पर ,
वेदना कौन अब गायेगा ?
वेदना कौन अब गायेगा ?
उन्माद भरे इस मौसम में, अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
कोई गोता खाए, बालों में
कोई डूबा गहरे प्यालों में
कोई मयखाने में जा बैठा
कोई सोता गहरे ख्वाबों में
जलते घर माँ को छोड़ चले,
बापस क्यों कोई आएगा ?
बापस क्यों कोई आएगा ?
निष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
आदरणीय सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteनमस्कार !
अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं
इस चमक दमक की दुनियां में
ReplyDeleteरंगों की महफ़िल ,सजी हुई !
मोहक प्रतिमाएं थिरक रहीं
दामिनि जैसा श्रृंगार किये !
शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
...प्रशंसनीय रचना......सतीश जी
priy saxena ji
ReplyDeleteutkrisht bhavon ko liye samvedanshil kavy shilp gahan chintan ka pratinidhitwa karta hai. marmik rachana
shukriya .
अत्यंत मधुर, भावगम्य, और गेय रचना.
ReplyDeleteखुद गाईये अपने गीत इस खुदगर्ज होती दुनिया में ..बढियां गीत
ReplyDeleteकई प्रश्न उठाती अच्छी रचना
ReplyDeleteहमने गुनगुनाने की कोशिश की. ''मोहक प्रतिमाएं थिरक रहीं'' की प्रतिमाओं को कठपुतलियां सोचा.
ReplyDeleteहमें गाना तो नहीं आता लेकिन आपके इस गीत को गुनगुनाने का मन हो रहा है। शुक्रिया।
ReplyDelete.
ReplyDeleteआह आह... भई वाह वाह !
hum-sab bhai-bandhu 'mere geet'......
ReplyDeleteapke saath gungunayega......aur fir..
gayega........
pranam.
किसी और के भरोसे क्यों रहना....खुद गाइए....हम साथ हैं....
ReplyDeleteजबरदस्त लिखा है....
ka baat hai yeh sab kiya chal raha hai ..... sab theek hai....
ReplyDeletejai baba banaras...
जब सुबह नाश्ते में पहले
ReplyDeleteफल, दूध और दलिया लेते.
व्रत, उपवास और अनशन
रोगों को 'दमन-दवा' देते.
मुख का अब स्वाद बदल गया, भूखा ना भूख मिटाएगा.
हाजमा आज़ जैसा भी हो, वह जंक फ़ूड ही खायेगा.
सुनते थे जब 'जयमाला' के
हम विविध भारती पर गाने
टीवी दिखलाता 'चित्रहार'
तब थे पडौस के पहचाने.
मनोरंजन लिमिट बदल गयी, अब कोई पास कराहेगा.
जब इयरफोन हो कान लगा, मन फिर भी गाने गायेगा.
......... आपकी कविता का साँचा मन को बहुत रुचा. और इस साँचे में ढाल दिये कुछ भाव.
@ प्रतुल वशिष्ठ,
ReplyDeleteआपके आगमन और विचारों ने इस पोस्ट को सुन्दरता प्रदान कर दी ! सम्मान स्वीकारें ...
गीत तो गाने के लिए ही होता है सतीश भाई। कोई सुख में गाता है कोई दुख में। पर गाता जरूर है।
ReplyDeleteजलते घर माँ को छोड़ चले, बापस क्यों कोई आएगा ?
ReplyDeleteनिष्ठुर बेटों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
उत्कृष्ट,अनुपम ! आपने दिल ही निचोड़ डाला हैं इस भावपूर्ण दिल को छूती अभिव्यक्ति में.बहुत बहुत आभार आपका इन शानदार भावों की प्रस्तुति के लिए.
स समाज में इस महफ़िल में,
ReplyDeleteकौन भला मातम गायेगा ?
मेहँदी रचित हाथ लेकर ,
अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
bahut sundar
इस चमक दमक की दुनिया में
ReplyDeleteरंगों की महफ़िल, सजी हुई !
मोहक प्रतिमाये थिरक रही
दामिनी जैसा शृंगार लिए !
इस समाज में इस महफ़िल में , कौन भला मातम गायेगा ?
मेहँदी रचित हाथ लेकर,अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
गीत के भाव सुंदर है पर किंचित उदास, इसके बदले में किसी कवि की सुंदर पंक्तियाँ है !
और सभी मिल जाते केवल वही न मिलता
चाह करो जिसकी, दुनिया का यही नियम है,
सारे स्वर सध जाते केवल वही न सधता
जो प्रिय हो मनको, जीवन ऐसी सरगम है !
तुम्ही न अर्पण मेरा जब स्वीकार कर सकी,
यह सारी दुनिया अपनाए,क्या होता है!
क्यों न हम अपने गीत खुद ही गाए खुद ही,गुनगुनाये!
सतीश जी लगता है इस रंग बदलती खुदगर्ज़ दुनिया में अपने गीत खुद ही गाने पड़ेंगे :-(
ReplyDeleteरचना के माध्यम से बहुत ही सशक्त रूप से दिल की बात व्यक्त की है आपने.
गुरु भाई !
ReplyDeleteखुश रहो !
हर मन में चाहत , रंगों की ,
महसूस व्यथा को कौन करे..????
जो व्यथा का एहसास कर सकता है ...
वो ही व्यथा मेहसूस करेगा ...???
अशोक सलूजा !
सचमुच आज मौत का ताडंव चारों ओर है फिर भी हम उसे भुलाकर सपनों की दुनिया में जिए चले जा रहे हैं आपकी कविता बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है ! सार्थक पोस्ट !
ReplyDeleteसतीश भाई, ऐसा क्यों कहते हैं...
ReplyDeleteहम जैसे आपके बहुत सारे चाहने वाले हैं ये गीत गाने के लिए...
बस मुए ये फिल्मी गीतों से फुर्सत मिले तब ना...
जय हिंद...
आपकी गलत फ़हमी है कि कोई आपके गीत या विचार अपनाएगा भी या नहीं... आपकी सोच गंभीर ज़रूर है पर वह ज़िन्दगी और समाज के करीब है उसका हिस्सा है| बाद में कोई गायेगा या नहीं यह सवाल तो तब होता है कि जब आज कोई नहीं अपना रहा हो| आप आज भी कई लोगों के प्रेरणा स्त्रोत हैं...
ReplyDeleteकविता कि द्रिष्टि से आपकी भाषा पर पकड़ और लय-बद्धता अच्छी है|
"सूरज की पहली किरन साथ
ReplyDeleteफागुन के रंग बरसते हैं!
संध्या होने से पहले ही,
स्वागत होता दीवाली का"
बढ़िया गीत सुंदर भाव लिए हुए सशक्त प्रस्तुति.
आपके गीतों का प्रवाह और शब्द संयोजन इतना सुन्दर होता है.कि मन करता है गुनगुना लिया जाये .
ReplyDeletenaya sur aur naya andaz......bahut achcha laga.
ReplyDeleteनिष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
ReplyDeleteचाहने वालों की कमी कहाँ है भाईजी...
आदरणीय सतीश जी ,
ReplyDeleteतारीफ़ करनी पडेगी एक ही रचना में इतने सारे सार्थक सवाल ......आभार !
जलते घर माँ को छोड़ चले, बापस क्यों कोई आएगा ?
ReplyDeleteनिष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
गहरी वेदना से भरी पंक्तियाँ ...भावपूर्ण दिल को छूती अभिव्यक्ति...
Sundar hi nahi apitu ATI sundar
ReplyDeleteआदरणीय सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteकोई गोता खाए, बालों में कोई डूबा गहरे प्यालों में कोई मयखाने में जा बैठा कोई सोता गहरे ख्वाबों मेंजलते घर माँ को छोड़ चले, बापस क्यों कोई आएगा ?
बहुत ही बढ़िया आभार इस रचना के लिए
kitne din chmk rha krti
ReplyDeletekitne din rhti deewali
kitne din khushiyan aatin hain
kitne din dukh ki sunvayi
sb kuchh aata aur jata hai
is chmk dmk ki duniya me
hr jn rota aur gata hai
bhai bdhai
सतीश भाईजी,
ReplyDeleteजरूर गाये जायेंगे आपके गीत(पहले भी गाये जा चुके हैं) और हम सुनेंगे। जिस दिल में औरों के लिये प्यार, संवेदना और अपनापन है उस दिल की पुकार अनसुनी नहीं रह सकती।
गीतों के गाने के लिए बहुत कद्रदान होते हैं. हर चीज इतनी महत्वहीन नहीं होती कि उसको तुच्छ समझ लिया जाय.सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिएआभार.
ReplyDeleteवाह!! बहुत प्रवाहमयी भावपूर्ण गीत..
ReplyDeleteहम गा दें? :)
ReplyDeleteआदरणीय सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteनमस्कार !
अत्यंत मधुर, भावगम्य, और गेय रचना.
जब फैली होगी घोर निराशा,
ReplyDeleteबची न होगी कहीं जो आशा,
विषाद मन भरने लगेगा
कोमल मन निष्ठुर बनेगा
ऐसे में जीवट जगाने,सत-ईश का ही द्वार खुलेगा।
जिंदादिली की सांसे भरने,हर दिल वह गीत गुनेगा॥
सुंदर रचना .....!!
ReplyDeleteआजकल का माहौल तो वाकई दुखी करने वाला है ...!!
आपके गीत के भाव और प्रतुल वशिष्ठ का सांचा --दोनों मिलकर ग़ज़ब ढा रहे हैं ।
ReplyDeleteभावुक कर देने वाली प्रस्तुति।
ReplyDeleteआभार।
खुद ही गा लो भैया, यहां कोई किसी के लिए न गाता है न रोता है :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना जी.
ReplyDeleteजिसके मन में दर्द जहाँ का
ReplyDeleteदया दीन पर करता हंसकर
यौवन व्यर्थ नहीं करता हो
सिर्फ मस्तियों में ही फंसकर
उन्माद भरे इस मौसम में,गीत वही यह पायेगा ।
जिसके मन में दर्द जहाँ का
ReplyDeleteदया दीन पर करता हंसकर
यौवन व्यर्थ नहीं करता हो
सिर्फ मस्तियों में ही फंसकर
उन्माद भरे इस मौसम में,गीत वही यह पायेगा ।
कोई गोता खाए, बालों में
ReplyDeleteकोई डूबा गहरे प्यालों में
कोई मयखाने में जा बैठा
कोई सोता गहरे ख्वाबों में
जलते घर माँ को छोड़ चले, बापस क्यों कोई आएगा ?
निष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
बहुत सुंदर !
ये विधा तो आप की विशेषता है
बधाई
निष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
ReplyDeleteवाह!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
कोई गोता खाए, बालों में
ReplyDeleteकोई डूबा गहरे प्यालों में
कोई मयखाने में जा बैठा
कोई सोता गहरे ख्वाबों में
जलते घर माँ को छोड़ चले, बापस क्यों कोई आएगा ?
निष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
kya baat hai ,adbhut bahut khoob .
वाह जी वाह.
ReplyDeletesateesh ji jab bhavnayein itani sundar hon to gaane wale mil hi jayeinge...behtareen...
ReplyDeleteसमाज को झगझोरती अद्भुत रचना.
ReplyDeleteजलते घर माँ को छोड़ चले,
ReplyDeleteबापस क्यों कोई आएगा ?
निष्ठुर लोगों की नगरी में ,
अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
मार्मिक पंक्तियां....
भावनाओं का बहुत हृदयस्पर्शी चित्रण ....बधाई
bahur hi sundar or vicharneey parstuti
ReplyDeleteकुछ पल के लिए याद कर लिया जब अपनी कक्षा में बैठकर सस्वर पाठ करना ,शिक्षक का प्रोत्साहन और सहपाठियों की तालियाँ हुआ करती थी .भावपूर्ण दिल को छूती अभिव्यक्ति है..गेय रचना....
ReplyDeleteछा गए गुरुदेव!!कहाँ भूले बिसराए बैठे थे आप इन गीतों को!!!
ReplyDeleteसुन्दर गीत.
ReplyDeleteबहुत ही मधुर , भावपूर्ण, मनमोहक गीत..
ReplyDeleteहर बंद ...स्वयं को ख़ूबसूरती से बयाँ करता हुआ
bhai ji, chinta kahe ki....ham gaenge na aapke saath....bas ek kavisammelan karaane bhar ki der hai.....
ReplyDeletejai ho...
Adarneeya saxena ji namaskar!janaab hukm tho khejiye,Phir sambalna mushkil hojayega ;)
ReplyDeletebahut hi sunder rachna
naman sweekar karen.
कोई गोता खाए, बालों में
ReplyDeleteकोई डूबा गहरे प्यालों में
दिल को छू गया गीत।
जलते घर माँ को छोड़ चले, बापस क्यों कोई आएगा ?
ReplyDeleteनिष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?
सशक्त रचना .... अर्थपूर्ण सवाल लिए ....
गीत वही हम गायेंगे,
ReplyDeleteजिनके सुर अब भायेंगे।
बहुत सुंदर गीत भाई सतीश जी बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteज़िन्दगी के मीठे खट्टे अनुभवों का यह गीत...आम आदमी का गीत है सतीश जी..बेमिसाल रचना...
ReplyDeleteकितना दर्द भरा है आपकी इस कविता में और आप तो जानते ही हैं कि हमारे मधुरतम गीत हमेशा दर्द भरे होते हैं तो इसे तो सब गायेंगे ।
ReplyDeleteनिष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ?.......सचमुच लोग बहुत व्यस्त हो गए है अपने आप में |
ReplyDeleteजलते घर माँ को छोड़ चले, बापस क्यों कोई आएगा ?
ReplyDeleteनिष्ठुर लोगों की नगरी में , अब मेरे गीत कौन गायेगा ? ....bahut badi baat chupi hai in panktiyon me.sachchaai ka saamna karati prastuti.atiuttam.
आपके गीत हमेशा गाये जायेंगे... निष्ठुर लोग भी ऊपर से जो बोलें अकेले में तो गुनगुनाते ही होंगे :)
ReplyDeleteइतनी वेदना!
ReplyDeleteमरणोपरान्त कोई गाये तो क्या
मेरे नाम के बैंड बजाये तो क्या