आजकल एन सी आर में, प्रापर्टी में पैसा लगाने का मतलब, सोने का पेंड लगाना है ! २५० गज का एक प्लाट खरीदकर उसमें ४ मंजिल भवन बना , लगभग ढाई करोड़ में बेंच सकते हैं ! अक्सर ऐसी जगह पर, प्लाट एक करोड़ का मिल जाता है और बनाने की कीमत में काफी फर्क है ! ख़राब और घटिया मैटरियल लगाकर किया गया निर्माण, अच्छी क्वालिटी के निर्माण से लगभग आधा होता है !इस प्रकार क्वालिटी से समझौता कर करोड़ों रुपये कमाए जा सकते हैं !
भवन निर्माण की गुणवत्ता पर कंट्रोल और देखरेख के लिए कोई नियम एवं रेगुलेशन नहीं हैं !आम आदमी, पूरी तौर पर, पैसों के इन व्यापारिओं पर निर्भर होता है !
इन भवनों के निर्माण में, ख़राब क्वालिटी के लोकल बने सीमेंट के साथ साथ, बहुत कम मात्रा में स्टील का उपयोग किया जाता है ! अंडरग्राउंड बिजली की घटिया वाइरिंग तथा ख़राब पानी के पाइप , चार साल भी ठीक से नहीं चल पाते ! खराब वायरिंग के कारण, ऐसी किसी भी आपदा के समय, इनमें आग लगने का खतरा बहुत अधिक है , और आग से बचाने का कोई भी सुरक्षा उपाय यहाँ नहीं किया जाता !
देहली हरिद्वार रिज़ पर बसा यह एरिया, सिज्मिक ज़ोन ४ में पड़ता है यहाँ ५ से ८ तीव्रता वाले अर्थ क्वेक आने की सम्भावना रहती है अतः दिल्ली और आसपास का एरिया, हाई रिस्क एरिया में माना जाता है !किसी संभावित प्राकृतिक डिजास्टर के समय, इस प्रकार के भवनों के होते, आपातकाल स्थिति आते देर नहीं लगेगी और जनहानि की संभावना बहुत अधिक होगी ! इस समस्या से निपटने के लिए तुरंत एक भवन रेगुलेशन एक्ट बनाया जाना चाहिए जिसमें चोरों और बेईमानों से निपटने के लिए बेहद कड़े प्रावधान हों !एन सी आर के ऐसे रिहाईशी इलाकों पर जाकर देखें तो हर तरफ जीर्ण शीर्ण मकानों का जंगल खड़ा दिखेगा जिनमें हँसते खेलते हुए निर्दोष ,असहाय परिवार दिखाई पड़ेंगे ! इस प्रकार बनाई गयी कालोनियां एवं भवन , ७ रेक्टर स्केल पर आये भूकम्प को कैसे सह पाएंगी , यह सोंचकर दहल जाता हूं मैं !
इस प्रकार क्वालिटी से समझौता कर करोड़ों रुपये कमाए जा सकते हैं?
ReplyDeleteसभी जगह क्वालिटी का समझोता नहीं चलता : ये बात जानते हुए भी करोड़पति और करोड़ों कमाना चाहते हैं.
आपने सोचनीय मुद्दा उठाया है अभी कुछ दिन पहले मुंबई के नजदीक ठाणे इलाके में बारिश की वजह से एक ऐसी ही इमारत के गिरने से मौतें हुए हैं ...तो फिर प्राकृतिक आपदा की स्थिति की कल्पना से ही मन सिहर उठता है ...पता नहीं हमारी सरकार को कड़े कदम उठाने में क्या दिक्कत आ रही है
ReplyDeleteसतीश जी बात वही है भ्रष्टाचार की,रग रग में समाई पैसे की भूंख की, आकार से बाहर हो रहे पेट की, और उतरोत्तर सहते जा रहे समाज की ,करता धर्ता और नियंताओं के अकर्मण्यता की. किस किस की बात करे हम तो अपनी ही बात कर सकते है, जहा रहे, जैसे रहे , इस भूखे समाज को क्या दे सकते है देते रहे बस . आपने एक गहन बात की है तो बहाव में बह गया मै भी दिल को छु गयी थी जो बात .
ReplyDeleteदिल दहला देने वाली जानकारी।
ReplyDeleteसब जगह यही हाल है। जब सरकारें, नगरपालिकाएँ. पंचायतें एडहॉक बेसिस पर काम करने लगें तो यही हाल होगा। सुरक्षा की स्थिति यह है कि खुद ही खुद का ध्यान रखें। गवर्नेस नाम की चीज कहीं दिखाई नहीं देती।
ReplyDeleteसतीश जी एक्ट तो बहुत बने हुए हैं,और बन भी जाएँ.परन्तु,जब तक क़ानून का पालन करनेवाले ही उल्लंघन करते रहेंगें क़ानून का,तो क्या किया जा सकता है.
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति यथार्थ पर आधारित विचारोत्तेजक है.
आभार.
आशियानों का खतरनाक खेल, सम्हलकर रहना होगा।
ReplyDeleteराम प्रस्थ कालोनी दिल्ली से सटी यु पी कि एक फ्री होल्ड कालोनी हैं । १९७० मे ये बनी थी और यहाँ १५०० प्लाट थे २०० गज से ८०० गज के जिन पर कोठी और २.५ मंजिल मकान का प्रावधान था । ४० % एरिया खुला रखना था । बहुत से लोगो ने उस समय यहाँ प्लाट लिये थे जो सब ज्यादातर मिडिल क्लास के थे क्युकी उस समय जमीं का मूल्य मात्र २५ रूपए गज था । आज वो सब लोग सीनियर सिटिज़न हो गए हैं और सुबह से शाम तक उनको यहाँ लड़ना पड़ता हैं क्युकी अब यहाँ उनके मकानों के बगल मे १२ - १२ फ्लैट बनगए हैं और वो सब गैर कानूनी हैं । उनको 10% एरीया खाली रखना हैं . इलाहाबाद कोर्ट मे मुकदमा चल रहां है सन २००० से । ये फैसला भी आ चुका हैं कि ये सब गैर क़ानूनी ढंग से सरकारी अफसरों कि मिली भगत से हुआ हैं । जो फ्लैट मे रहते हैं उनको कोठी मे रहने वालो से प्रॉब्लम हैं क्युकी उनको लगता हैं इतनी जगह क्यूँ हैं ४-५ लोगो के परिवार के पास जबकि उसकी १/१२ जगह मे वो हैं । लेकिन जो कोठी मे हैं उनसे टैक्स भी ज्यादा लिया जाता हैं और उनकी बुनियादी सुविधाये जिन के लिये वो ज्यादा टैक्स दे रहे हैं वो उनको नहीं मिलती ।
ReplyDeleteकितनी बार ये फ्लैट गिराने कि बात उठती हैं पर हर बार पैसा ले दे कर रफा दफा हो जाती हैं । सीनियर सिटिज़न को दबया जाता हैं कि वो प्लाट बिल्डर को बेच दे ।
आम आदमी वो भी हैं जो फ्लैट मे हैं और वो भी जिसने कोठी बनायी हैं पर कौन कानूनी तरीके से हैं और कौन गर क़ानूनी देखने कि बात ये हैं । लेकिन कानून कि बात किसी कि समझ मे नहीं आती ।
सतीश सक्सेना,
ReplyDeleteनमस्कार,
आपके ब्लॉग को अपने लिंक को देखने के लिए कलिक करें / View your blog link के "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगपोस्ट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
bhawan kya pool sadken sabka yahi haal hai.
ReplyDeleteसतीश जी
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति विचारोत्तेजक है
आभार....
इस समस्या से निपटने के लिए तुरंत एक भवन रेगुलेशन एक्ट बनाया जाना चाहिए जिसमें चोरों और बेईमानों से निपटने के लिए बेहद कड़े प्रावधान हों !
ReplyDelete......पता नहीं हमारी सरकार को कड़े कदम उठाने में क्या दिक्कत आ रही है
भाई जी, पैसे की दौड़ में इंसानियत बहुत पीछे
ReplyDeleteछूट गई है ....!
सब राम भरोसे ...?
शुभकामनायें !
सतीश भाई,
ReplyDeleteये पैसे की हवस इनसान को कहां तक गिराएगी...साहिबाबाद में जो इमारत गिरी है, इसके काम में लगे मजदूरों ने अस्पताल पहुंचने के बाद बताया कि यहां सीमेंट, लोहे और सरिये का नाम मात्र को ही इस्तेमाल किया जा रहा था...दावा किया जा रहा है कि 48 फ्लैट वाली इस इमारत को बनाने वाले क्रांति बिल्डर्स के मालिक का बेटा खुद आर्किटेक्ट है...इमारत के पास खाली प्लाट में मौजूद बड़ी मात्रा में गोबर से पता चलता है कि गोबर और गीली मिट्टी से ही ये बालू का महल खड़ा किया जा रहा था...बिल्डर की पैसे की हवस तो समझ आती है, उससे बड़े कसूरवार है अधिकारी जिन्होंने आंखों पर घूस की पट्टी बांध कर मौत का ये निर्माण होने दिया...
जय हिंद...
लालच के लिये इंसानों की जान से खेलने वाले ऐसे अपराधियों को सज़ा दिलाना बहुत ज़रूरी है। और जैसा आपने कहा कि ऐसे निर्माण की जांच, नियमन आदि की कडी आवश्यकता है।
ReplyDeleteसतीश जी ! आपकी प्रस्तुति यथार्थ पर आधारित विचारोत्तेजक है.
ReplyDeleteआभार
बड़ा विचित्र है इन लोगों का संसार। पैसे कमाने के लिए ये निरीह लोगों की जान से खेलते हैं।
ReplyDelete२५० गज के एक प्लाट में एक या दो परिवारों के रहने हेतु बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती है जबकि बिल्डरों द्वारा चार फ्लेट बना दिए जाते है अब चार परिवार वहां रहेंगे तो बुनियादी सुविधाएँ भी कम पड़ेंगी ही|
ReplyDeleteइसी मुद्दे को लेकर फरीदाबाद में एक बार किसी ने रिट लगाईं थी उसके बाद यहाँ फ्लोर की रजिस्ट्री बंद हो गयी थी पर ऊपर तक पैसे पहुँचने के बाद अब फिर वही हाल है|
way4host
माचिस की डिबिया में रहने को मजबूर लोग कब तक बचा पाएंगे खुद को आग की चिंगारी से!! पीड़ादायक घटना!!
ReplyDeleteभवन निर्माण का एक standard निर्धारित होना ही चाहिए जिस से इस प्रकार की जनहानि से बचा जा सके
ReplyDeleteआभार
Right sir ,what you have said ,that is a heart voice ,feeling of India ,reaction OF countrymen . But nuisance for anti-nationals, corrupt
ReplyDeletepioneers ,bureaucrats,so called patriot . Thanks for raising good issue .
पता नहीं कहां से ले आते हैं लोग करोड़ों रूपये इस तरह के मकान खरीद लेने के लिए
ReplyDeleteमनुष्य के लालच की कोई सीमा नहीं रही . अब जान से खिलवाड़ करने से भी नहीं घबराते . पता है कुछ नहीं बिगड़ेगा उनका .
ReplyDelete@इस समस्या से निपटने के लिए तुरंत एक भवन रेगुलेशन एक्ट बनाया जाना चाहिए जिसमें चोरों और बेईमानों से निपटने के लिए बेहद कड़े प्रावधान हों !
ReplyDeleteबिलकुल सही बात--नहीं तो स्थिति भयावह होगी.
शुक्रिया ज़नाब .कृपया यहाँ भी कृतार्थ करें लेखनी से अपनी -http://sb.samwaad.com/2011/07/blog-post_16.हटमल
ReplyDeleteहो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था ,शौक से डूबे जिसे भी डूबना है .
भाई साहब सक्सेना भाई हिन्दुस्तान के हुक्मरान को क़ानून पालन करने और उसकी पालना कराने के लिए भी एक जन -पाल चाहिए .भूगर्भ -रोधी इमारतों की कौन कहें ,सक्रीय भू -कंप ज़ोन की कौन कहे जहां जहां सरकारी कदम पड़ते हैं एक भू -कंप ज़ोन खुद बा खुद पैदा हो जाता है .जन चिंतापरक सावधान करती पोस्ट .आभार .
सिर्फ एनसीआर नहीं सभी शहरों के आसपास यही बयार चल रही है।
ReplyDeleteजड़ में मुनाफ़े पर आधारित व्यवस्था है...
ReplyDeleteआपकी चिंताएं और सरोकार वाज़िब हैं...
ये तो बड़ा खौफनाक मंजर है,क्या किया जा सकता है !
ReplyDeleteसब उपर वाले के हाथ में है.
ReplyDeleteपश्चिम को हम भौतिकवादी कहकर कभी गाली देते थे !
ReplyDeleteऔर पूरब को अध्यात्मवादी कहकर सम्मान किया करते थे !
आज उल्टा देखने को मिलता है ! वहाँ आज बडेसे बड़ा धनवान
मनुष्य धन के बदले आत्मा की खोज करना चाहता है !
और यहाँ धन के लालच में मनुष्य इतना अंधा हो गया है की,
उसकी आत्मा ही मर गई है !
बहुत संवेदनशील आलेख आभार आपका !
इस समस्या से निपटने के लिए तुरंत एक भवन रेगुलेशन एक्ट बनाया जाना चाहिए जिसमें चोरों और बेईमानों से निपटने के लिए बेहद कड़े प्रावधान हों !
ReplyDeleteआपके उपाय से पूर्णतः सहमत, और कोई रास्ता भी नहीं है।
सतीश जी यही एक अकेला सिंड्रोम है ,रोग समूह है जो हमारी रोग रोधी कुदरती व्यवस्था को नाकारा करके संक्रमण के प्रति हमारे शरीर का हर द्वार खोल देता है .अच्छी बात यही है इस सिंड्रोम से बचे रहा जा सकता है .परम्परा गत दाम्पत्य प्रेम सम्न्धों के प्रति एक निष्ठ और प्रति -बद्ध होकर .राक्ताधान करते कराते सावधानी बरती जाए ,सुइयां नीम हकीमों से न लगवाईं जाएँ .भिवानी राजकीय महा -विद्यालय में पढाता था उन दिनों ,डेली पेसंज्री की रोहतक -भिवानी के बीच .एक ऐसे नीम हकीम के बारे में पता चला जो सुईं लगाते वक्त ,ब्लाउज के ऊपर से ही मसल तक सुईं पहुंचा देता था एक ही सिरिंज लिए घूमता आदिम .मेले ठेलों में बाल बनवाने मान्यताओं के अनुसार नीम -नाइयों -नायनों के पास नौनिहालों को मुंडन के लिए न ले जाया जाए .आधुनिक ब्यूटी सैलून्स भी संक्रमण की स्रोत बन सकतें हैं .गुणवत्ता पर यहाँ इस इलाके में कोई नियंत्रण नहीं है .तेतूइन्गभी एहतियात मांगती है .एक्यु -पंचर की सुइयां भी देखें भालें .
ReplyDeleteThanks for yr visit to the science Blog. reaching 1013 ,luxmi bai ngr ,new -delhi 110-023 (09873246434/0971636 2475 )By 20july early Morn.
ये बिल्डर आदि राजनीतिक पार्टियों के डोनर भी तो होते हैं. नियम बनाना कठिन ही होगा. कई वर्ष पहले एक कविता पढ़ी थी जो आज भी ताज़ा है:
ReplyDeleteपहली ही बरसात में पुल बह गया
अपनी कहानी कह गया
आज जान से अधिक माल प्यारा हो गया है। वो पुरानी कहावत है ना- लोगों की जान गई आपकी अदा ठहरी॥
ReplyDeleteaapki bahut vicharniye post hai.aane vaale khatre ko sochkar hi dil dahal jaata hai.apni jeb bharne ke chakkar me sahastron ki jindgiyon se khelna kya jayaj hai.humari sarkar ka dhyaan is aur kyuon nahi jata.is mahatvpoorn post ke liye badhaai.
ReplyDeleteसब जगह यही हाल है।
ReplyDeleteबहुत संजीदा मुद्दे पर आपने गहनता से प्रकाश डाला है .....!
ReplyDeleteDesh ka kya hoga....?
ReplyDeleteअम्बर से खुलेगी खिड़की या खिड़की से खुला अम्बर होगा ?
ReplyDeleteकुछ भी संभव है ..आशियाने की तलास में.जायज है आपकी चिंता .
आभार उपरोक्त पोस्ट हेतु .
बात वही है नियम कायदे चाहे जितने बना लिये जावें किन्तु पैसे की वह अनियंत्रित भूख जो बिल्डरों के साथ ही कानून का पालन करवाने वालों के दिलो-दिमाग में गहरे तक बैठी हुई है उसके चलते इन्सानी जीवन की कीमत कीडे-मकौडों से अधिक ऐसे संकटकालीन समय में कहाँ देखने में आ पाती है । सामान्य मजदूरों की तो बिसात ही क्या वे जो लाखों रुपये लोन व अन्य माद्यमों से जुटाकर यहाँ रहने आते हैं उनका वर्गीकरण भी इस दायरे से बाहर कहाँ जा पा रहा है ?
ReplyDeleteख़राब और घटिया मैटरियल लगाकर निर्माणकार्य धड़ल्ले से किए जा रहे हैं.जब इंसान ही इंसान की सुरक्षा के बारे में नहीं सोचता हो तो इमारत गिरने जैसी घटनाओं के अलावा और क्या होगा? आपने इस कटु यथार्थ को बखूबी सामने रखा है.
ReplyDeleteशायद ' इण्डिया ' का निर्माण ऐसे ही हो रहा है.सार्थक पोस्ट.
ReplyDeleteस्वार्थ और लोभ के कारण लोग नासमझी कर रहे हैं खरीदने वालों को भी देखभाल कर ही घर खरीदने चाहिए.
ReplyDeleteकम से कम जनसुरक्षा के मामलों में सजगता और कठोरता से कानून और नियमों का पालन हो, यह बहुत जरुरी है...मगर धन लोलुपता इतनी असीमित है कि क्या कहें...सिवाय अफसोस जाहिर करने के.
ReplyDeleteकानूनों की तो कोई कमी नहीं है जरुरत उसे ईमानदारी से लागु करने की है |
ReplyDeleteबहुत ही लज्जास्पद और अफ़्सोस जनक.
ReplyDeleteरामराम.
आपने सोचनीय मुद्दा उठाया है..विचारनीय रचना..
ReplyDeleteहर शहर में ऐसे किस्से मिल जायेंगे...सत्ता और बिल्डरों की साठ-गाँठ में आम आदमी क्या करे...
ReplyDeleteयथार्थ के धरातल पर रची गयी एक सार्थक प्रस्तुति !
ReplyDeleteभाई सतीश जी नमस्ते |हमारे देश के नेताओं अफसरोंऔर जनता का भी जमीर मर चूका है |आपकी चिंता स्वाभाविक है |अच्छी पोस्ट बधाई |
ReplyDeleteभाई सतीश जी नमस्ते |हमारे देश के नेताओं अफसरोंऔर जनता का भी जमीर मर चूका है |आपकी चिंता स्वाभाविक है |अच्छी पोस्ट बधाई |
ReplyDeleteसच यह एक विचारणीय मुद्दा है ..जिस पर बहुत सख्ती से काम करने की आवश्यकता है... हां यहाँ भी घूस आड़े आता होगा....
ReplyDeleteभ्रष्टाचार को उजागर करता अच्छा लेख.
ReplyDeleteएक ओर जल्द से जल्द मालिक मकान बनने की जोड़ तोड़, दूसरी तरफ़ बिल्डरों द्वारा जल्द से जल्द फ्लैट खड़े करने की होड़ ! दोनों ही पक्ष जिम्मेदार हैं, हवस शान्त करने का कोई तावीज़ खोजा जाये ।
ReplyDeleteनिर्माण के हर चरण पर सम्बन्धित विकास प्राधिकरण द्वारा निगरानी किये जाने की सही बैठायी जाती है, वह ढिढाई से कहते हैं कि हमारे सही गलत से किसी की किस्मत थोड़े बदल जायेगी... लो जी कल्लो बात !
होना यह चाहिये कि मोहल्ला समितियों से पँच चुने जायें, जो अपनी निगरानी में निर्माण प्रक्रिया को मॉडरेट करते रहें !
एक ओर जल्द से जल्द मालिक मकान बनने की जोड़ तोड़, दूसरी तरफ़ बिल्डरों द्वारा जल्द से जल्द फ्लैट खड़े करने की होड़ ! दोनों ही पक्ष जिम्मेदार हैं, हवस शान्त करने का कोई तावीज़ खोजा जाये ।
ReplyDeleteनिर्माण के हर चरण पर सम्बन्धित विकास प्राधिकरण द्वारा निगरानी किये जाने की सही बैठायी जाती है, वह ढिढाई से कहते हैं कि हमारे सही गलत से किसी की किस्मत थोड़े बदल जायेगी... लो जी कल्लो बात !
होना यह चाहिये कि मोहल्ला समितियों से पँच चुने जायें, जो अपनी निगरानी में निर्माण प्रक्रिया को मॉडरेट करते रहें !
बहुत सार्थक प्रस्तुति..आज हम पैसे के लालच में लोगों की ज़िंदगी से खेल रहे हैं..और सरकार से इस विषय में कोई आशा करना तो बेकार की बात है...एक दो दिन शोर होता है, और उसके बाद यह व्यापर वैसा ही चलता रहता है..आज आदमी की ज़िन्दगी कितनी सस्ती हो गयी है.
ReplyDeleteइस देश का चरित्र बिगड़ गया है सर.. किसी को किसी अन्य की फ़िक्र ही नहीं... कानून का भी भय नहीं है... ऐसे में ये तो होगा ही...
ReplyDeleteबहुत विचारणीय लेख सतीश जी ......
ReplyDeleteकिसी भी हालत में इन बेईमानों और भ्रष्टाचारियों को आम आदमी की जेबों में डाके डालकर उन्हीं की जिंदगी से खिलवाड़ करने का इस तरह का निंदनीय अवसर नहीं
दिया जा सकता | अंकुश लगना अनिवार्य है | यदि सरकार नहीं ध्यान देती है तो जन जागरूकता पैदा की जाए |
sab jagah ek saa haal hai... chhote shaharon mein chhote star mein aur bade shahar mein bade star mein...
ReplyDeletekya jane kab koun sa aashiyana kabra ban jaae...
pata nahi aisi places k liye permission kyon mil jaati hai...
मुद्दा गंभीर है, पर पैसा बड़ी चीज है, और कानून न के बराबर,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत ही विचारणीय बिंदु है ... आभार
ReplyDeleteतब और दुःख होता है यह सोच के की हम कुछ कर भी नहीं सकते..
ReplyDeleteये दुनिया ऐसी ही हो गई है ,सतीश जी.
ReplyDeleteपोस्ट से आपकी संवेदनशीलता झलक रही है.
काश,लोग आप जैसे संवेदनशील होते.
'परिवार मे विश-बेल'और 'टूटे घोंसले'दोनों लेखों मे उठाई समस्याओं का समाधान ढोंग-पाखंड रहित पुरातन वैदिक-वैज्ञानिक पद्धति को पुनाह अपनाए जाने से ही मिलेगा।
ReplyDeleteविचारणिय मुद्दा है । सरकार को केवल अपनी कुर्सी की फिकर है ।
ReplyDeleteजिन्हें निगरानी का काम दिया जाएगा उसपर भी तो निगरानी रखनी पड़ेगी सतीश जी!
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