Friday, August 22, 2014

आज तुम्हारे दरवाजे भी लगते खूब बुहारे से - सतीश सक्सेना

मुक्त हंसी के कारण चिंतित रहते, यार हमारे से !
अब तो इनके दरवाजे भी, लगते खूब बुहारे से !

कितनी झुकी झुकी ही रहतीं, नज़रें शर्म के मारे से 
कब आएगी रात, पूछती अक्सर साँझ, सकारे से !

बीमारी में सो न सकोगे , इंसानों  की बस्ती में !
लोग जागरण  के चंदे को , फिरते मारे मारे से !

उठो नींद से, होश में रहना बस्ती नज़र आ रही है
गहरे सागर से बच आये , खतरा रहे किनारे से !

दर्द दगा और धोखे ने भी, यारों जैसा संग दिया     
हमने सारा जीवन अपना, काटा इसी सहारे से !

28 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना


    सूरज के हंसने पर लगता , चाँद सितारे हारे से !
    मुक्त हँसी से कितने चिंतित रहते यार,हमारे से !

    कैसे झुकी झुकी ही रहतीं, नज़रें शर्म के मारे से
    कब आएगी रात पूछतीं,अक्सर साँझ सकारे से !

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  2. वाह।। गज़ब

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  3. सूरज के हंसने पर लगता , चाँद सितारे हारे से !
    मुक्त हँसी से कितने चिंतित रहते यार,हमारे से !

    बढ़िया ।

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  4. उमदा 1सूरज के हंसने पर लगता , चाँद सितारे हारे से !-- वाह

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  5. @दारु, बीड़ी और नशे को, दुनिया गाली देती है !
    हमने सारा जीवन अपना,काटा इसी सहारे से !
    नशे को दुनिया ही नहीं गाली देती बल्कि देखे तो सभी धर्मों में कोई न कोई मतभेद है लेकिन नशे के विरोध में सभी एकमत से सहमत है कारण इतना ही है कि जिस चीज को नशे से मिटाना चाहते है नशा मिटाता नहीं केवल थोड़ी देर के लिए भुला देता है, तात्कालिक दुःख मिटाने का नशा एक कमजोर सहारा है !

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  6. हकीकत को बयां करती बहुत सुंदर रचना.

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  7. वाह ..बहुत सुंदर

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  8. bahut sundar aur yatharth ko prastut karti rachna . dil ko kahin gahare tak chhoo gayi.

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  9. लोग जागरण के चंदे को , फिरते मारे मारे से !...इस जागरण नाम की महामारी से तो देवी मां आज़िज आ चुकी होंगी अब तो....आपने बहुत अच्‍छा कहा

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  10. बहुत सुन्दर...

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  11. बेहद भावपूर्ण, बधाई.

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  12. विष ही विष की औषधि बन जाती है - ऐसा भी होता है !

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  13. सुंदर ग़ज़ल

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  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  15. उठो नींद से,जगते रहना,बस्ती नज़र आ रही है
    गहरे सागर से बच आये, खतरा रहे किनारे से !
    ....वाह! बहुत सुन्दर और प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  16. अच्छाहै...बहुतअच्चा..बधाइ

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  17. बहुत मनभावन गीत। बहुत सुन्दर गीत

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  18. kya khubsurat abhiwyakti hai..har shabd satik...gungunate hue...

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  19. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  20. मौज मस्ती में कितनी गहरी बात कह जाते हैं आप भाई साहब!!

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  21. मुक्त हँसी के कारण चिंतित रहते यार हमारे से
    - सुन्दर !

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  22. गज़ब !! बहुत सुन्दर...आखिरी वाली पंक्ति भी कमाल है -
    दारु, बीड़ी और नशे को, दुनिया गाली देती है !
    हमने सारा जीवन अपना,काटा इसी सहारे से !

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  23. waah bahut sundar gajal , aapki kalam lajabab hai , hardik badhai

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  24. उठो नींद से,जगते रहना,बस्ती नज़र आ रही है
    गहरे सागर से बच आये, खतरा रहे किनारे से ,...
    बहुत खूब ... सच कहा अहि सतीश जी ... खतरा किनारों से ही होता है ... अपनों से ही होता है ...

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  25. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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- सतीश सक्सेना

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