Monday, September 15, 2008

भारतीय महिला जागरण लेखन और ब्लाग प्रतिक्रियाएं -सतीश सक्सेना


हिन्दी ब्लाग जगत में महिलाओं से जुडी हुई समस्यायें पढ़ते समय हमेशा मैंने एक चुभन सी महसूस की जैसे कुछ छुट गया हो या कि इन लेखों में पुरुषों के प्रति कुछ अधिक कड़वाहट है जो कि सच प्रतीत नहीं होती ! पारिवारिक समस्याओं में, घर टूटने की अवस्थाओं में दोषी जितना पुरूष है, स्त्री का आचरण उससे कम दोषी नही है ! इस आपसी कलह में जहाँ पुरूष, पत्नी के प्रति लापरवाही का दोषी माना जाएगा वहीं स्त्री दोषी है, अपने ही परिवार में, अपेक्षाओं को पूरा न होने के कारण, घुट घुट कर रहने के लिए ! इस विषय पर मेरा विचार है कि कुछ लेखक या लेखिकाएं दुराग्रह से ग्रसित होकर होकर लिखते है ! ऐसे लेख और विचार, समाज के साथ कभी न्याय नहीं कर पाते बल्कि उसको पथभ्रष्ट करने में एक भूमिका ही निभाते हैं ! हमारा भारतीय समाज और संस्कार आज भी विश्व में अमूल्य हैं ! अतिथि देवो भवः एवं हमारी स्नेह भावना आज भी विश्व के सामने बेमिसाल हैं ! प्यार और ममता की यही विशेषता, भारतीय स्त्री को विश्व की अन्य महिलाओं से बहुत आगे ले जाती है !

शादी व्यवस्था के फेल होने में एक महत्वपूर्ण कारण, अपनी पुत्रियों को प्यार और पारस्परिक समझ की सही शिक्षा न देना ही है ! मैं यहाँ पर बहू और पुत्री में कोई भेद नही कर रहा ये सिर्फ़ नारी के दो रूप हैं! माता पिता या सास ससुर हम लोग हैं ! मेरा यह भी मानना है कि पुत्र (दामाद) और पुत्री (बहू ) दोनों ही एक दूसरे को सम्मान दें ! परन्तु पुत्री उम्र में छोटी होने के कारण, पहले सम्मान देने की जिम्मेदारी उठाये ! तो कोई घर अपूर्ण नही हो सकता है ! समय है पति पत्नी के संबंधों में, तल्खी कम कराने का प्रयत्न करने का,  न कि जिस आग में हम झुलसे हैं उसमें अपनी बेटियों और बेटों को भी झोंकने का प्रयत्न करें ! हमें अनुभव है तो इस अनुभव का लाभ अपनी बच्चियों को दें जिससे वे नए घर में जाकर एक नए जीवन का संचार करें जिससे दोनों घरों के रिश्ते और मज़बूत बन सकें और सुख दुःख में साथ खड़े होकर एक दूसरे को ताकत दें !

विवाह के बाद पुत्री अपने घर से विदाई लेकर जब नए घर जाती है तो शायद ही कोई निकृष्ट परिवार ऐसा होगा जहाँ

उसका खुशियों भरे वातावरण में स्वागत न किया जाए ! उस वक्त पुत्री के इस नए घर में, हर व्यक्ति अपने बेहतरीन
रूप को, उसके सामने प्रस्तुत करने का प्रयत्न करता है और प्यार जैसे न्योछावर किया जाता है ! इस खुशनुमा माहौल में, नववधू के मन में किसी प्रकार की शंका न होकर सिर्फ़ अपने नए घर में रमने की तमन्ना हो तो मेरा यह विश्वास है कि कोई ताकत इस माहौल में कटुता नही घोल सकती ! जरूरत है कि इस समय मेरी बेटी अपनी शंकाएँ हटा कर नए उत्साह से अपना घर बसाना शुरू करे !
आजकल कुछ लेख इस प्रकार लिखे जा रहे हैं जिससे प्रतीत होता है कि पुरूष नारी को निरीह और कमज़ोर मान कर अत्याचार करता है, मैं अपने परिवेश में एक भी ऐसे परिवार को नही जानता जिसमे नारी को परेशान करने की हिम्मत भी पुरूष कर सके, इसका अर्थ यह बिल्कुल नही कि नारियों को सताया नही जाता ! परन्तु इतनी अधिक घटनाएँ घटीं हो कि हम नव वधुओं को डरा ही दें, यह अतिशयोक्ति लगती है ! मेरा यह विचार है कि अगर अत्याचारों और विचारों के शोषण की बात करें तो यह ५० - ५० प्रतिशत है ! चूँकि यह विषय हमारे बच्चों से सम्बंधित है अतः बहुत नाज़ुक है, तीक्ष्ण सोच और पूर्वाग्रह ग्रस्त लेखनी अनर्थ कर सकती है अतः इस प्रकार के लेखों पर कमेंट्स बिना भली भांति विचारे नहीं देने चाहिए , मगर आदरणीय लेखिकाओं के इन लेखों पर, हमारे प्रबुद्ध साथियों ने, खुले दिल से, बिना गौर किए, मुक्तभाव कमेंट्स देने में कोई कोताही नही की ! ऐसे लेख जिसमें महिला को शोषित एवं पुरूष को शोषक घोषित किया जाए, हमारे बच्चों के मन में गहरा नकारात्मक प्रभाव डालेंगे मगर फिर भी हम (ब्लागर ) अभिभूत हैं, और खुले मन से तारीफ़ ........ वाह! वाह! और जोरदार तालियाँ........ ......मुझे भय है कि यह तालियाँ हमारी बच्चियों का अधिक नुक्सान करेंगी अतः तारीफ़, विषय देख कर की जाए तो अच्छा होगा !

मेरे मत से हर पुरूष पर उंगली नही उठाई जा सकती और न हर नारी को दोषी कहा जा सकता है ! "नारी को दासता से मुक्ति" "पुरूष के शोषण के खिलाफ आवाज़" जैसे जुमले केवल राजनीति के मंच की शोभा बढ़ाने के लिए ही उचित हैं, इस प्रकार के नारे, घर व्यवस्था में शायद ही कभी आधार पा पायें ? शायद कुछ दिन के लिए नारी को  तथाकथित  "दासत्व " का अहसास होता हो मगर समय के साथ यही नारी घर में एकक्षत्र साम्राज्य की मालकिन भी बनती है और उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता ! मैं ऐसे कई परिवारों को जानता हूँ जहाँ पुरुषों का महत्व है ही नही शायद वे "दासत्व" का जीवन निर्वाह कर रहे हैं और वेहद खुश भी हैं !

लेखन अमर है और कुलेखन आने वाली पीढी को एक नयी राह पर ले जाएगा, और भूतकाल में ऐसा हो चुका है जिसमें अधकचरे लेखकों ने अच्छे भले इतिहास के आधारभूत तथ्यों की मिटटी पलीद कर के रख दी और बाद में इसी लेखन को इतिहास और ऐसे लेखको को महानायक स्वीकार कर लिया गया ! अफ़सोस इस बात का है कि कुछ महिलाएं ख़ुद नही सोच पातीं कि वे क्या कह रहीं हैं, और इससे, समय के साथ, सबसे अधिक नुक्सान उन्ही का होने जा रहा है ! अपने शानदार प्रभामंडल और इन तालियों की गडगडाहट में उन्हें आने वाले समय तथा पीढी का उन्हें शायद ध्यान ही नहीं रहता ! वे शायद भूल जाती हैं कि इस विकृत संरचना की सबसे बड़ी शिकार वे ख़ुद ही होंगी ! और भारतीय पुरूष उस समय भी सर पर हाथ रखकर किंकर्तव्यविमूढ़ होगा या शायद आवेश में नारियों की इस गलती पर, दुखी मन के साथ, तालियाँ ही बजाये !

एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप के समय कोई नही सोचता कि हम दूसरे पक्ष के साथ अन्याय कर रहे हैं और अनजाने में भारतीय समाज की मूलभूत संरचना को बिगाड़ रहे हैं !मैं व्यक्तिगत अनुभव से पूरे संयुक्त परिवार की अच्छाइयों की तरफ़ ध्यान दिलाने का प्रयत्न कर रहा हूँ ! आज के समय में संयुक्त परिवार घटते जा रहे हैं मगर भाई-बहन-माता और पिता के प्यार की आवश्यकता तो सभी को है! जब कोई पुरूष पर उंगली उठाता है तो मुझे लगता है वह मेरे पिता को इंगित कर रहा है और यही बात स्त्री के विषय में हो तो मुझे मां दिखाई देती है ! क्या इन लेखिकाओं को यह महसूस नहीं होता कि जिनपर वे उंगली उठा रही हैं वे उनकी भावना से जुड़े, उनके खून से जुड़े अपने ही अभिन्न अंग हैं ! और भावना प्रधान वर्चस्व की मालकिन होने के कारण सबसे अधिक कीमत उन्हें ही देनी पड़ेगी, क्योंकि परिवार का अगला पुरूष उनका अपना बेटा होगा जिसको शिक्षा देने कि जिम्मेवारी उनकी अपनी ही है !

अंत में ताऊ रामपुरिया का एक वाक्य जो उनके नवीनतम लेख से उडाया गया है, "आशा है कि कृपया सकारात्मक रुप मे ग्रहण करेंगे !" ;-)  

28 comments:

  1. प्रश्न स्त्री बनाम पुरुष का नहीं अपितु पुरुष प्रधानता वादी मानसिकता का है जो महिलाओं में भी हावी है।
    आज भी बेटी के जन्म का वैसा स्वागत नहीं होता जैसा बेटे के जन्म का। यदि साधन सीमित हैं तो बेटी की पढ़ाई रोक कर बेटे को बाहर भेजने में कुछ भी ग़लत नहीं समझा जाता। कन्या भ्रूण हत्या आज भी सामाजिक अभिशाप बनी हुई है। दहेज की समस्या लड़की की शादी में ही आती है। पारिवारिक संपत्ति में लड़कियों को बराबर का हिस्सा कितने परिवारों में मिलता है?… क्षमा चाहता हूं। टिप्पणी कुछ ज़्यादा ही लंबी हो गई।

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  2. आप एक दम सही कह रहे हैं

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  3. भाई सतीश जी आपका यह आलेख इतना संतुलित है की इस पर टिपणी करने की कहीं जगह ही नही बची है ! ऐसे चिंगारी विषय पर आपने इतना संतुलित लेख लिखा है की सिर्फ़ इसको बार बार पढ़ने का ही मन करता है !
    सारे सवाल और उनके जवाब अन्तर्निहित हैं ! दोनों ही बातें हमारे समाज में मौजूद है ! पहले मीडिया इतना प्रभाव शाली नही था तो बातो और घटनाओं का प्रचार नही हो पाता था ! आज मीडिया को प्रभावी तो कह सकते हैं पर
    उपयोगी नही ! मीडिया को आज अपना चैनल २४ घंटे चलाना है तो कुछ भी चाहिए होता है ! घटनाए बढ़ा चढ़ा कर दिखाई जाती हैं ! जबकि पहले इनका प्रचार नही था ! आज कुछ महिला कहे या लड़किया कहे , उनमे भी एक डर
    का माहौल पैदा किया गया है ! और आपका यह कथन सही है की अगर उनका ससुराल में स्वागत होता है तो वो भी अपने आप उनमे मिल ही जाती है ! अब समाज में हर तरह के लोग हैं ! अच्छे भी बुरे भी !

    पर आप की ब्लॉग वाली बात से मुझे ऐसा लगता है की जो कुछ यहाँ लिखा जा रहा है वो एक समय के बाद जब आज से दस बीस साल बाद पढा जायेगा ! तब क्या सामाजिक असामंजस्य पैदा करेगा वो एक चिंतनीय बात है !
    इस पर सुधी लेखक एवं लेखिकाओं को ध्यान मनन की जरुरत मेरे हिसाब से तो है !
    धन्यवाद और शुभकामनाए !

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  4. आप ने बिलकुल सही लिखा हे,लेकिन मे मानता हू ऎसा लेख वही नारियां लिखती हे जिन के परिवार मे, या उन के साथ अब या बचपन मे कुछ गलत हुआ, या इन के मां बाप ने उन्हे समाज के बारे ,खास कर मर्दो के बारे नफ़रत ही भरी इन के दिलो मे, मुझे कभी कभी गुस्सा भी आता हे , लेकिन तरस भी आता हे, ऎसी मान्सिकता पर, भारत की नारी पुरे विश्व मे महान कही ओर मानी गई हे, ओर हे भी.
    आप ने बहुत अच्छा लेख लिखा हे शायद इस लेख का कुछ असर हॊ.वेसे भी कहते हे जो मिठ्ठा बोलता हे सभी से प्यार ओर इज्जत पाता हे, वो चाहे नर हो या नारी,हमारे घरो मे तो अब भी बेटी को,यही समझाया जाता हे कि, ससुराल को ही अपना घर समझना... अजी नही, अब ससुराल ही तुम्हारा अपना घर हे, ओर सास ससुर ही अब तुम्हारे मां बाप हे....
    धन्यवाद

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  5. महिलाएं चाहती हैं कि परिवार में चाहे वह पिता का हो या पति का, उन्हें उतने ही अधिकार प्राप्त हों जितने पुरुषों को हैं। जब कि हमारा पारिवारिक ढांचा पुरुष प्रधान है। इस कारण से इस ढांचे का पूरी तरह से रूपांतरण होने तक यह द्वंद बना रहेगा। इस द्वंद के कारण परिवार में हलचल बनी रहेगी। वर्तमान ढांचे को चुनौती महिलाओं की ओर से मिल रही है इसलिए वे ढाँचे को विलेन दिखाई पड़ती हैं।
    सतीश जी उन के आस पास के जिन परिवारों की बात करते हैं वहाँ ऐसा ही लगेगा। क्योंकि वहाँ महिलाओं ने यथास्थिति को स्वीकार कर लिया है। वे उसी में रच बस गई हैं।
    महिला के लिए यदि उस का पति अच्छा है उसे मान देता है तो उस के लिए जीवन स्वर्ग है,और पति सही नहीं तो वही नरक बन जाता है।
    क्या डाक्टर अमर ज्योति का एक भी कथन गलत है?
    जिस परिवार में महिला को बराबर का हक मिलता है वह स्वर्ग समान है। यही महिलाएं चाहती हैं।
    हाँ, व्यक्तिगत स्वभाव और चरित्र की बात और है वह तो पुरुष क्या और नारी क्या? सब समान हैं। नारी भी परिवार नष्ट कर सकती है और पुरुष भी।

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  6. यह तो हिन्दी ब्लॉगिंग का संक्रमण काल है। हर कोई अपने लिये रोल तलाश रहा है। महिलायें ग्लोरिया स्टेनम (American feminist icon, journalist and women's rights advocate) का रोल तलाशें, तो आश्चर्य नहीं।

    बाकी, समय के साथ पत्थर नुकीले से गोल और सुचिक्कण बनेंगे।

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  7. मुझे तो ये एक पिता जिसकी बेटी विवाह योग्य हैं उसके रुदन के आलवा कुछ नहीं लगता . हर पिता समाज को यही बताना चाहता हैं की देखो हमनी कितनी संस्कारी पुत्री तुमको दी हैं सो उसका ख्याल रखना . लेकिन एसा क्यूँ करना पड़ता हैं पिता को ??? अगर जवाब हो तो जरुर जानना चाहती हूँ . क्यूँ हर पिता के मन मे अपनी पुत्री के लिये संशय होता हैं ?? की वो सुखी रह पायेगी या नहीं .
    ब्लॉग पर महिला लेखन को लेकर क्यूँ परेशानी होती हैं ?? आज तक नहीं पता चला . जब पुरूष निरंतर महिला के लिये "मांस " शब्दों का उपयोग करते हैं अपनी ब्लॉग पर या दुसरे की पत्नी के ऊपर व्यंग करते हैं तब क्यूँ तकलीफ नहीं होती और क्यूँ उस मानसिकता को नहीं लिखा जाता ?? अगर आप ब्लॉग लेखन की बात कर रहे हैं तो जिस ब्लॉग लेखन मे एक ब्लॉगर से उसका लिंग पूछा जाता हो और बार बार अनाम बन कर महिला को गाली दी जाती हो उस समाज मे अगर हम भी आप को आप की ही शैली मे जवाब देते हैं तो क्या गलत करते हैं .
    जो पुरूष ये समझते हैं की महिला ब्लॉग लेखा पुरूष के ख़िलाफ़ लिख रही हैं वो "पुरूष" को बहुत ज्यादा importance दे रहे हैं

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  8. मुझे तो ये एक पिता जिसकी बेटी विवाह योग्य हैं उसके रुदन के आलवा कुछ नहीं लगता . हर पिता समाज को यही बताना चाहता हैं की देखो हमनी कितनी संस्कारी पुत्री तुमको दी हैं सो उसका ख्याल रखना .
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    डॉ अमर ज्योति और रचना जी से सहमत !
    अब सतीश जी यह बताएँ कि उनकी बहू कब आ रही है क्योंकि वे भयभीत दिखाई दे रहे हैं और आने वाले दिनों के लिए एक सॉलिड भूमिका तैयार कए रहे हैं।उन्होंने अपने बेटे को क्या शिक्षा दी है ?उस पर उनसे कम से कम पांच भाग में एक नैतिक शिक्षा वाली कविता की मुझे अपेक्षा है।
    एक और बात बताएँ क्या आपने अपनी सम्पत्ति मे से अपनी बेटी को केवल नैतिक शिक्षा और टीवी,वॉशिंग मशीन ,ए सी,माइक्रोवेव ही दिया है या घर ,ज़मीन आदि भी दी है ?उम्मीद है सम्पत्ति का बराबर बंटवारा किया होगा आपने और बेटी को ।मुझे उम्मीद है कि आपने बिटिया के साथ भेद भाव नही किया होगा ,क्योंकि आप उसके सबसे बड़े शुभचिंतक हैं।

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  9. इस लेख पर बस इतना ही कहना है कि दिल बहलाने को गालिब यह ख्याल अच्छा है।

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  10. @ सुजाता जी !
    ब्लाग मैनर्स मैं आपको समझाना नही चाहता, मगर अनुरोध है के जबतक आप व्यक्तिविशेष के बारे में अच्छी तरह जान न लें ,और व्यक्तिगत कमेन्ट तो बिल्कुल नहीं, करने चाहिए ! मैं यही संस्कार सिखाने की कोशिश कर रहा हूँ , अगर आप को इनकी आवश्यकता महसूस नही है तो मत पढिये ऐसी चीजों को, आप पूर्णतया स्वतंत्र हैं ! हर व्यक्ति के अनुभव का अपना दायरा होता है, उसी लिहाज से उसका नजरिया तय होता है !
    खैर, आपको मुबारक हो सुजाता जी ! आपके तीखे प्रश्नों से मैं वाकई घायल हुआ हूँ, लगता है कि निर्दोष दिल पर निर्ममता से तीर चलाया गया है ....
    नारी की पहचान कराये,
    भाषा उसके मुखमंडल की
    अशुभ सदा ही कहलाई है
    सुन्दरता कर्कश नारी की
    कष्टों को आमंत्रित करती ग्रह पिशाचिनी सदा हँसेगी !

    आपके प्रश्नों का उत्तर देना आवश्यक नही है मेरे लिए ! मगर मेरी अर्जित की हुई सारी संपत्ति पहले मेरी पुत्री की है बाद में मेरे बेटे की, अगर प्यार की परिभाषा सीखने का कभी मन हो तो मेरे दोनों बच्चों से मिल लीजियेगा.
    जहाँ तक मैंने क्या दिया है समाज को तो मैंने म्रत्योपरांत अपने शरीर के सारे अंग दान कर रखे है, मेरा कमाया हुआ धन तो मैं अपने लिए मानता ही नही ! मेरी म्रत्यु पर अगर वे अंग आपके किसी कार्य के हों तो अवश्य सूचित करें !

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  11. हालाँकि यह ब्लॉग सतीश जी का है पर उनसे क्षमायाचना सहित कुछ निवेदन सुजाता जी से करना है। असहमति और आक्रमण की भाषा में अंतर होता है क्या यह बात भी समझानी होगी? एक सह्रदय और संवेदनशील व्यक्ति को चोट पहुंचा कर आपने अच्छा नहीं किया। अधिक कुछ नहीं कहूंगा। समझदार व्यक्ति के लिये इशारा ही काफी होता है। और आपकी समझदारी में मुझे अभी भी पूरा भरोसा है।

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  12. आप से सहमत होते हुए भी कुछ असहमत हूँ, दरअसल समाज बदल रहा है, इस में कोई शक नही लेकिन सच तो ये है की आज भी लडकियां भेद भाव का शिकार हैं, ख़ास कर निचले तबके और गाँव देहातों में, मैं मानती हूँ की सब एक जैसे नही होते, और जहाँ तक सतीश जी आपका सवाल है तो आप जैसा हर कोई नही होता, आज भी आप दस घर, मैं शहर की बात नही कर रही, शहर गाँव, दोनों को लेकर देखिये, आपको सच्चाई दिख जायेगी. लेकिन फिर भी उम्मीद की शमा रौशन हो रही है, देर से ही सही, रौशनी ज़रूर आएगी...

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  13. मगर मेरी अर्जित की हुई सारी संपत्ति पहले मेरी पुत्री की है बाद में मेरे बेटे की,
    सतीश जी
    यूँ तो ये बात आपने सुजाता के प्रश्न का उत्तर मे दी हैं पर अगर इसको वहा के सन्दर्भ से ना जोड़ कर अलग से ले तो क्या आप अपनी पुत्र और भावी पुत्र वधु के प्रति अन्याय नहीं कर रहे . आप की पुत्र वधु भी किसी पिता की संस्कारी पुत्री होगी और उसका पिता भी चाहेगा की आप के घर मे उसके भी अधिकार हो उनका क्या होगा ??
    और अगर आप की पुत्री के अन्दर आपकी सम्पति की वजह से अहकार आज्ञा तो ?? उसको अपनी ससुराल मे सुनना पड़ सकता हैं " ज्यादा बाप की दौलत का अंहकार हो तो अपने बाप के घर ही रहती तुम्हेरे नाम जायदाद हैं तो क्या होगया , सर पर मत चढो "

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  14. आर्थिक निर्भरता ओर शिक्षा यही दो चीज़ आप स्त्री को दे ....ओर किसी चीज़ की जरुरत नही .

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  15. dr anuraag
    aap nae wahii kehaa jo ham sab keh rahey haen kam sae kam mae to yahii likhtee hun ki naari par nirantar
    aarthik aatm nirbhartaa hii ek maatr upaay haen

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  16. रचना की बात शायद सही है
    par satish ji aap jarur nazar daaley sujata teekha likhtee haen par uska maksad kewal aur kewal mahila ka adhikaar kae prati sachet hona hota haen

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  17. चित भी मेरी पट भी मेरी

    Above appeared some women are policing the blog for their anti-male agenda. Beware of such ..... .


    aapko अपनी पॉलिटिक्स में घसीट hi लेंगी

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  18. सोचा तो सही है आपने. सस्नेह.

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  19. रचना जी !
    सुजाता के कटाक्ष....
    "डॉ अमर ज्योति और रचना जी से सहमत !..."

    डॉ अमर ज्योति से सुजाता जी सहमत बता रही है जबकि डॉ अमर के शब्द उनकी समझ में ही नही आए हैं,
    रचना का इशारा कविता के भाव पर है जबकि सुजाता मेरे रुदन का जिक्र कर रही हैं

    "अब सतीश जी यह बताएँ कि उनकी बहू कब आ रही है क्योंकि वे भयभीत दिखाई दे रहे हैं !और आने वाले दिनों के लिए एक सॉलिड भूमिका तैयार कए रहे हैं।उन्होंने अपने बेटे को क्या शिक्षा दी है ?उस पर उनसे कम से कम पांच भाग में एक नैतिक शिक्षा वाली कविता की मुझे अपेक्षा है।"

    मेरा २६ वर्षीय पुत्र, हर तरह से, सबसे दुनिया के सबसे अच्छे पुत्रों की क्लास में से है ! मैं ख़ुद शक्तिशाली और समर्थ और योग्य पिता हूँ, मेरी भावी बहू मेरे घर को पाकर धन्य हो जायेगी, वहां उसको मेरे जैसा पिता मिलेगा !
    भय शब्द मैं जानता ही नहीं , रह गयी सालिड भूमिका , यह काम घटिया लोग करते हैं, हम जैसे शानदार दिल के लोग हर काम मस्ती में करते हैं और हमें लोग भी हमेशा अच्छे मिलते रहे हैं, हमारी संगती में आने वाले कुटिल और अहंकारी लोग भी शर्मिन्दा होकर प्यार करना सीख जाते है सुजाता जी !! अपने पुत्र को मैंने अपने बेटी से अधिक शिक्षाये दी हैं, उसके लिए आपको मेरे ब्लाग को ध्यान से पढ़ना होगा ! हालाँकि अब मुझे आपकी अपेक्षा की चिंता नही है...

    "एक और बात बताएँ क्या आपने अपनी सम्पत्ति मे से अपनी बेटी को केवल नैतिक शिक्षा और टीवी,वॉशिंग मशीन ,ए सी,माइक्रोवेव ही दिया है या घर ,ज़मीन आदि भी दी है ?उम्मीद है सम्पत्ति का बराबर बंटवारा किया होगा आपने और बेटी को ।मुझे उम्मीद है कि आपने बिटिया के साथ भेद भाव नही किया होगा ,क्योंकि आप उसके सबसे बड़े शुभचिंतक हैं।"

    मैं अपना जवाब दे चुका हूँ, आप के घर में आपके पिता की स्थिति जानने की वाकई चिंता है, हो सके तो कुछ प्रकाश डालियेगा !

    मैं आप और आपकी महिला चेतना से जुडी समस्त लड़कियों / महिलाओं का बहुत सम्मान करता हूँ ! और आप लोगों के ब्लाग पर कई बार जा जाकर अच्छे लेखों पर अपनी उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रियाएं देता रहा हूँ ! मैं जो कुछ भी लिखता रहा हूँ अपने दिल से लिखा है कभी किसी से तारीफ़ या प्राप्ति के लिए कभी नहीं लिखा,!इस प्रकार का आचरण देख कर नहीं लगता कि आप लोगों को हमारी जरूरत है, शायद कुछ महिलाओं को स्नेह की आवश्यकता है ही नही !
    -यह कौन सी सभ्यता और आचरण है जिसमे अपने पिता समान व्यक्ति से बात करने का सलीका भी नही आता !
    -यह पूरी रचना एक शक्तिशाली एवं समर्थ पिता के द्बारा अपनी सम्पूर्ण शिक्षित पुत्री को समर्पित कविता है जिसका उद्देश्य, इन आचरणों को अपने व्यवहार में लाना है !

    "सुजाता जी तीखा लिखती जरूर हैं..."

    सुजाता तीखा नहीं लिखती हैं , असभ्य लिखती हैं, उन्होंने बिना दोष मेरे पुरे परिवार को अपनी कल्पना अनुसार परिभाषित भी कर दिया, उनकी भाषा शायद किसी भी घर में कलह कराने के लिए पर्याप्त है ! शायद सुजाता जी के पिता एक भयभीत पुरूष होंगे , मैंने जीवन में कभी भय शब्द को ही नही सीखा, मगर दुःख है कि एक बच्ची मुझे भयभीत बता रही है !

    मगर जब यही तीखा व्यवहार पुरूष ब्लागर करते हैं तो तिलमिलाहट क्यों...... अभी हाल में आप लोगों के समर्थन में ऐसे ही एक ब्लागर के यहाँ से मैंने ख़ुद वाक् आउट किया था ! आशा है की आप अपने आन्दोलन में कुछ उचित बदलो जरूर लायेंगी ! शुभकामनायें

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  20. आपकी साह्स और हिम्मत से में बहुत खुश हूँ .
    बहुत ही उन्दा जवाब आपने दिए .धन्यवाद

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  21. आपका लेख एकदम संतुलित है. ऐसा लिखना काफी कठिन है, लेकिन आप इस कार्य में सफल हुए हैं.

    आजकल खरा लिखना कुछ कठिन हो गया है, खास कर जब आलेख नारी विषय को स्पर्श करता है. लेकिन लिखते रहें, सच्चाई सामने आ जायगी. टिप्पणी की सुविधा का मतलब ही यह है कि खुल कर चर्चा की जाये.

    यदि चर्चा के बदले कोई टिप्पणीकार अस्वस्थ दिशा में विषय को ले जाने की कोशिश करता है तो उसका मतलब है कि उसके पास अपने नजरिये के पक्ष में बोलने के लिये कोई ठोस तथ्य नहीं है. ऐसे लोगों को भी जम कर टिप्पणी करने दें. कौन कितने पानी में है यह व्यक्त हो जायगा.


    -- शास्त्री जे सी फिलिप

    -- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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  22. समाज आज भी पुरुष-वर्चस्व वादी है.
    इसे सबसे पहले स्वीकार करना चाहिए .

    हमने ढेरों प्रगतिशील और समाजवादी-साम्यवादियों को काफी निकट से देखा है.
    व्यवहार में वो भी नारी, दलित और अल्पसंख्यक विरोधी होते हैं.

    डॉक्टर ज्योति जी की बात से मैं इत्तेफाक रखता हूँ .
    सतीश जी ने भी अपनी बात समुचित ढंग से रखने का प्रयास किया है.
    यहाँ नारी-विरोध की बात नहीं लगती.
    अभिव्यक्त करने के अपने ढंग होते हैं, अपना शिल्प होता है.
    इस चक्कर में सम्ब्भव है किसी को उनकी बात का आशय कुछ और लगा हो.

    मैं रचना जैसी बहनों से विनम्र आग्रह करूँगा कि
    शालीनता ज़रूर बनाए रखें.अपनी बात रखें.अपना तर्क रखें.लेकिन व्यक्तिगत आरोपण असंसदीय ही समझा जायेगा.
    आक्रामकता भी ज़रूरी है, लेकिन सतीश जी जैसे भले मानुष के साथ kya लड़ना-झगड़ना.

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  23. पिता तुल्य सतीश जी ,
    आप आहत हुए उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ!मै कमेंट करने वापस नही आने वाली थी पर चूंकि आपने मेरे कमेंट के जवाब मे तीन तीन बार उत्तर दिया और तिलमिला कर पर्याप्त प्रहार करने की कोशिश की इसलिए आना पड़ा।
    आप भले मानस हैं ,मुझे कोई शंका नही पर आपने अपने जवाबी कमेंट्स में यह साबित किया है कि आपमें खुद को दुनिया मे सबसे भला व्यक्ति मानने का कैसा दम्भ है । किसी भी भले मनुष्य को यह शोभा नही देता कि वह अपनी पोर्णता के भ्रम पाले ।आपने मुझे असभ्य ,अशिष्ट जो भी कहा लेकिन अपने कमेंट्स में अपनी भी इसी योग्यता को प्रमाणित कर दिया सो सिद्ध हुआ कि आपमे और मुझमे कोई अंतर नही !!कटु और असभ्य होने मे आप मेरे सानी निकलें :-)
    आपने अपने अंग दान किये हैं यह अच्छा है पर आपका वाक्य है -मेरी म्रत्यु पर अगर वे अंग आपके किसी कार्य के हों तो अवश्य सूचित करें !

    आप भी अपनी सीमा इस कदर भूल गये कि मेरे अनिष्ट तक की आपने कामना कर डाली ??
    खैर ,
    आपके ब्लॉग पर आकर मुझे खेद हुआ!इसके बाद मेरी ओर् से कोई टिप्पणी नही आयेगी ।
    बस यह जानकर खुशी हुई कि आपने अपनी पुत्री को अपनी सम्पत्ति मे बराबर का वारिस बनाया है हालांकि आपका उत्तर अब भी गोल मोल ही है ।

    ईश्वर करे आप ऐसे ही विनम्र ,सदाचारी और भले मनुष्य बने रहें और आइन्दा कभी कोई असभ्य आपके ब्लॉग पर आ जाए तो उसे अप्रत्यक्ष रूप से असभ्य हो कर जवाब न दें बलकि अपनी विनम्रता से शर्मसार कर दें ।
    धन्यवाद व
    आपकी पुत्री को मेरी शुभकामनाएँ ।ईश्वर करे वह भविष्य मे एक सफल और शक्तिशाली स्त्री सिद्ध हो ,अन्याय का प्रतिकार करे ,सुखी जीवन जिए,करियर में प्रगति हासिल करे और नए नए प्रतिमान गढे,अपने समाज और आस पास की स्त्रियों को अपनी शिक्षा और संस्कारों से प्रभावित करें ।
    सादर ,

    सुजाता
    और हाँ ,
    मेरे पिता के कोई पुत्र नही है सो बहू सुख और बहू भय दोनो से वे वंचित रहेंगे :-)और हाँ एक सुविधा आपके पास कमेंट मॉडरेशन की भी है कोई कमेंट आपत्तिजनक लगे तो आप उसे हटा सकते हैं ।
    आपके आशीर्वाद की अभिलाषिणी ,

    सादर
    सुजाता

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  24. "मैं रचना जैसी "
    sharoj ji maene kisi par bhi koi personal aakshep nahin kiyaa phir yae baat aap ne kyu kahi ,
    aur mae bloging professionally kartee hun nayee sae purani post ko jodtee hun day to day padhtee hun
    maere liyae bloging ek psotpar aakar khatam nahin hotee

    aur jahaan ..... kehrahey anaam vyaktiyon kae kament ko moderate nahi kiya jaata wahan shaleenta ki kyaa baat karni haen

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  25. सुजाता जी !
    आप अपना पिता तुल्य पत्र को दोबारा पढ़ कर अवश्य देखें ! मैं दुबारा आपसे कह रहा हूँ कि व्यक्तिगत प्रहार, और व्यक्तिगत प्रश्न नहीं करने चाहिए, आपने मेरे वारे में बिना कुछ भी जानते हुए भी किए ! आप फिर मुझे मजबूर कर रहीं हैं कि मैं अपने बारे में अपने कार्यों के बारे में फिर आपको बताऊँ.....आप फिर विश्वास नहीं करेंगी और मुझे घमंडी मानने लगेंगी.
    अगर आप मेरे जैसे लोगों को नही जानती तो इसमे मेरी कोई गलती नही सुजाताजी .....
    मुझे आत्म प्रसंशा से ख़राब कुछ नहीं लगता, मगर जवाब देना मजबूरी थी !मैं आपके अनिष्ट कामना जैसी बाते सोच भी नही सकता....

    "दुनिया में सबसे भला मानने का दंभ".... शायद कवि ह्रदय लोगों के बारे में आप नही जानती, मगर जो कुछ मैंने लिखा, मैं वैसा ही हूँ....

    मेरी आपसे बाप बेटी का रिश्ता बनने की कोई चाह नही है, मगर उम्र में लगभग २३ वर्ष छोटी होने के आपको बेटी तुल्य समझ कर( आज के समय में यह गलती है) क्षणिक आवेग में मैंने (मानवीय भूल) कुछ कह दिया हो तो खेद है ...आपके सम्बन्ध में भविष्य में ध्यान रखूँगा ...

    मगर आप एक महत्वपूर्ण कार्य कर रहीं है, सिर्फ़ कुछ मुद्दों पर मैं आप लोगों का विरोधी हो सकता हूँ, मगर आपका कार्य समाज के लिए आवश्यक है , अतः आप और रचना जी के विचारों की इस ब्लाग पर हमेशा आवश्यकता रहेगी ! आपका हमेशा स्वागत होगा...

    अपने से बड़ों के प्रति शिष्टता का वर्ताव करें....मेरा आशीर्वाद आपके साथ है सुजाता !

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  26. सतीश जी
    बहुत अच्छा परिवार बचाने के लिये आपको प्रयास करने ही चाहिये. कुछ महिलायें जो स्वयं पारिवारिक सुखों की अनुभूति नहीं कर पाईं हैं या किन्ही कारणोंवश अपनी महत्वाकाक्षाओं की पूर्ति नहीं कर पाईं हैं, वे अपनी रचना पर तो विपरीत विचार को भी स्वीकार नहीं कर पातीं जबकि दूसरों के खासकर पुरुषों के वैयक्तिक जीवन को कट्घरे मै खडा करना अपना अधिकार समझती हैं किन्तु आप परेशान न हों. परिवार की मूल धारणा को बचाये रखने के लिये इनके तीरों का जबाब स्नेह के फ़ूलों से ही देना होगा. जिन्हें परिवार का प्रेम व संरक्षण नहीं मिल पाया वे तो पुरुषों पर वार करेंगी ही, तथा विदुषी होने के अहम में कुछ सुनेंगी ही नहीं, ये केवल सुनाना चाहती हैं सुनना नहीं, केवल प्रेम पूर्ण व्यवहार करना ही इन्हें परिवार व समाज से जोडे रख सकता है, ईश्वर से यही कामना है कि हमें इतनी सामर्थ्य दे कि इनकी कटुता को सहन कर माधुर्य दे सकें. आप अपने आप को घायल महसूस न करें. लिखते रहें.

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  27. lekh bhaut had tak sahi hai
    samanata ka bhaav hona hi chahiye
    magar usmain bhi kuch apni limitation hai

    lekh hamesha hi apne anubhav ko yaa apne dekhe hue waqaye se juda hota hai
    aur sabhi ungliyan to samaan nahi ho sakti
    kisi ko achha anubhav milta hai kuch bura

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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