Tuesday, July 7, 2009

मज़हब के आदेश !




दिल्ली राजनेताओं में से एक चौधरी मतीन अहमद जो कि विधान सभा सदस्य (सीलमपुर ) हैं, से मिलकर ऐसा नहीं लगा कि मैं किसी राजनेता से बात कर रहा हूँ, बल्कि एक बेहद शांत, सुलझे, विद्वान् और जमीन से जुड़े व्यक्तित्व से मिलने के बाद लगा कि काश सारे राजनेता ऐसे ही हों !


आतंकवाद और धर्म पर मतीन अहमद कहते हैं -

" इस मज़हब (इस्लाम) में आदेश दिया गया है कि कोई पिता बाहर अन्य बच्चों के साथ खेलते हुए बच्चे को बेटा कहकर आवाज़ न दे बल्कि उसका नाम लेकर बुलाये क्योंकि उन बच्चों में अगर कोई बिना बाप का बच्चा है तो उसका दिल न दुखे कि काश आज कोई मुझे भी बेटा कहने वाला होता !

कोई भी सच्चा मुसलमान किसी का दिल दुखाने का काम नहीं कर सकता सवाल सिर्फ नफरत फैलाने वालों की पहचान का है, फिर वे चाहे किसी कौम के हों ! "

13 comments:

  1. इसी बहाने आपने गहरी बात कही है।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. बिल्कुल दुरुस्त फ़रमाया मतीन अहमद आहब ने. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  3. Netaaon ke baare mein mere man mein aadar ki bhaawana kabhi jaagrit nahi hui!.... beshak Chaudhari Mateen Ahmad achchhe insaan honge....

    ..... lekin kisi bhi party yaa majhab ke raajnetaaon ko dekh kar lagtaa hai ki inake dikhaane ke aur chabaane ke dant alag alag hote hai!.....blog-post badhhiya hai, Dhanyawaad!


    ..... mai abhi Germany mein hun!

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  4. बहुत अच्छा लिखा है

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  5. अच्छे इंसान भी होते हैं.

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  6. भला कहा चौधरी मतीन अहमद जी ने।
    पर इस्लाम का हवाला दे यह कहने की जरूरत पड़ रही है - उसपर सोचें मुस्लिम मित्र!

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  7. दुरुस्त फ़रमाया Par aajkal kitne log isbaat ko maante hain......... chaliye hum bhi iski shuruaat karen aaj se.....

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  8. सतीश जी,

    श्री मतीन अहमद साहब के हवाले से जो बात आपने सामने रखी है वो गंभीर है और आज के दौर में पनपती हुई मानसिकता पर एक कड़ा प्रहार करती हैं।

    काश कि धर्म को मानवीय पहलु के साथ पुर्नाध्यन किये जा सके।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  9. बिल्कुल सही फरमाया आपने .

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  10. प्रिय सतीश -अप्रैल और मई माह में मैंने आपके ब्लॉग के कितने चक्कर लगाये बयान नहीं कर सकता =मेरा अब पढना ज्यादा और लिखना कम हो गया है | मेरे गीत और लाईट ले यार का तो तब से पाठक हूँ जब से आपका मुस्कराता चेहरा (तस्वीर में ) देखा है |
    कितनी सुंदर बात है की बिना बाप के बच्चे को भी तकलीफ न हो की मुझे भी कोई बेटा कहने वाला होता

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  11. नाम ही पहचान होती तो शायद किसी को भी अपने पिता का नाम प्रार्थना पत्रों, सरकारी रिकार्डों में दर्ज न करना पड़ता. न कोई गर्व करता, न कोई हीन भावना से भरता. बाकि अन्य समस्याएं भी न होती ..............जैसा की आप ने अपने लेख में फ़रमाया है. उचित कार्य प्राथिमिकता से करने की उचित समझ जिम्मेदारों को कब आएगी, या सिर्फ यूँ ही भाषण ही सुनते रहेंगे और तालिया बजाते रहेंगे...........पिछले बावन वर्षों की तरह.

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एक निवेदन !
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- सतीश सक्सेना

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