प्राकृतिक आपदा में बुरी तरह से घायल सिक्किम , इनदिनों अपने जख्म सहला रहा है ! इस भयानक त्रासदी में मारे गए सौ से नागरिक और घायलों की अनगिनत संख्या भी, टेलीविजन चैनल्स का ध्यान खींचने में असमर्थ है !
नोर्थ ईस्ट की खबरों में शायद अधिक टी आर पी की संभावना नहीं है !
६.९ रेक्टर स्केल का भयानक भूकंप झेल चुके, सुदूर क्षेत्र में स्थिति हमारे इस पर्वतीय राज्य को, पूरे परिवार का साथ और सहानुभूति चाहिए !
दिल्ली, मुंबई में चटपटी खबरों को ढूँढती , सैकड़ों ओ बी वैन, इस भयानक त्रासदी के समय, हमारे इस सुदूर पूर्वीय राज्य से गायब थीं !
पिछले दिनों भारी वर्षा में भी, बसों की छत पर चढ़ कर, पानी में भीगते, दहाड़ते मीडिया के जाबांज , सिक्किम की इस तकलीफ में, दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहे थे !
कुछ न्यूज़ चैनल सिक्किम वासियों से महज़ अपील कर रहे थे कि वे कुछ तबाही के विडिओ अथवा फोटो भेंज दें ताकि वे सिक्किम में अपनी उपस्थिति दिखा सकें ! हाँ अधिकतर चैनलों की यह चिंता जरूर है कि अगर दिल्ली में इस तीव्रता का भूकंप आया तो हमारा क्या होगा !
यह चोट सिक्किम को नहीं देश के सीने में लगी है , मीडिया के पहलवानों को समझाने की जरूरत है क्या ?
हमें वृहत और संयुक्त परिवार में जीने का सलीका आना चाहिए अन्यथा पड़ोसियों के द्वारा हमारा उपहास उड़ाया जा सकता है !
आपके होते दुनिया वाले ,मेरे दिल पर राज़ करें
आपसे मुझको शिकवा है,खुद आपने बेपरवाई की
सटीक चिंतन ... पूरा देश और उसकी परेशानियां हमारी अपनी हैं ...
ReplyDeleteगम्भीर जाग्रतिप्रेरक चिंतन!!
ReplyDeleteमिडिया को तो बस मसाला चाहिए
ReplyDeleteघायल सिक्किम वासियों को इस समय हर इंसान की इंसानियत की जरूरत है !
ReplyDeleteशुभकामनाएँ भाई जी |
"हमें वृहत और संयुक्त परिवार में जीने का सलीका आना चाहिए अन्यथा पड़ोसियों के द्वारा हमारा उपहास उड़ाया जा सकता है !"
ReplyDeleteआपका सरोकार तीव्र संवेदना से भरा है. हमें देश की तरह जीना चाहिए. और ऐसी संवंदनशीलता मीडिया में भी आनी चाहिए.
आपका कहना बिल्कुल सही है।
ReplyDeletei think the main reason was that the road was not accessible
ReplyDeletethe army was doing rescue operation as well road repair
the entire road traffic was halted to and fro and probably that is why media was not there
but i do remember seeing visuals on zee tv along with a anchor
sometimes its better that rescue operation should go on rather then the media coverage
बहुत संवेदनशील चिन्तनयुक्त प्रासंगिक लेख....
ReplyDeleteऐसी मानसिकता के कारण ही पूर्वांचल के देश शेष भारत से नाराज रहते हैं। बहुत अच्छा आलेख।
ReplyDeleteबेशक बहुत बड़ी त्रासदी है . यातायात न खुलने से भी समस्या आई है .
ReplyDeleteलेकिन यह सिक्किम की ही समस्या नहीं है . कल को कहीं भी आ सकती है .
मीडिया का यह भी एक चेहरा है...
ReplyDeleteआपने बिल्कल सही कहा है पूर्वोत्तर के राज्य असम की निवासी होने के कारण यह दर्द मुझे भी सालता है.. सिक्किम के भूकम्प की हृदय विदारक खबरें स्थानीय अख़बारों में मिलती हैं और मेरी एक परिचित के भाई ने स्वयं इस विपदा का सामना किया, वहाँ बहुत अधिक नुकसान हुआ है....
ReplyDeleteहमें तो ख़बरों से ही पता चलता है कि देश-दुनिया में क्या हो रहा है... यदि खबर लेने-देने वाला मीडिया ही सच्चाई नहीं दिखाएगा तो किससे अपेक्षा रखेंगे ... यहाँ केंद्र सरकार अपने भीतर आये हुए कंप से ही हिली हुई है.. उसे किसी की फ़िक्र इतनी ही कि वो राहत रकम की मोटाई दिखा कर ही मालिक-धर्म निभा रही है. इस तरह हो गयी देश के मुखिया की मुक्ति... मीडिया को चाहिए कि वह न केवल सिक्किम के प्रति संवेदना जगाने का काम करे अपितु देश-सेवा को इस रूप में भी देखे...प्रशासन यदि कमज़ोर हो तो पत्रकार ही होते हैं जिनपर नज़रें रहती हैं.
ReplyDeleteगम्भीर चिंतन...
ReplyDeleteइस तरह के भेदभाव तो नहीं की जानी चाहिए .....
ReplyDeleteसामयिक विषय को आपने छुआ है पर लगता है सरकारी मशीनरी व मीडिया का बड़ा तबका संवेदनहीन ही बना रहता है इस तरह के वाक़यों में !
ReplyDeleteसिक्किम त्रासदी ....एक गहन चिंता का विषय है ....इस टिप्पणी को लिखते समय ...मै पिछले १ घंटे से सभी न्यूज़ चेनल्स की न्यूज़ देख रही थी ....हर जगह सोनिया गाँधी ...चिंदबरम ...मुखर्जी ...सब छाये है ....पर सच में सिक्किम कि कोई खबर नहीं ..........अफ़सोस हुआ ये सब पढ़ कर और सामने न्यूज़ देख कर ......
ReplyDeleteसिक्किम की पीड़ा में संवेदनाओं का मरहम लगायें हम सब।
ReplyDeleteकहाँ तो सारी दुनिया का दर्द बाँटाने का दम भरते है और कहाँ अपनों से ही अनजान बने रहते हैं - कैसी विडंबना है !
ReplyDeleteटी आर पी तू न गई मेरे मन से.
ReplyDeleteदुखद .....मीडिया को क्या मतलब उनके दुखों से चटपटी ख़बरें चाहिए उन्हें तो बस ....
ReplyDeletejanaab midiya to biki hui hai...koi documentry banaye aur logo ko dikhaye ya public me itna bhaichara ho ki vo is musibat me unki madad karen...varna medea se ministers ki bimari ki, ilaz ki baat karvaiye vo uske liye tatpar hai.
ReplyDeletesateek chintan karta vichaarneey lekh.
apka ye photo shoot bhi acchha lag raha hai.....:)
गलाकाट प्रतियोगिता के युग में संवेदना के लिये
ReplyDeleteजगह कहाँ ?
अति संवेदनशील आलेख, मिडिया के पहलवान क्या करते हैं यह सारी दुनियां अच्छी तरह जानती है.
ReplyDeleteरामराम.
प्रकृति पर किस का ज़ोर:(
ReplyDeleteमानवीय संवेदनाओं को उकेरती हुई पोस्ट.
ReplyDeleteबिल्कल सही कहा है आपने !!
ReplyDeleteशुभकामनाएँ.....
बिल्कल सही कहा है आपने !!
ReplyDeleteशुभकामनाएँ.....
संवेदनाशून्य मीडिया के चरित्र पर संवेदनशील आलेख!!
ReplyDeleteमीडिया को बिकाऊ चीजों से तो फ़ुर्सत मिले।
ReplyDeleteपूर्वोत्तर को हम बहुत कम अपना कहते हैं और यह बात उन्हें सालती है...हो सकता है यातायात की असुविधा के कारण कवरेज न हो पा रहा हो पर अगर हम युद्ध के दौरान करगिल में जा सकते हैं तो सिक्किम भी कोई असंभव सा प्रोजेक्ट नहीं हो सकता..वैसे भी आजकल 'जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि' वाली कहावत मीडिया के लिए ही कही जाने लगी है!
ReplyDeleteyahi asli media hai...
ReplyDeletejai baba banaras...
गम्भीर जाग्रति प्रेरक सटीक चिंतन!!...
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट आभार !
ReplyDeleteबिल्कुल सही
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
प्रेरणास्प्रद गम्भीर चिंतन !!
ReplyDeleteमीडिया की दुनिया सिर्फ महानगरों तक ही सीमित है या फिर स्पोंसर खबर हो जहाँ मीडिया को पैसे की उम्मीद हो. अब सिक्किम के दुखी पीड़ित लोगों की खबर से उनका क्या फायदा.
ReplyDeleteसिक्किम के साथ ही कही और क्षेत्र भीषण प्राकृतिक आपदाओं से त्रस्त हैं -मन दुखी है !
ReplyDeleteआपको नवरात्रि की ढेरों शुभकामनायें.
ReplyDeleteआपने बिल्कल सही कहा है वहाँ बहुत अधिक नुकसान हुआ है....
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील
ReplyDeleteसंगीता जी कि बात से सहमत हूँ सटीक चिंतन पूरा देश और उसकी परेशानिया हमारी अपनी है क्यूंकी अनेकता में एकता ही हमारे देश कि पहचान है।
ReplyDeleteसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है। आपको और आपके सम्पूर्ण परिवार को हम सब कि और से नवरात्र कि हार्दिक शुभकामनायें...
.http://mhare-anubhav.blogspot.com/
सर सबसे बडी और अहम बात ये है कि दिल्ली से दूरी ही ये तय करती है कि मीडिया और उससे प्रभावित देश/समाज की नज़र उस खबर पर कितनी पडेगी ...अफ़सोस सिर्फ़ अफ़सोस कि देश की आज़ादी के साठ बरस बाद भी आज स्थिति ये है कि सिक्किम के भूकंप की खबर तक पहुंचना कठिन लगता है जबकि अमेरिका में ओबामा का रात्रि भोज की फ़ुटेज आसानी से मिल जाती है ..चिंताजनक और सोचने पर मजबूर करती पोस्ट
ReplyDeleteशक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआपके होते दुनिया वाले ,मेरे दिल पर राज़ करें
ReplyDeleteआपसे मुझको शिकवा है,खुद आपने बेपरवाई की
ये पंक्तियां अपने आप में सबकुछ कहने में सक्षम हैं... आपको सपरिवार नवरात्र की मंगलकामनाएं
बहुत ख़ूबसूरत ! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
आपसे सहमत हूँ ... देश में एकता यूँ ही नहीं आती ...
ReplyDeleteआपकी पीड़ा किसी भी सम्वेदनशील भारतीय की पीड़ा है। पत्रकारिता का व्यवसायीकरण बहुत तेज़ी से हुआ है और ऐसा दिखता है कि खबर से पहले उसकी विक्रयशीलता तय होती है।
ReplyDeleteसच कहा है सतीश जी ... मीडिया की तो छोडिये ... देश के नेताओं ने भी कोई खास चिंता नहीं दिखाई ...
ReplyDeleteबेहद संवेदनशील चिन्तन ........ सादर !
ReplyDeleteसटीक चिंतन...आभार
ReplyDeleteaadarniy sateesh bhai ji
ReplyDeletesach likha hai aapne
"हमें वृहत और संयुक्त परिवार में जीने का सलीका आना चाहिए अन्यथा पड़ोसियों के द्वारा हमारा उपहास उड़ाया जा सकता है !"
aapki yah gahan samvedana ishwar karen ki sabhi ke dilon tak pahunche.
om sai namah
sadar naman
poonam
बाऊ जी,
ReplyDeleteखरी-खरी कह दी है आपने.
पीड़ितों से संवेदनाएं.
आशीष
--
लाईफ़?!?
सार्थक चिंतन, सतीश जी !
ReplyDeleteसंवेदनाएँ मर रही हैं लोगों की ...यही चिंता का विषय है |
अफ़सोस होता है बड़ा..:(
ReplyDeleteYahi media ka asali swroop hai. media ki sari samvedna kewal bade sahron tak simit hai.
ReplyDeleteसिक्किम की मौजूदा हालत में हम सभी को योगदान करना चाहिए, आपने पहल करके हम सबको रास्ता दिखाया है| सिर्फ मीडिया ही नहीं बोल्ग्गिंग भी एक जरिया बनसकता है आवाज़ उठाने का, सिर्फ ज़ज्बा होना चाहिए|
ReplyDeleteआभार...
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
चैनलों की दुनिया केवल महानगरों तक ही सीमित है
ReplyDeleteविचारोत्तेजक लेख
पीड़ितों से संवेदनाएं
Long Silence........... Why ? :( Awaiting your new post !!!!!
ReplyDeleteसंवेदना से भरी और चिंतन के धरातल पर लिखी गयी पोस्ट बहुत ही सराहनीय भाई सतीश जी आपके लेखन में देश समाज ,परिवेश की सार्थक चिंता रहती है |बधाई
ReplyDeleteबहुत सटीक और सार्थक सोच...मीडिया को तो वही समाचार चाहिए जिनसे उनकी TRP बढती हो..विपत्ति के समय भी इस तरह की सोच अलगाव की भावना को बढाती है. हमें सम्पूर्ण देश को एक पारिवार मान कर चलाना होगा..बहुत सकारात्मक और सार्थक आलेख...
ReplyDeleteकिसी भी समाचार माध्यम का स्वरूप अखिल भारतीय नहीं है क्योंकि मीडिया यहां पत्रकारिता के लिए नहीं है। ज्यादातर मीडिया संस्थान की हालत यह है कि अगर उन्हें पता चल जाए कि साबुन बेचने में अधिक मुनाफा होगा,तो वे बोरिया बिस्तर समेट कर कल किसी और ब्रांड के नाम से बाज़ार में दिखने लगेंगे।
ReplyDeleteहमें वृहत और संयुक्त परिवार में जीने का सलीका आना चाहिए अन्यथा पड़ोसियों के द्वारा हमारा उपहास उड़ाया जा सकता है !
ReplyDelete-उचित चिन्तन...
सुदूर उत्तरपूर्व हमेशा उपेक्षित ही रहा है और मीडिया के बारे में तो क्या कहें एक भेडचाल होती है जो ेक ने कहा सब वही दुहराते हैं ।
ReplyDeleteप्रेरक संवेदनशील सुंदर लेख ..
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर स्वागत है ...
बहत अच्चा ..गंभीर चिंतन
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