कुछ पंक्तियाँ, एक कमेन्ट के रूप में श्री गिरधारी खंकरियाल की " ये बेचारे -रिक्शे वाले " शीर्षक वाली रचना पर लिखी गयी हैं ! शीर्षक के शब्द उन्ही के हैं , आभार सहित , ...
कौन समझना, चाहे इनको
काम बहुत, क्या देखें इनको
वजन खींचते, बोझा ढोते
दर्द न जाने दुनिया वाले
ये बेचारे रिक्शे वाले !!
कौन समझना, चाहे इनको
काम बहुत, क्या देखें इनको
वजन खींचते, बोझा ढोते
दर्द न जाने दुनिया वाले
ये बेचारे रिक्शे वाले !!
भूख न जाने क्या करवाये
बहे पसीना नज़र न आये
पशुओं जैसा काम कराएं
पशुओं जैसा काम कराएं
बातें करते, दुनिया वाले
ये बेचारे रिक्शे वाले
हड्डी हड्डी बता रही है
नज़रें सामने, मन है घर में
बीमारी का खर्चा, उस पे
कष्ट न समझें दुनिया वाले
ये बेचारे रिक्शे वाले
यह गरीब भी पुत्र किसी की
दवा के पैसे जुटा रहा है,
अम्मा का दुःख बेटा जाने
कैसे जानें दुनिया वाले,
ये बेचारे रिक्शे वाले !
माँ की दवा, बहन की शादी
जाड़ा गर्मी हो या पानी
कुछ अनजानी चिंता इनकी
समझ न पाएं दुनिया वाले
ये बेचारे रिक्शे वाले !!
हड्डी हड्डी बता रही है
नज़रें सामने, मन है घर में
बीमारी का खर्चा, उस पे
कष्ट न समझें दुनिया वाले
ये बेचारे रिक्शे वाले
यह गरीब भी पुत्र किसी की
दवा के पैसे जुटा रहा है,
अम्मा का दुःख बेटा जाने
कैसे जानें दुनिया वाले,
ये बेचारे रिक्शे वाले !
माँ की दवा, बहन की शादी
जाड़ा गर्मी हो या पानी
कुछ अनजानी चिंता इनकी
समझ न पाएं दुनिया वाले
ये बेचारे रिक्शे वाले !!
मर्मस्पर्शी......
ReplyDeleteइतना कठिन जीवन जीने वालों पर हमारी संवेदना सबसे कम क्यों होती है कभी हमने इस तरह से क्यों नहीं सोचा?
ReplyDeleteसीधी सीधी कविता। एक दर्द बयान करती।
ReplyDeleteये बेचारगी हर मनुष्य के हिस्से आती है कभी कम कभी ज्यादा ! यह सिखाती है कि हम दूसरों की पीड़ा भी समझें
ReplyDeleteस्वयम से ही अभिशप्त बेचारे रिक्शे वाले ..
ReplyDeleteसंवेदनाभरी पंक्तियाँ..
ReplyDelete...वाकई बेचारे !
ReplyDeleteवाकई
ReplyDeleteदर्द को बयान करती बेहद ही मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ.
ReplyDeleteअच्छी रचना । उनकी जिन्दगी सचमुच कष्टमय होती है लेकिन यह भी सच है कि उन्हें बेचारगी का अहसास हम सुविधासम्पन्न लोग ज्यादा कराते हैं । यह बडी विचारणीय बात है कि छोटा व मेहनत का काम करने वालों को हम प्रोत्साहित करने की बजाए तरस खाने वाला भाव रखते हैं । जब उन्हें कीमत देने की बात आती है तब हममें से ही कथित बडे लोग मोलभाव और कम पैसा लेने के लिये बहस करते खूब देखे जाते हैं ।
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा आपने ...
Deleteआभार !
जमीनी हकीकत बयां करती अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
हम ही इन बेचारों का शोषण करते हैं ... मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteबढिया।
ReplyDeleteसंवेदनशील....
ReplyDelete~सादर!!!
zindgi ki hakikat ko vykt karti dard bhari dasta
ReplyDeleteइक अनजानी चिंता इनको
ReplyDeleteखाए जाती हौले हौले !
ये बेचारे रिक्शे वाले
बिल्कुल सच कहा है इन पंक्तियों में ....
पर-पीड़ा की अनुभूति!! सम्वेदनाएं
ReplyDeleteमजबूरी, गरीबी के मारे बेचारे क्या कर सकते हैं ... मर्मस्पर्शी रचना...आभार.
ReplyDeletemarmsaparshi aur janwadi kavita... aage baddhai is geet ko
ReplyDeleteरचना बहुत मर्मस्पर्शी है।
ReplyDeleteहालाँकि ज्यादातर रिक्शा वाले भी जिंदगी का लुत्फ़ पूरा उठाते हैं।
संवेदनशील रचना...
ReplyDeleteये रिक्शेवाले और पहाड़ों पर यात्रियों को ऊँचाइयों तक ढोनेवाले- उस भयंकर शीत और पथरीले मार्ग में उनके असुरक्षित पाँवों के तलवे एकदम कठोर पत्थर जैसे और बहुत खतरनाक जीवन. फिर भी सुविधाभोगी लोग उन्हें उचित पारिश्रमिक देने से कतराते हैं!
ReplyDeletebhavapoorn rachana .....abhaar
ReplyDeleteखरी और सीधी बात
ReplyDeleteसंवेदनशील सच कहती प्रस्तुति ,,,
ReplyDeleteRecent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग
आदमी ही आदमी को खींचता है .
ReplyDeleteऐसा किसी उन्नत देश में नहीं होता.अब २१ वि सदी में भी ऐसा क्यों होता है? इस पर रोक लगनी चाहिए.इसके बजाये इन रिक्शेवालों को कोई अन्य रोज़गार देना चाहिए.
संवेदनशील रचना है.
ReplyDeleteशायद कम ही लोगों को ये पता हो कि हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ना तो कभी खुद आदमी के हाथ या पैर से खींचे जाने वाले रिक्शे पर बैठे हैं और ना ही कभी अपनी पत्नी को बैठने दिया...
ReplyDeleteजय हिंद...
शायद कम ही लोगों को ये पता हो कि हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ना तो कभी खुद आदमी के हाथ या पैर से खींचे जाने वाले रिक्शे पर बैठे हैं और ना ही कभी अपनी पत्नी को बैठने दिया...
ReplyDeleteजय हिंद...
यह नयी जानकारी है मगर इससे डॉ मनमोहन सिंह की संवेदनशीलता का पता चलता है !
Deleteह्रदय छू गयी.
ReplyDeletesamvedansheel khara sach
ReplyDeleteहर कोई अपनी अपनी क्षमता के अनुसार
ReplyDeleteवजन भी खिंच रहे है और बोझ भी ढ़ो रहे है :)
रचना मार्मिक है !
कोई कम तो कोई ज्यादा.
ReplyDeleteनानक दुखिया सब संसार...
संवेदनशील है आपका मन सतीश जी ...
ReplyDeleteदिल को छूती हुई पंक्तियाँ लिखी हैं ...
जी, घिस-पिस कर भी दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ हो जाए, वही गनीमत है... हृदयस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteआपने निराला जी की तोड़ती पत्थर की याद दिला दी
ReplyDeleteआपने निराला जी की तोड़ती पत्थर की याद दिला दी
ReplyDeleteइतने सरल शब्द और उनमें निहित इतनी गहन संवेदना!हार्दिक बधाई तमाम लोगों को अपने गिरेबान की तरफ झाँकने हेतु प्रेरित करने के लिए!
ReplyDeleteइतने सरल शब्द और इतनी गहन संवेदना! हार्दिक बधाई अपनी इस रचना के माध्यम से तमाम लोगों को अपने गिरहबान की तरफ झाँकने के लिए मजबूर करने पर!
ReplyDeleteरिक्शे वालों की सही तस्वीर पेश करतीं पंक्तियाँ..
ReplyDeleteटिप्पणी स्वरुप लिखी गई बहुत संवेदनशील रचना. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteये मेहनतकश फिर भी एक दो रूपये के तोलमोल के शिकार होते रहते हैं !
ReplyDeleteमार्मिक !
बहुत संवेदनशील रचना.
ReplyDeleteअत्यंत संवेदनशील और गंभीर टिप्पणी.
ReplyDeleteवाकई बहुत तरस आता है उनपर....कितनी मेहनत करते हैं..बारिश ..गर्मी ...सब एक सामान ....एक तकलीफदेह सच
ReplyDeleteबेचारे रिक्षावालों को अपने परिवार के पालन-पोषण की चिंता खाएं जा रही है वर्णन वाली पंक्तियां बेहद संवेदनामयी। इतनी अच्छी काव्य पंक्तियां ब्लॉग पाठकों तक पहुंचाई धन्यवाद सतिश जी।
ReplyDeletedrvtshinde.blogspot.com
मार्मिक तदानुभूति .
ReplyDeleteबड़े भाई!
ReplyDeleteदेर हुई, लेकिन एक सशक्त रचना से मुलाक़ात हुई.. आभार आपका!
बहुत भावपूर्ण मार्मिक प्रस्तुति सच्चाई बयाँ करती हुई हार्दिक बधाई आदरणीय सतीश जी
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने ....
ReplyDeleteसादर !
bahut arthpurn aur bhavuk kar dene vali sundar rachna!
ReplyDeletebahut arthpurn aur bhavuk kar dene wali sundar rachna
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लेखन | पढ़कर आनंद आया | आशा है आप अपने लेखन से ऐसे ही हमे कृतार्थ करते रहेंगे | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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बहुत भावपूर्ण मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteक्यों आये किसी की जिंदगी में ऐसा समय ,
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना
क्यों आये किसी की जिंदगी में ऐसा समय ,
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना
Yahee agar unaki kamaee ka jariya hai to hume wah cheenna nahee hai. Jaroorat unaki bhee hai humaree bhee aise men mol bhaw na Karen unaki mehenat ka poora muawaja hum den.
ReplyDeleteमेरी रचना को आधार बनाकर एक नयी रचना को आपने सृजित किया, इससे आपका व्यतित्व परिलक्षित होता है। मेरे लिए भी गर्व की बात है।
ReplyDeletemarmik chitran... bahut khub...
ReplyDeleteसंवेदनाओं को जगाती रचना ,बेहद सुन्दर सतीश जी ...
ReplyDeletebehad samvedanshil rachna
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