Tuesday, April 2, 2013

रिक्शे वाले ... -सतीश सक्सेना

कुछ पंक्तियाँ, एक कमेन्ट के रूप में श्री गिरधारी खंकरियाल की " ये बेचारे -रिक्शे वाले " शीर्षक वाली रचना पर लिखी गयी हैं ! शीर्षक के शब्द उन्ही के हैं , आभार सहित ,  ...

कौन समझना, चाहे इनको
काम बहुत, क्या देखें इनको
वजन खींचते, बोझा ढोते
दर्द न जाने दुनिया वाले
ये बेचारे रिक्शे वाले !!

भूख न जाने क्या करवाये 
बहे पसीना नज़र न आये
पशुओं जैसा काम कराएं 
बातें करते, दुनिया वाले 
ये बेचारे रिक्शे वाले

हड्डी हड्डी बता रही है  
नज़रें सामने, मन है घर में
बीमारी का खर्चा, उस पे 
कष्ट न समझें दुनिया वाले 
ये बेचारे रिक्शे वाले

यह गरीब भी पुत्र किसी की 
दवा के पैसे जुटा रहा है,
अम्मा का दुःख बेटा जाने     
कैसे जानें दुनिया वाले, 
ये बेचारे रिक्शे वाले !

माँ की दवा, बहन की शादी
जाड़ा गर्मी हो या पानी
कुछ अनजानी चिंता इनकी 
समझ न पाएं दुनिया वाले 
ये बेचारे रिक्शे वाले !!

64 comments:

  1. इतना कठिन जीवन जीने वालों पर हमारी संवेदना सबसे कम क्यों होती है कभी हमने इस तरह से क्यों नहीं सोचा?

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  2. सीधी सीधी कविता। एक दर्द बयान करती।

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  3. ये बेचारगी हर मनुष्य के हिस्से आती है कभी कम कभी ज्यादा ! यह सिखाती है कि हम दूसरों की पीड़ा भी समझें

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  4. स्वयम से ही अभिशप्त बेचारे रिक्शे वाले ..

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  5. संवेदनाभरी पंक्तियाँ..

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  6. दर्द को बयान करती बेहद ही मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ.

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  7. अच्छी रचना । उनकी जिन्दगी सचमुच कष्टमय होती है लेकिन यह भी सच है कि उन्हें बेचारगी का अहसास हम सुविधासम्पन्न लोग ज्यादा कराते हैं । यह बडी विचारणीय बात है कि छोटा व मेहनत का काम करने वालों को हम प्रोत्साहित करने की बजाए तरस खाने वाला भाव रखते हैं । जब उन्हें कीमत देने की बात आती है तब हममें से ही कथित बडे लोग मोलभाव और कम पैसा लेने के लिये बहस करते खूब देखे जाते हैं ।

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    1. बिलकुल सच कहा आपने ...
      आभार !

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  8. जमीनी हकीकत बयां करती अच्छी रचना

    बहुत सुंदर

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  9. हम ही इन बेचारों का शोषण करते हैं ... मर्मस्पर्शी

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  10. zindgi ki hakikat ko vykt karti dard bhari dasta

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  11. इक अनजानी चिंता इनको
    खाए जाती हौले हौले !
    ये बेचारे रिक्शे वाले
    बिल्‍कुल सच कहा है इन पंक्तियों में ....

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  12. पर-पीड़ा की अनुभूति!! सम्वेदनाएं

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  13. मजबूरी, गरीबी के मारे बेचारे क्या कर सकते हैं ... मर्मस्पर्शी रचना...आभार.

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  14. marmsaparshi aur janwadi kavita... aage baddhai is geet ko

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  15. रचना बहुत मर्मस्पर्शी है।
    हालाँकि ज्यादातर रिक्शा वाले भी जिंदगी का लुत्फ़ पूरा उठाते हैं।

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  16. ये रिक्शेवाले और पहाड़ों पर यात्रियों को ऊँचाइयों तक ढोनेवाले- उस भयंकर शीत और पथरीले मार्ग में उनके असुरक्षित पाँवों के तलवे एकदम कठोर पत्थर जैसे और बहुत खतरनाक जीवन. फिर भी सुविधाभोगी लोग उन्हें उचित पारिश्रमिक देने से कतराते हैं!

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  17. खरी और सीधी बात

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  18. आदमी ही आदमी को खींचता है .
    ऐसा किसी उन्नत देश में नहीं होता.अब २१ वि सदी में भी ऐसा क्यों होता है? इस पर रोक लगनी चाहिए.इसके बजाये इन रिक्शेवालों को कोई अन्य रोज़गार देना चाहिए.

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  19. संवेदनशील रचना है.

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  20. शायद कम ही लोगों को ये पता हो कि हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ना तो कभी खुद आदमी के हाथ या पैर से खींचे जाने वाले रिक्शे पर बैठे हैं और ना ही कभी अपनी पत्नी को बैठने दिया...

    जय हिंद...

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  21. शायद कम ही लोगों को ये पता हो कि हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ना तो कभी खुद आदमी के हाथ या पैर से खींचे जाने वाले रिक्शे पर बैठे हैं और ना ही कभी अपनी पत्नी को बैठने दिया...

    जय हिंद...

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    1. यह नयी जानकारी है मगर इससे डॉ मनमोहन सिंह की संवेदनशीलता का पता चलता है !

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  22. हर कोई अपनी अपनी क्षमता के अनुसार
    वजन भी खिंच रहे है और बोझ भी ढ़ो रहे है :)
    रचना मार्मिक है !

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  23. कोई कम तो कोई ज्यादा.
    नानक दुखिया सब संसार...

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  24. संवेदनशील है आपका मन सतीश जी ...
    दिल को छूती हुई पंक्तियाँ लिखी हैं ...

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  25. जी, घिस-पिस कर भी दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ हो जाए, वही गनीमत है... हृदयस्पर्शी रचना।

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  26. आपने निराला जी की तोड़ती पत्थर की याद दिला दी

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  27. आपने निराला जी की तोड़ती पत्थर की याद दिला दी

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  28. इतने सरल शब्द और उनमें निहित इतनी गहन संवेदना!हार्दिक बधाई तमाम लोगों को अपने गिरेबान की तरफ झाँकने हेतु प्रेरित करने के लिए!

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  29. इतने सरल शब्द और इतनी गहन संवेदना! हार्दिक बधाई अपनी इस रचना के माध्यम से तमाम लोगों को अपने गिरहबान की तरफ झाँकने के लिए मजबूर करने पर!

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  30. रिक्शे वालों की सही तस्वीर पेश करतीं पंक्तियाँ..

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  31. टिप्पणी स्वरुप लिखी गई बहुत संवेदनशील रचना. शुभकामनाएँ.

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  32. मर्मस्पर्शी रचना

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  33. ये मेहनतकश फिर भी एक दो रूपये के तोलमोल के शिकार होते रहते हैं !
    मार्मिक !

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  34. बहुत संवेदनशील रचना.

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  35. अत्यंत संवेदनशील और गंभीर टिप्पणी.

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  36. वाकई बहुत तरस आता है उनपर....कितनी मेहनत करते हैं..बारिश ..गर्मी ...सब एक सामान ....एक तकलीफदेह सच

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  37. बेचारे रिक्षावालों को अपने परिवार के पालन-पोषण की चिंता खाएं जा रही है वर्णन वाली पंक्तियां बेहद संवेदनामयी। इतनी अच्छी काव्य पंक्तियां ब्लॉग पाठकों तक पहुंचाई धन्यवाद सतिश जी।
    drvtshinde.blogspot.com

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  38. मार्मिक तदानुभूति .

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  39. बड़े भाई!
    देर हुई, लेकिन एक सशक्त रचना से मुलाक़ात हुई.. आभार आपका!

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  40. बहुत भावपूर्ण मार्मिक प्रस्तुति सच्चाई बयाँ करती हुई हार्दिक बधाई आदरणीय सतीश जी

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  41. बिलकुल सही कहा आपने ....
    सादर !

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  42. bahut arthpurn aur bhavuk kar dene vali sundar rachna!

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  43. bahut arthpurn aur bhavuk kar dene wali sundar rachna

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  44. बहुत सुन्दर लेखन | पढ़कर आनंद आया | आशा है आप अपने लेखन से ऐसे ही हमे कृतार्थ करते रहेंगे | आभार


    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  45. बहुत भावपूर्ण मार्मिक प्रस्तुति

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  46. क्यों आये किसी की जिंदगी में ऐसा समय ,
    बहुत संवेदनशील रचना

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  47. क्यों आये किसी की जिंदगी में ऐसा समय ,
    बहुत संवेदनशील रचना

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  48. Yahee agar unaki kamaee ka jariya hai to hume wah cheenna nahee hai. Jaroorat unaki bhee hai humaree bhee aise men mol bhaw na Karen unaki mehenat ka poora muawaja hum den.

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  49. मेरी रचना को आधार बनाकर एक नयी रचना को आपने सृजित किया, इससे आपका व्यतित्व परिलक्षित होता है। मेरे लिए भी गर्व की बात है।

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  50. संवेदनाओं को जगाती रचना ,बेहद सुन्दर सतीश जी ...

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  51. behad samvedanshil rachna

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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