मेरा लिखने को मन नहीं करता जब ...
- कोई अपना,अपने मन की बात चाहते हुए भी न कह पाए..
- किसी विधवा माँ का खाली बटुआ,बच्चों को नज़र नहीं आये ...
- विवाह के बाद विदा होने के बाद, भाई को बरसों, अपनी बहन की याद नहीं आये .....
- जब बेटे बहू को, बाहर डिनर पर जाते समय ,दरवाजा बंद करने आती, माँ के आंसू नज़र नहीं आयें ..
- बेहद नजदीकी रिश्तों में भी धन को महत्व दिया जाए..
- दूसरों का नुकसान करके भी,अपना फायदा देखा जाये .....
- धनवान,अपने बच्चों से भी धन पाने की आशा करे...
- सम्मान लालचियों का भी सम्मान किया जाए ..
- साधुओं को भुला दिया जाये...
सच.....
ReplyDeleteमरती संवेदनाएं देख कुछ लिखने को जी नहीं करता...
:-(
सादर
अनु
भाई सतीश जी यह समय ही बेसुरा है ,लेकिन हमे तो अपने दायित्व का निर्वहन करना ही होगा |
ReplyDeleteआपके द्वारा उल्लेखित बिंदु ही आज समाज, देश और व्यक्ति की पीडा का कारण है. ये जीवन के नकारात्मक पहलू हैं पर हम इस नकारात्मकता को ही अपना ध्येय बनाये हुये हैं और यही हमारे जीवन की पीडा है. इससे उबरना ही होगा, बहुत सुंदर चिंतन.
ReplyDeleteरामराम.
लेकिन लिखने के तो यही मुद्दे हैं .... आदर्श समाज में साहित्य का इतना औचित्य नहीं जितना विषम समाज में है.
ReplyDeleteतब समझना चाहिए ,सारी कायनात ,पाँचों तत्व अपनी तात्विकता (गुण ,धर्म )खो चुके हैं ,न जल निर्मल है न वायु ,अग्नि अब विकारों को नहीं अग्नि मिसायल बन आदमी को नष्ट करती है .धरती भूखी नंगी ,जलवायु परिवरतन का दंश झेल रही है ,आकाश अपनी कार्य शील जीवन अवधि भुगता चुके उपग्रहों का उल्काओं के टुकड़ों का
ReplyDeleteका खेल देख रहा है .ऐसे में कौन देखे माँ की आँखों के आंसू ,..........बढ़िया विचार मंथन करती पोस्ट
तब समझना चाहिए ,सारी कायनात ,पाँचों तत्व अपनी तात्विकता (गुण ,धर्म )खो चुके हैं ,न जल निर्मल है न वायु ,अग्नि अब विकारों को नहीं अग्नि मिसायल बन आदमी को नष्ट करती है .धरती भूखी नंगी ,जलवायु परिवरतन का दंश झेल रही है ,आकाश अपनी कार्य शील जीवन अवधि भुगता चुके उपग्रहों का उल्काओं के टुकड़ों का
ReplyDeleteका खेल देख रहा है .ऐसे में कौन देखे माँ की आँखों के आंसू ,..........बढ़िया विचार मंथन करती पोस्ट
सच कहा आपने, मन सोचने लगता है, व्यग्र हो।
ReplyDeleteतभी तो लिखा जाता है -देखिये आपने भी तो लिखा है !
ReplyDeleteजहाँ संवेदनहीनता है ,भ्रष्टाचार है , बेईमानी है ,स्वार्थ है ,वहां कुछ अच्छा नहीं लगता -बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeletelateast post मैं कौन हूँ ?
latest post परम्परा
बहुत सच कहा है...फिर भी यह दर्द कब तक अन्दर दबाया जा सकता है, किसी तरह तो अभिव्यक्त करना ही होता है...
ReplyDeleteन लिखकर भी तो आपने बहुत कुछ लिख दिया है...समझदार को इशारा काफी है
ReplyDeleteसार्थक कथन है सतीश जी, सम्वेदनाएं भी हार थक जाय,हालात ऐसे है.
ReplyDeleteजब मन करे तब ही लिखें फिर चाहे इन विसंगतियों पर ही सबसे पहले कलम व चिंतन बारी-बारी क्यों न चलें.
ReplyDeleteये सब तो साहित्यकारों के प्रिय विषय है , इनसे परहेज़ करना तो वाकई सिद्ध पुरुषों के लच्चन है :)
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने ... कभी-कभी कलम भी इन बिन्दुओं पर आकर ठहर जाती है ...
ReplyDeleteसादर
ऐसी विषम परिस्थिति में तो एक संवेदनशील लेखक,कवी की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है
ReplyDeleteसतीश जी, फिर भी आपने कुछ लिखने का मन नहीं करता कहते हुए इतने सारे मुद्दे सुझाये है
जिसपर लेखनी चलाई जा सकती है अपने लेखक होने का धर्म निभाया जा सकता है !
कलम भी कुछ अच्छा ही लिखना चाहती है...पर कैसे...जब आसपास यह सब हो रहा हो|
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(4-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
"...जब बेटे को, बाहर डिनर पर जाते समय ,दरवाजा बंद करने आती, माँ के आंसू नज़र नहीं आयें ... एकदम मौलिक विचार!
ReplyDeleteसंवेदनहीन और लालची होती इंसानी प्रवृति को देख कलम चले तो कैसे चले .... .. व्यथित मन से उपजी सार्थक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteमनुष्य के ह्रदय से संवेदनाएं और रिश्तों की अहमियत ख़त्म होती जा रही है यह सब उसी का परिणाम है .
ReplyDeleteबिना मन किये ही सब कुछ लिख डाला :)
ReplyDeleteलिखने का जी न करते हुए भी तो कितना कुछ लिख गये आप....
ReplyDeleteमैं गुम ही हो गई हूँ
ReplyDeleteपर होना नहीं चाहती .... तो यूँ ही घुमड़ते भावों के संग शब्द बन बरस जाती हूँ
सब कह दिया भाई साहब!! बचा क्या!!
ReplyDeleteदुनिया रंग रंगीली ...
ReplyDeleteसतीश भाई साहब आपने अपनी झोली में दुनिया के दर्द को समेट लिया अब यहाँ कुछ भी लिखने की गुंजाईश कहाँ बचती है
ReplyDeleteभाई साहब दर्द समेटना बुरी बात है दर्द बाटने से हलका होता है .... आपने दुनिया को हथेली पर रख दिया .********
बिन कहे सब कुछ क दिया....
ReplyDeleteये सब बातें मन को व्यथित ज्यादा करती हैं.....
ReplyDeleteफिर भी लिखना तो होगा ताकि जो ये सब करते हैं उन्हें पता चले कि वो क्या कर रहे हैं... गहन चिंतन
ReplyDeleteहोता है ऐसा कई बार जब इन कारणों में से किसी को भी अपने आस-पास अनुभव करते हैं तो मन व्यथित हो जाता है.
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteनिराशा वही होती है जहां उम्मीद होती है...उम्मीदों पर काबू पा लेना ही मोक्ष है...
जय हिंद..
बहुत ही उम्दा बात कही खुशदीप भाई.
Deleteरामराम.
संवेदित आक्रोशित मन कई बार चुप सा हो जाता है .कितने व्यथित ह्रदय की पीड़ा लिख दी आपने !
ReplyDeleteसर ,इतना दिल को झकझोर दिया और कह रहे हो लिखा नहीं जाता ..............जो भावुक होते हैं उनके साथ ऐसा ही होता है ..............
ReplyDeleteमन स्तब्ध रह जाता है शब्द मौन, पर लेखनी को अपना धर्म निभाने दीजिये सतीश जी !
ReplyDeleteये सारी संवेदनाए हम और हमारे समाज की पीड़ा है,जब यही पीड़ा असहनीय हो जाती है
ReplyDeleteतभी हम लिख पाते है ,,,
RECENT POST: दीदार होता है,
सचमुच ऐसा ही हो रहा है आज ..
ReplyDeleteपर इसे ही दूर करने के लिए लिखना तो जरूरी है !!
namaskaar
ReplyDeletesabhi kathan hai aap ke satish jee . maine to yaha tak dekha hai ki ghar m maa ki arthi padi hai aur ghar ki bahue lad rahi hai ki pehle us kamre kholaa jaaye jise saas me barso se badh kar rakh tha , pehle us dhan ka niptraa hogaa phir , arthi uthegi , khirkaar polish kaa saharaa le kar padosiyon se antim uaatraa us maa ki ravaana ki . saarthk hai aap ke vichaar
saadar
सच कहा आपने !
ReplyDeleteसहमत हूँ आपकी बातों से
ReplyDeleteवर्तमान का सच तो यही है
ReplyDeleteआपने सटीक और तीखा लिखा है
सहजता से गहरे अर्थों के साथ
बहुत सुंदर
बधाई
सौ फीसदी सच है यह...इन्हीं बातों के कारण यकीनन शब्द उदास हो कर एक कोने में दुबक जाते हैं...
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने....ऐसी स्थिति से दो-चार होना कचोटता है मन और शब्द भी रूठ जाते हैं।
ReplyDeleteइस बात को गीत में कहिये! मन करेगा लिखने का!
ReplyDeleteयही सब बिंदु जीवन की कडवी सच्चाई हैं। इसी वातावरण में रहकर स्वयं को सही रखना होगा।
ReplyDeleteआप सच में बहुत भावुक मानव हैं।
ReplyDeleteवैसे कहते हैं कि पहली छंदबद्ध रचना आदिकवि बाल्मीकि के मुखारविंद से दुख की स्थिति में ही प्रकट हुई थी।
इसको ऐसा कहा जा सकता है कि शब्दों में अन्य के लिए लिखने का मन नहीं करता पर मन पर यह इतना गहरा लिखा जाता है कि दिख जाता है ...
ReplyDeleteसच्चाई जीवन की यही है परन्तु रहना भी ऐसे ही माहौल में है चाहें इसे स्वीकार करें या ना करें.
ReplyDeleteऐसे में कोई कैसे लिखे. Wordsworth said "poem is the spontaneous flow of powerful feelings" जब ह्रदय में शक्तिशाली विचारों का प्रस्फुटन नहीं हो तो कविता का नहीं होना स्वाभाविक ही है. :)
ReplyDeleteसच है कि ऐसी परिस्थिति में कुछ लिखने का मन नहीं करता ..... गर लिखा भी जाये तो बस लगता है मन की भड़ास ही निकाली है । बहुत संवेदनशील पोस्ट ।
ReplyDeletechhoti chhoti pehal hi badlaav laayegi
ReplyDeleteaur har samay yae pehal kartae rehna haen
yae sab wo vishay haen jin par aap ko roj kuchh naa kuchh likhna haen
ho saktaa haen sakaratmk blogger sae aap nakaratmk blogger banaa diyae jaye par ussae kyaa
likhna hogaa aap ko inhi vishyo par varna samaaj soyaa rehaegaa
ऐसा देखकर तो वैराग्य आने लगता है।
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