कौन सहारा दिया तुम्ही ने ,जो मैं तुमसे प्यार करूँ !
माँ समझातीं, पिता डांटते, अन्तर्यामी प्रभू बताते ,
कहते, सब कुछ,तब होता है,जब तेरा सत्कार करूँ ?
कहते,तुम दौड़े आते हो,अपमानित द्रोपदी, देखकर
अब तो तुलसी हर घर रोये क्यों मैं तुमसे प्यार करूँ !
अब तो तुलसी हर घर रोये क्यों मैं तुमसे प्यार करूँ !
आज मानवों के कार्यों पर,शर्मसार,राक्षसी कौम भी !
पतित मानवों का हिस्सा हो क्यों अच्छा व्यवहार करूँ !
आज राक्षसी,अपने बच्चे, छिपा रही,मानवी नज़र से
मानव कितना गिरा विश्व में,मैं ही क्यों उपकार करूँ !
आज के हालात पर दर्द भरे जज्बात,सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteप्यार को लेन देन के सिलसिले से मत जोड़िये ! वो कैसा है यह महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि आप कैसे हैं यह ध्यान रहे ! प्रेम से लबालब बने रहिये और उसे बांटिये जी भर के !
स्मरण रहे प्रेम अच्छे अच्छों को सुधार देता है फिर वो क्या...? प्रेममय आप छलकते रहें बस !
आज राक्षसी अपने बच्चे,छिपा रही मानवी नज़र से
ReplyDeleteमानव कितना गिरा,विश्व में, क्या तेरी वन्दना करूँ ! aakrosh jaayaj hai .....bahut acchhi prastuti ....
wah,behatarnn gazal
ReplyDeleteआज राक्षसी अपने बच्चे,छिपा रही मानवी नज़र से
ReplyDeleteमानव कितना गिरा,विश्व में, क्या तेरी वन्दना करूँ !
@ वर्तमान मानव पर तगड़ा व्यंग्य
आज राक्षसी अपने बच्चे,छिपा रही मानवी नज़र से
ReplyDeleteमानव कितना गिरा,विश्व में, क्या तेरी वन्दना करूँ !
अत्यंत मार्मिक और गहरी संवेदनात्मक कविता, मानवता का स्तर बहुत नीचे चला गया है, यह जानते भी हैं और दुखद भी है पर किया क्या जा सकता है? सभी कुओं में तो भांग पडी हुई है, किसी भी कुएं का पानी निकाल कर देख लें. शुभकामनाएं.
रामराम.
हाँ! अब तो कुछ ऐसे ही भाव उठते हैं..
ReplyDeleteमूल्य और मान्यताएँ अब बहुत बदल चुकी हा .
ReplyDeleteकाफी कुछ बुरा देखने में आ रहा है । निराशा स्वाभाविक ही है । लेकिन अभी काफी कुछ अच्छा भी है और रहेगा यह उम्मीद भी कम नही होनी चाहिये ।
ReplyDeleteगहरे घाव, गहरे भाव
ReplyDeleteइन्सान की फ़ितरत है, बदलती कहां है
ReplyDeleteसच ऐसे निराशावाले भाव का आना स्वाभाविक है...
ReplyDeleteबेहद मार्मिक प्रस्तुति....
सादर
अनु
सटीक और सामयिक रचना। दुर्दिन में हताशा स्वाभाविक है लेकिन रात कितनी भी गहरी हो सुबह होती ज़रूर है ...
ReplyDeleteआज राक्षसी अपने बच्चे,छिपा रही मानवी नज़र से
ReplyDeleteमानव कितना गिरा,विश्व में, क्या तेरी वन्दना करूँ !
स्थितियाँ देखकर निराशा के भाव आना स्वाभाविक है,,,उम्दा गजल
RECENT POST : बेटियाँ,
बढिया भाव, अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
मानव के कुकृत्यों ने मानव जाति को शर्मशार किया ही है
ReplyDeleteप्रभावपूर्ण मार्मिक ....
सादर!
ठीक है कि इस दुनिया में बहुत कुछ नकारात्मक है,पर मुझे लगता है कि उससे यदि अधिक नही तो उतनी सकारात्मकता भी जरूर है अन्यथा सर्वत्र अराजकता ही नजर आती.दूसरे अँधेरे में भी यदि हम एक तारे की टिमटिमाहट देख सकें तो जिंदगी के लिए इतनी सी उम्मीद भी हौसला देने वाली बन जाती है. भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति!साधुवाद!
ReplyDeleteनि:शब्द हूँ ......सादर !
ReplyDeleteक्यों मैं तुमसे प्यार करूँ...
ReplyDeleteक्योंकि आप चीज़ ही ऐसी हैं...
जय हिंद...
जो कुछ इन्सान को ईश्वर की ओर से मिली है क्या वह उन क्षमताओं का सदुपयोग कर रहा है?अपराध मानव-समाज का है जहाँ एक के बाद एक कुकृत्य होते चले जाते हैं और यह भी सच है कि कुछ लोगों के पापों का परिणाम सब को झेलना पड़ता है.
ReplyDeleteक्षमा बड़े भाई, क्षमा। क्षमा ही वह मूल मंत्र है जिससे प्रेम के बीच अंकुरित हो सकते हैं। क्रोध तो आता है पर...
ReplyDeleteभावुक ...बहुत बढ़िया
ReplyDeleteवाह...सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
आज के हालत का सटीक चित्रण ...मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteआज राक्षसी,अपने बच्चे,छिपा रही,मानवी नज़र से
ReplyDeleteमानव कितना गिरा,विश्व में, क्या तेरी वन्दना करूँ !
सटीक रचना ...
कर्म हमारे, कमी तुम्हारी..
ReplyDeleteवाह वाह.
यही तो प्यारे मानव है ...
Deleteसुहृद कहीं पर हम तुम जैसा इस दुविधा पर रोता होगा,
ReplyDeleteप्यार दिया, अधिकार दिया, विश्वास पूर्णतः खोता होगा।
आह ! ये हालात
ReplyDeleteसटीक और सामयिक रचना,बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteआज मानवों के कार्यों पर,शर्मसार, राक्षसी कौम भी !
ReplyDeleteपतित मानवों का हिस्अ सा हूँ,फिर क्यों आराधना करूँ ?
आज राक्षसी,अपने बच्चे,छिपा रही,मानवी नज़र से
मानव कितना गिरा,विश्व में, क्या तेरी वन्दना करूँ !
वर्तमान मानव समाज की क्रूरता से तंग हो आई व्वयस्था पर ईश्वर से ही पूछते हुए करारा व्यंग -अच्छी रचना
आज मानवों के कार्यों पर,शर्मसार, राक्षसी कौम भी !
ReplyDeleteपतित मानवों का हिस्अ सा हूँ,फिर क्यों आराधना करूँ ?
आज राक्षसी,अपने बच्चे,छिपा रही,मानवी नज़र से
मानव कितना गिरा,विश्व में, क्या तेरी वन्दना करूँ !
वर्तमान मानव समाज की क्रूरता से तंग हो आई व्वयस्था पर ईश्वर से ही पूछते हुए करारा व्यंग -अच्छी रचना
आज आप काफी परेशान लग रहे हैं..शायर का मन इतना व्यथित हो जाए तो जरूर कोई बिसेष कारण होगा ..मुझे ना जाने क्यूँ लगा की एक बार ब्लॉग पर अपने परिचय के बारे में लिखे आपके बिचारों तक जरुर जाऊं ...लेकिन अंत में मुझे अपने प्रश्न का उत्तर भी मिल गया जो प्यार करता है वही रूठता भी है वही लड़ता भी है ..जब बिधाता पर फिर प्यार आ जाए तो लिखियेगा ..इन्तेज़ार रहेगा ..आपके ब्लॉग से बहुत पहले ही जुड़ा था पर आपके रच्राच्नायें डेश बोर्ड पर नहीं मिलती हैं तो आज फिर ट्राई कर रहा हूँ
ReplyDeleteआज आप काफी परेशान लग रहे हैं..शायर का मन इतना व्यथित हो जाए तो जरूर कोई बिसेष कारण होगा ..मुझे ना जाने क्यूँ लगा की एक बार ब्लॉग पर अपने परिचय के बारे में लिखे आपके बिचारों तक जरुर जाऊं ...लेकिन अंत में मुझे अपने प्रश्न का उत्तर भी मिल गया जो प्यार करता है वही रूठता भी है वही लड़ता भी है ..जब बिधाता पर फिर प्यार आ जाए तो लिखियेगा ..इन्तेज़ार रहेगा ..आपके ब्लॉग से बहुत पहले ही जुड़ा था पर आपके रच्राच्नायें डेश बोर्ड पर नहीं मिलती हैं तो आज फिर ट्राई कर रहा हूँ
ReplyDeleteआज आप काफी परेशान लग रहे हैं..शायर का मन इतना व्यथित हो जाए तो जरूर कोई बिसेष कारण होगा ..मुझे ना जाने क्यूँ लगा की एक बार ब्लॉग पर अपने परिचय के बारे में लिखे आपके बिचारों तक जरुर जाऊं ...लेकिन अंत में मुझे अपने प्रश्न का उत्तर भी मिल गया जो प्यार करता है वही रूठता भी है वही लड़ता भी है ..जब बिधाता पर फिर प्यार आ जाए तो लिखियेगा ..इन्तेज़ार रहेगा ..आपके ब्लॉग से बहुत पहले ही जुड़ा था पर आपके रच्राच्नायें डेश बोर्ड पर नहीं मिलती हैं तो आज फिर ट्राई कर रहा हूँ
ReplyDeleteगहरे घाव दिए, श्रद्धा ने , क्यों सत्ता स्वीकार करूँ !
ReplyDeleteकौन सहारा दिया तुम्ही ने ,जो मैं तुमसे प्यार करूँ !
बेहतरीन पंक्तियाँ।
संसार दुष्टों और दुष्कर्मों से भरा पड़ा है। हमें अपना फ़र्ज़ तो फिर भी निभाना पड़ता है।
.
ReplyDelete.
.
पोल तुम्हारी खुल चुकी अब, नहीं कुछ है बस में तेरे
समय रहते क्यों न अब मैं, इस सत्य को स्वीकार करूँ
यह सब कुछ बिगाड़ा है हम ने, हम ही इसको संवारेंगे भी
है हौसला,फिर फिर उठकर-डटकर, अन्यायों का प्रतिकार करूँ
..
हम दिल भी रखते हैं और दिल में दर्द भी ?
ReplyDeleteशुभकामनायें भाई जी !
आज राक्षसी अपने बच्चे,छिपा रही मानवी नज़र से
ReplyDeleteमानव कितना गिरा,विश्व में, क्या तेरी वन्दना करूँ !
निराशा भी एक नयी आशा का संचार करती है.
आज मानवों के कार्यों पर,शर्मसार, राक्षसी कौम भी !
ReplyDeleteपतित मानवों का हिस्सा हूँ,फिर क्यों आराधना करूँ ?
आज राक्षसी,अपने बच्चे,छिपा रही,मानवी नज़र से
मानव कितना गिरा,विश्व में, क्या तेरी वन्दना करूँ !
अंतर्मन को झकझोरती खुद पर शर्मिंदा करती
बहुत गहरा दर्द लिए रचना. सच में ऐसे ही खयालात आते हैं अब मन में.
ReplyDeleteसाहब , हमारे हिसाब से अगर आप भाव को पकड़ कर उसे शब्दों का रूप देने से पहले अपने भूवों को काबों में करे तो बेहतर ग़ज़ल बनेगी , भावों में बह कर ग़ज़ल नहीं बनती ... अंग्रेजी में इसे कहते है ' रांट ' : )
ReplyDeleteजारी रखिये ...
गहरे घाव दिए, श्रद्धा ने , क्यों सत्ता स्वीकार करूँ !
ReplyDeleteकौन सहारा दिया तुम्ही ने ,जो मैं तुमसे प्यार करूँ !
सुंदर रचना !!!
लेकिन सतीश जी यदि बात प्यार और स्नेह की है तो लेन देन से दूर ही होगी न :)
कभी कभी मन वाकई में निष्ठुर हो जाता हैं फिर आराधना तो क्या उसके वजूद को नही स्वीकारता
ReplyDeleteमनुष्य बन गया राक्षस और बेचारे भगवान को गाली? वाह भई वाह।
ReplyDeleteश्रद्धा शंका ही देती है,अहोभाव इसलिए करो
ReplyDeleteनिज चेतना रहे, सत्ता को, चाहे अस्वीकार करो
आज मानवों के कार्यों पर,शर्मसार, राक्षसी कौम भी !
ReplyDeleteपतित मानवों का हिस्सा हूँ,फिर क्यों आराधना करूँ ?
..पुकारे भी तो किसे ..सही कहा आपने
कहते,तुम दौड़े आते थे , अपमानित द्रोपदी, देखकर
ReplyDeleteआज तो तुम बच्चे नुचवाते,क्यों मैं तेरा नमन करूँ ..
हालात के प्रति विद्रोह उमड़ता है मन में ऐसे ही ... आपका संवेदनशील दिल के क्या कहने ... हर छंद लाजवाब ... सटीक चोट करता है ...
मन क्षुब्ध तो है मगर मनुष्य हम बने रहें
ReplyDeleteव्यथित करने वाली हर घटना ईश्वर के प्रति हमारी गहरी नाराजगी प्रकट करती है। क्षुब्ध मन की सार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशिकायत जायज़ है
ReplyDeletegahan aur marmik bhav ....kya kaha jaye ...!!
ReplyDeletesarthak geet ...
vyathit hriday ...marmik geet ....kshubdh man kii prarthana prabhu zaroor sunenge ... .....
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