ख़ामोशी का दर्द न जानों, हम फक्कड़ मस्तानों की
कहाँ से लाओगे उजला मन आदत पड़ी बहानों की !
हँसते हँसते सब दे डाला,अब इक जान ही बाकी है !
काश काम आ जाएँ किसी के,इच्छा है,दीवानों की !
प्यार बाँटते, दगा न करते , भीख न मांगे दुनिया से !
ज्वालामुखी मुहाने जन्में , क्या चिंता अंगारों की !
अभिशापित जीवन पाया है, क्या हमको दे पाओगे !
जाओ, जाकर, बाहर घूमो ,रौनक लगी बाजारों की !
बंजारे को ख्वाब दिखाते , महलों और मेहराबों के !
बरगद तले, बसेरा काफी, मदद न लें इन प्यारों की !
कहाँ से लाओगे उजला मन आदत पड़ी बहानों की !
गंगटोक 30 मार्च 13 |
हँसते हँसते सब दे डाला,अब इक जान ही बाकी है !
काश काम आ जाएँ किसी के,इच्छा है,दीवानों की !
प्यार बाँटते, दगा न करते , भीख न मांगे दुनिया से !
ज्वालामुखी मुहाने जन्में , क्या चिंता अंगारों की !
अभिशापित जीवन पाया है, क्या हमको दे पाओगे !
जाओ, जाकर, बाहर घूमो ,रौनक लगी बाजारों की !
बंजारे को ख्वाब दिखाते , महलों और मेहराबों के !
बरगद तले, बसेरा काफी, मदद न लें इन प्यारों की !
खूबसूरत कविता.
ReplyDeleteहँसते हँसते सब दे डाला , अब इक जान ही बाकी है !
काश काम आ जाएँ किसी के, इच्छा है ,दीवानों की !
बहुत बढ़िया लिखा है.
hamesha kee tarah sundar geet...
ReplyDeleteकहाँ से लायेंगे, उजला मन, आदत पड़ी छिपाने की !
ReplyDelete... वाह अनुपम भाव लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
सूफी संतों ने सिखलाया , मदद न मांगे, दुनिया से !
ReplyDeleteकंगूरों को, सर न झुकाया, क्या परवा सुल्तानों की !
सतीश जी, एक से बढकर एक, तेवर, मासूमियत, अल्हड मस्ती फ़टकार सहित सब कुछ समेट लिया है आपने इस रचना में. बहुत ही लाजवाब.
रामराम
bahot achcha likhe hain.....
ReplyDeleteईमानदारी से दिल को छू लेने वाली लेखनी
ReplyDeleteबहुत खूब ...
Dil se nikla phir ek geet ...pasand aaya bahut...
ReplyDeleteप्यार बाँटते, दगा न करते , भीख न मांगे दुनिया से !
ReplyDeleteज्वालामुखी मुहाने जन्में , क्या चिंता अंगारों की !
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति !
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प्यार बाँटते, दगा न करते , भीख न मांगे दुनिया से !
ReplyDeleteज्वालामुखी मुहाने जन्में , क्या चिंता अंगारों की ...
खूबसूरत, लाजवाब रचना ... उमंग और उलास हिलोरें ले रहा है इस मस्ती में ...
बहुत खूब ...
सुन्दर भाव चित्र परोपकार और बलिदान की आतुरता से प्रेरित .
ReplyDeleteवाह...समाज के लिए कुछ करने की इच्छा साफ जाहिर हो रही है...
ReplyDeleteप्रेरणादायक कविता...ग़ज़ल !!
लाजवाब प्रस्तुति ....!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना हर पंक्ति में सार्थक सन्देश दिया है
ReplyDeleteहर वक्त हंसी हर वक्त ख़ुशी,क्या बात करे हम दिलगीरी की :)
हर वक्त हंसी हर वक्त ख़ुशी
Deleteक्या बात करें, दिलगीरी का !
हम जिए हमेशा, ऐसे ही
यदि साथ रहे खुशगीरी का !
मन संकुचित कहाँ पहचाने, परमपिता को आँखों से !
ReplyDeleteनज़र नहीं उठ पायें वहां तक,आदत पड़ी गुलामों की !
बहुत सुंदर रचना, अच्छा और सकारात्मक संदेश भी
हँसते हँसते सब दे डाला , अब इक जान ही बाकी है !
ReplyDeleteकाश काम आ जाएँ किसी के, इच्छा है ,दीवानों की !
बहुत खूब...सुन्दर कविता
उल्लास से भरपूर एक बहुत खूबसूरत गीत
ReplyDeleteबहुत दिन बाद रंग में आये हो।
ReplyDelete.
.बधाई।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ७/५ १३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मस्त गीत वाह बधाई आपको |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और रचनात्मक प्रस्तुति,आपका सादर आभार.
ReplyDeleteलाजबाब
ReplyDeletebahoot hi sundar rachna
ReplyDeleteसुन्दर , भावपूर्ण , अर्थपूर्ण ग़ज़ल / गीत।
ReplyDeleteगंगटोक की यात्रा शुभ हो।
ReplyDeleteसूफी संतों ने सिखलाया , मदद न मांगे, दुनिया से !
ReplyDeleteकंगूरों को, सर न झुकाया, क्या परवा सुल्तानों की !
..कमाल का सूफियाना अंदाज से भरी रचना ..... बहुत सुन्दर सन्देश ...
गंगटोक वाली फ़ोटो तो बड्डी सोणी और किसी जवान मुंडे की लगदी है बादशाओ?
ReplyDeleteरामराम
राम राम ताऊ !!
Deleteऔर क्या अपने जैसा बुड्ढा समझ रखा है मुझे ......
:)
आपकी जवानी खुदा बनाये रखे पर हम पर यह बुढ्ढे का कहर क्यॊं? हम तो May-2008 में ही पैदा हुये हैं और आपके सामने तो बच्चे ही हैं.:)
Deleteरामराम.
आपकी जवानी खुदा बनाये रखे पर हम पर यह बुढ्ढे का कहर क्यॊं? हम तो May-2008 में ही पैदा हुये हैं और आपके सामने तो बच्चे ही हैं.:)
Deleteरामराम.
दुनिया वाले क्या पहचाने,फितरत हम मस्तानों की !
ReplyDeleteकहाँ से लायेंगे, उजला मन,आदत पड़ी बहानों की !
आप यूँ ही मस्ताने बने रहिये. बधाई इस सुंदर गीत के लिये.
संत स्वभाव पाने वालों का स्वभाव ही ऐसा होता है -और इसी में उनका मन सुख पाता है!
ReplyDeleteबहुत सुंदर!
ReplyDeleteदुनिया वाले क्या पहचाने,फितरत हम मस्तानों की !
कहाँ से लायेंगे, उजला मन, आदत पड़ी बहानों की
कविता के विचार सर्वत्र प्रसारित हों ...
ReplyDeleteसुन्दर विचार !
उम्दा..
ReplyDeleteएक सच्चे व्यक्ति के अंतःकरण से निकली आवाज जो कविता बन गई है............
ReplyDeleteमस्तानों की बातें मस्ताने जानते हैं..दिल की बातें समझें ऐसे लोग कहाँ मिलते हैं..
ReplyDeleteसूफी संतों ने सिखलाया , मदद न मांगे, दुनिया से !
ReplyDeleteकंगूरों को, सर न झुकाया, क्या परवा सुल्तानों की !
सक्सेना जी बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति दी है आपने,बधाई
ज्वालामुखी मुहाने जन्में , क्या चिंता अंगारों की !
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर !
बंजारे को ख्वाब दिखाते , महलों और मेहराबों के !
ReplyDeleteबरगद तले, बसेरा काफी, मदद न लें उन प्यारों की !
hamesha ki tarah sundar rachana ...
ला-जवाब!!
ReplyDeleteप्यार बाँटते, दगा न करते , भीख न मांगे दुनिया से !
ज्वालामुखी मुहाने जन्में , क्या चिंता अंगारों की !
बहुत सुंदर!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ... बधाई
ReplyDeleteअद्भुत रच गये महाराज...
ReplyDeleteबंजारे को ख्वाब दिखाते , महलों और मेहराबों के !
ReplyDeleteबरगद तले, बसेरा काफी, मदद न लें उन प्यारों की !
आपकी लाइन को समर्पित क्योकि जिस सूफियाना अंदाज़ में आपने बात कही अदभु और निराली है
कुम्हार गीली मिट्टी से
अनगढ़ गढ़ गया
वेदों की बातें
लकडहारा कह गया
निश्छल अन्तःकरण से निकली सच्ची और अच्छी रचना ।
ReplyDeleteआपकी रचना को पढ़कर खुद ब खुद मिसरे जहां मे आए...
ReplyDeleteबादल कर फकीरों का हम भेस गालिब
तमाशा ए अहले करम देखते हैं....
बहुत खूबसूरत गजल बन पड़ी है... वाह!
ज्वालामुखी मुहाने जन्में , क्या चिंता अंगारों की ...
ReplyDeleteखूबसूरत, लाजवाब रचना ...
मुक्त हो चले हम अपने में, क्यों किसकी परवाह करें,
ReplyDeleteवर्तमान में रहने वाले क्यों भविष्य की आह भरें।
बहुत उम्दा खयालात .... बधाई
ReplyDeleteचलो इसी बहाने पुराने सदा बहार गीतों का आनंद फी लिया गया बधाई ...
ReplyDeleteशुभ दिन
इस भांति निष्काम कर्म एक नेक ख्याल है. कुछ सुंदर करें कुछ सुंदर रचे. शुभकामनायें.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति ..मन को छू गयी .आभार . कायरता की ओर बढ़ रहा आदमी ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति ..मन को छू गयी .आभार . कायरता की ओर बढ़ रहा आदमी ..
ReplyDeleteतुसी ग्रेट हो. घर की बेटी अभी अन्धेरे में हैं. शायद प्रकाशित नहीं हो पाया.
ReplyDeleteतुसी ग्रेट हो. घर की बेटी अभी अन्धेरे में हैं. शायद प्रकाशित नहीं हो पाया.
ReplyDeleteसुन्दर और सकारात्मक सोच है आपकी---खूबसूरत अभिव्यक्ति
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