हमारे यार, धनदौलत, जमीं, जायदाद रखते हैं !
नवाबी शौक़, सज़दे के लिए, सज्जाद रखते हैं !

मदद लेकर हमारी वे हुए , गद्दी नशीं जब से !
सबक यारों को देने, साथ में जल्लाद रखते हैं !

मदद लेकर हमारी वे हुए , गद्दी नशीं जब से !
सबक यारों को देने, साथ में जल्लाद रखते हैं !
वे अब सरदार हैं बस्ती के, हैरत में हूँ मैं तबसे,
हमारे संत धन्धों से , नगर आबाद रखते हैं !
ये चोटें याद रखने की, हमें आदत नहीं यारों !
वही कहलायेंगे शेरे जिगर, जंगल में रह के भी
वे अंतिम साँस में भी, हौसला फौलाद रखते हैं !
ये चोटें याद रखने की, हमें आदत नहीं यारों !
बड़े बेचैन हैं वे लोग , जो सब याद रखते हैं !
लगता है देख कर उनको वो कुछ याद रखते हैं
ReplyDeleteलिखते हैं कुछ लोग किताबें वो अपने पास रखते हैं।
वाह बहुत सुन्दर ।
very nice poem
ReplyDeleteदिनांक 06/04/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंदhttps://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
दिनांक 06/04/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंदhttps://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
वे अब सरदार हैं बस्ती के,मैं हैरत में हूँ जबसे,
ReplyDeleteहमारे संत सन्यासी , महल आबाद रखते हैं !
वाह ! बहुत खूब पंक्तियाँ आदरणीय
अर्ज किया है,
फ़िक्र न कर ऐ रोने वाले ,वही आएंगे सजदा करने
तेरी चौखट पर एक दिन
दुनियां में दिखावों की ,झूठे ताज रखतें हैं।
बहुत खूब ... आखरी शेर तो जानलेवा ... सच है भूल जाना चाहिए बीती को ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/04/14.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाहवाह......
ReplyDeleteलाजवाब
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteरचना का बहुआयामी स्वरुप खुलकर कहता है अपनी बात। बधाई।
ReplyDeleteप्रभावपूर्ण रचना
ReplyDeleteवाकई आखरी शेर तो जानलेवा
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