Monday, April 15, 2019

कहीं गंगा किनारे बैठ कर , रसखान सा लिखना -सतीश सक्सेना

इस हिन्दुस्तान में रहते, अलग पहचान सा लिखना !
कहीं  गंगा किनारे बैठ कर , रसखान सा लिखना !
दिखें यदि घाव धरती के तो आँखों को झुका लिखना 
घरों में बंद, मां बहनों पे, कुछ आसान सा लिखना !

विदूषक बन गए मंचाधिकारी , उनके शिष्यों के ,
इन हिंदी पुरस्कारों के लिए, अपमान सा लिखना !

किसी के शब्द शैली को चुरा के मंच कवियों औ ,
जुगाड़ू गवैयों , के बीच कुछ प्रतिमान सा लिखना !

अगर लिखने का मन हो तड़पते परिवार को लेकर
हजारों मील पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !

तेरी भोगी हुई अभिव्यक्ति , जब चीत्कार कर बैठे
बिना परवा किये तलवार की, सुलतान सा लिखना !


3 comments:

  1. बहुत खूब.... ,सादर नमस्कार

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  2. लिखते रहिये।

    आँखे मूँदे कान बन्द किये मुह सिलों के
    हाथों में पड़ गये तीर कमान सा लिखिये
    घड़ियों की सूईयों पर लटके समय रोकते
    तीस मार खाँनों के बयान सा लिखिये।

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  3. प्रेरणादायक पंक्तियाँ

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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