लाशों पे नाचते तुम्हें , यमजात कहेंगे !
शायर और गीतकार भी बदजात कहेंगे !
कातिल मनाएं जश्न,भले अपनी जीत का
इस्लाम की छाती पे , इन्हें दाग़ कहेंगे !
इन्सान के बच्चों का खून,उनकी जमीं पर
रिश्तों की बुनावट पे,हम आघात कहेंगे !
दुनियां का धर्म पर से, भरोसा ही जाएगा !
हम दूध मुंहों के रक्त से, स्नान कहेंगे !
जब भी निशान ऐ खून,हमें याद आएंगे
इंसानियत के नाम , एक गुनाह कहेंगे !
शायर और गीतकार भी बदजात कहेंगे !
कातिल मनाएं जश्न,भले अपनी जीत का
इस्लाम की छाती पे , इन्हें दाग़ कहेंगे !
इन्सान के बच्चों का खून,उनकी जमीं पर
रिश्तों की बुनावट पे,हम आघात कहेंगे !
दुनियां का धर्म पर से, भरोसा ही जाएगा !
हम दूध मुंहों के रक्त से, स्नान कहेंगे !
जब भी निशान ऐ खून,हमें याद आएंगे
इंसानियत के नाम , एक गुनाह कहेंगे !
शैतानों के निशान हैं इन्सान नहीं रहेंगे तो कहाँ रहेंगे?
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-04-2019) "परिवार का महत्व" (चर्चा अंक-3318) को पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
--अनीता सैनी
उम्दा रचना आदरणीय
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteहिन्दीकुंज,हिंदी वेबसाइट/लिटरेरी वेब पत्रिका