Thursday, October 22, 2020

विश्व की पहली कविता, जिसकी रचना मैराथन दौड़ते दौड़ते हुई -सतीश सक्सेना

२४ मार्च २०१७ को मैराथन रनिंग प्रैक्टिस में दौड़ते दौड़ते इस रचना की बुनियाद पड़ी , शायद विश्व में यह पहली कविता होगी जिसे 21 किलोमीटर दौड़ते दौड़ते बिना रुके रिकॉर्ड किया ! लगातार घंटों दौड़ते समय ध्यान में बहुत कुछ चलता रहता है उसकी परिणिति इस रचना के रूप में हुई !

न जाने दर्द कितना दिल में, लेकर दौड़ता होगा
कभी छूटी हुई उंगली किसी की, ढूंढता होगा !

सुना है जाने वाले भी , इसी दुनियां में रहते हैं !
कहीं दिख जाएँ वीराने में,आँखें खोजता होगा !

कोई सपने में ही आकर, उसे लोरी सुना जाए
वो हर ममतामयी चेहरे में ,उनको ढूंढता होगा !

छिपा इज़हार सीने में , बिना देखे उन्हें कैसे 
पसीने में छलकता प्यार, उनको भेजता होगा !

अकेले धुंध में इतनी कसक, मन में लिए पगला
न जाने कौन सी तकलीफ लेकर ,दौड़ता होगा !

10 comments:

  1. अपने आप में अनोखी और अति भावपूर्ण रचना !

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  2. छिपा इज़हार सीने में , बिना देखे उन्हें कैसे ?
    पसीने में छलकता प्यार,उनको भेजता होगा !

    वाह!

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  3. बहुत सुन्दर रचना

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  4. मैराथन रनिंग प्रैक्टिस साथ में भावनाओं से निर्मुक्त होने का सकारात्मक
    अनूठा प्रयोग,बहुत सुंदर रचना !

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  5. bhut hi sundar post likhi hai aapne

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- सतीश सक्सेना

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