Sunday, September 11, 2022

मेडिकल व्यापारियों से सावधान रहें -सतीश सक्सेना

इंसान अपने जीवन भर मृत्यु के बारे में कभी कोई विचार नहीं करता , बस खतरनाक बीमारी से लड़ते समय ही उसकी याद आती है और साथ ही मृत्यु भय भी, जो स्थिति की गंभीरता को कई गुना बढ़ा देता है ! इसके न होने की अवस्था में बीमारियों को मानव की आंतरिक रक्षा शक्ति रोग पर कुछ समय में काबू पा लेती है , मगर अगर मरीज को जान जाने के खतरे की संभावना बता दी जाए तो मानसिक तनाव के कारण कुछ समय में ही, सामान्य बीमारी भी कई गुना खतरनाक हो जाती है ! अफ़सोस यह है कि इस भय को मेडिकल व्यवसाय में अधिक से अधिक धन कमाने के लिए, अच्छी तरह भुनाया जाता है !

अधिक उम्र के अधेड़ , जो खूब धन सम्पन्न और सामाजिक जिम्मेदारियों से मुक्त होते हैं , पूरे जीवन अपने सुख पर खर्च न करके , बुढ़ापे में इलाज के लिए पैसा जोड़ते रहते हैं जबकि उन्हें यह मालूम है कि इलाज से उम्र नहीं बढ़ सकेगी उसके बावजूद  65 वर्ष होते होते कम से कम एक ऑपरेशन, यह डरे हुए लोग करा चुके होते हैं  ! आज से तीस चालीस वर्ष पहले बहुत कम हॉस्पिटल में ऑपरेशन की सुविधा होती थी मगर आजकल चूँकि मेडिकल व्यापार में मोटी कमाई सिर्फ ऑपरेशन थियेटर के जरिये ही संभव है सो डॉक्टर के पास आए दर्द से कराहते हर इंसान में ऑपरेशन की सम्भावना तलाश की जाती है !बिना ऑपरेशन, बच्चे पैदा होना तो असंभव ही माना जाने लगा है , सामान्य प्रसव की बात शायद ही कोई सुनता होगा , मगर इस सब के बाद भी किसी को इस दुर्व्यवस्था पर सोचने का समय ही नहीं और हो भी तो वे खुद को उस समय असहाय महसूस करते हैं जब ईश्वरीय स्वरूप डॉक्टर, तुरंत ऑपरेशन करने में सहमति देने में समय बरबाद करना, बेहद खतरनाक घोषित कर देता हैं !

मैं मित्रों से कुछ सामान्य प्रश्नों पर विचार करने का अनुरोध करता हूँ कि वे बताएं मानव शरीर कब से है और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान कब से आया , साथ ही यह भी कि इस चिकित्सा विज्ञान में बिना शरीर को नुकसान किये कौन कौन से रोगों को ठीक पाने में सफलता हासिल की ? आज भी दुनिया के सुदूर क्षेत्रों में करोड़ों लोग हैं या नहीं जिन्हें एलोपैथी के बारे में कुछ भी पता ही नहीं और उनका शरीर बिना इलाज के रोगमुक्त मुक्त होता है या नहीं 

मुझे दांतों से खून आने की समस्या लगभग पचास वर्षों से हैं , पूरे जीवन डेंटिस्ट को नहीं दिखाया, पूरे जीवन में टूथपेस्ट और ब्रश का उपयोग महीने में दो तीन बार ही करता हूँ और मुझे दांतो में दर्द की कोई समस्या नहीं एक भी दांत न टूटा और न हिला , दर्द हुए और ठीक भी हुए ! आँखों में पहला चश्मा आज से 30-35 वर्ष पहले लगवाया था मगर उपयोग न के बराबर किया , बिना चश्में के उपयोग  -1.25 से बढ़ते हुए आजकल -2.5  के लगभग पावर है मगर 68 वर्ष की उम्र में सिर्फ बारीक अक्षर पढ़ते समय ही हलके पावर का चश्मा उपयोग करता हूँ , पूरे दिन में शायद आधा घंटा चश्मा लगाता हूँगा ! बेहद तकलीफ होती है जब मासूमों की आँखों पर चढ़ा चश्मा देखता हूँ  ! चश्में, पेस्ट, क्रीम, एंटीबायोटिक्स आदि अधिकतर सुझाव और साधन अंततः हमारे शरीर को बरबाद करने की भूमिका तैयार करते ही हैं, इनके ज्ञान से प्रभावित हम इनकी चालाकियों को जबतक समझ पाते हैं, बहुत देर हो चुकी होती है !धन कमाने की इच्छा व्यापारी मानव को कितना नीचे गिराएगी इसकी कोई हद मुक़र्रर नहीं !

अभी सुप्रीम कोर्ट में एक रिट विचार के लिए है जिसमें यह कहा गया है कि जेनेरिक दवा पैरासिटामोल को किसी और नाम से लोकप्रिय बनाने के लिए मेडिकल व्यापारियों ने डॉक्टर्स के मध्य 1000 करोड़ से अधिक रुपया लुटाया है , और वह दवा इन दिनों सबसे अधिक बिकी भी है जबकि यही दवा बाजार में बहुत सस्ते दामों पर उपलब्ध है , ये व्यापारी धन लालच देकर रोगी को जो चाहे दवा खिला सकते हैं !  

अपने आपको मृत्यु भय से हर वक्त मुक्त रखकर, विपरीत परिस्थितियों में भी खुश रखने का प्रयत्न करता हूँ जिससे कि इस खूबसूरत जीवन का हर पल एन्जॉय कर सकूँ, रोज सुबह उठते समय , अगला दिन बोनस में पाता हूँ , अच्छा लगता है कि एक दिन और मिला और फैसला करता हूँ कि आज का दिन कल से बढ़िया कैसे किया जाए ! 

विगत दिनों के बारे में सोचता हूँ तो खराब लगता है कि निष्क्रियता के कारण, कैसे कैसे मित्र अचानक विदा ले गए संसार से , जो बेहतरीन दिन बिता रहे थे एवं बहुत शक्तिशाली थे , उन्होंने सब कुछ किया था खुद को मजबूत रखने में, अगर नहीं किया तो सिर्फ अपने शरीर से मित्रता नहीं की और जिसे समझना सबसे आवश्यक था उसी को समझने में समय नहीं दे पाए और निस्संदेह यह लापरवाही उनके शरीर के अंगों ने माफ़ नहीं की और उन्हें इस खूबसूरत जीवन से असमय ही जाना पड़ा !

प्रणाम आप सबको इस अनुरोध के साथ कि अपने व्यस्त समय से, थोड़ा समय खुद के शरीर को समझने में  दें ! 


9 comments:

  1. शत-प्रतिशत सहमत हूँ आपके विचारों से। आपके अनुरोध को एक मूल्यवान परामर्श के रूप में साभार स्वीकार करता हूँ।

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  2. बहुत काम की बातें

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-9-22} को "हिन्दी है सबसे सरल"(चर्चा अंक 4551) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  4. बढ़िया जानकारी- उषा किरण

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  5. सहमत ,समझना जरूरी है।

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  6. आपने बिल्‍कुल सही कहा...कि इनके ज्ञान से प्रभावित हम इनकी चालाकियों को जबतक समझ पाते हैं, बहुत देर हो चुकी होती है !धन कमाने की इच्छा व्यापारी मानव को कितना नीचे गिराएगी इसकी कोई हद मुक़र्रर नहीं !
    परंतु ''यूं दवा खाई और यूं सही हो गये'' का लालच और बेहद आरामतलबी का लाभ मेडीकल व्‍यापरी उठायेंगे ही, ये पक्‍का है। बहुत अच्‍छा लिखा ...शानदार तरीके से समझाया आपने

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  7. बहुत सारगर्भित एवं सुन्दर संदेशप्रद लेख।
    🙏🙏🙏🙏

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- सतीश सक्सेना

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