मय्यत में कन्धा देने को, अब्बू तक पास न आयेंगे ! लेख के जवाब में प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं , उनमें से नफरत भरी कुछ प्रतिक्रियाओं ने जो मैंने प्रकाशित नही की, मुझे मजबूर किया यह जवाब देने को ! उक्त प्रतिक्रियाओं में से एक प्रतिक्रिया मेरे पुत्र की उम्र के एक नवजवान की है जिनकी लेखन शैली मुझे बहुत पसंद है ! सशक्त लेखनी का धनी, इस भारत पुत्र के प्रति मेरा यह कर्तव्य है कि मैं स्पष्टीकरण दूँ !
कृपया विश्वास करें कि लेखन के प्रति, मेरा किसी वर्ग विशेष के प्रति मोह या उसमें लोकप्रियता अर्जित करना बिल्कुल नही है ! आप प्रतिक्रियाएं अगर ध्यान से देखें तो इस देश के अल्पसंख्यक बच्चों ने मेरी कभी तारीफ़ नहीं की जिससे मैं उत्साहित होकर यह लेख लिख रहा हूँ ! मगर यह लेख इस समय की पुकार हैं, और जो मैं समाज को समझाना (सर्व धर्म सद्भाव ) चाहता हूँ, उसी की सफलता में देश की नयी पीढी और आपकी अगली पीढी का स्वर्णिम भविष्य सुनिश्चित होगा !
कृपया विश्वास करें कि लेखन के प्रति, मेरा किसी वर्ग विशेष के प्रति मोह या उसमें लोकप्रियता अर्जित करना बिल्कुल नही है ! आप प्रतिक्रियाएं अगर ध्यान से देखें तो इस देश के अल्पसंख्यक बच्चों ने मेरी कभी तारीफ़ नहीं की जिससे मैं उत्साहित होकर यह लेख लिख रहा हूँ ! मगर यह लेख इस समय की पुकार हैं, और जो मैं समाज को समझाना (सर्व धर्म सद्भाव ) चाहता हूँ, उसी की सफलता में देश की नयी पीढी और आपकी अगली पीढी का स्वर्णिम भविष्य सुनिश्चित होगा !
- उग्रवादियों के बारे में मेरी कोई सहानुभूति नही है, यह एक देश के प्रति, नफरत में अंधे पथभ्रष्ट नवयुवक हैं, जिन्होंने कुछ अच्छे वक्ता एवं तथाकथित धर्मगुरुओं का अँधा आदेश मानते हुए निर्दोष बच्चों, स्त्रियों वृद्धों के खिलाफ महज इसलिए हथियार उठा लिए क्योंकि उनके दिलोदिमाग में नफरत और सिर्फ़ नफरत भरी गयी है, और इन लड़कों की नासमझी यह कि इन्होने इसके पीछे छिपे वास्तविक उद्देश्य को जानने का प्रयत्न ही नही किया ! इनके तथाकथित आकाओं का प्रभामंडल व व्यक्तित्व इतना शक्तिशाली था कि इन युवकों में अपना स्वर्णिम भविष्य तथा अच्छा सोचने समझने की शक्ति आदि सब नष्ट हो गयी !
- इन बहके हुए मार्गदर्शकों ने उनकी मौत हो जाने की दशा में उनके परिवार की सुरक्षा का भरोसा दिलाते हुए इन पढ़े लिखे मगर अपरिपक्व बुद्धि वाले नवजवानों को, नफरत की आग में जलने के लिए प्रोत्साहित किया और उनकी शिक्षा और बुधिमत्ता का उपयोग, अपने अनुयाइयों में अपना नाम कमाने में किया !
- अमेरिका और भारत जैसे उदार देशों पर हमला करते समय यह मुखिया ख़ुद आगे नही आए बल्कि आप जैसे नवजवानों को इस नफरत की आग में झोंक दिया !
- चूंकि आप जैसे नवजवान ईमानदार और वचनवद्ध होते हैं , उनका उपयोग विध्वंसक होगा ही , यह पुरानी घटिया मानसिकता वाले , एवं इन नवजवानों के लिए श्रद्धेय लोग , यह बात भली भांति जानते हैं ! एक वर्ग विशेष के प्रति नफरत में जलते हुए , इन काइयां , धूर्त और चालक धर्मगुरुओं ने श्रद्धा का दुरूपयोग करते हुए इन जवान लड़कों को निर्मम हत्यारा बना दिया !
- आपकी उम्र के लोगों से अपनी इच्छा पूर्ति करवा पाना बहुत मुश्किल कार्य नही होता है , सवाल सिर्फ़ एक बार सामने वाले के प्रभाव में आने का है ! कृपया सोचें कि आपकी पीठ पर किसी और का नाम तो नही लिखा है ?
- अल्पसंख्यक बच्चे इसी देश के नागरिक हैं , बहुमत होने के कारण हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम उन पर शक न करें और दूसरों के बहकावे में आकर आपस में न लड़ें !
- नफरत का जहर हमें गुस्से के कारण चैन से जीने नही देगा और वही नफरत एक दिन हमारे घर में भी जरूर घर कर जायेगी ! आप किसी नफरत करने वाले व्यक्ति का चेहरा और एक निश्छल व्यक्ति का सौम्य चेहरा ध्यान से देखें और जरा सोचें क्या फर्क है !
- क्या कोई कौम दूसरी कौम को ख़त्म कर पाई है अगर नही तो फिर आप लोग इस नफरत को फैला कर सिर्फ़ अपनी आदतें और भविष्य ख़राब कर रहे हो जिसका असर आपकी संतानों पर अवश्य पड़ेगा !अंत में मेरा अनुरोध है कि प्यार बाँटने का प्रयत्न करें, नफरत से सिर्फ़ तिरस्कार और बर्बादी बांटी जा सकती है और बदले में यही मिलेगी भी ! हो सके तो जो आपको उकसा कर, आपसे मदद ले रहा है उस चेहरे को पहचानने का प्रयत्न करें तो आप पायेंगे कि ऐसे चेहरे में ममता और प्यार का नामोनिशान नहीं मिलेगा !
- मैं हमेशा इन अल्पसंख्यक बच्चों के लिए लेख क्यों लिखता हूँ ?-मुसलमान - हिन्दुस्तान का दूसरा बेटा ! अवश्य पढ़ें ! क्योंकि मैं बहुमत से सम्बंधित हूँ और अल्पमत के लिए आवाज़ उठाना और उनको अपने समाज के दिल में जगह दिलाने का प्रयत्न करना ही मैं भारत माँ की सबसे बड़ी इच्छा मानता हूँ सो नफरत फैलाने वाले अपनी दूकान चलायें मैं प्यार बांटूंगा देखता हूँ कौन शक्तिशाली है ? नफरत या प्यार ?
बधाई सतीश जी, आप के इस लेखन के लिए। धारा के विपरीत बहने वाले साहसी होते हैं। वही समय पर राह भी दिखाते हैं।
ReplyDeleteसुंदर मार्गदर्शन.
ReplyDeleteसटीक मार्गदर्शन , जिसकी आज के कठिन दौर में अत्यन्त आवश्यकता है , आप यह प्रयास जारी रखिये ,निश्चित तौरपर इससे आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की ताकत मिलेगी .
ReplyDeleteसही कह रहे हैं सतीश भाई..
ReplyDeleteआपसे पूरी तरह सहमत हूं और आपके साथ हूं।
ReplyDeletesatish ji namaskaar ,
ReplyDeletebahut hi satik lekh likha hai aap ne ...anusardniya hai ...is lekh ko likhne ke liye hum aap ke bahut bahut aabhari hai ..dhanyawaad..
आप के विचार बहुत सुन्दर है।आपने बहुत अच्छा मार्ग चुना है।लेकिन एक संशय है कि क्या भुक्तभोगी आप के विचारों से सहमत होगें?
ReplyDelete
ReplyDeleteसतीश जी, लगता है, कि मेरी सोच भी आपसे इत्तेफ़ाक़ रखती है.. गड़बड़ी वहीं शुरु हुई, जब राजनैतिक हितों के तहत यह ' भाई भाई ' का नारा उछाला गया था । बड़ा आसान सा मनोविज्ञान है.. यदि आप यह नारा दे दें कि ' शान्तनु और अमर बाप बेटे ! ' और यही बार बार दोहराये जाते रहने से शायद मेरा बेटा इसके निहितार्थ की खोज में लग जायेगा, माकूल उत्तर न मिल पाने तक , वह बाप से दूरी बनाये रखने का प्रयास करेगा । इसी बीच उसका मार्गदर्शन करने वाला कोई ऎंड़ा-बैंड़ा मिल गया, तो एक दिग्भ्रमित बेटा, बाप के बाप होने पर ही प्रश्नचिन्ह उठाने लगेगा । पंचशील के पुज़ारी ( ? ) नेहरू ने यही ' हिन्दी चीनी भाई भाई ' के साथ पूरे देश को भुगताया है !
इससे एक तरह का कुटिल अलगाव-वाद ही पनपता है ! आप अपनी जगह पर बिल्कुल सही हैं, स्वतंत्रता से पहले स्टेट एसेम्बलीज़ में मुस्लिम सीटें क्यों सुरक्षित की गयीं, इसकी तह में जायें... अगले को कुछेक गिनतियाँ पकड़ा कर, यह अपने हितों को सुरक्षित रखने की कूटनीति थी ! क्यों ज़िन्नाह और इक़बाल सरीखे व्यक्ति कांग्रेस से अलग हुये, यह मैक्समूलर क्या बतायेंगे ? उस समय का सामयिक साहित्य पढ़ें, आँखें खुल जायेंगी !
आज यही सब दोहरा कर, हम विनाश न्यौत रहे हैं ? आपकी सोच ज़ायज़ है, और मैं आपके साथ हूँ !
आपकी बात से सहमत हैं ..अच्छा प्रयास लगा यह
ReplyDeleteसतीश जी
ReplyDeleteआपका उक्त लेख पढ़ा. आपके विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ.
मैं तो इन पथभ्रष्ट आकाओं और इनके बहकावे में आने वालों, दोनों को बदनसीब मानता हूँ.
बेचारे! अपनी छोटी सी जिंदगी को भी नफरतों की भेंट चढा देते हैं. न किसी को प्यार कर पाते हैं और न किसी से प्यार प्राप्त कर पाते हैं. यूँ भी कहा गया है कि हम जो चीज़ लोगों में बांटते हैं, वही चीज़ लोगों से हमें मिलती है. सो इन बेचारों को प्यार मिले भी तो कैसे?
इन्हें नफरतों में जीने मरने दीजिये.
हमें तो प्यार में जीना-मरना पसंद हैं, सो आये मिलकर लोगों में प्यार बांटते हैं.
@अनिल पुसाद्कर !
ReplyDeleteमुझे विश्वास है आपकी विचारधारा पर !
@परमजीत बाली
भुक्त भोगी तो हमारे अपने थे, वह इस देश का खून थे , जो इन रक्त पिपासुओं की नफरत की बलि चढ़ गए ! मगर इन हत्यारों के आका यही चाहते हैं की हम और आप एक पूरी कौम को दोषी मान लें ! और जब भी ऐसा होगा उनकी मनोकामना पूरी हो जायेगी ! बाली साहब ! इस महान देश को कोई नही हरा सकता अगर हम हारेंगे तो सिर्फ़ आपस की फूट और गृह युद्ध से जिसका इंतज़ार हमारे देश के दुश्मन कर रहे हैं !
@डॉ अमर कुमार !
ऐतिहासिक उद्धरण के साथ आपकी इस सार्थक प्रतिक्रिया की मेरे इस लेख को बहुत आवश्यकता थी ! इस विषय पर आपका योगदान चाहता हूँ ! हम और आप अगर हठधर्मिता और संकीर्णता की बाते करें तब कुछ हद तक क्षम्य हो सकती हैं मगर बेहद तकलीफ होती है जब २४-३० वर्ष के शिक्षित,प्रतिभावान नवयुवक नफरत सिखाने वालों के साथ साथ हाँ में हाँ मिलाने लगे हैं ! अपने यश की चाह में ब्लाग के जरिये गाल बजाते लोगों को इसके विनाशकारी परिणामों की कल्पना भी नही होगी, कौन भुगतेगा इसके परिणामों को ? और जब भी बुरा होगा यह संकीर्ण लोग, यश लिप्सा को भूल सबसे पहले अपनी बिलों में घुस जायेंगे ! गृहयुद्ध की कल्पना से दिल हिल जाता है डॉ साहब, क्या हम इस दुर्घटना को तय्यार हो पाएंगे ! १९४७ के बारे में यह बच्चे कुछ नही जानते....यह नही जानते की यह क्या कह रहे हैं ! सिर्फ़ एक ही चारा है हम प्यार से रहना सीखें और कोई विकल्प नही है !
आपका स्नेह और ध्यान चाहिए !
रमता जोगे बहता पानी /कभी गुना ,कभी शिवपुरी ,कभी इन्दोर कभी झालावाड /प्रिय सक्सेना जी सदैब प्रसन्न रहो /पिछला लेख मैयत में कान्धा देने वाला भी नहीं पढ़ पाया था /शक्तिशाली तो आप ही रहेंगे क्योंकि आप प्यार बांटने का काम कर रहे है जो आज के युग में कोई नहीं करता /क्या क्या बांटते हैं ये तो आपने पूरे लेख में लिख ही दिया है /ये जहर भी इस तरीके से दे रहे हैं कि क्या कहें 'बडे गोपनीय ढंग से ""वो अगर जहर देते तो सबकी नजर में आजाता /तो किया यूँ कि वक्त पे मुझे दवाएं न दी ""
ReplyDeleteअच्छा कह रहे हैं आप। और यह भी सही है कि हिन्दू बहुत उदार और सहिष्णु लोग होते हैं। शायद सीमा से अधिक भी।
ReplyDeleteहिन्दू मानस की सरलता पर शक नहीं किया जाना चाहिये - एक दो खुराफाती तत्व तो कहां नहीं होते?
आपकी प्रतिक्रियायें सब आदर्शवादी हैं, अच्छी हैं। लेकिन जब बात आपके जबाब की है तो यह भी पता चलना चाहिये कि नौजवान के सवाल क्या हैं? तब शायद आपकी समझाइश ज्यादा मौजूं लगती!
ReplyDelete"नफरत भरी कुछ प्रतिक्रियाओं ने जो मैंने प्रकाशित नही की, मुझे मजबूर किया यह जवाब देने को "
ReplyDeleteकिसी भी देश, समाज, और संस्था में अलगवाद पनपाने के लिये कुछ लोगों के मन में मुख्यधारा के विरुद्ध घृणा भरना जरूरी है. एक बार ब्रेनवाशिंग हो जाने के बाद ये अलगवादी अच्छी से अच्छी बात को सिर्फ अपने "पीलिया" से भरपूर आंखों से ही देख पाते हैं. इसका फल है आपके आलेख कि विरुद्ध आई टिप्पणियां.
अफसोस की बात है कि अलगवादी ताकतों को जब तक आजादी मिलती रहेगी, जब तक राजनैतिक संरक्षण मिलता रहेगा, तब तक वे सबको ब्लेकमेल करते रहेंगे. इसका अंत होना जरूरी है, लेकिन आजादी के नाम पर हम इतने अंधे हो चुके हैं कि एक आमूल परिवर्तन के बिना अब देश की सुरक्षा के लिये यह खतरा बना ही रहेगा.
लिखते रहें. घिनौनी टिप्पणियों को हटा दें क्योंकि ये विचार-विमर्श या शास्त्रार्थ को नहीं बल्कि देश के प्रति ही घृणा को दिखाते हैं.
आपकी कलम सशक्त है, इसे ऐसा ही चलते रहने दें!!
सस्नेह -- शास्त्री
नफरत का जवाब नफरत कभी नहीं होता । प्रतिशोध सदैव प्रतिशोध ही बोता, उगाता और काटता है ।
ReplyDeleteआप बिलकुल ठीक सोच रहे हैं, कह रहे हैं और कर रहे हैं । धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोग गिनती के, मुट्ठी भर हैं जबकि भले लोग ज्यादा हैं । समस्या यही है कि नफरत के ये सौदागर संगठित और सक्रिय हैं जबकि भले लोग असंगठित और निष्क्रिय । आप इन्हीं असंगठित और निष्क्रिय लोगों को जगाने का नेक और जरूरी काम कर रहे हैं । यह कठिन काम है और धैर्य मांगता है । लेकिन यही जरूरी है ।
मैं भी अपने आप को भला आदमी मानता हूं लेकिन आप मुझसे करोडों गुना बेहतर हैं जो यह काम कर रहे हैं ।
कृपया इसी प्रकार सूचना देते रहिएगा । आपके साथ, कदम से कदम मिला कर चलना अच्छा लगेगा ।
किसी की कटु टिप्पणियों से विचलित मत होइएगा । प्रेम ही शाश्वत है । प्रेम ही जीवन है ।
जो अपनी पहचान जाहिर करने का न्यूनतक साहस नहीं संजो पाते, यह न्यूनतम नैतिक जिम्मेदारी नहीं निभा पाते वे जिस भी धर्म और समाज के पैरोकार हों, उसके सबसे बडे दुश्मन ही होते हैं । ऐसे कापुरुषों की उपेक्षा कीजिए ।
आपने जो लेखन का विषय चुन रखा है वो इतना सरल नही है ! चुन रखा है वो इसलिए कह रहा हूँ की आप अक्सर इस विषय पर अपनी उत्कृष्ट सोच के साथ अपनी बात रखते हैं ! अमूमन इस विषय पर लोग कन्नी काट कर निकल जाते हैं या फ़िर दोनों ही धडो से इक तरफा , जिस रंग का चश्मा पहना हो, वैसी ही बयान बाजी शुरू हो जाती है !
ReplyDeleteभारत का अगर हम पुराना इतिहास पढ़े तो हिन्दुओ से ज्यादा सहिष्णु कोई दूसरी कौम नही पाई जाती ! जो भी यहाँ आया , किसी भी रूप में, शक, हुन , तुर्क, मंगोल या ईस्ट इंडिया कम्पनी , सबने अपनी अपनी इच्छाए पूर्ण की ! यहाँ किसी को ज्यादा कुछ विरोध नही झेलना पडा ! और सिर्फ़ सहिष्णुता, दया भाव ही जिम्मेदार थी ! आजतक एक उदाहरण नही मिलेगा की कोई भारतीय कहीं हमला करने गया हो ?
इस परिस्थिति में कुछ विघ्नसंतोषी तो हो सकते हैं ! पर यहाँ किसी को नफरत तो नही है ! एकाधिक बार मैं यह बात आपके ब्लॉग पर भी कह चुका हूँ की मेरे आस पास में अनेक मुसलमान हैं ! मेरे उनसे तालुक्कात हैं ! वो मेरे और मेरे बच्चों के दोस्त हैं ! मैं ये किताबी बात नही कर रहा हूँ ! बल्कि हकीकत बता रहा हूँ ! सब सुख दुःख में शामिल होते हैं ! कभी कोई दुर्भावना नही है !
मेरा शहर भी इस मामले में बहुत सेंसेटिव है पर घोर दंगो में भी हम में से किसी ने भी शक नही किया ! एक आम हिंदू या मुस्लिम को इस बात से कोई लेना देना नही हैं ! मैं तो छोटा बेटा या बड़ा बेटा की अवधारणा भी ग़लत ही मानता हु ! फ़िर सिख, इसाई,जैन बोद्ध इनको कौन से बेटे की पदवी दी जायेगी ? ये भी तो रह रहे हैं अमन चैन से !
समस्या ले दे कर इसी जगह क्यों आती है ? आज इसका कारण अशिक्षा और बेरोजगारी है ! फ़िर राजनीती का प्रपंच वोटो के लिए ! और वोटो के लिए किस हद तक गिर कर इनका दोहन किया जाता है ये शायद नही जानते होंगे ! मेरे कुछ निजी दोस्त हैं मंत्री स्तर के लोग दोनों ही मुख्य पार्टियों के ! इसलिए मुझे मालुम है की क्या क्या हथकंडे अपनाए जाते हैं ? मैं यहा सिर्फ़ ये कहना चाहता हूँ की वर्तमान राजनीति का स्वरुप हमारे यहाँ रहेगा तब तक इस समस्या का कोई हल नही होगा ! आप चाहे जो भी करले ! और इसके दुसरे कारक भी हैं जो दूर किए जाने चाहिए !
अब जो दाउद इब्राहिम जैसे डान हैं वो किसी भी तरह से नही चाहेंगे की अमन चैन हो वो तो अपने अफीम चरस गांजे, स्मैक के धंधे ही इन नौजवानों को बहका कर चलाते हैं ! ये कुछ ऐसे काले धब्बे हैं समाज के जो कभी अमन चैन नही होने देना चाहते ! इनकी चवन्नी ही तनाव बनाए रख कर चलती है ! कुछ समय पहले मैंने पढा था की आई.एस.आई. का सारा खर्चा ही इन अवैध धंधो से निकाला जाता है ! यानी ये नशे का सारा व्यापार ही वो करते हैं ! क्या हकीकत है ? भगवान जाने !
ये समस्या बातो से नही सुलझने वाली ! आप या मैं कितना ही लिख ले ? इसके लिए बहुत ठोस और रचनात्मक काम की आवश्यकता है ! बात बहुत लम्बी हो रही है ! मैं इसी वजह से लेट आया हूँ की मुझे मेरी बात कहने के लिए समय चाहिए था ! आप अन्यथा ना ले , अगर रस्मी टिपणी ही करनी होती तो बहुत बढिया सतीश भाई साहब , कह कर कल ही चला गया होता !
आपके प्रयास इमानदार हैं ! अपनी बात रखते रहने से बात कम से कम उस विचार को तो जिंदा रखती है !
इब रामराम !
आपकी विचारधारा सही है
ReplyDeleteसतीश जी जान कर अच्छा लगा कि आप की सोच और हमारी सोच इस विषय पर बिल्कुल मिलती है। आप ने शत प्रतिशत सही लिखा है और हम इस विषय पर आप का साथ देगें। हमने भी अपने ब्लोग पर कुछ ऐसे ही विचार लिखे हैं।
ReplyDeleteआपकी भावना व प्रयास तो नेक,उचित व अच्छे ही हैं किन्तु पीटे व मारे जाते व्यक्ति से ही अपेक्षाएँ? जो मारक है, प्रेम का पाठ वस्तुत: उसे पढ़ाया जाना है, जो मर रहा है,उसकी प्रतिक्रिया तो कई सौ वर्ष से दबी-घुटी चीख-सी है। अपने हन्ता से कैसे प्यार किया जाए - यह नई पीढ़ी का सवाल है, जो मुझे बार बार उत्तर देने के लिए बाध्य करता है। उनका कहना है कि कम से कम १०-२० साल तो वे हन्तारूप त्यागें व सिद्ध तथा प्रमाणित करें कि वे हन्ताओं के साथ नहीं हैं, तब तो विश्वास आएगा।
ReplyDeleteइसे निजी असहमति मात्र न माना जाए।
आपकी सदाशयता को प्रणाम। लेकिन मैं अभी इतना आशावादी नहीं हो पा रहा हूँ। क्षमा करें।
ReplyDeleteयहाँ पर जो टीप्पणियाँ आयीँ हैँ उन्हीँ से विविध भावोँ को देख रहे हैँ उन्हीँ मेँ एक आपका नज़रिया भी है जो सँयत प्रयास है
ReplyDeleteमेरी सद्` आशा और शुभकामना है कि आतँकी युवा आपके प्यार और सहानूभुति को समझेँगेँ और आपका बढाया हाथ थाम लेँगेँ...
'मज़हब कोई लौटा ले,और उसकी जगह दे दे,
ReplyDeleteतहज़ीब सलीके की, इन्सान क़रीने के।'
फ़िराक़
आपकी बात सही है लेकिन इस दुरूहता में बढ़े कदम लौट पायेंगें इसमें संदेह है
ReplyDeleteआज जो कुछ घटीत हो रहा है, उसके लिए बडी हद तक हम लोग स्वयं ही जिम्मेदार है।... राजकीय नेता १००, १०० रुपये, मिठाईके डिब्बे और कंबल दे कर वॉट खरीदते है.... भोली भाली जनता उन्हे दानवीर समझ कर बदले में वॉट दे देती है....किसी भी संकट के समय या आतंकी हमले के समय यही राजकीय नेता कुछ नहीं कर पातें।....जरुरत है युवाओं को एक जुट हो कर अपनी ताकात दिखाने की।... हर समस्या का समाधान होता ही है।... आपके विचारो से हम सहमत है।
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