"विनम्र निवेदन हैं की हिन्दी ब्लोगिंग को साफ़ रखे । बहुत मेहनत की है बहुत से लोगो ने और आप के ये सब आलेख उन सब की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं । आप अल्पसंख्यक लोगों के भक्त हैं सही हैं पर दुश चरित्र भक्त ना बने बस इश्वर से इतनी ही कामना हैं"
मुझे एक अनाम ने उपरोक्त सुझाव दिए गए हैं, इस प्रतिक्रिया में मुझे अल्पसंख्यक का भक्त बताने के साथ साथ मेरे लेखों से दुखी होते हुए यह भी कहा कि मेरे लेख बहुतों की सालों की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं !......यह विनती ऐसी थी कि मैं २-३ दिन तक सोचता रह गया कि लोगों ने किस कदर इस दुर्भावना को आपने दिल से लगा रखा है यहाँ तक कि व्यक्तिगत बना रखी है देश की यह ज्वलंत समस्या !
क्या इलाज़ है इसका :
-क्या कोई देशवासी आज फिर विभाजन की सोचने को भी तैयार है सिवाय हमारे दुश्मनों के ? क्या यह सम्भव है कि हम अपने इन छोटे भाइयों (या आप पड़ोसी कह लें), जो इसी देश की संतान हैं , को विवश कर पायें कि जो हम कहें वे वही मान लें !
- अगर हम बड़े भाई का फ़र्ज़ अदा करने का सोचें तो सबसे पहले अपने छोटे भाइयों के सर से, हर समय शक में जीने का भय उतारना पड़ेगा ! हमें उनकी परेशानियाँ , रिश्ते नाते, ध्यान में रखते हुए फैसले लेने होंगे ! दुनिया में कोई भी तीसमार खां कौम पैदा नही हो पाई जो किसी दूसरे समुदाय को ख़त्म कर दे ! ऐसे उदाहरण हमारे सामने हैं ! हाँ नफरत पाल कर रहते चले आए पड़ोसी समुदायों के बच्चे तक शैशव अवस्था से ही मरने मारने की बातें जरूर करने लगे ! और यह सब उन्ही के बुजुर्गों ने दिया !
-चंद उग्रवादियों और दहशतपसंदों की हरकतों का इल्जाम पूरी कौम के सर पर न डालने का फ़ैसला करना होगा ! और यह फ़ैसला करना होगा जनमानस को, इस सोच के साथ कि वे इस तरह का दूषित जहर फैला कर देश का सबसे बड़ा नुक्सान करने जा रहे हैं !
इतिहास गवाह है कि अधिकतर देशों का नुकसान दुश्मन के फौजों ने नही किया मगर आंतरिक फूट और ग्रहयुद्ध ने किया ! और सबसे अधिक मौतें बच्चों और कमजोरों की हूई ! ऐसे देशों की न केवल नस्लें तबाह हो गयीं बल्कि ३०-४० वर्षों के बाद भी वे अच्छे नेतृत्व तक के लिए मुहताज हो गए !
इस दुर्दशा को पहुंचाने वाले यही कमअक्ल लोग थे .....जो अपने आपको देशभक्त कहते हुए मुंह बजाते घूम रहे हैं, और जब इनकी बकवास सिरे चढ़ जायेगी, उस वक्त यह चूहे सबसे पहले अपने बिलों में घुस जायेंगे ! उस समय कमज़ोर पड़ते देश से इन्हे न अपना प्यार नज़र आएगा न धर्म !
आज आवश्यकता है कि हम इन नफरत फैलाते हुए, देश के दुश्मनों की पहचान करलें , ऐसे लोगों की किसी भी प्रकार की, तारीफ़ करना भी मेरी नज़र में सिर्फ़ अपराध है ! एक मूर्ख मगर घातक विचारधारा को किसी भी हालत में फैलने से रोकने के लिए, प्रयत्न करने से बड़ा पुण्य कार्य, मैं और नही मानता !
मगर दुःख है कि हमारे कुछ साथी अनजाने में ऐसे लोगों की पीठ थपथपाने में कोई कसर नही छोड़ते !
मैं अपने अल्पसंख्यक भाइयों से भी अपील करता हूँ, कि वे ग़लत बातों के खिलाफ खुलकर सामने आयें,
उग्रवादियों और उनके मंसूबों का विरोध करें ! अन्य मजहब के खिलाफ लिखने या मज़ाक बनाने वालों का खुल कर विरोध करें ऐसा करके निस्संदेह अधिकतर लोगों का गुस्सा शांत होगा !
किसी भी धर्म की बखिया उधेड़ने का अधिकार किसी को नही है ! हजारों साल पहले अस्तित्व में आए धर्मों की व्याख्या आधुनिकता के नाम पर करने की इजाज़त किसी को नही होनी चाहिए ! मज़हब हमारी आस्था और श्रद्धा है, जो हमारे बुजुर्गों ने निर्देशित किया है, उस पर किसी और की व्याख्या, सिर्फ़ उसकी कमअक्ली है और कुछ नहीं !
hamare aapsi matbhed ka faida hi dahsatgard uthaten hain,aap niras na hon nispachh likhte rahen.
ReplyDeletehamare aapsi matbhed ka faida hi dahsatgard uthaten hain,aap niras na hon nispachh likhte rahen.
ReplyDeleteऐसी बानी लिखिये जिससे सभी का सदभाव मिले।
ReplyDelete"बहुत मेहनत की है बहुत से लोगो ने और आप के ये सब आलेख उन सब की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं ।"
ReplyDeleteसतीश जी
बिना सन्दर्भ किसी भी टिपण्णी को कहीं भी दाल देने से बात का मतलब फरक हो जाता हैं . ये सन्दर्भ सुबाश भदोरिया के आलेख से था और आप ने उस बात को यहाँ नहीं दिया .
मानव अधिकार की बात करे तो उन हिन्दुओ के लिये भी करे जिनके घर इस दिवाली दिये नहीं जलेगे .
अनाम भाई !
ReplyDeleteकृपया लेख पूरा पढ़ें, और न्याय करके लिखें ! पारस्परिक सद्भाव बनाने के अलावा इस देश में कोई और रास्ता नही है ! घर को एक रखने के लिए हमें प्यार से साथ साथ रहना सीखना ही होगा ! आशा है साथ देंगे !
चामुंडा मन्दिर में भगदड़ मचने से हिन्दू श्रद्धालुओं की मौत हुई तो राजस्थान के मुसलमानों ने ईद नहीं मनाई...यही हैं इस देश के मुसलमानों की फ़ितरत...लेकिन 'कुछ लोग' ऐसे हैं कि उन्हें यह सब दिखाई नहीं देता...उन्हें तो बस मुसलमानों को जबरन आतंकवादी बनाने पर तुले हुए हैं...आपकी तहरीर बहुत अच्छी है...लिखते रहें...आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगता है...
ReplyDeleteपारस्परिक सद्भाव बनाने के अलावा इस देश में कोई और रास्ता नही है !
ReplyDeleteपारस्परिक साद भावः का अर्थ केवल और केवल minorities की चिंता करना नहीं होता हैं . majority मे हिंदू हैं और उनको मार मार कर ख़तम कर दो और देश पर कब्ज़ा कर लो . बार बार धार्मिक आस्थाओ की बात ही क्यूँ की जाती हैं . जो जैसा करेगा वैसा भुगतेगा . आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता पर मुसलमान उनके defense मे खड़े होकर उनको मुसलमान धर्म दे देते हैं . कभी सोच कर देखे सतीश जी अगर कोई भी मुस्लिम एक आतंकवादी के favor मे न खडा हो तो क्या कोई हिंदू उसको मुसलमान कहेगा ??
आतंक वादी को मुसलमान हिंदू नहीं ख़ुद मुसलमान बनाते हैं . दुबई मे कानून हैं की drugs के साथ पकडे गए तो सजा होगी और उस कानून मे वो मझहब नहीं देखते .
हमारे देश मे भी कानून हैं अगर आंतकवादी हैं तो कानून से उसका न्याय होगा क्यूँ इतना डरना की मुस्लिम मिनोरिटी मे सो न्याय नहीं होगा .
जिस देश के नागरिक हो वो देश ख़ुद तुम्हारी रक्षा करेगा .
सद्बाव क्यूँ चाहिये ??
प्रेम और सद्भावना से बड़ा क्या है? सभी भारतीय प्रेम पूर्वक रहे यही सभी के हित में है.
ReplyDeleteआपने जैसी पोस्ट लिखी है ऐसी क्या किसी मुस्लिम बन्धू द्वारा लिखी पोस्ट आपने देखी है? ताली दोनो हाथ से बजती है. उनकी भी जिम्मेदारियाँ है, बड़े भाई की भावनाओं का खयाल रखने की कितनी कोशिश होती है? देश में रहने की कीमत जरूर वसुली जाती है.
वैष्णव जन ते तासो कहिये
ReplyDeleteप्रीत पराई जाने रे .....
बहुत अच्छा लिखा है आपने, आपस में प्रेम करने बाले विचार ही सर्वोत्तम होते हैं !
satish ji this was my comment but due to electricity faliur i posted its as annam. i am sorry , posting it with my name
ReplyDeleteपारस्परिक सद्भाव बनाने के अलावा इस देश में कोई और रास्ता नही है !
पारस्परिक साद भावः का अर्थ केवल और केवल minorities की चिंता करना नहीं होता हैं . majority मे हिंदू हैं और उनको मार मार कर ख़तम कर दो और देश पर कब्ज़ा कर लो . बार बार धार्मिक आस्थाओ की बात ही क्यूँ की जाती हैं . जो जैसा करेगा वैसा भुगतेगा . आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता पर मुसलमान उनके defense मे खड़े होकर उनको मुसलमान धर्म दे देते हैं . कभी सोच कर देखे सतीश जी अगर कोई भी मुस्लिम एक आतंकवादी के favor मे न खडा हो तो क्या कोई हिंदू उसको मुसलमान कहेगा ??
आतंक वादी को मुसलमान हिंदू नहीं ख़ुद मुसलमान बनाते हैं . दुबई मे कानून हैं की drugs के साथ पकडे गए तो सजा होगी और उस कानून मे वो मझहब नहीं देखते .
हमारे देश मे भी कानून हैं अगर आंतकवादी हैं तो कानून से उसका न्याय होगा क्यूँ इतना डरना की मुस्लिम मिनोरिटी मे सो न्याय नहीं होगा .
जिस देश के नागरिक हो वो देश ख़ुद तुम्हारी रक्षा करेगा .
कौन सा मुसलमान किस "आतंकवादी" के पक्ष में खड़ा हुआ है रचनाजी ? आपकी जानकारी का स्त्रोत क्या है ?
ReplyDeleteप्रिंट मीडिया,टेलिविज़न न्यूज़, पुलिस चार्जशीट या न्यायालय !
पढ़े लिखे लोगों की बातें सुनी सुनाई बातों पर नही बल्कि सबूतों पर आधारित होनी चाहिए ! आप समाज का नेत्रत्व करती हैं रचनाजी, आपका लेखन एक महत्व रखता है, और जो अपने आपको लेखक कहते हैं उन्हें सोच समझ कर लिखना चाहिए ! एक प्रार्थना है कृपया मेरा लेख दुबारा पढ़ें और सोचें और अगर भूल की हो तो सुधार भी करेंगी ऐसी मेरी आशा है !
सतीश जी
ReplyDeleteमै ब्लॉग पर केवल और केवल ब्लॉग आधरित व्यू ही लेती हूँ . ब्लॉग को मै ब्लॉग से ही जोड़ती हूँ . और मै निरंतर देख रही रही हूँ की ब्लॉग पर सब आंतकवादी को आतंकवादी ही मानते हैं . लेकिन कुछ ब्लॉग जिनके लेखक इतीफकन मुस्लिम हैं वो ही इस मुद्दे को उठाते हैं . और ऊपर कमेन्ट आए उसमे केवल और केवल एक कमेन्ट मुस्लिम का हैं और उसी मे ये बात उठी हैं . जन चेतना आप जगाना चाहते हैं बहुत अच्छा कार्य हैं पर क्या जरुरी हैं की मै भी वही मानु जो आप को सही दिखता हैं . मै और सुजाता अगर कुछ तीखा लिखते तो अशिष्टता की परिधि मे आता हैं और रख्शंदा और फिरदोस लिखती हैं तो बहादुरी हैं . आप की सोच मुझे कुछ कंफुजेद लगती हैं .
और क्युकी ये मुद्दा देश का हैं , कानून का हैं तो मुझे लगता हैं अभी हमारे देश का कानून व्यवस्था सही ही हैं . कम से कम हम सब धर्मो को मान्यता तो देते हैं .
जो अपने आपको लेखक कहते हैं उन्हें सोच समझ कर लिखना चाहिए
मै ब्लॉगर हूँ , लेखक और बुद्धिजीवी , समाज सुधारक होने का कोई भ्रम मुझे नहीं हैं . एक ब्लॉगर की हसियत से मेने आप के ब्लॉग पर कमेन्ट किया हैं .
लेकिन आप लेखक हैं
सो आप क्या लिख रहे हैं आप को जरुर ध्यान देना चाहीये
आपने एक गम्भीर विषय पर गहराई से लिखा है। मैं आपकी इस विवेचनात्मक और वस्तुपरक दृष्टि को सलाम करता हूं।
ReplyDeleteरचना जी से सहमत हू.. अल्प संख्यको की चिंता करना देश भक्ति नही.. और बिना वजह बड़ा भाई बनने की आवश्यकता भी नही, मुस्लिमस खुद अपने आप में इतने सक्षम है की वे अपना विकास स्वयं कर सके.. उन्हे किसी बड़े भाई की ज़रूरत नही.. और हमे भी खुद को बड़ा भाई नही समझना चाहिए.. हिंदू हो या मुस्लिम दोनो अगर एक ही देश की संतान है तो उनमे भेद भाव नही होना चाहिए.. कौन बड़ा भाई और कौन छोटा?
ReplyDeleteये सब बाते निराधार है.. रचना जी ने ठीक कहा आतंकवादियो को मुस्लिम कुछ तथाकथित मुस्लिम ही बनाते है.. वरना कोई हिंदू किसी मुसलमान के घर जाकर घंटी बजाकर नही कहता की बम तुमने फोड़ा है..
सबको पेट भर खाना मिल रहा है तो धर्म सूझ रहा है.. जब दो दिन खाना नही मिले तो सब भूल जाएँगे की हिंदू क्या मुस्लिम क्या..
आपके विचार नेक है सतीश जी.. पर अंधभक्ति भी ठीक नही.. इस से आप अपने मुस्लिम साथियो के लिए ग़लत कर रहे है.. ज़रूरत है समानता के दर्जे की.. उन्हे छोटा और खुद को बड़ा मत समझिए..
यदि आपके मान में मुस्लिमस के लिए प्यार है तो वो उन्हे स्वयं ही दिख जाएगा जताने की आवश्यकता नही
सतीश जी, एक बार फिर आपकी पोस्ट को देर से (शायद काफी लोगों के पढने के बाद) पढ़ पाया.
ReplyDeleteपोस्ट पर बहुत से बंधुओं के विचार भी पढ़े.
ये तो सच बात है कि चंद मुस्लिम नाम वाले (मैं उन्हें मुसलमान नहीं कह सकता, क्योंकि जिस तरह के काम वो लोग कर रहें हैं, इस्लाम उन कामों कि इजाज़त नहीं देता) आतंक पसंद लोग आतंक और मौत का खेल खेल रहे हैं, वहीँ ये भी सच है कि चंद हिन्दू नाम वाले लोग भी कुछ इसी तरह का काम अंजाम दे रहे हैं. और इन दोनों का ही मकसद है हमारी एकता में दरार डालना. ऐसी परिस्थितियां पैदा करना कि हिन्दू-मुस्लिम एक दूसरे को जब भी देखें, संदेह और घृणा की नज़रों से देखें. वे आपने मकसद में कामयाब भी हो रहे हैं.
क्यों?????????
क्योंकि हम (या कह लीजिये आम लोग) किसी समाज, धर्म या व्यक्ति का मूल्यांकन इन चंद अतिवादी लोगों के दृष्टिकोण से करने के आदि हो गए हैं. जो इन लोगों ने बताया वही सच मान लिया.
हालाँकि एक दूसरे को संदेह और घृणा की नज़रों से देखने को मजबूर होता जा रहा आम आदमी ये भी जनता है कि न तो हरेक मुस्लिम नाम और न हरेक हिन्दू नाम आतंकवाद या कट्टरवाद का पर्याय है. लेकिन इन अतिवादियों द्वारा उनके कानों में बार-बार ये घोषणा की जा रही है कि एक-दूसरे से प्यार मत करो, एक दूसरे पर विश्वास मत करो, एक-दूसरे के धर्म की खिल्ली उडाओ, एक-दूसरे से घृणा करो, एक-दूसरे को मारो, वरना हम तुम्हारा जीना हराम कर देंगे. हम तुम्हे धर्म से बहिष्कृत कर देंगे. अगर तुमने मुसलमान हो कर हिन्दुओं के लिए जरा भी हमदर्दी दिखाई तो हम तुम्हे हिन्दू कहना शुरू कर देंगे, काफिर कहना शुरू कर देंगे. और अगर तुमने हिन्दू होकर सभी मुसलमानों को आतंकवादी नहीं माना तो हम तुम्हें मुसलमान कहना शुरू कर देंगे, तुम्हे देशद्रोही घोषित कर देंगे.
और वो बेचारा मजबूर आम आदमी! कुछ नहीं कहता पाता. कर पाता. बस! चुप्प हो जाता है.इनकी बात मानने को मजबूर.
अगर वो नहीं भी मानता तो उसे अयोध्या, गोधरा, गुजरात, कानपुर, दिल्ली, अमरनाथ, श्रीनगर जैसे अनेक मुद्दों के बारे में बार-बार बताया जाता है.
क्योंकि इन चंद आतंकवादी या अतिवादियों का काम ही किसी समाज या व्यक्ति विशेष में दुर्गुणों को तलाश करके उनका बखान करना और उससे लक्षित समाज या व्यक्ति को बदनाम करना है. आप लाख चीख-चीख कर उसकी अच्छाइयों के बारे में इन्हें बताएं, लेकिन ये अपना दृष्टिकोण नहीं बदलेंगे.
..........
दृष्टिकोण के सन्दर्भ में एक प्रसंग याद आ गया. आप भी उससे परिचित होंगे.
एक गिलास में आधा पानी भरा है. कुछ लोग जहाँ उस गिलास को आधा खाली कहेंगे तो वहीँ कुछ लोगों के लिए वो आधा भरा होगा. गिलास एक ही है बस देखने के नजरिये का अंतर है.
दृष्टिकोण के इसी अंतर पर आज के नव भारत टाइम्स के सम्पादकीय पेज पर भी एक प्रसंग पढ़ा.
सारांश में लिख रहा हूँ - एक बार भीष्म पितामह ने कृष्ण से दुर्योधन और अर्जुन में सबसे बड़े अंतर के सन्दर्भ में पूछा.कृष्ण ने कहा - अभी उसकी परीक्षा हो जायेगी.
उन्होंने पहले अर्जुन को बुलाकर उन्हें एक वस्तु दी और कहा कि सभा में जो सबसे श्रेष्ट हो, उसे यह वस्तु उपहार में दे दो.
अर्जुन पूरी सभा में घूम कर बिना किसी को वह वस्तु दिए वापस आये और बोले - यदुनंदन, मुझे तो इन उपस्थित विभूतियों में से कोई भी ऐसा नहीं लगा जो किसी से कम श्रेष्ट हो. मुझे तो सभी गुणी, नीतिवान और धर्म का अनुसरण करने वाले दिखाई दिए.
श्री कृष्ण ने वही वस्तु दुर्योधन को दी और वही बात दोहराई. दुर्योधन भी पूरी सभा में घूम कर, बिना किसी को वह वस्तु दिए वापस आ गया और बोला - गोविन्द, मुझे इनमें से एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जिसमें कोई न कोई अवगुण न हो.
तब श्री कृष्ण ने पितामह से कहा कि दोनों में दृष्टिकोण का अंतर है......
यानी एक ने उपस्थित जनों में गुणों की तलाश की तो दूसरे ने अवगुणों की.
................
लगता है ठीक इसी तरह किसी को किसी कौम में सभी गलत या आतंकवादी नज़र आते हैं तो किसी को (जिस में आप जैसे लोग शामिल हैं, और बेफिक्र रहिये, आप जैसे लोगों कि संख्या अभी पर्याप्त है) उस कौम में अच्छे लोग भी नज़र आते हैं .
और मुझे आशा है कि आप जैसे अच्छे और सही दृष्टिकोण वालों का कारवां बढ़ता जायेगा. बस हमें सफ़र जारी रखना है.
आपका
जाकिर
सतीश जी भाई-भाई में छोटा या बडे का भेद निकाल दें, भाई-भाई होता है किसी को भी विशेष मानने से विभाजन का खतरा बडता है. अतः समानता का व्यवहार आवश्यक है. समान नागरिक संहिता ही बराबरी की भावना को मजबूत करेगी.
ReplyDeleteसुंदर
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ReplyDeleteक्यों फंसे हो
ReplyDeleteफिरकापरस्तों के दिए
वर्गीकरण में?
जरा इंन्सान की बात करो।
जो मर गए,
जो जबरिया जेलों में बंन्द हैं
जो घायल हो अस्पतालों में हैं
जो भूख से मर रहे हैं
जो नौकरी से निकाले जा रहे हैं
और जिन्हों ने ये सब किया
जो इस सब के लिए जिम्मेदार हैं
वे हिन्दू और मुसलमान और
ईसाई होंगे
इन्सान नहीं
और वे सब भी नहीं
जो इंन्सानों को फिरकों में बांटते हैं।
बहुत ही अच्छा आलेख।आलोचना तो होगी ही। साँप्रदायिक सद्भाव कायम हो गया तो कई दुकानें बंद जो हो जायेंगी। भारतीय जनमानस अभी भी आप की ही तरह सोचता है सतीश जी। हां ये छोटे-बड़े भाई की बात बराबरी में ख़लल डालती है। सभी समान अधिकार प्राप्त नागरिक हैं इसी देश के।
ReplyDeletebahut umda lekh
ReplyDeleteregards
सतीशजी आप फिर बेनामी की टिप्पणी दे रहे हैं और फिर हमारा नाम उछाला जा रहा है.
ReplyDeleteइस नक़ाबपोश से कहो कि अपनी शिनाख्त तो दे. जो पर्दे में रहकर हिन्दुत्व का राग आलापे वो हिन्दुत्व की रक्षा कैसे करेगा.
बुज़दिल को क्या कहें मुंह में थूको या ---- हया ही नही.
ब्लॉग पर हिन्दुस्तान पाकिस्तान बना के रख दिया.
खाली गाल बजाना.
कितने पाकिस्तान कमलेश्वरजी की किताब कितनो ने पढ़ी,दुश्यन्त कौन हैं इन्हे क्या पता थोड़ा कम्पयूटर पर उँगलियां घुमाना आ गया वे अदब की बात करते हैं.
हमारे ब्लाग पर बहुत सी ग़ज़लें कहीं गयी हैं उस पर कोई तफ़्सील से बात तो करे. पर ओ शऊर कहाँ से लायेंगे.मंटो को न पढ़ने वाले क्या जाने अदब किस चिड़िया का नाम है कबीर का नाम भी शाइद इन्होंने नहीं सुना बस अपनी डींगे हांकेगे.
आपसे इल्तिज़ा है जनाब कि हमारा नाम ले के कोई बेनामी टिप्पणी को आप प्रकाशित न करें एक तरफ आप मुझे भाषा के नाम पर अपील करते हैं तो दूसरी तरफ फिर उसी कहानी को दोहराया जाता है आप भी सियासत कर रहे हैं साहब.
मैं पहले ही कह चुका हूँ हिन्दुत्व का दुशाला ओढ़े लोगों ने देश की ज्यादा ऐसी तैसी की है.
मन में राम बगल में छुरी,
मिल जायें राम भोंक दे छुरी.
राम तो मिलने से रहे सो देश को छुरी भोंक रहे हैं.
ये जग ज़ाहिर है हिन्दुस्तान में बड़ी पोस्टों पर कौन हैं सीमा पार से आर.डी.एक्स कैसे आजाता है.
कर्नल जनरल की लीला देखी है.
कुछ भी न लिखने के लिए प्रतिबद्ध हूँ.
आप भी अवतारी पुरुष लगते हैं सबका उद्धार करने पर तुले हैं.जय हो प्रभू आपकी और उन दोगलों की जो कहते कुछ और करते कुछ कबीर ने सच ही कहा है-
सांच कहो तो मारन दौड़े झूटे जग पतियाय.
गौरस तो घर घर फिरे मदिरा ठेर बिकाय.
सुभाष भाई !
ReplyDeleteमेरा मतलब आपका रूठना बिल्कुल नही था, मैं आपकी कविता के भावों का आनंद ले रहा था !आपने मेरी अपील को वज़न दिया यह आपके व्यक्तित्व की विशेषता है सुभाष जी ! हालाँकि आपके व्यक्तित्व को समझना कुछ लोगों के बस की बात नहीं !
बहुत ईमानदारी और स्वच्छ दिल लेकर पैदा हुए हो आप ! गीतों के साथ साथ आपके लेखन की देश को जरूरत है, आपकी स्पष्टवादिता और देशभक्ति को नमन !
@संजय बेंगानी,
ReplyDeleteकुछ मुस्लिम लेखकों ने पारस्परिक सद्भाव का कार्य शुरू किया है, आप शहरोज़ के ब्लाग पर जाते ही हैं !
@कुश
मैं आपसे सहमत नही, कि अल्पसंख्यकों की चिंता देशभक्ति नही. बड़े भाई छोटे भाई का अर्थ सिर्फ़ अपनापन है और संकेत मात्र उपयोग किया है, प्यार और स्नेह का अर्थ, जानवर भी जनता है, हम सब तो इंसान हैं ! नफरत, चाहे उग्रवादी मुस्लिम फैलाएं चाहे हिंदुत्ववादी, दोनों ही देश का नुकसान कर रहे हैं ! मैं मुस्लिम साथियों के लिए ग़लत कर रहा हूँ , यह उन्हें कहने दीजिये , मेरी ईमानदारी का फैसला पाठक अपने आप कर देंगे !
हाँ एक दुख अवश्य हैं समझदार मगर संकुचित ह्रदय लेखनी देश का अनजाने में बहुत नुकसान करेगी ! आशा है साथ देने का प्रयत्न करेंगे !
@नटखट बच्चा
ReplyDeleteमेरा विचार है कि आप ३०-४० वर्ष के उम्र के कुशाग्रबुद्धि युवक हो, आपकी लेखनी में धार है, हिन्दी ब्लाग जगत में अनुभव की कमी के बावजूद, अगर आपको सही पहचान पा रहा हूँ तो मैंने आपके ब्लाग पर जाकर कई बार आपके लेखन की तारीफ भी की है !
आप जैसे नवजवान देशभक्त लोग, नफरत की बातें क्यों करते हैं मैं समझ नही पाता हूँ, आपको इतिहास नही पता यह इसका मुझे विश्वास नही होता, देश का मज़ाक बन जायेगा अगर हम आपस में लड़ने लगे, क्या दे पाओगे अपनी अगली पीढी को ! मैं अपने ५४ साल काट चुका हूँ मुझे आपके बच्चों की चिंता है, आप यकीन करें मैं भावनात्मक तौर पर अपने लेखन से जुदा हूँ ,
कुछ लोग मुझे नफरत भरे मेसेज भेज रहे हैं, कि मैं मुसलमानों की चमचागीरी कर रहा हूँ, मुझे इन लोगों की गालियों से अधिक चिंता, इस नफरत की बढ़ती हुई फसल को रोकने की चिंता है ! इसे काटेगा कौन ? आप और कुश जैसे कुशाग्र और देशभक्तों को या आपकी संतानों को ही काटना है ! मदद करें और खुले दिल से करें ! यकीन करें मुझे किसी वाहवाही की आवश्यकता नही है, लेखन में निहित लिप्सा कभी नही छिप सकती, और ब्लाग जगत में एक से एक विद्वान् , जिनके आगे मेरा लेखन अशुद्धियों का खजाना है, मुझे पढ़ भी रहे हैं ! अगर मैं एक वर्ग विशेष में अपनी तारीफ बटोर रहा हूँ तो वह भी छिपने वाली नहीं !
"read this artical and comments today, but some time silence is better than.... so i will keep silent...on this issue"
ReplyDeleteRegards
इतिहास गवाह है कि अधिकतर देशों का नुकसान दुश्मन के फौजों ने नही किया मगर आंतरिक फूट और ग्रहयुद्ध ने किया ! और सबसे अधिक मौतें बच्चों और कमजोरों की हूई ! ऐसे देशों की न केवल नस्लें तबाह हो गयीं बल्कि ३०-४० वर्षों के बाद भी वे अच्छे नेतृत्व तक के लिए मुहताज हो गए !
ReplyDeleteइस दुर्दशा को पहुंचाने वाले यही कमअक्ल लोग थे .....जो अपने आपको देशभक्त कहते हुए मुंह बजाते घूम रहे हैं, और जब इनकी बकवास सिरे चढ़ जायेगी, उस वक्त यह चूहे सबसे पहले अपने बिलों में घुस जायेंगे ! उस समय कमज़ोर पड़ते देश से इन्हे न अपना प्यार नज़र आएगा न धर्म !
उपरोक्त अंश एतिहासिक महत्त्व रखता है. कोई न समझे तो खैर खुदा करे.
किसी ने मुझे बताया था की सुभाषजी किसी विशेष मानसिकता द्बारा संचालित संगठन से जुडाव रखते हैं.लेकिन साझा-सरोकार और यहाँ उन्हें पढ़ कर लगा वो सज्जन गलत थे.सुभाष जी ने प्रभावित किया.
रचना जी और भाई कुश से आग्रह है की कौन क़ौम है जो खुद को आतंकवादी कहलाना पसंद करेगी.मुझे लगता है आप लोग टीवी की ख़बरों या patr-पत्रिकाओं के समाचारों या सम्पादकीय आलेखों आदि से अनजान हैं या अनजान रहने की कोशिश कर रहे हैं.
आप दोनों के साथ संजय जी से भी विनम्र निवेदन है की मेरे दो-तीन ठिकाने पर आकर मेरी पोस्ट ज़रूर देखिये.kya मुझे भी प्रधानमंत्री कोष में चंदा देकर अपनी राष्ट्रीयता साबित करनी होगी.
ज़ाकिर ने भी खुल कर अपनी बात rakhi है.
अमरजी, दिनेश जी , विवेक, सीमा, लवली और भी कई लोग हैं.
सतीश जी कारवां बढ़ रहा है.
सुभाष जी से सहमत कि अनामी को कमेन्ट करने की अनुमति नहीं रहनी चाहिये.मैं अनाम लेखन को कायरता समझता हूँ.
सतीश जी से गुज़ारिश महरबानी कर मेरे नाम के साथ मुस्लिम लेखक का पुछल्ला न लगायें, नवाजिश होगी.
ये पता नहीं क्यों उर्दू नाम वालों के साथ ही होता है.
किसी और को न कोई हिन्दू लेखक कहता है और न
ईसाई आतंकवादी (kya आप हिटलर और मुसोलुनी को कहते हैं) ?
रचना जी और भाई कुश से आग्रह है की कौन क़ौम है जो खुद को आतंकवादी कहलाना पसंद करेगी.मुझे लगता है आप लोग टीवी की ख़बरों या patr-पत्रिकाओं के समाचारों या सम्पादकीय आलेखों आदि से अनजान हैं या अनजान रहने की कोशिश कर रहे हैं.
ReplyDeleteशहरोज जी
उम्र के जिस पढाव पर हूँ वहाँ बहुत जल्दी इम्प्रेस नहीं हो सकती . धर्म पर लिखना ही नहीं चाहती और मानती हूँ की आतंकवादी केवल और केवल आतंकवादी होता हें .
आप ऊपर फिरदोस का कमेन्ट देखे वो कहती हैं लेकिन 'कुछ लोग' ऐसे हैं कि उन्हें यह सब दिखाई नहीं देता...उन्हें तो बस मुसलमानों को जबरन आतंकवादी बनाने पर तुले हुए हैं... ये सही हैं की उन्होने कही भी हिंदू नहीं कहा पर ऐसा क्यों कहा ??
बस इसी को लेकर मेने कमेन्ट किया हैं . बाक़ी हिंदुस्तान मे कानून हर धर्म को मान्यता देता हैं और देता रहेगा .
मीडिया जिम्मेदार भी हैं वरना बहुत सा सच कभी सामने ना आए . ब्लॉग पर अगर हम हिंदू मुस्लिम मुद्दा नही लाए तो बेहतर होगा अपर सब को अधिकार हैं अपनी बात स्वतंत्र रूप से कहने का . लेकिन बात समानता की होनी चाहिये
सतीश जी से गुज़ारिश महरबानी कर मेरे नाम के साथ मुस्लिम लेखक का पुछल्ला न लगायें, नवाजिश होगी.
aap ki yae soch bilkul sahii haen
aur yahii hona bhi chaheyae
रक्षंदा के ब्लॉग पर एक पोस्ट थी जब उसने साड़ी पहनी . उस पोस्ट पर आपने , जाकिर जी और फिरदौस ने कमेन्ट किया हैं पर केवल लेख के ऊपर जबकि बाकी सब के कमेन्ट उसके साड़ी पहन कर सुंदर दिखने और उसको प्रोत्साहित करने पर हैं .
क्या आप तीनो को वो साड़ी मे अच्छी नहीं लगी या बाकी को उसकी तहरीर से ज्यादा साड़ी अच्छी लगी . फरक हैं बचपन से दिये और जीये गए धार्मिक संस्कारो का बस और कुछ नहीं . बाकी आज एक कविता भी लिखी हैं अपने ब्लॉग पर उसको पढे शहरोज जी मन मे अगर मेरे बार मे कोई गिला होगा तो जरुर दूर हो जाएगा .
ये हमारा सब का दुर्भाग्य है कि जो जहर का बीज अग्रेजों ने बोया था हम उसे आज भी पाल पौस रहे हैं और वो रोज फ़ल फ़ूल रहा है।
ReplyDeleteआप ने एकदम सही बात लिखी है, नफ़रत और शक का ये पेड़ अब जला देना चाहिए, और कबीर की बातों पर अम्ल करते हुए कहें
"जाति न पूछो साधू की, पूछ लिजिए ज्ञान"
ये कहना कि कोई मुस्लिम तो ऐसा नही कहता अपने आप में सही तर्क नहीं।
@शहरोज़ !
ReplyDelete"सतीश जी से गुज़ारिश महरबानी कर मेरे नाम के साथ मुस्लिम लेखक का पुछल्ला न लगायें, नवाजिश होगी."
आपके इस कमेंट्स को रचनाजी ने भी काफी प्रमुखता दी, जरा बताएँगे श्रीमान कहाँ पर मैंने आपको मुस्लिम लेखक का पुछल्ला लगाया है ! कृपया बेंगानी जी का कमेंट्स दुबारा पढ़ें और मेरा रेफेरेंस भी !
संजय बेंगानी, - "आपने जैसी पोस्ट लिखी है ऐसी क्या किसी मुस्लिम बन्धू द्वारा लिखी पोस्ट आपने देखी है?"
मेरा जवाब था "कुछ मुस्लिम लेखकों ने पारस्परिक सद्भाव का कार्य शुरू किया है, आप शहरोज़ के ब्लाग पर जाते ही हैं "
@सीमा जी, मैं आपका आभारी हूँ आगाह करने के लिए ! मैं ख़ुद दुखी हूँ कि लोग नाज़ुक मौकों पर भी फायदा उठाने का प्रयत्न करते नज़र आते हैं !
@फिरदौस जी और डॉ सुभाष भदौरिया, आप लोगों का लेखन मुझे अच्छे लगता हैं, भावुक,निडर,ईमानदार और स्पष्टवक्ता !
@जाकिर हुसैन भाई !
बहुत अच्छा कमेंट्स दिया है आभारी हूँ, इससे लेख का सम्मान बढ़ाने के लिए शुक्रिया !
@अनीता कुमार
आपके आशीर्वाद के लिए आभारी हूँ !