Thursday, January 30, 2014

कर्म भूमि बस्तर पुकारती, और नहीं संघर्ष करें -सतीश सक्सेना

30 jan 2014, टाइम्स ऑफ़ इंडिया में  छत्तीस गढ़ पुलिस द्वारा , नक्सलबादियों  के आत्मसमर्पण के लिए, एक हिंदी कविता के जरिये आवाहन किया है ! निस्संदेह यह एक स्वागत योग्य कदम है ! 
कविता, अगर मन से लिखी जाए तो जनमानस को बदलने की शक्ति रखती है और ऐसे कदम, अपने स्थायी प्रभाव छोड़ने में समर्थ रहते हैं ! 
छत्तीस गढ़ पुलिस के इस आवाहन को अपने शब्दों में देते हुए, यह रचना, इस मंगलकारी कार्य हेतु छत्तीस गढ़ पुलिस को समर्पित है ! मुझे विश्वास है कि ऐसे प्रयत्न, इस जलती आग में, ठन्डे जल का काम करेंगे ! 
इस खूबसूरत पहल के लिए मंगलकामनाएं, छत्तीस गढ़ पुलिस को !! 

कर्म भूमि  बस्तर  पुकारती , और नहीं संघर्ष करें  !
आओ हम आवाहन करते, जन मन सद्भावना करें  !

बौद्धजनों की कर्म भूमि औ महर्षियों की तपोभूमि से 
जन जन की आवाजे आतीं , खेल खून का बंद करें  !

आंदोलन विरोध के रस्ते और भी हैं इस दुनियां में
आओ मिलकर बात करेंगे, क्रोध के गाने, बंद  करें !

कर्म  परायणता गरीब की , सम्मानित करवाएंगे !
मार काट  के रास्ते त्यागें , काली राहें , बंद  करें !

नक्सल और पुलिस मुठभेड़ें, कितनी जाने लेती हैं 
खड़े हैं हम बाहें फैलाए , शस्त्र समर्पण शुरू करें  !

शस्त्र समर्पण मंगल कारक,सम्मानित मानवता है !
हंसकर तुमको गले लगाने आये हैं , विश्वास करें  !

हथियारों का यही समर्पण, साहस का परिचायक है
बच्चों के भविष्य की खातिर,एक नयी शुरुआत करें !

20 comments:

  1. सद्प्रयास विजयी हो !

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  2. बहुत सुंदर रचना !

    एक कविता
    उन सब को भी
    दे कर देखें
    नक्सलवाद के
    जन्म के लिये
    जो हर पल
    हर क्षण एक
    प्रेरक का
    काम करें :)

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  3. बहुत सुन्दर और प्रेरक
    सराहनीय प्रयास छत्तीसगढ़ पुलिस का
    नक्सलवाद का दानव ख़त्म हो तो सबके लिए बेहतर

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  4. सुंदर शब्द और सद्भावना ....!!सुंदर रचना .

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  5. आंदोलन विरोध के रस्ते और भी हैं इस दुनियां में
    आओ मिलकर बात करेंगे, क्रोध के गाने, बंद करें ...
    सहमत हूँ आपकी बात से ... देश जब आज़ाद है तो इन सब बातों की जरूरत क्यों पड़े ... पर ये बात समाज और तंत्र को भी समझनी होगी की वो ऐसा मौका न दें ...

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  6. कविता के माध्म से नक्सली समस्या का हल हो, यह अत्यंत सुखद है। नक्सलियों को कविता के माध्यम से समझाने में उनके नक्सली साहित्य को भी पढ़ना पड़ेगा। उनकी समस्याओं को भी समझना पड़ेगा।

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  7. नक्सलवाद,नक्सली शब्द को क्यों इतना भयावान बना दिया है ? क्या वोह इंसान नही है..?
    क्या उनका खून हम से अलग है.? तो फिर यह कैसी उदंडता है..वोह भी इस देश के देश वासी है..सरकार उन्हें आंतकी क्यों मानती है..?

    जुल्म सह कर भी उफ़ नही करते
    उनके दिल भी अजीब होते है.

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  8. सार्थक प्रयास ....... सुन्दर प्रस्तुति.......

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  9. नक्सलवाद एक नकारात्मक प्रयोग है,
    शस्त्रों से केवल हिंसा और विध्वंस के सिवा और कोई समाधान नहीं मिलता !
    सार्थक अवाहन किया है रचना में !

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  10. हथियारों का यही समर्पण, साहस का परिचायक है
    बच्चों के भविष्य की खातिर,एक नयी शुरुआत करें !
    बहुत सुंदर रचना.

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  11. बढिया प्रयास . मंज़िल तक पहुँचे , आपकी आवाज़ .

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  12. वाह! छा गए सतीश जी ! सुन्दर पहल । हमारा छत्तीसगढ बहुत सुन्दर है । मुझे लगा था कि यह आपकी भी कर्म-भूमि है ।

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  13. बहुत ही सुंदर रचना और अत्यंत ही सुंदर प्रयोजन, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  14. नक्कार खाने में तूती आवाज़ सुनाई नहीं देती हमारे राजाओं को...बातचीत की नौबत भी इतने इम्तहानों से गुज़रने के बाद आती है...भय बिन होहि न प्रीत...

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  15. कविताओं से कौन मानेगा सरजी? फ़िर भी शुभ भावना के लिये शुभकामनायें।

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  16. सहजीवन के भाव समस्या पर विजय पायें, मनुज मनुज के निकट आयें। बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

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  17. बहुत ही सुंदर रचना

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  18. कल हमने भी यहाँ कमेन्ट किया था वो दिखाई नहीं देता :-(

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    Replies
    1. अच्छा लगा कि जवान लोग भी भुलक्कड़ होते हैं . .
      कल आपने फेसबुक पर कमेन्ट किया होगा ! :)

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  19. जी सर
    आज मैंने भी पढ़ी
    सराहनीय प्रयास !!

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- सतीश सक्सेना

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