Friday, June 23, 2017

जाने कहाँ वे खो गए कुछ शब्द, जो बोले नहीं - सतीश सक्सेना

बरसों से सोंचे शब्द भी उस वक्त तो बोले नहीं 
जब सामने खुद श्याम थे तब रंग ही घोले नहीं !

कुछ अनछुए से शब्द थे, कह न सके संकोच में,
जानेंगे क्या छूकर भी,हों जब राख में शोले नहीं !

प्रत्यक्ष देव,विरक्त मन, किससे कहें, नंदी के भी
सीने में कितने राज हैं,जो आज तक खोले नहीं !

विश्वास ही पहचान हो निर्मल ह्रदय की भावना 
मृदु ह्रदय मंजुल भाव तो हमने कभी तौले नहीं !

उलझी अनिश्चय में रही, मंदाकिनी हर रूप में
थी चाहती निर्झर बहे, शिवकेश थे,भोले नहीं !

9 comments:

  1. बरसों से सोचे शब्द भी उस वक्त तो बोले नहीं
    जब सामने स्वयं श्याम थे तब रंग ही घोले नहीं !

    कुछ अनछुए से शब्द थे, जो न कह सके संकोच में,
    जानेंगे क्या छूकर उन्हें, जब राख में शोले नहीं !

    प्रत्यक्ष देव,विरक्त मन, किससे कहें, नंदी के भी
    सीने में कितने राज हैं,जो आज तक खोले नहीं !

    विश्वास ही पहचान हो निर्मल ह्रदय की भावना
    मृदु ह्रदय मंजुल भाव तो हमने कभी तौले नहीं !

    उलझी अनिश्चय में रही, मंदाकिनी हर रूप में
    थी चाहती निर्झर बहे, शिवकेश थे,भोले नहीं !

    सुंदर भाव..

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  2. वाह ... बहुत सुन्दर गीत ...

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  3. विश्वास ही पहचान हो निर्मल ह्रदय की भावना
    मृदु ह्रदय मंजुल भाव तो हमने कभी तौले नहीं !

    वाह सक्सैना जी! अति सुन्दर!

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  4. सुन्दर प्रस्तुति

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  5. वाह्ह्ह...बहुत सुंदर।।

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  6. उज्जवल मन के मोहक भाव लिए भावप्रवण अभिव्यक्ति।

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  7. बहुत सुन्दर.....
    सार्थक प्रस्तुति

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- सतीश सक्सेना

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