Monday, January 8, 2018

करें दंडवत महलों जाकर,बड़े महत्वाकांक्षी गीत !-सतीश सक्सेना


आग लगाई संस्कारों में 
सारी शिक्षा भुला गुरु की
दाढ़ी तिलक लगाये देखो  
महिमा गाते हैं कुबेर की !
डर की खेती करते,जीते 
नफरत फैला,निर्मम गीत !
करें दंडवत महलों जाकर,बड़े महत्वाकांक्षी गीत !

खद्दर पहने नेतागण अब
लेके चलते , भूखे खप्पर,
इन पर श्रद्धा कर के बैठे
जाने कब से टूटे छप्पर !
टुकुर टुकुर कर इनके मुंह 
को,रहे ताकते निर्बल गीत !
कौन उठाये  नज़रें अपनी , इनके टुकड़े खाते  गीत !

धन कुबेर और गुंडे पाले 
जितना बड़ा दबंग रहा है
अपने अपने कार्यक्षेत्र में 
उतना ही सिरमौर रहा है 
भेंड़ बकरियों जैसी जनता,
डरकर इन्हें दिलाती जीत !
पलक झपकते ही बन जाते सत्ताधारी, घटिया गीत !

जनता इनके पाँव  चूमती
रोज सुबह दरवाजे जाकर
किसमें दम है आँख मिलाये 
बाहुबली के सम्मुख आकर  
हर बस्ती के गुंडे आकर 
चारण बनकर ,गाते गीत !
हाथ लगाके इन पैरों को, जीवन धन्य बनाते गीत !

लोकतंत्र के , दरवाजे पर 
हर धनवान जीतकर आया
गुंडा राष्ट्र भक्त कहलाया 
राजनीति में जब पद पाया
अनपढ़ जन से वोट मांगने,
बोतल ले कर मिलते मीत !
बिका मीडिया हर दम गाये, अपने दाताओं के गीत !

खादी कुरता, गांधी टोपी,
में कितने दमदार बन गये  !
श्रद्धा और आस्था के बल 
मूर्खों के  सरदार बन गये !
वोट बटोरे झोली भर भर, 
देशभक्ति के बनें प्रतीक ! 
राष्ट्रप्रेम भावना बेंच कर, अरबपति बन जाएँ गीत !

16 comments:

  1. आत्मा से निकलने वाले गीत तो कभी नहीं बिकते... हाँ,
    ये बात और है कि आत्मा ही बिकी हुई हो, गिरवी रखी हुई हो !!! ऐसे में गीतों का क्या दोष.....
    "दर दर भटकने को, मजबूर हो गए हैं,
    गीत भी जैसे बंधुआ मजदूर हो गए हैं ।

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  2. ढोल मे है कितनी पोल खोलिये खोलिये
    सब चुप क्यों है कोई कुछ तो बोलिये।
    व्यक्ति वादी स्वार्थ पर चोट करती अप्रतिम रचना।

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  3. शिकायत है
    आप से
    विनती भी है
    क्यों नहीं लिखते
    रोज एक नया गीत?



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  4. वाह ! बहुत प्र्भावशाली लेखन..जनता अपनी भूमिका निभाना जानती है उन्हें बस जगाते रहें जोश भरे गीत..

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  5. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'गुरुवार' ११ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  6. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'गुरुवार' ११ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  7. बहुत सुन्दर जोश जगाते,सच दर्शाते आपके गीत
    सोई जनता को जगाते
    वाह!!!!
    लाजवाब लेखन

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  8. किसने दम है ,आँख मिलाये बाहुबली के सम्मुख आकर
    यथार्थ वाद पर कड़ा प्रहार करती ओजपूर्ण रचना

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  9. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'गुरुवार' ११ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  10. जी,नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना सोमवार १२जनवरी २०१८ के ९१० वें अंक के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  11. वाह ! लाजवाब ! बहुत खूब आदरणीय ।

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  12. हमेशा की तरह धारदार।

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  13. लोकतंत्र के , दरवाजे पर
    हर धनवान जीतकर आया
    हर गुंडे को पंख लग गए
    जब उसने मंत्री पद पाया
    अनपढ़ जन से वोट मांगने,
    बोतल ले कर मिलते मीत !
    बिका मीडिया हर दम गाये, अपने दाताओं के गीत !
    बहुत सुंदर प्रस्तुति, सक्सेना जी।

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  14. अत्यंत प्रभावी गीत ।

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  15. गहरा कटाक्ष ... आज की व्यवस्था और उनके ठेकेदारों पर ...
    गीत का हर छंद लाजवाब ...

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एक निवेदन !
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- सतीश सक्सेना

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