जिनको पूरे जीवन आपने भरपूर प्यार किया हो , जिनके हर कष्ट को, आपने अपने दिल पर महसूस किया हो, अगर वही प्यारा, आपको मार्मिक चोट पंहुचाने लगे, तब कोमल दिल कहीं गहराई तक घायल होता है ! अक्सर इस चोट से आहत दिल, आने वाले समय में किसी भी प्यार और स्नेह पर विश्वास नहीं कर पाता !
अपने प्यारों से अपेक्षा करने को, अक्सर मानवीय कमजोरी बताया जाता है , प्यार के साथ अधिकार की भावना आ ही जाती है जबकि आपके अधिकार को, उचित सम्मान देने वाले नहीं मिलते और यह आवश्यक तो बिलकुल नहीं कि आपका प्यारा भी आपको उतना हो प्यार करे जितना आप कर रहे हों ! हताशा यहीं से शुरू होती है ...
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ तो हुई लेकिन तमाम उम्र का आराम मिल गया ! आप सब लोगों का अक्सर एक ही सलाह होगी यहाँ ...अपेक्षा मत करिए ! मगर क्या संवेदनशील दिल को समझाना इतना आसान है ??
सरल भाषा में ,समीर लाल द्वारा लिखी गयी इस सफल उपन्यासिका का ,पहला अध्याय पढ़कर ही, मन में एक सपना सा जग गया कि अपने ब्लॉग लेखों को एक किताब का रूप दिया जा सकता है ! शिवना प्रकाशन शायद देश में अकेला प्रकाशन संस्थान है जो बेहतरीन ब्लॉग लेखकों का परिचय, आम जनता को कराने में बड़ी भूमिका अदा कर रहा है ! शायद ब्लोगिंग को प्रोत्साहन देने में, पंकज सुबीर अपनी व्यक्तिगत शक्ति और धन का उपयोग कर, सबसे अधिक हिम्मत का काम कर रहे हैं ! वे वाकई सम्मान के अधिकारी हैं ! काश कुछ और पंकज सुबीर, देश को मिल जाएँ :-)
किताबी फार्म में समीर लाल को पढना बेहद सुखद रहा ! सामान्य भाषा में गर्व रहित उड़न तश्तरी को पढ़ते हुए लगता है कि समीर लाल सामने बैठे बाते कर रहे हैं ! ईमानदारी से कहे सौम्य शब्द, आपको मंत्र मुग्धता की स्थिति का अहसास कराने में कामयाब रहेंगे !! मांट्रियाल सफ़र में, गाड़ी चलाते समय रास्ते के अनुभव, हमसे बाँटते हुए समीर लाल की शैली की एक बानगी देखें....
" सामने ट्रक को देखता हूँ ! सूअर लदे हैं ! एक छेद से मुंह निकाले ठंडी हवा की मौज लेने की फ़िराक में देखा ! उसे क्या पता कि गंतव्य पर पंहुचते ही मशीन उसे फाइनल नमस्ते कहने का इंतज़ार कर रही है ! उस पर गुलाबी निशान है और बहुतों की तरह ! शायद गुलाबी मतलब , पहला स्टॉप ! तो वहीँ कटेगा और फैक्ट्री में से दूसरी तरफ पैकेट में पैक निकलेगा, पीसेस में बिकने को ! छेद से झांकता सूअर .... वैसे ये तो हमें भी पता नहीं कि कौन सा निशान हम पर लगा है ......" इन पंक्तियों द्वारा, लेख़क अनजाने में ही अपने संवेदनशील दिल का परिचय दे देता है ! एक दूसरे से जलते भुनते, हम लोगों की आखिरी शाम कहाँ हो जाये यह कौन जानता है ?? "उजाले अपनी यादों के , हमारे साथ रहने दो ! न जाने किस घडी में जिंदगी की शाम हो जाए !"
"अगर मेरा बस चले, तो आपके ब्लॉग को "सबसे अच्छा ब्लॉग" का अवार्ड दूं ! आम आदमी के भले के लिए, आपकी दी हुई जानकारी, बेशकीमती हैं ! शुभकामनायें आपको ! "
उपरोक्त कमेन्ट मैंने कुमार राधारमण के ब्लॉग पर दिया है ! आम आदमी के स्वास्थ्य की सुरक्षा के द्रष्टि से, जो ब्लॉग बनाये गए हैं, उनमें कुमार राधारमण की सरल भाषा में दी गयी जानकारी मुझे बहुत प्रभावित करती रही है !
हाल में पढ़ा एक बेहतरीन लेख " अकेलापन है सबसे बड़ा रोग ...." पढ़कर आनंद आ जाता है ! इनकी लेखनी स्वास्थ्य सम्बन्धी ही नहीं, सामाजिक विषयों और मानवीय संबंधों पर भी समान अधिकार रखती है ! इनके लेखों से , लेख़क के अन्दर की मानवीय संवेदनाओं का अथाह भण्डार का पता भी चलता है ! मेरा खुद का मानना भी है कि आपस में स्नेह और भावनात्मक जुड़ाव बहुत महत्वपूर्ण है , जिन सम्बन्धों , परिवारों में यह बंधन होता है वे अक्सर निरोगी पाए जाते हैं ! भयंकर बीमारी के समय, माथे पर स्नेह युक्त हाथ का एक स्पर्श, आधी बीमारी ठीक करने के लिए पर्याप्त होता है !
ब्लॉग जगत का व्यवहार जानते हुए , मुझे यह देख कर आश्चर्य बिलकुल नहीं होता कि इतने बेहतरीन कार्य पर टिप्पणियां और शायद पाठक नगण्य हैं ! वैसे भी ब्लॉग जगत में ध्यान से किसी को नहीं पढ़ा जाता है मगर मुझे विश्वास है कि कुमार राधारमण का यह काम, समय के साथ ब्लॉग जगत की धरोहर माना जाएगा !
डॉ अरविन्द मिश्रा की एक पोस्ट मैं भुला नहीं पाता ! निस्संदेह सोम ठाकुर के लिखे इस अमर गीत नजरिये हो गए छोटे हमारे की एक एक लाइन, आज के समाज और वातावरण पर बिलकुल सटीक उतरती है ! मगर आज इस पोस्ट लेखन का कारण ,यह महान गीत कम, बल्कि इसके दोनों गायक अधिक हैं ! खाली समय में, इंग्लिश मीडियम में पढ़े अधिकतर नवजवानों की रुचि, माता पिता का साथ देने में कम और इंग्लिश उपन्यास अथवा पाश्चात्य संगीत में अधिक रहती है ! अधिकतर इस झुकाव का कारण कॉन्वेंट शिक्षा परिवेश में भारतीय संगीत, भाषा और संस्कारों की उपेक्षा रही है ! आज के व्यस्त समय और समाज में, जहाँ पिता और वयस्क पुत्र के बीच संवाद होना भी, कम आश्चर्य नहीं माना जाता वहीँ एम एस रमैया कॉलेज बंगलुरु का मैनेजमेंट क्षात्र कौस्तुभ द्वारा, अपने पिता डॉ अरविन्द मिश्र का, एक हिंदी गाने में संगत देना, एक सुखद आश्चर्य है ! निस्संदेह इस युग्म गीत के जरिये, अरविन्द जी के परिवार में प्यार और स्नेह के अंकुर नज़र आते हैं ! मुझे आशा है पिता पुत्र का यह प्यार प्रेरणास्पद रहेगा !
-ये रचनाएं मौलिक व अनगढ़ हैं , इनका बाज़ार में बताई गयी किसी साहित्य शिल्प ,विधा और शैली से कुछ लेना देना नहीं !
-ये रचनाएँ किसी हिंदी धुरंधर को सलाम नहीं करतीं ये ईमानदार व मुक्त हैं और छपने की लाइन में लगना पसंद नहीं करती ! कोई भी इन्हें प्यार से मुफ्त ले जा सकता है !
-यह कलम किसी ख़ास जाति,धर्म,राजनैतिक विचारधारा से सम्बंधित नहीं केवल मानवता को मान देने को कृतसंकल्प है !
मेरी असाहित्यिक रचनाएं बिकाऊ नहीं और न पुरस्कार की चाहत रखती हैं, सहज मन की अभिव्यक्ति हैं, अगर कुछ पढ़ने आये हैं तो निराश नहीं होंगे !
विद्रोही स्वभाव,अन्याय से लड़ने की इच्छा, लोगों की मदद करने में सुख मिलता है ! निरीहता, किसी से कुछ मांगना, झूठ बोलना और डर कर किसी के आगे सिर झुकाना बिलकुल पसंद नहीं ! ईश्वर अन्तिम समय तक इतनी शक्ति एवं सामर्थ्य अवश्य बनाये रखे कि जरूरतमंदो के काम आता रहूँ , भूल से भी किसी का दिल न दुखाऊँ ..