"निराशावादी द्रष्टि पालने वालों की यहाँ कमी नहीं और यही प्रवृत्ति मानवीयता को पीछे धकेलने में कामयाब है !
ऐसे लोग ब्लॉग जगत में लिखी रचनाओं के अर्थ, तरह तरह से लगाते हैं ,कई बार अर्थ का अनर्थ बनाने में कामयाब भी रहते हैं !"
कुछ दिन पहले, अली साहब से उपरोक्त विषय पर, लगभग आधा घंटे बात होने के बाद,अविश्वासी और निराशाजन्य स्वभावों पर हुई बातचीत के फलस्वरूप, इस लेख की प्रेरणा मिली !
रचना लिखते समय लेखक की अभिव्यक्ति, विशिष्ट समय और परिस्थितियों में, तात्कालिक मनस्थिति पर निर्भर करती हैं और पाठक उसे अपनी अपनी द्रष्टि, और बुद्धि अनुसार पारिभाषित करते हैं !
अगर लेखक की कथनी और करनी में फर्क नहीं है तो वह किसी भी काल में रचना करे , रचना के मूल सन्देश में फर्क नहीं होगा ! उसकी रचनाएँ उसके चरित्र और व्यवहार का आइना है , जिन्हें पढ़कर लेखक को आसानी से समझा जा सकता है ! अधिकतर ईमानदार लेखकों के विचार समय अनुसार बदलते नहीं हैं , अगर एक लेखक , विषय विशेष से परहेज करते हुए पाठकों की नज़र से,कुछ छिपाना चाहता है तो सतत लेखन फलस्वरूप, कभी न कभी, आवेग में वह,उन्हें व्यक्त कर ही देगा !
लेखक के अर्थ और उद्देश्य के सम्बन्ध में रमाकांत अवस्थी जी ने इन लोगों से कहा था ....
" मेरी रचना के अर्थ, बहुत से हैं...
जो भी तुमसे लग जाए,लगा लेना "
समाज के ठेकेदारों के मध्य प्रसारित, फक्कड़ लोगों की रचनाएँ, अक्सर नाराजी का विषय बन जाती हैं ! अर्थ का अनर्थ समझने वालों की चीख पुकार के कारण , नाराज लोगों की संख्या भी खासी रहती है , ऐसों को कैसे समझाया जाए , वाद विवाद छेड़ने की मेरी आदत कभी नहीं रही अतः यही कह कर चुप होना उचित है ...
कैसे बतलाएं कब मन को ,
अनुभूति हुई वृन्दावन की
बस कवर पेज से शुरू हुई ,
थी, एक कहानी जीवन की !
क्या मतलब बतलाऊँ तुमको,
जो चाहे अर्थ लगा लेना !
संकेतों से इंगित करता, बस यही कहानी जीवन की !
जो प्यार करेंगे, वे मुझको
सपनों में भी, दुलरायेंगे !
जिनको अनजाने दर्द दिया
वे पत्थर ही , बरसाएंगे !
इन दोनों पाटों में पिसकर,
जीवन का अर्थ लगा लेना !
स्नेह,प्यार,ममता खोजे, बस यही कहानी जीवन की !
कुछ लोग देखके खिल उठते
कुछ चेहरों पर रौनक आती
कुछ तो पैरों की आहट का ,
सदियों से इंतज़ार करते !
तुम प्यार और स्नेह भरी,
आँखों का अर्थ लगा लेना !
मेरी रचना के मालिक यह,बस यही कहानी जीवन की
कब जाने दुनिया ममता को ?
पहचाने दिल की क्षमता को
हम दिल को कहाँ लगा बैठे ?
कब रोये, निज अक्षमता पर ?
तुम मेरी कमजोरी का भी,
जो चाहे अर्थ लगा लेना !
हम जल्द यहाँ से जाएँगे , बस यही कहानी जीवन की !
कैसे जीवन को प्यार करें ?
क्यों हम ऐसा व्यापार करें
अपमान जानकी का करते
आंसू की कीमत भूल गए ?
भरपूर प्यार करने वाले ,
अंदाज़ तुम्हारा क्या जाने
वे नम, स्नेही ऑंखें ही , कह रही कहानी जीवन की !
तुम ही तो भूल गए हमको
हम भी कुछ थके, इरादों में
फिर भी तेरी इस नगरी में,
हँसते हँसते ,दुःख भूल गए !
गहरे कष्टों में साथ रहे ,
जो हाथ इबादत में उठते !
मेरे निंदिया के मालिक ये ,बस यही कहानी जीवन की !
ऐसे लोग ब्लॉग जगत में लिखी रचनाओं के अर्थ, तरह तरह से लगाते हैं ,कई बार अर्थ का अनर्थ बनाने में कामयाब भी रहते हैं !"
कुछ दिन पहले, अली साहब से उपरोक्त विषय पर, लगभग आधा घंटे बात होने के बाद,अविश्वासी और निराशाजन्य स्वभावों पर हुई बातचीत के फलस्वरूप, इस लेख की प्रेरणा मिली !
रचना लिखते समय लेखक की अभिव्यक्ति, विशिष्ट समय और परिस्थितियों में, तात्कालिक मनस्थिति पर निर्भर करती हैं और पाठक उसे अपनी अपनी द्रष्टि, और बुद्धि अनुसार पारिभाषित करते हैं !
अगर लेखक की कथनी और करनी में फर्क नहीं है तो वह किसी भी काल में रचना करे , रचना के मूल सन्देश में फर्क नहीं होगा ! उसकी रचनाएँ उसके चरित्र और व्यवहार का आइना है , जिन्हें पढ़कर लेखक को आसानी से समझा जा सकता है ! अधिकतर ईमानदार लेखकों के विचार समय अनुसार बदलते नहीं हैं , अगर एक लेखक , विषय विशेष से परहेज करते हुए पाठकों की नज़र से,कुछ छिपाना चाहता है तो सतत लेखन फलस्वरूप, कभी न कभी, आवेग में वह,उन्हें व्यक्त कर ही देगा !
लेखक के अर्थ और उद्देश्य के सम्बन्ध में रमाकांत अवस्थी जी ने इन लोगों से कहा था ....
" मेरी रचना के अर्थ, बहुत से हैं...
जो भी तुमसे लग जाए,लगा लेना "
समाज के ठेकेदारों के मध्य प्रसारित, फक्कड़ लोगों की रचनाएँ, अक्सर नाराजी का विषय बन जाती हैं ! अर्थ का अनर्थ समझने वालों की चीख पुकार के कारण , नाराज लोगों की संख्या भी खासी रहती है , ऐसों को कैसे समझाया जाए , वाद विवाद छेड़ने की मेरी आदत कभी नहीं रही अतः यही कह कर चुप होना उचित है ...
कैसे बतलाएं कब मन को ,
अनुभूति हुई वृन्दावन की
बस कवर पेज से शुरू हुई ,
थी, एक कहानी जीवन की !
क्या मतलब बतलाऊँ तुमको,
जो चाहे अर्थ लगा लेना !
संकेतों से इंगित करता, बस यही कहानी जीवन की !
जो प्यार करेंगे, वे मुझको
सपनों में भी, दुलरायेंगे !
जिनको अनजाने दर्द दिया
वे पत्थर ही , बरसाएंगे !
इन दोनों पाटों में पिसकर,
जीवन का अर्थ लगा लेना !
स्नेह,प्यार,ममता खोजे, बस यही कहानी जीवन की !
कुछ लोग देखके खिल उठते
कुछ चेहरों पर रौनक आती
कुछ तो पैरों की आहट का ,
सदियों से इंतज़ार करते !
तुम प्यार और स्नेह भरी,
आँखों का अर्थ लगा लेना !
मेरी रचना के मालिक यह,बस यही कहानी जीवन की
कब जाने दुनिया ममता को ?
पहचाने दिल की क्षमता को
हम दिल को कहाँ लगा बैठे ?
कब रोये, निज अक्षमता पर ?
तुम मेरी कमजोरी का भी,
जो चाहे अर्थ लगा लेना !
हम जल्द यहाँ से जाएँगे , बस यही कहानी जीवन की !
कैसे जीवन को प्यार करें ?
क्यों हम ऐसा व्यापार करें
अपमान जानकी का करते
आंसू की कीमत भूल गए ?
भरपूर प्यार करने वाले ,
अंदाज़ तुम्हारा क्या जाने
वे नम, स्नेही ऑंखें ही , कह रही कहानी जीवन की !
तुम ही तो भूल गए हमको
हम भी कुछ थके, इरादों में
फिर भी तेरी इस नगरी में,
हँसते हँसते ,दुःख भूल गए !
गहरे कष्टों में साथ रहे ,
जो हाथ इबादत में उठते !
मेरे निंदिया के मालिक ये ,बस यही कहानी जीवन की !
"अगर लेखक की कथनी और करनी में फर्क नहीं है तो..."
ReplyDeleteसब से पहले तो यह तै कर पाना ही बेहद कठिन हो जाता है इस ब्लॉग जगत में ... यहाँ तो हर कोई ज्ञानी है ... और कभी कभी तो महाज्ञानियो से भी मुलाकात हो जाया करती है ... ;-) ... हम जैसा नादान कैसे तै करे किस की कथनी और करनी एक है और किस की अलग अलग !?
बाकी जीवन की कहानी तो हमेशा ही कोई ना कोई सीख दे ही जाती है ... अब चाहे वो आपके जीवन की कहानी हो या मेरे ... है कि नहीं ??
तुम भी कुछ भूल गए हमको
ReplyDeleteहम भी कुछ थके , इरादों में
फिर भी कष्टों की नगरी में
हँसते हँसते , दुःख भूल गए !
सच कहा है सतीश जी ...दरअसल जो भी लेखक लिखता है वो कहीं न कहीं उसका दृष्टिकोण या उसका आचरण या समाज की वर्तमान परिस्थिति से प्रेरित हो के ही लिखता है .... और सही मानों में वो लेखक नहीं है जो बस लिखता तो है पर उसे जीता नहीं ...
आदरणीय ,
ReplyDeleteआपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई !
आपके मंगलमय जीवन की कामना करते हुए ईश्वर से आपके लिए यही प्रार्थना है---
पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं श्रुणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात्।।
शब्द कभी धोखा भी दे जाते हैं, लेकिन भाव शायद कभी नहीं.
ReplyDelete" मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं...
ReplyDeleteजो भी तुमसे लग जाए, लगा लेना "
वाह, क्या सुन्दर बात कही है... इस बात के आगे सारे कुतर्क और अर्थहीन प्रलाप नगण्य है!!!
बहुत बहुत बहुत सुन्दर पोस्ट!!!
आज आपका जन्मदिन है... अशेष शुभकामनाएं!
सादर!!!
यह पोस्ट लिखने के लिए हृदय से आभार... शब्दों में नहीं कह सकते... कि यह पढ़कर कितना अच्छा लगा!!!
कैसे जीवन को प्यार करें ?
ReplyDeleteक्यों हम ऐसा व्यापार करें
अपमान जानकी का करते
आंसू की कीमत भूल गए ?
भरपूर प्यार पाने वाले , अंदाज़ तुम्हारा क्या जाने
वे नम स्नेही आँखों ही , कह रही कहानी जीवन की !
यह पंक्तियाँ लिखने वाली लेखनी और उस लेखनी को पकड़ने वाले गीतकार को... चरणस्पर्श प्रणाम!
सीधे शब्दों में कहें तो आपको चरणस्पर्श प्रणाम!
जो प्यार करेंगे,वे मुझको
ReplyDeleteसपनों में भी दुलरायेंगे !
जिनको अनजाने दर्द दिया
वे पत्थर ही बरसाएंगे !
इन दोनों पाटों में पिसकर,जीवन का अर्थ समझ लेना
स्नेह,प्यार,ममता खोजे, बस यही कहानी जीवन की !
कई बार पढ़ा आपका गीत...
भाव यूँ जुड़े कि आँखें ही नहीं हृदय भी नम हो गया!!!
सत्य वचन ... जन्मदिन पर शुभकामनाएं और बधाई दीघार्यु हों .... आभार ...
ReplyDeleteबार-बार दिन यह आये, हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteपूर्व कमेन्ट से ज्ञात हुआ कि आज आपका जन्मदिन है...
ReplyDeleteमेरी भी शुभकामनाएं स्वीकार करें.
और बेहद रोचक और सार्थक लेख/काविश के लिए बधाई.
कब जाने दुनियां ममता को ?
पहचाने दिल की क्षमता को
हम दिल को कहाँ लगा बैठे ?
कब रोये,निज अक्षमता पर ?
तुम मेरी कमजोरी का भी, जो चाहे अर्थ लगा लेना !
हम जल्द यहाँ से जायेंगे, बस यही कहानी जीवन की !
वाह सर...बहुत खूब.
अरे वाह तो आज आपका जन्मदिन है…………हमारी तरफ़ से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें……………ईश्वर आपका जीवन मंगलमय बनाये।
ReplyDeleteमेरे विचार से लेखक के मूल भावों में कोई अंतर नहीं आता । हालाँकि विषय मनोस्थिति अनुसार बदल सकता है । जैसे कभी कभी उदासीन गाने बहुत अच्छे लगते हैं जब मूड लो होता है ।
ReplyDeleteअली सा की सोच बहुत सुलझी हुई लगती है । लेकिन सब से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती ।
जन्मदिन का सन्देश अभी नहीं मिला है पाबला जी से , इसलिए फिर आयेंगे । :)
किसी के कहे या लिखे का अपनी सुविधानुसार अर्थ निकलकर बात का बतंगड़ बनाना आम है ! मगर मैं ज्यादा जिम्मेदारी उन लोगों की मानती हूँ जो दूसरों की नकारात्मक सोच से प्रभावित होकर अफवाहों को बढ़ावा देते हैं , आखिर खुद की समझदारी भी कोई चीज होती है !
ReplyDeleteतुम भी कुछ भूल गए हमको
ReplyDeleteहम भी कुछ थके , इरादों में
फिर भी कष्टों की नगरी में
हँसते हँसते , दुःख भूल गए !
मेरे कष्टों में साथ रहे , जो हाथ इबादत में उठते !
मेरे निंदिया के मालिक वे,बस यही कहानी जीवन की !
.....लाज़वाब! बहुत सटीक और सुंदर पोस्ट
कब जाने दुनियां ममता को ?
ReplyDeleteपहचाने दिल की क्षमता को
हम दिल को कहाँ लगा बैठे ?
कब रोये,निज अक्षमता पर ?
तुम मेरी कमजोरी का भी, जो चाहे अर्थ लगा लेना !
हम जल्द यहाँ से जायेंगे, बस यही कहानी जीवन की !
बहुत सुन्दर रचना ... जन्म दिन की बधाई और शुभकामनाएँ
आपको जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएं .... आपने सही कहा है रचनाएँ रचनाकार के चरित्र और व्यवहार का आइना है , जिन्हें पढ़कर लेखक को आसानी से समझा जा सकता है... आभार ...
ReplyDeleteवाह! सतीश जी वाह!
ReplyDeleteसतीश शायद पहली बार आपकी रचना पर टिप्पणी कर रहा हूँ, ईत्तेफ़ाक है कि आज आपका जन्मदिन भी है, आपके व्यक्तित्व वर्णन जानते हुये कहने का साहस कर रहा हूँ कि:
"जन्मदिन भी अजीब होते हैं,
लोग तोहफ़ों के बोझ ढोते हैं,
कितनी अजीब बात है लेकिन,
पैदा होते ही बच्चे रोते हैं!"
बधाई!
जन्मदिन की हार्दिक बधाई। जो आप लिखते हैं वह तो बेहतर है ही।
ReplyDeleteजीवन का सार तत्व बता दिया आपने .... जहां तक लेखन की बात है वो कभी खुद का अनुभव होता है तो कभी परिवेश का .....
ReplyDeleteएक बार फिर जन्मदिन की शुभकामनाएं !
गीत मधुर है। जिसके विचार सुलझे हुए हैं वे अक्सर एक ही संदेश देते हैं।
ReplyDeleteसतीश जी,'जीवन की कहानी' रचना भावों की गहन अभिव्यक्ति है !
ReplyDeleteआप को जन्मदिन की हार्दिक बधाई..
बहुत बढ़िया सन्देश है ,मनन योग्य...जन्मदिन की शुभकामनाएं |
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteये बात बहुत सच्ची है ...
लेखक की कथनी और करनी में फर्क नहीं है तो वह किसी भी काल में रचना करे , रचना के मूल सन्देश में फर्क नहीं होगा ! उसकी रचनाएँ उसके चरित्र और व्यवहार का आइना है , जिन्हें पढ़कर लेखक को आसानी से समझा जा सकता है !
लेकिन मैं इस से सहमत नहीं कि ईमानदार लेखकों के विचार बदलते नहीं हैं। जब भी उन्हें कोई विचार गलत नजर आता है उसे त्याग देते हैं और सही को अपनाते हैं। लेकिन बेईमान लोग दृढ़ता से गलत विचारों से चिपके रहते हैं। वास्तव में बेईमानों के विचार लाभ से चिपके रहते हैं। बदलते भी हैं तो तब जब लाभ प्राप्ति का केन्द्र ही बदल जाता है।
कविता बहुत अच्छी है।
कैसे जीवन को प्यार करें ?
ReplyDeleteक्यों हम ऐसा व्यापार करें
अपमान जानकी का करते
आंसू की कीमत भूल गए ?
भरपूर प्यार पाने वाले , अंदाज़ तुम्हारा क्या जाने
वे नम स्नेही ऑंखें ही , कह रही कहानी जीवन की ....bahut sahi likha aapne.....
..janamdin kee bahut bahut haardik shubhkamnayen..
आपको जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteअगर लेखक की कथनी और करनी में फर्क नहीं है तो वह किसी भी काल में रचना करे , रचना के मूल सन्देश में फर्क नहीं होगा ! उसकी रचनाएँ उसके चरित्र और व्यवहार का आइना है , जिन्हें पढ़कर लेखक को आसानी से समझा जा सकता है !
ReplyDeleteshabdon ke prastutikaran se samjha jaa sakta hai ....
गुरुदेव! कथनी करनी का अंतर मुझे दिखाई नहीं देता.. कोशिश कर रहा हूँ कि समत्व का भाव ला सकूँ.. जहाँ अच्छा बुरा, कथनी करनी जैसे शब्द बेमानी हो जाएँ..
ReplyDeleteआपकी कविता तो सदा की तरह दिल के अंदर से निकली!!
भाई ,सही समय पर आ गया -केक का टुकड़ा इधर भी !
ReplyDeleteजन्मदिन की बहुत बहुत बधायी और शुभकामनाएं !
.
ReplyDelete.
.
सबसे पहले तो जन्मदिन की शुभकामनायें...
आलेख अच्छा है, अधिकाँश लिखे से सहमत भी हूँ...
पर...@ अधिकतर ईमानदार लेखकों के विचार समय अनुसार बदलते नहीं हैं ,
इस पर मेरा मत भिन्न है, मेरे विचार से... " समय के अनुसार व अनुभव मिलने के साथ साथ हम सभी के विचारों में बदलाव होता है, यह जरूरी भी है... ईमानदार लेखक के लिखे में यह बदलाव ध्वनित भी होता है तथा वह इसे स्वीकारता भी है... जो यह छिपाता है कि उसके विचार अब भी एकदम पहले से ही हैं, वह पाठक व स्वयं के साथ ईमानदारी नहीं बरत रहा !"
...
जन्म दिन की ढेर सारी शुभकामनाएं..।
ReplyDeleteबढ़िया गीत है।
ReplyDeleteकैसे जीवन को प्यार करें ?
ReplyDeleteक्यों हम ऐसा व्यापार करें
अपमान जानकी का करते
आंसू की कीमत भूल गए ?
भरपूर प्यार पाने वाले , अंदाज़ तुम्हारा क्या जाने
वे नम स्नेही ऑंखें ही , कह रही कहानी जीवन की !
मित्र प्यार का अंचल तो बस इतना सा ही तो होता है ----बस भरते जाओ ,कभी छोटा नहीं पड़ता ,सिर्फ हृदय को विशाल करने जरुरत होती है..... मार्मिक प्रस्तुति ..../
" मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं...
ReplyDeleteजो भी तुमसे लग जाए, लगा लेना "
इन दो लाइन्स में लेखक ने सब का मान रख लिया ...सब खुश ,हम भी खुश .....
गुरु भाई ,जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई और
शुभकामनाएँ!
सतीश जी , लगता है पाबला जी आज कहीं व्यस्त हो गए हैं ।
ReplyDeleteहमारी ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें भाई जी ।
आदरणीय सतीश जी !
ReplyDeleteआपको जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं .
आपका हर रचना काबिले तारीफ़ !
:)
काश आपके ब्लाग की सकारात्मक ऊर्जा पूरी दुनिया में पहुंचे.
ReplyDeleteहमने तो अपनी कह दी,जो चाहे अर्थ लगा लेना,
ReplyDeleteबस ध्यान ज़रूर रहे इतना,मेरे शब्द जगा लेना !!
आपके जन्मदिन की बधाई,भले ही देर से आई !!
बेहतरीन और अदभुत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteसही कहा, मूड (मनःस्थिति) पर निर्भर करती है रचना। एक ही बात अलग-अलग मूड में अलग अलग रंग की हो जाती है।
ReplyDeleteकिसी बड़े पेंटर की पेंटिंग...
ReplyDeleteगांधी का साहित्य...
कुछ वस्तुएं ऐसी होती हैं, जो हर देखने वाले या पढ़ने वाले के हिसाब से बदलती हैं...हर कोई उसका अपने हिसाब से मतलब निकालता है...और शायद यहीं ऐसी वस्तुओं को महान बनाती हैं...
बर्थडे की बहुत बहुत बधाई...इस राइडर के साथ कि पार्टी देने से आप बच नहीं सकते...
दराल सर, आप ठीक कह रहे हैं, अब तो पाबला जी पर सबको इतना भरोसा हो गया है कि जो वो कह दें, वहीं जन्मदिन माना जाएगा...अब जिसका जन्मदिन है चाहे वो खुद इनकार कर दे कि उसका तो किसी और तारीख को जन्मदिन है...
जय हिंद...
लेखन परिवेश से निश्चित रूप से प्रभावित होता है....... पर पढने वाले की समझ और सोच भी उसमे नए आयाम जोड़ती है ..... बहुत सार्थक विवेचन किया आपने .... जन्मदिन की शुभकामनायें स्वीकारें
ReplyDeleteआपकी रचना का मूल संदेश समझने की कोशिश की कुछ समझ भी आया....
ReplyDelete"यही कहानी जीवन की " जन्मदिन की बधाई ..
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDelete" मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं...
जो भी तुमसे लग जाए, लगा लेना "
पूरी कविता बहुत अच्छी है,ये पंक्तियाँ सार हैं|
बहुत बहुत बधाई|
मैने तो मन की लिख डाली,
ReplyDeleteअब शब्दों की जिम्मेदारी।
जन्मदिन की अतिशय शुभकामनायें।
अगर लेखक की कथनी और करनी में फर्क नहीं है तो वह किसी भी काल में रचना करे , रचना के मूल सन्देश में फर्क नहीं होगा ! उसकी रचनाएँ उसके चरित्र और व्यवहार का आइना है , जिन्हें पढ़कर लेखक को आसानी से समझा जा सकता है ! अधिकतर ईमानदार लेखकों के विचार समय अनुसार बदलते नहीं हैं , अगर एक लेखक , विषय विशेष से परहेज करते हुए पाठकों की नज़र से,कुछ छिपाना चाहता है तो सतत लेखन फलस्वरूप, कभी न कभी, आवेग में वह,उन्हें व्यक्त कर ही देगा !
ReplyDeletetrue
happy birthday
पहले तो जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनायें !
ReplyDeleteअधिकतर ईमानदार लेखकों के विचार समय अनुसार बदलते नहीं हैं , अगर एक लेखक , विषय विशेष से परहेज करते हुए पाठकों की नज़र से,कुछ छिपाना चाहता है तो सतत लेखन फलस्वरूप, कभी न कभी, आवेग में वह,उन्हें व्यक्त कर ही देगा !
बिलकुल सही बात कही है आपने ! अच्छी पोस्ट पसंद आई आभार !
जन्म दिन की बधाई तो हमने आपको दे ही दी थी पर कुछ खास वज़ह से दोबारा दे रहे हैं...
ReplyDeleteईश्वर का लाख लाख धन्यवाद , जो बंदे सदैव असहमत बने रहने के लिए जन्मे हैं आज वे भी आपसे सहमत हुए :) अस्तु जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें :)
अनेकों अच्छी टिप्पणियों में से दिनेश राय जी और प्रवीण शाह जी की टिप्पणियां खास पसंद आईं ! और आपकी पोस्ट तो बेहतरीन है ही !
अब एक ख्याल ये भी कि कई बार उड़ते परिंदे को भी कहां पता होता है कि उसकी बीट से किसी भले मानस को मार्मिक चोट पहुंच सकती है उसका काम तो फकत उड़ना होता है और वहीं , सुदूर ऊंचाई से विसर्जन ! उड़ना 'करनी' है तो विसर्जन अंदर से बाहर की ओर 'कथनी' परिंदे को स्वयं अन्तर कैसे पता चलेगा वो तो भला मानस ही जानेगा जो इसे भुगतेगा :)
अंतरजाल भी ऊंची उड़ान के लिए आकाश जैसा परिंदों से भरा पड़ा है और यहां आप जैसे भले मानस भी हैं जिन्हें अपने विवेक से काम लेना है :)
जन्मदिन की बधाई! सुंदर कविता के लिये भी साधुवाद!
ReplyDeleteफिर भी तेरी इस नगरी में,
ReplyDeleteहँसते हँसते ,दुःख भूल गए !
- ब्लागों का भी एक निराला संसार है -अपनी पूरी भिन्नताओं को साथ !
जन्म-दिवस की हार्दिक शुभ-कामनाएँ !
" मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं...
ReplyDeleteजो भी तुमसे लग जाए, लगा लेना " बहुत खूब.. जन्मदिन की हार्दिक बधाई।
तुम भी कुछ भूल गए हमको
ReplyDeleteहम भी कुछ थके , इरादों में
फिर भी तेरी इस नगरी में,
हँसते हँसते ,दुःख भूल गए !
Happy Birthday
तुम भी कुछ भूल गए हमको
ReplyDeleteहम भी कुछ थके , इरादों में
फिर भी तेरी इस नगरी में,
हँसते हँसते ,दुःख भूल गए !
Happy Birthday
आज आपका जन्म दिन है पहले जन्मदिन पर बहुत बधाई और शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteरचना बेहतरीन भावों को लिए हुए है,बहुत सुंदर.
सच कहा शतीश जी जो भी लेकख लिखता है वो उसकी मन स्तिथि को दर्शा देता है ..सबका अपना अपना नजरिया है लिखने का भी और समझने का भी .सार्थक लेख के लिए आभार
ReplyDeleteलेखक की कथनी और करनी में उस समय अंतर होता है जव वह कल्पना के घोडे दौडाता है॥
ReplyDeleteब्लॉगर इमानदार हो या बेइमान, समय के साथ सब के अनुभव और विचार बदलते हैं. कुछ अपने लिए लिखते हैं कुछ दूसरों को भी सरोकार मानते हैं. दिल दुखाने वाले भी हैं और संभालने वाले भी. आपकी एक बात सनातन सत्य है-
ReplyDeleteइन दोनों पाटों में पिसकर,
जीवन का अर्थ समझ लेना
स्नेह,प्यार,ममता खोजे,
बस यही कहानी जीवन की !
जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई!
ReplyDeleteकैसे जीवन को प्यार करें ?
ReplyDeleteक्यों हम ऐसा व्यापार करें
अपमान जानकी का करते
आंसू की कीमत भूल गए ?
भरपूर प्यार पाने वाले , अंदाज़ तुम्हारा क्या जाने
वे नम स्नेही ऑंखें ही , कह रही कहानी जीवन की !
kya baat hei ..yah bhi jivan ka sach hei ..
जीवन के सार को शब्दों का रूप दे दिया आपने .......
ReplyDeleteअसहाय,गरीबों, मूकों की
ReplyDeleteआवाज़ उठाना वाजिब है
मेरी रचना में दर्द छिपा,
मानव की ही करतूतों का
पाशविक प्रवृत्ति का नाश करे,मानवता हो मंगल कारी
इच्छा है, अपनी भूलों को, स्वीकार करे दुनिया सारी !
YE TUKDA KUCH JYADA HI PRABHAVIT KARTA HAI ,RACHNA MEIN SAMAHIT VICHAR ,DARSHAN OR MARM ABHIBHOOT KARTA HAI ..PURMANI OR PURKASHISH SARITA SI BAHTI IS RACHNA PAR AAPKO DHERON BADHAI
Bahut Prabhavi Rachna...aur aapka intoduction padhkar bhi bahut prabhavit huyi...sundar prastuti
ReplyDeletewelcome to मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
जन्म दिन की हार्दिक बधाई,...भावपूर्ण रचना,..
ReplyDelete"काव्यान्जलि":
आपके इस उत्कृष्ठ लेखन के लिए आभार ।
ReplyDeleteतुम प्यार और स्नेह भरी, आँखों का अर्थ लगा लेना !
ReplyDelete" मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं...
जो भी तुमसे लग जाए, लगा लेना "
तुम प्यार और स्नेह भरी, आँखों का अर्थ लगा लेना !
ReplyDelete" मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं...
जो भी तुमसे लग जाए, लगा लेना "