Saturday, February 16, 2013

देख के इन कवियों की भाषा , आँख चुराएं मेरे गीत -सतीश सक्सेना

कलम उठा अपने हाथों में 
ज्ञानमूर्ति , कहलाते हैं !
दुष्ट प्रकृति के स्वामी अपना 
नाम व्यास बतलाते हैं !
शारद को अपमानित करते ,
लिखते बड़े रसीले गीत !
देख के इन कवियों की भाषा ,आँख चुराएं मेरे गीत !

कौन धूप में,जल को लाकर
सूखे मन को तृप्त कराये ?
प्यासे को आचमन कराने 
गंगा , कौन ढूंढ के लाये ?
नंगे पैरों, गुरु दर्शन को ,
आये थे, मन में ले प्रीत !
सच्चा गुरु ही राह दिखाए , खूब जानते मेरे गीत !

धवलवस्त्र, मंत्रोच्चारण ,
से मुख पर भारी तेज दिखे 
टीवी से हर घर में आये
इन संतों से , दूर रहें !
रात्रि जागरण में बैठे हैं ,
लक्ष्मीपूजा करते गीत !
श्रद्धा के व्यापारी गाते , तन्मय हो जहरीले गीत !

कष्टनिवारक से लगते हैं, 
वस्त्र पहन, सन्यासी के !
राम नाम का ओढ़ दुशाला
बुरे करम, अधिवासी के !
मन में लालच ,नज़र में धोखा,
मुंह से बोलें , मीठे गीत !
श्रद्धा बेंचें,घर घर जाकर, रात में मस्त निशाचर गीत !


शिक्षण की दीक्षा देते हैं ,
गुरुशिष्टता मर्म, न जाने
शिष्यों से रिश्ता बदला है,
जीवन के सुख को पहचाने
आरुणि ठिठुर ठिठुर मर जाएँ,
आश्रम में धन लाएं खींच !
आज कहाँ से ढूँढें ऋषिवर, बड़े दुखी हैं, मेरे गीत !



48 comments:

  1. Replies
    1. स्वागत है गोदियाल जी ..

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  2. सटीक है आदरणीय-
    ठिठुर ठिठुर कर दे रहा, किश्तों में वो जान |
    समय सारणी बदलती, आरुणि आज्ञा मान |
    आरुणि आज्ञा मान, जला के गुरुवर हीटर |
    ताप रहे हैं आग, बैठ आश्रम के भीतर |
    परम्परा का पक्ष, आज इक तरफा रविकर |
    है गुरुवर की मौज, शिष्य हैं ठिठुर ठिठुर कर ||

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    Replies
    1. वाह रविकर जी ..
      इसी की कमी थी , आभार रचना सम्पूर्ण करने को !

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  3. ♥✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥❀♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿♥
    ♥बसंत-पंचमी की हार्दिक बधाइयां एवं शुभकामनाएं !♥
    ♥✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥❀♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿♥



    कलम उठा अपने हाथों में
    ज्ञानमूर्ति , कहलाते हैं !!
    दुष्ट प्रकृति के स्वामी ,
    कैसे नाम व्यास बतलाते हैं !
    शारद को अपमानित करते , लिखते बड़े रसीले गीत !
    देख के इन कवियों की भाषा , आँख चुराएं मेरे गीत !

    वाह ! वाऽह ! वाऽऽह !
    :)
    दोहरे चरित्र वालों की ख़ूब खिंचाई करदी ...
    सतीश जी भाईसाहब !

    गीत बहुत ख़ूबसूरत है ...
    हमेशा की तरह ... !
    आभार और बधाई !!

    बसंत पंचमी सहित
    सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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    Replies
    1. हिंदी लेखन जगत में आप विनम्रता, सौहार्दता एवं स्नेह के प्रतीक हैं कविराज राजेंद्र , मेरा अभिवादन स्वीकार करें !

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  4. बहुत सी बातों पर ध्यान आकर्षित करता गीत ... सुंदर प्रस्तुति

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  5. ...मेरे गीत श्रंखला का बहुत प्रभावी गीत !
    .
    .
    भाई, सूरज तो एक ही है,बाकी खद्योत हैं ।

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  6. sundar prastuti,saty likha hai aapne

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  7. अभी अभी माँ सरस्वती का विसर्जन करके उठा हूँ और आपके इस गीत को पढ़ रहा हूँ। वास्तव में जो यह दिक्कत साधना को साध्य मान लेने और उसे रूढ़ कर देने के कारण हुआ है। एक बार फिर सुन्दर गीत।

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  8. बहुत सार्थक प्रस्तुति,आभार है आपका.

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  9. बहुत ही सार्थक और सटीक चोट करती रचना, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  10. बहुत प्रभावी ...सुंदर रचना ....!!
    शुभकामनायें सतीश जी ...!!

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  11. निश्चित साहित्य समाज का दर्पण होता है
    इसमे सत्य,शिव, सुन्दर का समन्वय होना चाहिए ...
    सिर्फ कोरे आदर्श भी किसी काम के नहीं होते ...
    कविता में यथार्थ भी हो और आदर्श भी तभी अच्छी लगती है !

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  12. लेखनी से न्याय करें, ऐसे गीत ही अच्छे हैं।

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  13. मन में लालच ,नज़र में धोखा, हाथ में ले रामायण गीत !

    निष्ठा बेंचें,घर घर जाकर, रात में मस्त निशाचर गीत ....

    आपने तो गुरु-घंटालो को धो डाला। :) एक करारा और सटीक वार

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  14. ऐसे ढोंगियों से गीतों को बचाकर चलना ही ठीक है ।

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  15. दुनिया में ढोंग , आडम्बर और स्वार्थ भरा पड़ा है।
    इनके असली चहरे सबको , खूब दिखाएँ आपके गीत।

    बहुत बढ़िया मित्रवर।

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  16. बेहतरीन रचना ....

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  17. हर आहत ह्रदय को वाणी देता... है आपका गीत.

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  18. धनविरक्ति की राह दिखाएँ
    वस्त्र पहन, सन्यासी के !
    राम नाम का ओढ़ दुशाला
    बुरे करम, गिरि वासी के !
    बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति . नारी खड़ी बाज़ार में -बेच रही है देह ! संवैधानिक मर्यादा का पालन करें कैग

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  19. वाह मन के मीत और गीतों के रसखान

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  20. वाह भैया ...बाबा जी और कविश्रेष्ठ दोनों का सत्कार किया आपने :) मज़ा आगया ...और आप के गीतों को दुखी होने की जरूरत नहीं ..वो तो पथप्रदर्शक हैं हम सब के !

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  21. खूब समेटा है आज परिवेश के सच को...... सार्थक और सभी हुयी पंक्तियाँ

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  22. खूब समेटा है आज परिवेश के सच को...... सार्थक और सभी हुयी पंक्तियाँ

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  23. बड़ा रसीला गीत है!

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  24. सतीश भाई साहब आपने गीत और मानव मन को इतने खुबसूरत ढंग से पिरोया है की माला की सुन्दरता देखते ही बनती है . प्रणाम इस सुन्दर भाव भरे गीत के लिए ..

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  25. ना गुरु मिलते हैं और ना ही ॠषि मिलते है, शायद शिष्‍य भी नहीं हैं।

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  26. धवलवस्त्र, मंत्रोच्चारण ,
    से मुख पर भारी तेज रहे,
    टीवी से हर घर में आये
    इन संतों से , दूर रहें !
    रात्रि जागरण में बैठे हैं ,लक्ष्मीपूजा करते गीत !
    श्रद्धा के व्यापारी गाते,तन्मय हो जहरीले गीत ! ..... राह दिखाते गीत

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  27. धवलवस्त्र, मंत्रोच्चारण ,
    से मुख पर भारी तेज रहे,
    टीवी से हर घर में आये
    इन संतों से , दूर रहें ...

    सही चेतावनी दे रहे हैं आप ... ऐसे साधुओं से दूर रहना ही उचित ...

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  28. दिखावे के आवरण में छुपे चेहरों
    का सच बयान करती रचना
    व्यंग की धार तीखी है
    बधाई और शुभ कामनाएं

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  29. व्यंग्यात्मक गीत के माध्यम से सब कुछ कह दिया ...बहुत खूब

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  30. उद्देश्‍यपूर्ण सुन्‍दर गीत।

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  31. असल और नकल में भेद करना मुश्किल हो गया,नकली अधिक चमकीला हो कर लुभाता है!

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  32. बहुत जबरदस्त, मेरे भाई..क्या बात है!!

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  33. धनविरक्ति की राह दिखाएँ
    वस्त्र पहन, सन्यासी के !
    राम नाम का ओढ़ दुशाला
    बुरे करम, गिरि वासी के !
    मन में लालच ,नज़र में धोखा, हाथ में ले रामायण गीत !
    निष्ठा बेंचें,घर घर जाकर, रात में मस्त निशाचर गीत !


    बहुत देखे हैं ऐसे ढोंगियों को. बिलकुल सही लिखा है.

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  34. sundar prastuti Sateesh ji.....

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  35. धवलवस्त्र, मंत्रोच्चारण ,
    से मुख पर भारी तेज रहे,
    टीवी से हर घर में आये
    इन संतों से , दूर रहें !

    -----------------
    बहुत सही चेतावनी...

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  36. aapke geet sada hi ek taji hava ki tarah hote hain vo sukun bhi dete hain aur sochne pr majboor bhi karte hain.
    rachana

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  37. आपके गीतों में आत्मा है, इसलिए सुख-दुःख का अनुभव करते हैं जिनमे आत्मा ही नहीं वहां तो यही सब होगा न..सटीक अभिव्यक्ति... बहुत-बहुत शुभकामनायें

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  38. शिक्षण की शिक्षा देते हैं ,
    गुरुशिष्टता मर्म, न जाने
    शिष्यों से रिश्ता बदला है,
    जीवन के सुख को पहचाने

    अनेक प्रश्नों की विवेचना करता सुंदर गीत.

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  39. बहुत बढ़िया व्यंग, सुन्दर गीत, बधाई.

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  40. कौन धूप में,जल को लाकर
    सूखे होंठो, तृप्त कराये ?
    प्यासे को आचमन कराने
    गंगा, कौन ढूंढ के लाये ?
    नंगे पैरों, गुरु दर्शन को ,आये थे, मन में ले प्रीत !
    सच्चा गुरु ही राह दिखाए , खूब जानते मेरे गीत !

    और सच्चे गुरु सबको नहीं मिलते आजकल ...
    सार्थक व सटीक रचना
    सादर !

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  41. दोहरा चेहरा देख कर रुक जाते देहरी पर गीत !
    अच्छा लगा यह गीत !

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  42. सुन्दर रचना अभिव्यक्ति ... आभार

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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