Thursday, January 15, 2015

साधू सबक सिखाने निकले, यही बड़ी हैरानी है - सतीश सक्सेना

राजनीति में वोट बनानें,गाय की महिमा गानी है !
अम्मा खाय पडोसी के घर,गौ माता अपनानी है !

गृह समाज बच्चे बूढों में,कौन समय बरबाद करे ! 
अपने नेता के गुण गाने ,अपनी कलम उठानी है !

अपने अपने रिश्ते सबके, अपनी नज़रें बदली हैं 
पापा की वे ससुरी लगती,अपनी प्यारी नानीं हैं !

सुख,दुःख सिक्के के पहलू हैं,दोनों संग निभाएंगे
जीयें  भोगेंगे तब तक ही,जब तक दाना पानी है !

धर्म के झंडे लिए घूमते, झाग निकलते ओंठों से,
साधू सबक सिखाने निकले, यही बड़ी हैरानी है !

17 comments:

  1. भगवान बचाये इन बाबाओं से ..
    सटीक सामयिक रचना प्रस्तुति ....
    मकरसक्रांति की शुभकामनायें!

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  2. भैया बहुत मौजूं है रचना आज के परिप्रेक्ष्य में !

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  3. सुख,दुःख सिक्के के पहलू हैं,दोनों संग निभाएंगे
    जिएंगे भोगेंगे तब तक ही,जब तक दाना पानी है ...
    बहुत खूब ... दोनों की निभाना होता है जीवन में तभी तो हर तरह का रंग रहता है जीवन में ...
    अच्छी रचना ... भावपूर्ण ...

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  4. कमी नहीं रिश्तों नातों में, केवल नज़रें बदली हैं
    पापा की तो ससुरी लगती,मगर वो मेरी नानी है ---क्या सहज़ता से आप सन्देश दे जाते हैं--खूबसूरत रचना--

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  5. धर्म के झंडे लिए घूमते, झाग निकलते ओंठों से,
    साधू सबक सिखाने निकले, यही बड़ी हैरानी है !
    बहुत सुंदर रचना.

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  6. साधू निकले सबक सिखाने
    यही बडी हैरानी है---खूब कसी कमान.

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  7. साधू निकले सबक सिखाने
    यही बडी हैरानी है---खूब कसी कमान.

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  8. सटीक प्रस्तुति ....
    मकरसक्रांति की शुभकामनायें!

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  9. सुख,दुःख सिक्के के पहलू हैं,दोनों संग निभाएंगे
    जिएंगे भोगेंगे तब तक ही,जब तक दाना पानी है !
    सही कहा है, सुन्दर रचना !

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  10. बढ़िया रचना। सुंदर प्रस्तुति.

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  11. सुंदर प्रभावी रचना...

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  12. सुन्दर प्रस्तुति

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  13. सुन्दर प्रस्तुति...

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  14. साधुओं में साधुता बची ही कहाँ है !

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- सतीश सक्सेना

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