राजनीति में वोट बनानें,गाय की महिमा गानी है !
अम्मा खाय पडोसी के घर,गौ माता अपनानी है !
गृह समाज बच्चे बूढों में,कौन समय बरबाद करे !
अपने नेता के गुण गाने ,अपनी कलम उठानी है !
अपने अपने रिश्ते सबके, अपनी नज़रें बदली हैं
पापा की वे ससुरी लगती,अपनी प्यारी नानीं हैं !
सुख,दुःख सिक्के के पहलू हैं,दोनों संग निभाएंगे
जीयें भोगेंगे तब तक ही,जब तक दाना पानी है !
धर्म के झंडे लिए घूमते, झाग निकलते ओंठों से,
साधू सबक सिखाने निकले, यही बड़ी हैरानी है !
अम्मा खाय पडोसी के घर,गौ माता अपनानी है !
गृह समाज बच्चे बूढों में,कौन समय बरबाद करे !
अपने नेता के गुण गाने ,अपनी कलम उठानी है !
अपने अपने रिश्ते सबके, अपनी नज़रें बदली हैं
पापा की वे ससुरी लगती,अपनी प्यारी नानीं हैं !
सुख,दुःख सिक्के के पहलू हैं,दोनों संग निभाएंगे
जीयें भोगेंगे तब तक ही,जब तक दाना पानी है !
धर्म के झंडे लिए घूमते, झाग निकलते ओंठों से,
साधू सबक सिखाने निकले, यही बड़ी हैरानी है !
भगवान बचाये इन बाबाओं से ..
ReplyDeleteसटीक सामयिक रचना प्रस्तुति ....
मकरसक्रांति की शुभकामनायें!
भैया बहुत मौजूं है रचना आज के परिप्रेक्ष्य में !
ReplyDeleteबढ़िया रचना।
ReplyDeleteसुख,दुःख सिक्के के पहलू हैं,दोनों संग निभाएंगे
ReplyDeleteजिएंगे भोगेंगे तब तक ही,जब तक दाना पानी है ...
बहुत खूब ... दोनों की निभाना होता है जीवन में तभी तो हर तरह का रंग रहता है जीवन में ...
अच्छी रचना ... भावपूर्ण ...
कमी नहीं रिश्तों नातों में, केवल नज़रें बदली हैं
ReplyDeleteपापा की तो ससुरी लगती,मगर वो मेरी नानी है ---क्या सहज़ता से आप सन्देश दे जाते हैं--खूबसूरत रचना--
गागर में सागर
ReplyDeleteधर्म के झंडे लिए घूमते, झाग निकलते ओंठों से,
ReplyDeleteसाधू सबक सिखाने निकले, यही बड़ी हैरानी है !
बहुत सुंदर रचना.
साधू निकले सबक सिखाने
ReplyDeleteयही बडी हैरानी है---खूब कसी कमान.
साधू निकले सबक सिखाने
ReplyDeleteयही बडी हैरानी है---खूब कसी कमान.
सटीक प्रस्तुति ....
ReplyDeleteमकरसक्रांति की शुभकामनायें!
सुख,दुःख सिक्के के पहलू हैं,दोनों संग निभाएंगे
ReplyDeleteजिएंगे भोगेंगे तब तक ही,जब तक दाना पानी है !
सही कहा है, सुन्दर रचना !
बढ़िया रचना। सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteसुंदर प्रभावी रचना...
ReplyDeleteबहुत ख़ूब भाई साहब!!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteसाधुओं में साधुता बची ही कहाँ है !
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