जिससे रिश्ता जुड़ा था
द्वार पर आ गए ,
आज बारात ले !
उनके आने से, सब
खुश नुमा हो गया !
नाच गानों से , घर भी चहक सा गया !
पर यह आँखें मेरी,
संग नहीं दे रहीं
हँसते हँसते न जाने
छलक क्यों रहीं ?
आज बेटी चलीं,
अपना दर छोड़कर
घर नया चुन लिया अपना घर छोड़कर !
आज माता पिता
भाई बहना सभी
कर रहे स्वागतें
इक नयी आस में !
जाओ बहना सजाओ
नया आशियाँ !
हम सभी की शुभाशीष है साथ में !
रचनी होगी तुम्हें ,
विश्व सर्वोत्तमा
एक हंसती कलाकृति
हमारे लिए !
हाथ फैलाये हंसती
कृति विश्व की
ऎसी सौगात देना , हमारे लिए !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
वाह:
ReplyDeleteबहुत खूब
उम्मीद पूरी हो
सुंदर आशीष और भावों से पूर्ण विवाह गीत, सृष्टि का क्रम ऐसे ही चलता रहे
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteमैं अपनी दोनों बेटियों को विदा करते समय ऐसी स्थिति से गुज़र चुका हूँ.
हर बाप की ख्वाहिश होती है कि उसकी बिटिया अपना घर-संसार बसाए.
इस मौके पर ख़ुशी के साथ मीठा-मीठा दर्द भी होता है, चैन मिलने के साथ थोड़े बेचैनी भी होती है.
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteउद्वेलित करती अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteस्नेहाशीषों से पगी बहुत भावपूर्ण रचना जिसमें ख़ुशियों के साथ बिछोह की कसक भी है ।
ReplyDeleteउम्मदा रचना।
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