Wednesday, April 13, 2022

विवाह गीत -सतीश सक्सेना

जिससे रिश्ता जुड़ा था 
जनम जन्म से  
द्वार पर आ गए , 
आज  बारात ले !
उनके आने से, सब 
खुश नुमा हो गया !
नाच गानों से , घर भी चहक सा गया !

पर यह आँखें मेरी, 
संग नहीं दे रहीं 
हँसते हँसते न जाने 
छलक क्यों रहीं  ?
आज बेटी   चलीं, 
अपना दर छोड़कर
घर नया चुन लिया अपना घर छोड़कर !

आज माता पिता 
भाई बहना सभी 
कर रहे स्वागतें 
इक नयी आस में !
जाओ बहना सजाओ 
नया आशियाँ !
हम सभी की शुभाशीष है साथ में !

रचनी होगी तुम्हें , 
विश्व सर्वोत्तमा 
एक हंसती कलाकृति
 हमारे लिए !
हाथ फैलाये हंसती 
कृति विश्व की 
ऎसी  सौगात देना , हमारे लिए  !


9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. वाह:
    बहुत खूब
    उम्मीद पूरी हो

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  3. सुंदर आशीष और भावों से पूर्ण विवाह गीत, सृष्टि का क्रम ऐसे ही चलता रहे

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  4. बहुत सुन्दर !
    मैं अपनी दोनों बेटियों को विदा करते समय ऐसी स्थिति से गुज़र चुका हूँ.
    हर बाप की ख्वाहिश होती है कि उसकी बिटिया अपना घर-संसार बसाए.
    इस मौके पर ख़ुशी के साथ मीठा-मीठा दर्द भी होता है, चैन मिलने के साथ थोड़े बेचैनी भी होती है.

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  5. बहुत सुंदर रचना

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  6. उद्वेलित करती अभिव्यक्ति

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  7. स्नेहाशीषों से पगी बहुत भावपूर्ण रचना जिसमें ख़ुशियों के साथ बिछोह की कसक भी है ।

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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