Saturday, April 16, 2022

सबसे आवश्यक स्वास्थ्य सूत्र -सतीश सक्सेना

-मानव के लिए सबसे आवश्यक उदासी और अकेलेपन से मुक्ति है इसके साथ साथ उसे बंधन मुक्त होकर हंसना सीखना होगा ! प्रसन्नचित्त मन से ही संकल्प लेना आसान होगा अन्यथा सब प्रयास विफल होंगे !

-मृत्युभय निकालना होगा अगर ऐसा न कर सके तो बढ़ती बीमारियों का बोझ कम न होकर बढ़ता ही जाएगा आपकी आंतरिक जीवन रक्षा शक्ति को मजबूत बनाने का एक ही तरीका है कि आप बीमारियों को महत्व न दें उनपर ध्यान न दें और ऐसा निडर होकर करें प्राकृतिक तैर पर ठीक होने का विश्वास बनाये रखें कि आपकी आंतरिक रक्षा शक्ति बेहद ताकतवर है और प्रकृति द्वारा शरीर को सौ वर्ष जीवित रखने के लिए डिजाइन्ड है जबकि मेडिकल साइंस के तथाकथित रक्षक खुद को इतने वर्ष नहीं बचा पाते हैं !

-आलस्य को दूर रखने के लिए दिन भर खुद को एक्टिव रखें नए शौक अपनाएँ इससे मन में उत्साह बना रहेगा !

-नकारात्मक विचार आपको कुछ भी करने नहीं देंगे , बुरा विगत भुलाकर आगत का स्वागत नए उत्साह से करें !

-खुद को बड़प्पन मुक्त करें, झिझक त्याग मित्रों का उन्मुक्त स्वागत हाथों को फैलाकर करें , अपने बचपन को अगर वह खो गया है तो दुबारा बापस लाएं , बड़प्पन और आदर सम्मान की भूख आपको बूढ़ा जल्द बनाएगी यह याद रखें !

8 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-4-22) को "कोटि-कोटि वन्दन तुम्हें, पवनपुत्र हनुमान" (चर्चा अंक 4403) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. सुंदर संदेश

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  3. वाह.बहुत सुन्दर

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  4. वाह!बढ़िया कहा 👌

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  5. बहुत सुन्दर लेख लिखा है आपने सतीश जी।कोशिश तो करते हैं एकदम सरल और सहज ढंग से जीने की पर दुनियादारी में मुखौटों के साथ जीने की आदत पड़ गयी है।लेख के साथ नन्ही परी मीरा का प्यारा-सा चित्र देख मन प्रसन्न हो गया।
    🙏🙏🌺🌺

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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