Saturday, July 12, 2008

एक पिता का ख़त पुत्री को ( दूसरा भाग )

पत्र के पहले भाग में, बेहद प्रतिष्ठित लेखिकाओं तथा लेखकों ने अपनी उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रियाएं दी, मैं यह स्पष्ट करना कहता हूँ कि इस कविता में बेटी को नसीहत नहीं बल्कि एक बेहद प्यार करने वाले पिता की इच्छा है कि जितना प्यार तुम मुझे करती हो उतना ही प्यार अपने नए पिता, मां और बहिन को करना और इस प्यार की शुरुआत, वहां जा कर तुम्हे करनी है, बिना उनसे उम्मीद किए !

चूंकि यह ख़त पुत्री के लिए है, स्वाभाविक है कि मुझे उसकी भावी ससुराल से कोई उम्मीद नही करनी चाहिए ! समझाने का अधिकार मुझे केवल अपनी पुत्री को ही है ...

सदा अधूरा , पति रहता है
यदि तुम साथ नहीं दे पाओ !
अगर , पूर्ण नारीत्व चाहिए
पति की अभिलाषा बन जाओ !
बनो अर्ध नारीश्वर जैसी ,
हर साधना तुम्हारी होगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं रहोगी !

पति-पत्नी हैं एक डाल पर
लगे फूल दो बगिया  में  !
जब तक खिलें  न साथ ,
अधूरे लगते हैं सुंदरता में !
एक खिले , दूजा मुरझाये ,
बिन बोले सब बात कहोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं रहोगी !

कमजोरों का साथ दिया तो  
ईश्वर देगा, साथ तुम्हारा !
वृद्ध जनों का प्यार मिला ,
सारा जीवन सफल तुम्हारा 
आशीर्वाद बड़ों का लेकर ,
सबसे आगे तुम्हीं रहोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं रहोगी !

कार्य करो संकल्प उठा कर
खुशियां घर में हंसती आये !
स्व-अभिमानी बनकर रहना
पर अभिमान न होने पाये !
दृढ़ विश्वास ह्रदय में लेकर, 
कार्य करोगी सफल रहोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं रहोगी !

कमजोरों के लिए सुपुत्री,
जिस घर के दरवाजे खुलते !
आदि शक्ति परमात्मा ऊपर,
जिस घर श्रद्धासुमन बिखरते !
कभी अँधेरा पास न आए 
सूर्य-किरण सी तुम निखरोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं रहोगी !
next part http://satish-saxena.blogspot.in/2008/07/blog-post_14.html

refer :

http://sumanpatil-bhrashtachar-ka-virus.blogspot.in/2014/01/blog-post_11.html

3 comments:

  1. बहुत बढिया। लिखते रहिए।

    ReplyDelete
  2. बहुत-बहुत- बहुत बढिया रचना है।बधाई।

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,