पहले जल्दी सी नहीं थी शहर में ,
बहुत कुछ था बुजुर्गों के सबर में !
कैसे इस दिल में अभी भी जान है !
कुछ मिलावट तो नहीं है जहर में !
मना कर दो,हम चले ही जाएंगे !
कब तलक लटके रहेंगे अधर में !
तेरे जाने का यकीं दिल को नहीं
बेईमानी ही लगी , इस खबर में !
होश में जाना दिलाने याद कुछ
दम अभी बाकी बचा है, लहर में !
बहुत कुछ था बुजुर्गों के सबर में !
कैसे इस दिल में अभी भी जान है !
कुछ मिलावट तो नहीं है जहर में !
मना कर दो,हम चले ही जाएंगे !
कब तलक लटके रहेंगे अधर में !
तेरे जाने का यकीं दिल को नहीं
बेईमानी ही लगी , इस खबर में !
होश में जाना दिलाने याद कुछ
दम अभी बाकी बचा है, लहर में !
पहले जल्दी सी नहीं थी शहर में ,
ReplyDeleteबहुत कुछ था बुजुर्गों के सबर में !
..सच शहर की भागमभाग भरी जिंदगी के बीच बुजुर्गों का पहले जैसी पूछ परख वाले बहुत ही कम नज़र आते हैं.. अब सब्र किसी को नहीं ..सब सयाने हो गए हैं .
.
बहुत बढ़िया चिंतनशील प्रस्तुति
पहले जल्दी नहीं थी शहर में .....बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteआपने लिखा...
ReplyDeleteकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 06/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 264 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
आपने लिखा...
कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 06/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 264 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
वाह बढ़िया ।
ReplyDelete"होश में जाना दिलाने याद कुछ
ReplyDeleteदम अभी बाकी बचा है, लहर में" - सादर
बेहद खूबसूरत अल्फाज..यकीन और होश में डूबे हुए
ReplyDeleteबहुत खूब ... शहरी जिन्दगी पे प्रहार ...
ReplyDeleteतेरे जाने का यकीं दिल को नहीं
ReplyDeleteबेईमानी ही लगी , इस खबर में ...वाह, बहुत ही बढ़िया
wah sir Bahut Badhiya ...
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