लगा जैसे चमन को भूल कंटक बन में आ बरसे !
लगा सहला गयीं यादें, उन्हें हमसे बिछड़ने की
बिना आवाज आहिस्ता से सूनेपन में आ बरसे !
बिना आवाज आहिस्ता से सूनेपन में आ बरसे !
हमारा घर तो कोसों दूर था, जल के किनारे से,
अचानक फूट के झरने, मेरे जीवन में आ बरसे !
हमारा क्या अकेले हैं, कहीं सो जाएंगे थक के
तुम्ही पछताओगे ऐसे, कहाँ निर्जन में आ बरसे !
अचानक फूट के झरने, मेरे जीवन में आ बरसे !
हमारा क्या अकेले हैं, कहीं सो जाएंगे थक के
तुम्ही पछताओगे ऐसे, कहाँ निर्जन में आ बरसे !
वाह वाह - क्या बात है सर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteBahut Badhiya BHavaprron Rachna ...
ReplyDeleteअस्तित्त्व जब बरसने को आता है तो अता-पता नहीं देखता..
ReplyDeleteअच्छाई का फल देर से ही सही लेकिन मिलता जरूर है ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ..
आपको नवसंवत्सर और नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं
अचानक फूट के झरने मेरे जीवन में आ बरसे !* *हमारा क्या अकेले हैं, कहीं सो जाएंगे थक के* *तुम्ही पछताओगे ऐसे,कहाँ निर्जन में आ बरसे !*
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वाह ...
बहुत खूब
ReplyDeleteबेहद सुंदर पंक्तिया । तुम्हारी और के बादल....
ReplyDeleteआजकल कुछ आलसी हो गई हूँ इसलिए ब्लॉग पर रचना पढ़ने में विलंब हो रहा है वैसे भी फेसबुक पर तो पढ़ना होता ही है :)
ReplyDeleteएक से एक सभी लाजवाब शेर !
बहुत उम्दा
ReplyDelete