Friday, April 8, 2016

सितारे भूल गलती से मेरे आँगन में आ बरसे - सतीश सक्सेना

तुम्हारी ओर के बादल, मेरे आँगन में आ बरसे !
लगा जैसे चमन को भूल कंटक बन में आ बरसे !

फरिश्तों से हुई गलती, पता अम्बर का देने में ,
सितारे भूल गलती से, मेरे दामन में आ बरसे !

लगा सहला गयीं यादें, उन्हें हमसे बिछड़ने की
बिना आवाज आहिस्ता से सूनेपन में आ बरसे ! 

हमारा घर तो कोसों दूर था, जल के किनारे से,
अचानक फूट के झरने, मेरे जीवन में आ बरसे !

हमारा क्या अकेले हैं, कहीं सो जाएंगे थक के
तुम्ही पछताओगे ऐसे, कहाँ निर्जन में आ बरसे !

10 comments:

  1. वाह वाह - क्या बात है सर

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  2. Bahut Badhiya BHavaprron Rachna ...

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  3. अस्तित्त्व जब बरसने को आता है तो अता-पता नहीं देखता..

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  4. अच्छाई का फल देर से ही सही लेकिन मिलता जरूर है ....
    बहुत सुन्दर रचना ..
    आपको नवसंवत्‍सर और नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं

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  5. अचानक फूट के झरने मेरे जीवन में आ बरसे !* *हमारा क्या अकेले हैं, कहीं सो जाएंगे थक के* *तुम्ही पछताओगे ऐसे,कहाँ निर्जन में आ बरसे !*
    बहुत सुन्दर वाह ...

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  6. बेहद सुंदर पंक्तिया । तुम्हारी और के बादल....

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  7. आजकल कुछ आलसी हो गई हूँ इसलिए ब्लॉग पर रचना पढ़ने में विलंब हो रहा है वैसे भी फेसबुक पर तो पढ़ना होता ही है :)
    एक से एक सभी लाजवाब शेर !

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- सतीश सक्सेना

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