आचार्य विवेक जी में मैं अक्सर संत विवेकानंद की छवि देखता हूँ , सोंचता हूँ अगर आज विवेकानंद होते तो शायद वे इन्हीं की तरह होते ! देश में संतों साधुओं की गरिमा का, धन कमाने आये साधु वस्त्रधारियों के द्वारा जितना निरादर हुआ है उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती ऐसे संक्रमण काल में विवेक जी जैसे सूफी संत का आविर्भाव एक सुखद सन्देश है !
विवेक जी के साथ रहने का, उनके साथ भ्रमण करने का मौका मुझे यवतमाल के ग्रामों की पदयात्रा में मिला था जब वे किसानों की आत्महत्या से बेहद दुखित थे , भारतीय मीडिया को पता भी नहीं चला कि एक युवा संत, गाँव गाँव कड़ी धूप में किसानों के दरवाजों पर जाकर, कैसे उनके आंसुओं को पोंछने का प्रयत्न कर रहा है !
शिव सूत्र उपासक विवेकजी की यह यात्रा चिंतामणि देवस्थान से शुरू होकर, सर्व धर्म समभाव के साथ ग्राम जागरण के लिए एक विशद आधार बन रही है ! मेरे लिए यह बेहद आनंद दायक था कि उनकी इस यात्रा में और ग्राम सभाओं में हर धर्म और राजनीतिक पार्टियों के लोग हिस्सा लेते थे जो भ्रष्ट राजनीतिक परम्परा के बिलकुल विरुद्ध था !
कुछ दिन पहले उनका एक सन्देश मिला जिसमें एक वंदना की रचना का अनुरोध था जो आनंद ही आनंद के कार्यक्रमों में गाई जा सके जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया !
आज उन्होंने यह वंदना, सिंहस्थ कुम्भ के अवसर पर आनन्द ही आनन्द को समर्पित की है , जो मेरे लिए बेहद आत्मसंतोष का विषय है ! इस वंदना में गुरु, चिंतामणि ,सरस्वती , एवं माता पिता को समर्पित हर पद आपको अलग अभिव्यक्ति का आनंद देगा ऐसा मेरा विश्वास है !
जन जागरण में व्यस्त इस संत को एक कवि का प्रणाम !!
है वंदना सबसे प्रथम,चरणों में गुरु अधिमान की
माथे चरणरज संत की,निष्पक्ष ज्ञान सुजान की !
निर्विघ्न कार्य समाप्त हों, रक्षक रहें चिंतामणि
है नमन और चाहत तेरे शंकरसुवन वरदान की !
नमस्तुभ्यं मां शारदे, वरदान वाणी मधुर दे
शुभ्रा नियंत्रण में रहे , वाणी रहे सम्मान की !
नमस्तुभ्यं मां शारदे, वरदान वाणी मधुर दे
शुभ्रा नियंत्रण में रहे , वाणी रहे सम्मान की !
आँचल तेरा,साया पिता का साथ जीवन भर रहे,
दिखते तुझे,मां शांत हो,ज्वाला मेरे अभिमान की !
हैं धर्म सब पावन यहाँ, आदर, समर्पण भावना
इसके साथ है सबको नमन,इच्छा प्रभु के मान की !
गुरुदेव का नेतृत्व हो ,माता पिता का ध्यान हो
जीवन समर्पित संत को, चिंता नहीं अरमान की !
"गुरुदेव का नेतृत्व हो, माता पिता का ध्यान हो
ReplyDeleteजीवन समर्पित संत को, चिंता नहीं अरमान की"
पिछले वर्ष २२ अप्रैल २०१५ को आपकी ब्लॉग पोस्ट "बुरे हाल में साथ न छोड़ें देंगे साथ किसानों का" में आचार्य विवेक जी के निस्वार्थ जन सेवाभाव के बारे में आपने सचित्र बहुत सुखद जानकारी प्रस्तुत की, आज उनकी आनंद वन्दना पढ़कर बहुत अच्छा लगा। ..
ReplyDeleteआज ऐसे ही सच्चे संतों की जरुरत हैं जो दिखावे से कोसों दूर जन सेवा में संलग्न रहें। .
जन जागरण में व्यस्त इस संत हम भी प्रणाम करते हैं!
अनुकरणीय
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति। नमन।
ReplyDeleteसुन्दर भाव ...
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