कल ही कुछ याद किया, रात सो नहीं पाये
औ तड़प के जो बुलाया भी , तो नहीं पाये !
सब तो रोये थे मगर हम तो, रो नहीं पाये !
कसम खुदा की सिर्फ खैरियत बता जाएँ !
खिले वसंत अहले दिल से,खो नहीं पाये !
जाने कब से थे मेरे साथ,जानता ही नहीं
बिन कहे जान सकें अक्ल ,वो नहीं पाये !
तुझे हर बार मना ही किया था मिलने को
आज मन ढूंढता अहसास, जो नहीं पाये !
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ।
ReplyDeleteआपने लिखा...
ReplyDeleteकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 12/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 270 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
बहुत सुन्दर
ReplyDelete"आज मन ढूंढता अहसास, जो नहीं पाये"
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteऐसा ही होता है ... एहसास बाद में ही जागते हैं ... बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल।
ReplyDeleteImbued in own thoughts, not clear what is in mind. But definitely it is very intense pain coming out of poet's pen. Good. Regards.
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteमैंने हर बार मना कर दिया था,मिलने को,
ReplyDeleteआज मन ढूंढता अहसास, जो नहीं पाये !
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ !
बहुत ख़ूब
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