Monday, April 11, 2016

सब तो रोये थे मगर हम तो, रो नहीं पाये -सतीश सक्सेना

कल ही कुछ याद किया, रात सो नहीं पाये
औ तड़प के जो बुलाया भी , तो नहीं पाये !

तेरी रुखसत का भरोसा ही नहीं है मुझको 
सब तो रोये थे मगर हम तो, रो नहीं पाये !

कसम खुदा की सिर्फ खैरियत बता जाएँ ! 
खिले वसंत अहले दिल से,खो नहीं पाये !

जाने कब से थे मेरे साथ,जानता ही नहीं 
बिन कहे जान सकें अक्ल ,वो नहीं पाये !

तुझे हर बार मना ही किया था मिलने को
आज मन ढूंढता अहसास, जो नहीं पाये !

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ।

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  2. "आज मन ढूंढता अहसास, जो नहीं पाये"

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  3. सुन्दर प्रस्तुति।

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  4. ऐसा ही होता है ... एहसास बाद में ही जागते हैं ... बहुत सुन्दर ...

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  5. Imbued in own thoughts, not clear what is in mind. But definitely it is very intense pain coming out of poet's pen. Good. Regards.

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  6. सुन्दर रचना

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  7. मैंने हर बार मना कर दिया था,मिलने को,
    आज मन ढूंढता अहसास, जो नहीं पाये !
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ !

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- सतीश सक्सेना

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