Monday, October 29, 2018

कहीं गंगा किनारे बैठ कर , रसखान सा लिखना -सतीश सक्सेना

इस हिन्दुस्तान में रहते , अलग पहचान सा लिखना !
कहीं  गंगा किनारे  बैठ कर , रसखान सा लिखना !
 
दिखें यदि घाव धरती के, तो आँखों को झुका लिखना  
घरों में बंद, मां बहनों पे, कुछ आसान सा लिखना !

विदूषक बन गए मंचाधिकारी , उनके शिष्यों के ,
अनुग्रह पुरस्कारों के लिए, अपमान सा लिखना !

किसी के शब्द शैली को चुराये मंच कवियों औ ,
जुगाड़ू  गवैयों , के बीच कुछ प्रतिमान सा लिखना !

व्यथा लिखने चलो तब, तड़पते परिवार को लेकर
हजारों मील, पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !

तेरे मन की तड़प अभिव्यक्ति जब चीत्कार कर बैठे
बिना परवा किये तलवार की, सुलतान सा लिखना !

11 comments:

  1. हृदयस्पर्शी गीत लिखने के लिए बधाई और शुभकामनाएं

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  2. वाहहह और सिर्फ वाहहह... बेहद शानदार रचना।

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  3. बहुत ही सुन्दर 👌

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  4. बहुत सुंदर गीत👌👌👌

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  5. बेहतरीन गीत...

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  6. Waaaah... Kya khoob Likha Satish bhai!

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  7. तेरी भोगी हुई अभिव्यक्ति ,जब चीत्कार कर बैठे
    बिना परवा किये तलवार की,सुलतान सा लिखना !
    बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ सतीश जी पर
    .....बहुत ही बढ़िया गीत पढ़ने को मिला

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  8. वाह शानदार सृजन ....

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  9. गंगा किनारे बैठ कर रसखान सा लिखना यदि आ जाये तो मन्दिर मसजिद के झगड़े भी मिट जाएँ..प्रभावशाली पंक्तियाँ..

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- सतीश सक्सेना

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