उस दिन खूब सोच के आये , घंटों बातें करनी थीं !
कितने बार पिये थे आंसू, कभी तो गंगा बहनी थी ,!
माँ की दवा,को चोरी करते,बच्चे की वेदना लिखूंगा !
पसीना वरदान है मजबूत बीमारी रहित शरीर के लिए , त्वचा के
असंख्य छिद्रों से बहता पसीना हमारे शरीर का ज़हर बाहर फेंकता है और एक पूरा सीजन जिसमें गर्मी और उमस आती है , शरीर से पसीना निकालने में सहायता करता है !और मूर्ख मानव पंखा तौलिया कूलर एसी तलाश करता है इससे जान छूटाने के लिए , महिलायें तो और भी आगे हैं वे स्किन के इन महीन छिद्रों को क्रीम और पाउडर घुसा कर बंद कर देती हैं !
जय हो आप सबकी महा मानवी, मानवों !
ख़ास तौर पर वे दोस्त जो कि बड़े ओहदे से रिटायर हुए हों अथवा समाज में मशहूर हों या शिष्य मंडली बड़ी हो , बड़े प्रभामंडल से सुसज्जित यह लोग बढ़ती उम्र से सबसे अधिक भयभीत दिखते हैं , अपनी शान में पढ़े कसीदों और तालियों से ताक़त पाते हैं , वे वाक़ई सबसे अधिक ख़तरे में होते हैं और किसी दिन अचानक तालियों की गड़गड़ाहट RIP में बदल जाती है और इस तरह एक शानदार व्यक्तित्व असमय ही मात्र अपनी लापरवाही के कारण संसार से विदा ले लेता है !
क्या आपने कभी सोचा कि
हर घाव बिना दवा के भर जाता है, ,हर बुखार बिना ऐंटीबायोटिक के उतर जाता है, हर जुकाम कुछ दिन बाद खुद-ब-खुद चला जाता है
क्यों?
क्योंकि भीतर कोई है जो सदा जाग रहा है ...वही हमारी प्राकृतिक चिकित्सा शक्ति, हमारी इम्यून पॉवर है।
उसने सतीश सक्सेना की जवान रहने की जिद को 70 साल की उम्र में पूरा करवा दिया ! मरने का भय मस्त शरीर को भी समय से पहले मार सकता है , "कुछ हो न जाय "का विचार मात्र , कॉर्टिसोल, एड्रिनलिन ना नामक हार्मोन्स पैदा करते हैं ये हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को रोक देते हैं और हम बिना लड़े ही बीमारियों के सामने आत्मसमर्पण कर बैठते हैं !
बीमारी के समय यह मानना कि “मैं ठीक हो जाऊँगा "शरीर को यह संदेश देता है कि "घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ "
मानव शरीर एक जीवित चमत्कार है , हर रोग से लड़ने की शक्ति इसके भीतर है, बशर्ते हम उसे डर से नहीं, भरोसे से देखें
डॉक्टर और दवाइयाँ अंतिम उपाय हैं पहला कदम है शरीर को समझना, सुनना और सहारा देना।
डरिए मत, ध्यान दीजिए , शरीर के संकेत समझने की शक्ति विकसित करें , आप योगी , बुद्ध कहलायेंगे !
प्रणाम !
जीवन के आख़िरी पड़ाव 70 + में मेरा यह विश्वास व अनुभव है कि भयानक बीमारियों से निजात पानी है तब उससे डरो मत , उसे चैलेंज दो कि वह तुम्हारे शरीर का कुछ नहीं बिगाड पाएगी, आप देखेंगे कि आपकी यह निडरता से आपकी आंतरिक जीवन शक्ति अचानक भरपूर शक्तिशाली हो गई और बीमारी को शरीर से भगाने में आसानी से कामयाब हो गई !
मैंने इसी तरह अपने शरीर से कैंसर नुमा कितने ही सिम्पटम को आसानी से हराने में कामयाबी पायी , घुटने , कमर जांघों के भयानक दर्द , गले से बरसों खाँसते हुए ख़ून निकलना , ४५ वर्ष पुरानी खांसी, दो जगह दुर्दांत गांठें , मुँह गालों के अंदर पड़ी हुई ३० वर्ष पुरानी काले रंग की गाँठ जो आज भी है , मेरा कभी कोई नुक़सान नहीं कर पायीं क्योंकि मैंने कभी उनकी परवाह ही नहीं की और न कैंसर की भयानक कहानियाँ मुझे डरा पायीं !
हमें चाहिए कि अपनी ख़तरनाक बीमारी से बिना डरें आज का दिन का आनंद उठायें , कल सुबह उठकर नए दिन का हँसते हुए स्वागत करें तो पायेंगे कि आपका शरीर कुछ दिनों में हौसला पाकर बहुत ताक़तवर हो गया है और उस बीमारी के भयानक से दिखने वाले सिम्प्टम ख़ुद ब ख़ुद ग़ायब होते जा रहे हैं !
विश्वास बनाए रखें कि आपको बरसों जीना है और हंसते हुए जीना है , लंबा रास्ता जीवंत दिखने लगेगा जहाँ जाओगे फूल मिलेंगे हँसते हुए !
सस्नेह सुनील और Avenindra Mann ,
प्रणाम आप सबको
परिवार में दख़लंदाज़ी , बड़प्पन के कारण हर समय तनाव, नींद की कमी ,
अस्वस्थ भोजन के साथ हाई बीपी , मोटापा, शारीरिक गतिविधियों में कमी के कारण बढ़ती डायबिटीज , काफ़ी है आदरणीयों की जान लेने को ! सुबह सुबह वाक करने निकले यह साधन संपन्न लोग अपना सबसे क़ीमती समय, साथ चलते दोस्तों से विगत यशगान करने में बिताते हैं !आज काल इतने हार्ट अटैक हो रहे हैं उनमें से ऐसा कोई नहीं जो वाक न करता हो , वाक करने का अर्थ यह नहीं कि वह बीमार नहीं पड़ेगा , जीवन में इस प्रकार के निरुत्साह , निरुद्देश्य वाक से कुछ नहीं मिलता , खुश रहकर वाक करना और उस समय एकाग्र चित्त होकर शरीर से बात करना , दिन में कितना और क्या खाते हैं और दिनचर्या क्या है , दवाओं पर निर्भर तो नहीं , तमाम आवश्यक बातें हैं जो मानव कभी सोचता भी नहीं, सुबह वाक करते समय विचार करें एकाग्र होकर और ख़ुद पर लागू करने का संकल्प लें तो उस दिन का वाक सफल मानें !
अभी समय नहीं चला गया आपको आत्मविश्वास बापस लाना होगा और मृत्यु भय का त्याग करना होगा , कायाकल्प संभव है आपकी उम्र में बस एक बार भीष्म प्रतिज्ञा करनी होगी और आप अंत तक स्वस्थ रहकर जीवन का आनंद ले पायेंगे !, सादर
चमत्कार होगा यकीन करें
अधिकतर महागुरु ( ६० वर्ष से अधिक ) इस बात से चौंकेंगे कि बढ़ती उम्र में वेट लिफ्टिंग सीखना , बॉडी वेट एवं रेजिस्टेंस बैंड एक्सरसाइज उनके लिए आवश्यक ही नहीं , बढ़ती उम्र की आवश्यक जरूरत है और इस
आवश्यकता की पूर्ति के लिए मैं सतीश सक्सेना ( ७०+) यह पूरा वर्ष नौजवानों की तरह जिम ट्रेनिंग में लगाकर अपने शरीर के मसल्स मास को दुबारा ताकत दूँगा और आख़िरी दिन की और बढ़ते हुए भी मैं , बढ़ी उम्र में बीमारी मुक्त रहने का संघर्ष जारी रखूँगा !कोई डॉ यह नहीं बताता, सबका कहना है कि आराम करिए इस उम्र में नहीं तो आप अपने जॉइंट डैमेज कर लेंगे जबकि तेजी से घटते बॉडी मसल्स और मास को बढ़ाने का सबसे बेहतर तरीका यही है , और हाँ यह मसल्स दुबारा मजबूत बन सकती हैं किसी भी उम्र में, बशर्ते यह विश्वास बना रहे !
मुझे चिंता है उन महर्षियों की जो अपना सारा समय शिष्यों के मध्य ज्ञान बाँटने में गुजारते हैं और अपनी सेहत दवा व्यवसायियों के भरोसे सौंप कर निश्चिंत रहते हैं , अगर नहीं चेते तो कुछ समय में उनके शरीर की दुर्दशा निश्चित है ! “इलाज करा लेंगे “ उन्हें शायद यह पता ही नहीं कि बुढ़ापे में दवाओं के ज़रिये इस शरीर का इलाज संभव ही नहीं , हाँ ढेरों पैसे खर्च कर , वे शरीर में कुछ ख़तरनाक बीमारियां व तीन गुना दवाएं लेकर ही घर वापस आयेंगे !
प्रणाम आप सबको , हो सके तो बिना चिढ़े इस विषय पर ओपन मन से गौर करियेगा ! सादर सस्नेह
शुरुआत नियमित वाक से हुई , अगले तीन महीने में नियमित तौर पर लगातार तीन घंटे तक वाक और जॉगिंग करने की आदत डाल ली , उसके अगले छह महीने में सुबह ठण्ड में शुरुआत के तीन कपड़ों ने एक कपडे की जगह ले ली थी , ठण्ड लगना कम हो गयी थी , साथ ही दौड़ते दौड़ते खांसना भी कम हुआ था , वजन लगभग २ किलो घटा , इससे हिम्मत में इज़ाफ़ा हुआ कि मैं यह कर सकता हूँ , और यह सब सुबह पांच बजे से इकला चलो रे, के मन्त्र के साथ होता था !
अब अगर आज की बात करूँ तो अब तक 2015 से अबतक लगभग 13000 km दौड़ चुका हूँ , 70+वर्ष के इस शरीर में आज के दिन ऊपर लिखी किसी बीमारी का कोई अंश तक नहीं है , शुरुआत से ही मुझे भरोसा था कि मानव शरीर बहुत ताकतवर होता है बशर्ते हम मृत्यु भय के कारण ,दवा व्यापारियों के बनाये इंजेक्शन , कैप्सूल और विटामिन न उपयोग करें !
भारत डायबिटीज की राजधानी है , हमारे यहाँ घी दूध बटर तेल आदि में इस कदर मिलावट होती है कि उनका सेवन करने से ४० वर्ष में ही लोग हार्ट अटैक के शिकार हो रहे हैं , अज्ञानता इस कदर है कि विश्व के अन्य देशों की जीरो जानकारी के होने के बावजूद हम खुद को विश्व गुरु मानते हैं सो पूरे दिन सिर्फ मुंह चलाते रहते हैं , अभक्ष्य दिन में पांच छह बार खाने, पीने में और ज्ञान बघारने में !
सो हो सके तो कल से अकेले घर से वाक पर निकलें , और बिना हांफे सामर्थ्य भर वाक करें और घर आएं , यह नियमित रखें कुछ महीने में शरीर इसे अंगीकार कर लेगा , ध्यान रहे वाक का समापन एक से दो मिनट बिना हांफे धीमे धीमे दौड़ कर करें , दौड़ते हुए अपने शरीर से बात करते रहिये एकाग्रचित्त होकर ! भोजन उतना करें जितनी मेहनत की हो , अगर मेहनत नहीं करते हैं तब एक बार का भोजन से अधिक खाना बीमारी बढ़ाएगा ! दस वर्ष पुराने सतीश में और आज के सतीश में फर्क महसूस करें ! आप भी दौड़ना सीख लेंगे , मुझे विश्वास है !
शुभकामनायें आपको