Monday, September 27, 2010

राजधानी दिल्ली में अभूतपूर्व निर्माणकार्य -सतीश सक्सेना

इस समय के नकारात्मक माहौल में डॉ दराल द्वारा धारा के विपरीत लिखा गया यह है दिल्ली मेरी जान ... पढ़कर
ही इस लेख को लिखने की प्रेरणा मिली ! पहली बार देश में इतने बड़े स्केल पर अभूतपूर्व निर्माण कार्य हुआ है ...पहली बार देश में इतने बड़े मेगा स्ट्रक्चर बनाए गए हैं और शायद पहली बार ही इतनी बड़ी संख्या में विदेशी हमारे देश को देखने, इन खेलों के बहाने यहाँ आ रहे हैं ! पिछले ३ वर्षों में तमाम लालफीताशाही और तमाम सरकारी एजेंसियों ने, लाखों रुकावटों के बावजूद जितना कार्य किया गया है वह कार्य पिछले २० वर्षों में पूरे देश में नहीं हो पाया ...... 
याद कीजिये, ५ साल पहले दिल्ली में ट्रेफिक व्यवस्था की क्या स्थिति थी ? अभी हाल में मैंने अपनी यूरोप यात्रा के दौरान जिन रेलों में और मेट्रो में सफ़र किया था मेरा दावा है कि दिल्ली मेट्रो उन सबमें बेहतरीन है  और वाकई ऐसी दाग रहित सफाई, हमारे रहनसहन के साथ, आश्चर्य की ही बात थी मगर मैंने आज तक भारतीय मीडिया को मेट्रो के आधुनिकतम कुशल कार्य की तारीफ़ करते नहीं सुना  ! हर ३ मिनट के अंतराल पर विश्व के सबसे अच्छी वातानुकूलित तथा प्रदूषणरहित गाड़ियों को दिल्ली में चलते देखना, निस्संदेह बेहद सुखद था ! आटोमेटिक डोर, सीढियाँ , और सिक्यूरिटी को देख, हमें अपने महान देश का गौरव शाली नागरिक होने का बोध क्यों नहीं हुआ  ?  मेट्रो के आने से पहले कोई सोच भी नहीं पाता था कि चांदनी चौक और चावडी बाज़ार में भी ट्रेन से जाया जा सकता है ! दिल्ली की बनी घनी आबादी और खड़े पुराने भवनों के नीचे से सुरंग बना कर, केवल ८ वर्षों में लगभग २०० किलोमीटर स्टेट आफ आर्ट दिल्ली मेट्रो को चलाना कोई मज़ाक नहीं था ! मगर चौबीस घंटों काम करने का फल मेट्रो इंजीनियरों को , एक मेट्रो गर्डर गिरने पर, गालियों के रूप में दिया गया  ! इतने विशाल निर्माण कार्य पर शायद ही किसी पुरस्कार की घोषणा हुई होगी ! यह स्थिति बेहद अफ़सोस जनक है ...
राजीव चौक में  आमूल चूल परिवर्तन करना, ठीक इसी प्रकार का कार्य है कि जैसे बसे बसाए शहर को, बिना मिटाए दुबारा नए सिरे से बनाया जाए ! कनाट प्लेस के घनी आबादी को बिना छेड़े और विस्थापित किये उनकी सड़ी गली सर्विस सुविधाओं , सीवर लाइन, बिजली और जल सप्लाई को बहाल करते हुए, नया बनाना किसी भी इंजिनियर विभाग के लिए बेहद जटिल और पसीने लाने वाला काम है और विश्व के विकसित देशों में यह लगभग असंभव जैसा ही है मगर बिना इसकी जटिलता जाने राजीव चौक की खुदाई पर इन अनपढ़ों ने जितनी मज़ाक बनाई है उसे देख अपने बाल नोचने का ही दिल करता है !  
है मुमकिन दुश्मनों की दुश्मनी पर सबर कर लेना 
मगर  यह  दोस्तों  की  बेरुखी , देखी नहीं जाती  !
इसकी विशाल और भव्य निर्माण कार्य की, हम सबको मुक्त ह्रदय से तारीफ़ करनी चाहिए थी ! मगर हमारी भारतीय मीडिया को चटपटी खबर चाहिए और इस के चलते सैकड़ों कैमरामैन रात दिन इस अभूतपूर्व निर्माण कार्य में कमियां निकालने के लिए दिन रात मेहनत करते रहे और जो कुछ भी मिला,फाल्स सीलिंग की गिरी टाइलों से लेकर भारी बाढ़ के फलस्वरूप पैदा गन्दगी और मच्छरों तक को, दिन में २०-२० बार दिखाया गया  ......ऐसा लग रहा है कि पूरे विश्व में हमसे अयोग्य,घटिया, भ्रष्ट और निकम्मा कोई है ही नहीं ! और यह पूरे विश्व को बताना बहुत आवश्यक है कि हम कितने अयोग्य तथा शेष विश्व के लिए बेकार हैं ! आप लोग इस देश में आकर सुरक्षित नहीं हैं ! देश के विश्वास को जितनी ठेस इन दिनों हम भारतीयों ने दी है शायद दुश्मन देश पिछले दसियों वर्षों में नहीं कर पाए थे ! असद बदायुनी का एक शेर मुझे याद आ रहा है !
गैरों को क्या पड़ी है कि रुसवा मुझे करें 

इन साजिशों में हाथ किसी आशना का है 
इससे भी भयावह है हमारे देश की भीड़ चाल , एक न्यूज़ को सुनकर वही काँव काँव , उसके बाद अन्य न्यूज़ एजेंसी  और बाद में  आम आदमी  ! यही दुर्दशा ब्लाग जगत में देखने को मिली इस मानसिक गरीबी पर क्या खेद व्यक्त किया जाए सिवा अफ़सोस के !
खैर मुझे अपनी दिल्ली में हुए इस अभूतपूर्व निर्माण कार्य पर गर्व है , कि इन राष्ट्र मंडल खेलों के बहाने हम विश्वस्तरीय शहर में रहने लायक हो पाए हैं !
आइये अच्छे कामों पर हम अपने मजदूरों और अभियंताओं को शाबाशी देना सीखें  ! दिल्ली के तेजी से बदलते स्वरुप पर आप सब को हार्दिक शुभकामनाये !
   

43 comments:

  1. परसों मेरे भाई के फेस बुक पर लिखा था...

    "Hitesh Kumbhat leave all blaims aside . . Delhi looks simply beautiful at this time !! Sometimes we gotta see the good side of the coin also

    Saturday at 08:30 via Mobile Web "

    आपसे सहमत हूँ.. दिल्ली में विकास कार्य बहुत बेहतर और जल्द हुए है...

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. वाह! वाआआआआआआआआआह!

    क्या यह वाकई हमारा देश भारत ही है? क्या यह वाकई देश की राजधानी दिल्ली ही है? और क्या यह दिल्ली की वही जगह है जहाँ राष्ट्रमंडल खेल होने वाले हैं? विदेशी तो विदेशी, बल्कि स्वयं हमारा मीडिया तो कुछ और ही तस्वीर दिखा रहा है??????? आपने तो वह कहावत चरितार्थ कर दी कि "तस्वीरें सच बोलती हैं".

    कहीं हमारे देश को बदनाम करने की कोई विदेशी साजिश तो नहीं चल रही है. और हमारा मीडिया भी उनकी साजिश का हिस्सा हो गया है????

    ReplyDelete
  4. सतीश जी, मेरा भी यही मानना है, कि मीडिया हमेशा ’बुरे’ की तरफ़ ही नज़रें घुमाता है. ’अच्छे’ को देखने की आदत है ही नहीं. वो प्रिंट मीडिया हो या इलैक्ट्रॉनिक मीडिया, लूट, छेड़खानी, बलात्कार, हत्या, रिश्वतखोरी, झगड़ों की खबरें ही इन्हें खबर लगती है, देश में बहुत कुछ अच्छा भी हो रहा है, उसे कभी हाईलाइट नहीं करते, गो कि लोगों का इन्सान और इन्सानियत पर से विश्वास ही उठ जाये. खुद के ज़िन्दा होने पर शर्मिंदगी महसूस होने लगे.
    बहुत अच्छी पोस्ट.
    लेकिन कॉमन वेल्थ गेम्स के निर्माण में सैकड़ों करोड़ के घोटाले का क्या चक्कर है? आप नोयडा में है, दिल्ली की हलचल बेहतर बता पायेंगे..

    ReplyDelete
  5. विकास की यह गति आगे भी बनी रहे, यही आशा है।
    पोस्ट बहुत अच्छी लगी जी

    प्रणाम

    ReplyDelete
  6. aapka FAN ho gaya SATISH SIR!! bilkul aisa hi najaria hai mera........har samay sarkar ko koshna..........hame chhodna hoga, kabhi hame ye bhi dekhna hoga, hamne kya paya hai...........manta hoon, kuchh gar-bariyan hoti hai......lekin wo kuchh problems har jagah hoti hai........sirf hamare pyare desh me aisa nahi hai!!

    Besh wishes for Commonwealth games.!!

    ReplyDelete
  7. सर जी !
    हमारी घोर असहमति दर्ज कीजिये इस मामले में। पूर्व खेल मंत्री मणिशंकर अय्यर का कहना है कि यह खेल मूलत: बवाना क्षेत्र में कराने की योजना थी, ताकि दिल्ली का यह अपेक्षाकृत पिछड़ा इलाका सुविधा समपन्न हो सके पर निहित स्वार्थवश इनका स्थान नई दिल्ली के आस पास रखा गया ! इन खेलों के नाम पर जो बुनयादी ढाचा बनाने का दावा किया है, उस पर 70,000 करोड़ रुपये का खर्च बताया जा रहा है। सबको मालूम हो कि इस देश की गरीबी को दूर करने के नाम पर जारी “नरेगा योजना” के तहत इस साल का प्रावधान 40,100 करोड़ है। मूल बजट को 114 गुना बढ़ाने के बाद किये गये निर्माण (जिनकी गुण्वत्ता गिरते पुलों और टूटती दीवारों में रोज़ दिख रही है) को कैसे कोई अभियंता उचित कह सकता है? सवाल निर्माण से ज़्यादा निर्माण की लागत का भी है!
    इस देश की जो छवि पिछले एक दशक में हमारे युवाओं और उधोगों ने बनायी थी, उस पर बट्टा तो लग ही चुका है। किरन बेदी से लेकर मणिशंकर अय्यर तक हर सच्चा भारतीय, गरीब देश में पैसे की ऐसी बरबादी पर दुखी है तो क्या उसका दुखी होना गलत है?

    -चैतन्य

    ReplyDelete
  8. kai din se aap mil hi nahi rahe the...khair...

    is lekh ko padhne ke bad itna to jaroor lag raha hai ki sab kuch bura hi nahi ho raha...kuch achha bhi ho raha hai....

    pranam.

    ReplyDelete
  9. satish jee dil ko rahat milee aapka ye lekh padkar........

    prakruti bhee kuch jyada hee naraj rahee.......yamuna jee bhee bifree huee thee......

    london me jub mai thee t v par pictures dikhaee jarahee thee .par scotland kee team ne ha bher lee hai suna to rahat milee......
    desh ke maan ka prashn hai shikayat ye hai ki last me yuddh star kee taiyaree.......?
    bridge ka toot jana sharmindgee nahee paida karta..?

    Lalit mahot ka ashvasan dene kee jagah ye kahna ki safaee ke star alag hai.....international t v channel par ye sab dekh kar bahut peeda huee thee.......
    aaj saans me saans aaee hai aapkee post pad ker.....
    Dhanyvaad.

    ReplyDelete
  10. आपका नज़रिया काफी सकारात्मक है ! जहां तक मीडिया का सवाल है उसकी टीआरपी निगेटिविटी पर टिकी है !

    क्या आपको ब्लॉग जगत भी कुछ कुछ मीडिया जैसा नहीं दिखता :)

    ReplyDelete
  11. मेरे ख्याल से दिल्ली मेट्रो को राष्ट्रमंडल खेलों के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए. मेट्रो रेल का विकास और उसका बजट इन खेलों से नहीं जुड़ा है. और अगर आप जोड़ ही रहे हैं तो इस लिस्ट में क़ुतुब मीनार, लाल किला और पुराना किला को भी जोड़ लें. ये भी बहुत बड़े स्केल के कार्य थे बेशक कुछ सो वर्षो पहले ही हुए हों.

    ReplyDelete
  12. दिल्ली का नक्शा बदलने की बधाई।

    ReplyDelete
  13. नकारात्मकता को हम भारतीय बहुत महत्व देते है

    ReplyDelete
  14. @ संवेदना के स्वर,

    आपने तो धारावाहिक ही शुरू कर दी चैतन्य भाई ...मेरा नजरिया आपसे नितांत अलग है , व्यक्तिगत राजनीतिक विचारधारा किसी भी कीमत पर, देश के सम्मान से अधिक नहीं हो सकती ! इस समय देश का सम्मान दाव पर लगा है इस समय घर की कमिया न गिनें बल्कि घर की गन्दगी छुपाने का समय है ! इस समय अपनी राजनीतिक विचारधारा के कारण, देश के सम्मान को किनारे रख कर, हिसाब बराबर करने का मौका ढूँढने वालों को, मैं संकीर्ण ह्रदय मानता हूँ , ऐसे लोग देश की छोडिये अपने साथ भी न्याय नहीं कर पाएंगे !

    आप सामान्य ब्लागर नहीं है मैं उम्मीद करता हूँ मेरे नज़रिए से इस घटना को एक बार अवश्य देखें फिर फैसला करें !
    सम्मान सहित !

    ReplyDelete
  15. अब तो मीडिया हाईप ही लग रहा है सब ....सब्र करना चाहिए अब तो ....न तो भारतीय लोकतंत्र परिपक्व हुआ और न ही मीडिया ....कहते हैं मीडिया को कांफिडेंस में नहीं लिया गया :)

    ReplyDelete
  16. लोग कहें मीडिया की देखी,
    मैं बोलूँ आँखन की देखी
    __________________________________

    >>>>>>>> मैंने एक ही फुटपाथ दो महीनों में तीन बार उधड़ते और बुनते देखा है. और अब इस महीने चौथी बार बनकर तैयार हुआ है. वही लाल और सफ़ेद टायलों के साथ.

    यही एकरूपता लाने का प्रयास तो वास्तव में विकास है. वाकई खेलों ने दिल्ली को न्यू योर्क की महिमा से मंडित कर दिया है. लगता है हम स्वर्ग में हैं. अब ऑफिस कुछ दिनों से १० मिनट पहले पहुँच जाता हूँ. अब घर से १५ मिनट देर से निकलना भारी नहीं पड़ता. देखते हैं ऐसा कब तक चलता है. <<<<<<<<<<<<<<<<< आपका सकारात्मक सोच को बढ़ावा देता लेख पसंद आया.

    ReplyDelete
  17. @ अपनत्व जी ,
    आभारी हूँ आपके स्नेह का !
    यह सुनकर झटका सा लगा कि कुछ देशों ने अपने खिलाडियों को निर्देश जारी किया है कि भारत जाने का फैसला स्वेच्छिक लें, अगर वे कैंसिल करना चाहे तो उन्हें पूरी आजादी है !

    निस्संदेह यह बेहद खेदजनक है और विदेशों में हमारी छवि हमारी खोजी मीडिया ने शिखर पर पंहुचाई है ! इतनी बेशर्मी से नकारात्मक चटपटी ख़बरें पेश करने का निस्संदेह यह विश्व रिकार्ड होगा ! रात को टी वी के सामने बैठे और सुबह ऑफिस जाते समय चटकारे लेकर चर्चा करते लाखों लोग, इस मीडिया नशे को दिन दूना रात चौगुना कर रहे हैं !

    एक अर्धशिक्षित भीड़ मगर जनसमुदाय का हिस्सा बने हुए हम लोग अपनी नैतिक जिम्मेवारी भूले हुए हैं ! हमें याद है सरकार चलाते हुए लोगों पर प्रहार करना विदेशी लोग हमें पहले से ही पहचानते हैं अब उभरते हुए देश की छबि के पीछे यह बदसूरत लोलुपता भी याद रखेंगे !

    सादर !

    ReplyDelete

  18. सतीश भाई में आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ, यह सब हमारे देश को नीचा दिखने का विदेशी मीडिया का घृणात्मक खेल है जिसमे केवल हमारा मीडिया ही नहीं बल्कि आम हिन्दुस्तानी नागरिक भी बेवक़ूफ़ बन रहे हैं. मानता हूँ करप्शन है, लेकिन वह हिन्दुस्तान में कहा नहीं है? जो यहाँ सरकार को भ्रष्ट कह रहे हैं, वह खुद भी उतने ही भ्रष्ट हैं. जब हमाम में सभी नंगे है तो नंगों को दूसरों को नंगा कहना का क्या हक है? हम खुद ठीक हो जाएं, अपने समाज को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए कार्य करें तभी यह भ्रष्टाचार नामक दानव समाप्त हो सकता है.

    मैं खुद फ़ुटबाल विश्वकप के समय सियोल में मौजूद था, और इसलिए कह सकता हूँ की हमारे स्टेडियम उनके स्टेडियमों से कम नहीं बल्कि कहीं-कहीं तो उनसे भी बढ़कर हैं. ज़रा देखिये तो सही हमारा खेल गाँव, आस्ट्रेलिया का भी ऐसा नहीं था. हमारे देश की टीम को यूनिवर्सिटी में रहना पढ़ा था.

    आप सभी को राष्ट्रमंडल के आयोजन स्थलों का नज़ारा करने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर अवश्य जाना चाहिए.


    दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 (4)- CWG-2010

    ReplyDelete
  19. @ विचार शून्य जी ,
    दिल्ली मेट्रो की चर्चा विकास कार्यों को लेकर की गयी है ! यकीन करें मैं यहाँ किसी का बचाव नहीं कर रहा हूँ !
    वैचारिक राजनैतिक मतभेद, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर लाना केवल तालियाँ बज वायेगा और बजनी शुरू भी हो गयीं हैं, यह स्थिति देश के सम्मान के लिए बेहद घातक है ! हम सबको इस समय पूर्वाग्रहों से बचना चाहिए ! आपकी प्रतिक्रिया से व्यंग्य झलक रहा है आशा है एक बार पुनर्विचार का अनुरोध मान लेंगे !
    सादर

    @ अली साहब ,
    आपने ठीक कहा वही कहानी दुहराई जा रही है , निराशा जनक स्थिति है....

    @ शाहनवाज भाई,
    बहुत सामयिक उदाहरण दिए हैं आपने आपका आभारी हूँ , अक्सर अच्छे कमेंट्स लेख को परिपूर्ण करते हैं ! आपका आभार !

    ReplyDelete
  20. आपकी बात अच्छी लगी मेरा मानना ये है की अब ये वक़्त न तो छींटा कशी का है न आरोप प्रत्यारोप का आओ १५ दिन इन खुबसूरत पलों को जी लें.मेहमानों के जाने बाद इन सब की खबर लें,एक जुट होकर.शायद आपने आइ एन ऐ मेट्रो स्टेशन नहीं देखा एक बार जरुर देखें इसकी साज सज्जा दीवारों पर

    ReplyDelete
  21. आदर्णिय सर जी,
    You have shot the messenger without reading the message and still the question remains unanswered.
    ख़ैर, जहाँ तक राज्नैतिक विचारधारा का प्रश्न है, देश प्रेम की कोई राजनैतिक विचारधारा नहीं होती है. हाँ, राजनैतिक विचारधाराएँ देश प्रेम के पक्ष या विपक्ष में हो सकती हैं. फिर सवाल यह भी है कि देश का अर्थ क्या सिर्फ पुल, रेलगाड़ी या सड़क है या उसमें रहने वाले देशवासी भी.
    मणिशंकर अय्यर, जिनका ज़िक्र किया था, वो फिलहाल राज्य सभा के सदस्य हैं और विद्वानों की श्रेणी में मनोनीत/चयनित हैं. किरण बेदी का सम्बंध भी शायद किसी राजनैतिक दल से नहीं है.
    अब बात घर के कूड़े को छिपाने की… कूड़ा, घर का हो या मन का, छिपाने से सिर्फ दिखता बंद हो जाताहै, पर सड़ाँध का क्या कीजिएगा. हमारे समाज में जिस दुर्गंध की हम चर्चा करते हैं उसका एक कारण है दमन अर्थात् कूड़े को छिपाने की मनोवृत्ति.
    घावों पर फूल रखने के कारण ही समाज के घाव ठीक नहीं हुए, बल्कि नासूर ज़रूर बन गए हैं. जब लोग बेडियों को ही आभूषण समझने लगते हैं और “रानी के डण्डे” को पूजने लगते हैं, तो उसको मैं संकीर्णता मानता हूँ.
    सर जी!! आपका नज़रिया हमसे जुदा है तो क्या,उसके ‘जुदापन’ को आदर और सम्मान!!
    चैतन्य

    ReplyDelete
  22. .
    .
    .
    क्षमा करें आदरणीय सतीश सक्सेना जी,

    आप कई सारी भिन्न-भिन्न बातों को मिला दे रहे हैं यहाँ पर...

    * दिल्ली मेट्रो एक अनूठे इन्सान श्रीधरन के विजन और कर्तव्यपरायणता का नतीजा है... राजनेताओं को यह श्रेय अवश्य जाता है कि श्रीधरन को हरसंभव आजादी दी।

    * राष्ट्रकुल खेल सात साल पहले आवंटित हो गये थे दिल्ली को... तकरीबन एक साल पहले ही सारे निर्माण पूरे होकर फुल ड्रेस रिहर्सल हो जानी चाहियें थी।

    * खेल गाँव बनाने का काम एक नामी प्राइवेट बिल्डर को दिया गया था... जमीन समय पर दे दी गई थी...आज तक यह हालत है कि बोत्स्वाना जैसे छोटे देश के एथलीट भी खेलगाँव को रहने लायक नहीं मान रहे हैं।

    * हमारे देश में क्या कमी है मजदूरों की... जो मलबा अभी तक नहीं उठाया गया है... वजह साफ है जब निर्माण (???) के नाम पर नोट छापने से फुरसत मिले तभी न मलबा उठाने जैसा अनुत्पादक (???) काम कोई करे!

    * सही कर रहा है मीडिया...इस बार भी यदि छोड़ दिया... तो खेलों के नाम पर हजारों हजार करोड़ डकारने वाला भ्रष्ट जोकरों का यह समूह अगली बार ओलंपिक खेलों की मेजबानी भी इस पैसे के दम पर अपने नाम करवा लायेगा।

    * इन तथाकथित अभूतपूर्व व भव्य निर्माण कार्यों में भारतीय आर्किटेक्चर व इंजीनियरिंग मेधा का प्रयोग नहीं के बराबर है...अंतर्राष्ट्रीय बड़ी निर्माण फर्मों ने अपने हेडक्वार्टर्स में बैठ इन डिजाइनों को बनाया है... विशिष्ट भारतीय शैली कहीं नहीं दिखती इनमें।

    * अब जो देशभक्ति के नाम पर चुप हो जाने की अपीलें की जा रही हैं उन के लिये सिर्फ यही कहूँगा कि... Patriotism is the last resort of the scoundrel... खेलों के नाम पर अपनी जेबें भरने वाले खल-जन अब भावनाओं का आसरा ले बच निकलने का प्रयास कर रहे हैं।


    आभार!


    ...

    ReplyDelete
  23. मैं अभी अभी ४० किलोमीटर ड्राइव करके आ रहा हूँ । गुडगाँव से खेल गाँव तक दिल्ली की सड़कें ऐसी जगमगा रही हैं जैसे दिवाली पर घर जगमगाते हैं । नई इम्पोर्टेड लाइट्स की रौशनी में दिल्ली नहा रही है । हम तो हैरान हैं कि इतनी बिजली कहाँ से आ गई । खैर फिलहाल तो इसी का आनंद लिया जाए ।

    सतीश जी , आपकी बातें सोलह आने सही हैं ।

    आज दिल्ली विश्व के किसी भी विकसित शहर से कम नज़र नहीं आ रही । ये जो सुविधाएँ जुटाई गई हैं ये आने वाले बीसियों वर्षों तक दिल्ली वालों को सुख प्रदान करती रहेंगी ।

    ReplyDelete
  24. @ प्रवीण शाह जी ,
    मैंने यह कहीं नहीं कहा की कमियाँ नहीं है प्रवीण भाई ! मगर जब आपके घर मेहमान खाने पर बुलाये गए हों , नंगई तभी उजागर करियेगा कि दुनिया तमाशा देखे यह कहाँ का औचित्य है ??

    खेलगांव के बारे में जो ख़बरें आ रही हैं वे बात का बतंगड़ हैं और अफ़सोस है कि आप जैसे लोग भी मीडिया खबर को प्रमाणिक मान कर प्रतिक्रिया कर रहे हैं ! खेलगांव के इंतजाम कि तुलना विश्व के आधुनिकतम देशों से आराम से की जा सकती है बल्कि कई जगह उससे अधिक बेहतर है !

    मलबा के बारे में आपकी भी प्रतिक्रिया देख मैं आश्चर्य चकित हूँ , दिल्ली में बड़े स्तर पर चल रहे निर्माण कार्यों के होते मलवा से परहेज नहीं किया जा सकता, हाँ मलवे के डिस्पोजल की तुलना विकसित देशों से नहीं कि जा सकती जहाँ के निर्माण कार्य का खर्चा हमसे कई गुना अधिक होता है ! इतने बड़े निर्माण कार्य में मलवा बिलकुल नज़र न आये यह संभव ही नहीं है !

    भारतीय आर्किटेक्चर का प्रयोग यहाँ नहीं हो रहा अंतर्राष्ट्रीय फर्में यहाँ कार्य कर रही हैं ...विशिष्ट भारतीय शैली ?? क्या " मय मतः " में वर्णित शैली की चर्चा कर रहे हैं ??? यह खबर का श्रोत बताएँगे प्रवीण भाई ??? यह जानकारी किस न्यूज़ चैनल से ली है ...??

    इस ज्ञान के आगे मैं बेबस हूँ ...

    ReplyDelete
  25. @ धन्यवाद डॉ दराल,
    अफ़सोस है कि हमें अपने देश की तारीफ़ करने में भी शर्म आ रही है मगर देश की छोटी कमियों को भी बड़ा बना कर, पूरे जगत के सामने मज़ाक बनवाते हुए बिलकुल शर्मिंदा नहीं हैं !

    जो बिदेशी लोग बरसों से देश को बदनाम करने का प्रयत्न कर रहे थे वे आज इन बंदरों द्वारा अपने ही घर के सम्मान को, पूरे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के आगे तार तार करते देख जश्न मन रहे होंगे ,मगर इससे इन्हें क्या दिल में जलती आग तो ठंडी होगी !

    मुझे भाई योगेन्द्र मौदगिल की दो लाइनें याद आ रही हैं

    मस्जिद की मीनारें बोलीं, मंदिर के कंगूरों से !
    संभव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से

    ReplyDelete
  26. .
    .
    .
    जानिये जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम के कायापलट के बारे में...
    2010 Commonwealth Games
    Jawaharlal Nehru Stadium will host the 2010 Delhi Commonwealth Games Opening ceremony as well as the Closing ceremony. On 27th July 2010 it was opened and people were allowed to see inside.
    * The Jawaharlal Nehru Stadium is being given a face lift with a new roof and improved seating and other facilities to meet international standards when it hosts the opening and closing ceremonies as well as the Athletics Events during the XIX Commonwelath Games, which are to be held in Delhi from October 3 - 14, 2010 in Delhi.
    * The 53,800 sq m Teflon-coated roof, designed by Schlaich Bergermann & Partner is being built at a cost of Rs. 308 crore. [2]
    * Taiyo Membrane Corporation supplied and installed the PTFE glass fibre fabric roof.
    * 8,500 tonnes of steel used to make the stadium.
    * It covers an area of 100 acres including 23 acres of green cover. New 10-lane synthetic track, synthetic warm-up track, and a synthetic lawn ball field.
    * Two new venues are being constructed next to the stadium for the Games: Four synthetic greens for the Lawn Bowls event and a 2,500-seat gymnasium for the weightlifting event. A 400-metre warm-up track will also be constructed.
    * Nearly 4,000 labourers have worked here in double shift to finish stadium in time
    * A 150m long tunnel is being constructed for the opening and closing ceremonies. [3]
    * The support structure for the new roof has apparently made the stadium look similar to London's Olympic Stadium which is currently under construction.
    * Design strikingly similar to Foshan Stadium in China built by same designers.


    ...

    ReplyDelete
  27. सहमत हूँ आपसे जो अच्चा है उसकी बड़ाई तो होनी ही चाहिए. पर इनपुट के हिसाब से आउटपुट नहीं है.... इतने भरी खर्चे पर और भी बहुत कुछ हो सकता था. लखनऊ के कुछ हिस्से भी खुबसूरत लगते हैं लेकिन जितने पैसे खर्च हुए क्या उतने में क्या से क्या नहीं हो गया होता !

    ReplyDelete
  28. @ भाई प्रवीण शाह,
    मैं आपसे अब भी बिलकुल इत्तिफाक नहीं रखता कि इनके बनाने में हमारा कोई योगदान नहीं ! विभाग के टेंडर कार्यप्रणाली की जानकारी के लिए मुझे किसी मीडिया पर अथवा इन्टरनेट पर आश्रित होने की जरूरत नहीं है अपितु मैं स्वयं इनका थोडा बहुत जानकार हूँ !

    तकनीकी जानकारी और बेहतर डिज़ाइन देने हेतु प्राइवेट कंपनियों को अपना डिजाइन देने की पूरी आज़ादी रहती है और यही विश्वस्तरीय मापदंड हैं ! यह सिविल इंजीनियरिंग क्षेत्र में ही नहीं बल्कि तकनीक के हर क्षेत्र में स्वीकृत है !

    ReplyDelete
  29. @ अभिषेक ओझा ,
    विश्वस्तरीय मापदंड अपनाने का प्रयत्न करेंगे तो खर्च अधिक होगा ही ! किसी भी खर्चे के स्वीकृति के लिए कुछ मापदंड होते हैं उसके अनुरूप ही खर्चा किया जा सकता है ! देश अब आर्थिक महाशक्ति बनने का दावा कर रहा है और हम आधुनिक सुविधा से दूर रहें इसका औचित्य क्या है ! बदलाव समय की पुकार हमेशा रही है हमें समय के हिसाब से बदलना चाहिए यह आप खुद अपने क्षेत्र में रोज ही देखते होंगे ! अंत में एक बात और अभी कार्य पूरे नहीं हो पाए और लोगों को खर्चे का पूरा व्योरा मिल गया ...क्या यह जल्दी नहीं ??
    शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  30. प्रवीण शाह जी की बातों से सहमत!!
    उनकी बातें प्रामाणिकता के आधार पर तथ्यपरक होती हैं!!रोशनी की जगमगाहट इसलिए कि इसकी चकाचौंध में आप अपने आसपास न देख पाएँ.

    ReplyDelete
  31. सतीश भाई,
    न जाने कहां से ये फितरत मेरे अंदर समाई हुई है कि इतनी उम्र होने के बावजूद आज तक अपने सगे बड़े भाई के आगे कभी पलट कर नहीं बोला...आप को भी मैं वही दर्जा देता हूं...इसलिए उसी का पालन कर रहा हूं...

    बस सभी साथियों को इतना कहूंगा...

    Respect yourself but never fell in love with you...

    जय हिंद..

    ReplyDelete
  32. यह तो बहुत अच्छी बात है..बधाई एवं शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  33. इसमें रत्ती भर भी शक की गुंजाइश नहीं कि दिल्ली की मेट्रो यहाँ लन्दन की मेट्रो से भी बेहतर है सर..

    ReplyDelete
  34. सबसे बड़ी बात ये है की भारत जैसे देश में जहाँ भ्रष्ट नौकरशाही के चलते काम हो नही पाता वहां कलमाड़ी जी ने इतना काम करवाया है ..यहाँ की व्यवस्था ही ऐसी है..एक की जगह दस खर्च करने पड़ते है...फिर भी इतना काम होना मायने रखता है..."तस्वीरें सच बोलती हैं".

    ReplyDelete
  35. A FOOTBRIDGE under construction at the main stadium for the Delhi Commonwealth Games collapsed on Tuesday, injuring 23 labourers, five seriously, police said.


    The approximately 100 metre pedestrian bridge fell down just outside the main Jawaharlal Nehru Stadium, which will host the opening ceremony and athletics when the showpiece event begins on October 3. It was being built to link the parking lot with the stadium.


    'The number of injured has gone up to 23... Five labourers are critically injured,' a senior Delhi policeman H.G.S. Dhaliwal told the NDTV news channel.


    An AFP reporter at the scene said police had sealed off the area and heavy lifting equipment had begun shifting sections of the footbridge which had fallen down onto the car park tarmac below. A giant steel arch over the bridge was still standing, but load-bearing metal cables that had previously held up the overpass had snapped and could be seen dangling in the air.


    'The cementing of the footbridge was being done in the morning,' chief secretary of Delhi Rakesh Mehta told CNN-IBN television. 'The engineers are looking into the cause of the accident.'


    Construction work for the games, expected to draw 7,000 athletes and officials to the Indian capital, has been severely delayed and doubts have been raised about the quality of the construction. India's chief anti-corruption body found a host of problems with construction work in a July investigation, including dubious contracts and the use of poor quality materials.


    iske baare mein bhi kuch khabar dein to accha rahega...
    ham to BBC mein jo dekh rahe hain wo kuch aur hi baat hai..
    khoobsurati apni jagah hai suraksha ani jagah...

    ReplyDelete
  36. @ अदा जी
    मेहमानों के सामने अपने घर में कुश्ती ठीक नहीं ....
    भारतीय मीडिया को सकारात्मक रोल अदा करना चाहिए खास तौर पर जब हमें बाहर वाले शक की नज़र से देख रहे हूँ ! रह गयी बात एक्सिडेंट की , तो विश्व में ऐसा कोई देश नहीं जहाँ कार्य होते समय दुर्घटनाएं नहीं घटती हों , आप गूगल पर सर्च कर इमेज देख लें ! जिस पैमाने पर देश में विकास कार्य हो रहे हैं उसमें एक दो एक्सिडेंट होने मामूली कहलाये जायेंगे ! मानवीय गलतियाँ कहाँ नहीं होती !

    हम बुरे हैं हम बुरे हैं कहते रहिये .... पहले से ही भयभीत विदेशी आपके देश में झांकेंगे भी नहीं और आपके दुश्मनों को आपका मुंह काला करने का मौका आसानी से मिलेगा !
    भ्रष्टाचार पर निर्ममता से चोट करना चाहिए इसका विरोध कौन नहीं करेगा ? मगर विदेशियों का इससे क्या लेना !
    शुभकामनायें

    ReplyDelete
  37. मुझे आपकी दलीलें प्रायोजित लग रहीं हैं

    (और यह व्यंग्य या कटाक्ष नहीं है)

    ReplyDelete
  38. सतीश जी...
    जब आग लगी हो तो कुवाँ खोदना बेवकूफी है....भारत के पास समय था और एक अच्छा मौका भी....आखिर इतना पैसा टैक्स पेयर्स का खर्च हुआ ही है...फिर काम में किसी किसिम कि कोताही, को सिर्फ ये सोच कर कि मेहमान क्या कहेंगे बर्दाश्त करना मुझे नहीं लगता उचित है...हादसा होना और काम में ही कमी होना में फर्क है...किसी हादसे में पुल टूट जाए...वो समझ में आता है...लेकिन सामग्री में कमी कि वजह से पुल टूट जाए...यह अशोभनीय है...और फिर इस बात की क्या गारंटी है कि और ऐसे हादसे नहीं होंगे, अगर सामान ही घटिया लगा हुआ है तो....७००० खिलाड़ियों की ज़िन्दगी, लाखों लोगों का आवा-गमन सभी कुछ है....और अगर ऐसा कुछ हुआ तो भारत की छवि....दुश्मनों की छोडिये दोस्तों के बीच क्या होगी...?
    ईश्वर से प्रार्थना है सब कुछ ठीक ठाक बीत जाए....लेकिन संदेह से बाहर आना मुश्किल है..इस समय जो छवि देखने को मिल रही है भारत की उससे...
    आपने अपना दृष्टिकोण रखा आपका आभार...

    ReplyDelete
  39. ...behatreen post !!!
    क्या भारतीय मीडिया देश को शर्मसार करने में मस्त है ???
    http://kaduvasach.blogspot.com/2010/09/blog-post_9442.html
    .... bhaai ji is post par bhee najar daudaayen !!!

    ReplyDelete
  40. अच्छा लगा आपकी पोस्ट पढकर, वर्ना तो जिसे देखो वही टांग खींचने में लगा है।
    इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई।

    ReplyDelete
  41. :) :) जब सरकार की तारीफ़ में इतना कर ही लिया था तो एक चक्कर गाजियाबाद का भी मार आते आदरणीय !

    ReplyDelete
  42. गोदियाल भाई !
    शक न करें....यह आप भी जानते हैं कि बेईमानी छिपती नहीं देर सबेर जनता के सामने आ ही जायेगी ! मगर समय कहता है कि अदूरदर्शिता के दूरगामी परिणाम खराब ही होंगे !

    ReplyDelete
  43. There is a basic difference in opinion
    In india there are major 2 classes one which is employed by the government and other the private sector
    all government empoyees always say see the better side
    all the private side employees always say see the worst side

    in private sector contingency are taken care for first and mistakes are pointed out where as in government sector there is no schedule for contingencies because babus have no time for details they just have time to fill their coffers

    and above all we wanted the games to be done and not project india /delhi

    I STRONGLY DETEST SO MUCH MONEY BEING WASTED WHERE AS IT COULD HAVE BEEN USED FOR LONG TERM PROGRESS LIKE POWER STAIONS

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,