Tuesday, September 28, 2010

सैकड़ों देशों के बीच,देश की पगड़ी उछालते यह लोग -सतीश सक्सेना

उदय भाई,
             आज जब हर तरफ देश की कार्यक्षमता पर तथाकथित देशभक्त उंगली उठाते हुए विदेशियों को खुश कर रहे हैं कि " हम भी यही कह रहे हैं " ! इस मानसिकता का विरोध करने कोई सामने आने की हिम्मत नहीं कर रहा है तब आपका यह लेख आशा की ज्योति दिखा रहा है कि चलो अभी कुछ लोग हैं जो इस मानसिकता के विरोध में खड़े होने का जज्बा रखते हैं !
चार सौ एकड़ यमुना की तलहटी से निकला एक पानी का एक सांप "कुछ कमी  ढूँढ़ते इन महान खोजियों" को मिल गया है, और सारे खिलाड़ियों की जान के लिए खतरा बताते हुए पूरे दिन वह खबर ब्राडकास्ट होती रही !


           एक विशाल स्टेडियम की फाल्स सीलिंग से निकली एक टाइल जो अक्सर बिजली के लाइनमैन निकाल कर भूल जाते हैं इन्हें कुछ दिन पहले दिखी और दो दिन तक चिल्ल पों मचती रही कि छत गिर गयी !

           दो डरपोक विदेशी खिलाडियों ने इन ख़बरों से घबराते हुए आने को मना कर दिया ! हमारे न्यूज़ चैनल पूरे दो दिन वह खबर दिखाते रहे जैसे यह हमारी मीडिया की यह बहुत बड़ी जीत हो !
फूट ओवर ब्रिज गिरने का हादसा दुखद था जिसे एक प्राइवेट फर्म कर रही थी मगर इतने विशाल और बड़े स्केल पर होते काम के मध्य, यह दुर्घटना होना कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं थी !

             अन्तराष्ट्रीय मापदंडों से होने वाले इन विशाल निर्माण कार्यों में बहुत सावधानी रखी जाती है, मगर मानवीय भूलें सिर्फ हमारे यहाँ ही नहीं बल्कि विदेशों में भी होती रहीं हैं मगर उनकी मीडिया और ब्लागर इतनी जान नहीं निकालते बल्कि उसे प्रयोग और सीखने की एक प्रक्रिया भर मानते हैं !
                             गंदे बाथरूम का फोटो खींचना हो तो किसी फाइव स्टार में जाकर कर्मचारियों का बाथ रूम देखिये यह भी उसी फाइव स्टार होटल का एक भाग माना जाता है ..कर्मचारियों के लिए बाथरूम खेल गाँव में भी हैं !
                             भोजन करने को बुलाये मेहमानों के सामने, अपने घर में कुश्ती ( भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार चिल्लाना ) ठीक नहीं ....
                              भारतीय मीडिया को सकारात्मक रोल अदा करना चाहिए खास तौर पर जब हमें बाहर वाले शक की नज़र से देख रहे हूँ ! रह गयी बात एक्सिडेंट की , तो विश्व में ऐसा कोई देश नहीं जहाँ कार्य होते समय दुर्घटनाएं नहीं घटती हों , आप गूगल पर सर्च कर इमेज देख लें ! जिस पैमाने पर देश में विकास कार्य हो रहे हैं उसमें एक दो एक्सिडेंट होना बेहद स्वाभाविक और मामूली घटना है ! मानवीय गलतियाँ कहाँ नहीं होती ! 
हम बुरे हैं, हम बुरे हैं, कहते रहिये .... पहले से ही भयभीत विदेशी आपके देश में झांकेंगे भी नहीं और आपके दुश्मनों को, आपका मुंह काला करने का मौका आसानी से मिलेगा !

                               भ्रष्टाचार पर निर्ममता से चोट करना चाहिए इस बात का विरोध कौन करेगा ? मगर विदेशियों का इससे क्या लेना !

                               काश इतनी नकारात्मकता से हम अपना दिल भी टटोलें कि हम खुद कितने गंदे हैं ...कितना आसान है किसी अच्छे कार्य में बुराई निकलना अगर यह देखना हो इस समय ब्लाग जगत और मिडिया  की काँव काँव देखिये ! अपने नाम को चमकाने में लगे यह तथाकथित लेखक किस प्रकार देश को नंगा करने में लगे हुए हैं !

                                अपने ही घर में दावत देकर बुलाये दुनिया भर के लोगों को अपनी नंगई और नीचता किस बेशर्मी से दिखलाई जा रही है ...जिससे यह बेचारे विदेशी दुबारा आने का साहस भी न कर सकें ...

40 comments:

  1. बहुत ही सटीक कथन है इस सन्दर्भ में आपका ... आभार

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सटीक कथन है इस सन्दर्भ में आपका ... आभार

    ReplyDelete
  3. सतीश जी ,

    आपकी यह पोस्ट सकारात्मकता से सोचने पर विवश करती है ...विधेशों में हुए कॉमनवैल्थ खेलों में वहाँ की व्यवस्था पर खिलाडियों की बातें समाचारपत्र के किसी कोने में छुप कर रह गयीं ...
    हम स्वयं ही घर के भेदी बने हुए हैं ...

    ReplyDelete
  4. पता नहीं क्यों मीडिया अपने ही देश को बदनाम करने पर तुला है। और जो खबरें जनता के सामने आनी चाहिये, उससे आँखें मूंदे रहता है।

    प्रणाम

    ReplyDelete
  5. सतीश भाई आपकी पोस्ट पढ कर बहुत खुशी हुयी कि दुनिया मे आप जैसे और भी कई लोग हैं जो सच्चाई कहने की हिम्मत रखते है। किसी को कोसना आसान होता है मगर उसी काम को करना कठसिन है। कल् विदेशी खिलाडी जब खेलगाँव पहुँचे तो उन्होंने खुशी और संतुष्टी जताई। लेकिन इस बाजारू मीडिया को शायद ये याद ही नही है कि वो भ्रतवासी हैं औरपने देश का सम्मान करना उनका कर्त्व्य है न कि पगडी उच्छालना। बहुत दुख होता है ऐसी बातोंसे। सही है कि भ्रष्टाचार मे खूब कमाई की है नेताओं ने और प्रशासन ने मगर कहाँ भ्रष्टाचार नही होता। इसे उजागर जरूर करें मगर इस तरह नही कि देश की इज़्ज़त की धजियाँ उड जायें। आपका आलेख अच्छा लगा। शुभकामनाये।

    ReplyDelete
  6. बेहद शर्मनाक स्थिति है.

    ReplyDelete
  7. jitni binduon par apne nishana lagaya
    ....oose kam kiya ja sakta hai.......
    aur jis vherchaal se baton ko badha
    chadhakar pesh kiya jata hai....oose
    bhi kam kiya ja sakta hai.....

    matlab---sarkar ya system...jo uttardayi hai...adhik laprwah dikh raha hai....aur midia ya public jo..
    bol raha hai....o' bhi kam laprwahi
    nahi kar raha....

    pranam.

    ReplyDelete
  8. मैं आज भी यही कहूँगी मेहमानों को चले जाने दीजिये फिर लड़ भी लेंगे अगर सबने साथ दिया तो पर अभी आज तो आओ भागवान से मनाएं की ये १५ दिन बिना किसी मुसीबत और मुश्किल के निकल जाएँ क्योंकि देश मुश्किल में होगा तो हम भी होंगे.कम से कम १५ दिन के लिए तो एक सकारात्मक सोच रखें

    ReplyDelete
  9. @आदरणीय सतीश जी
    संभव है आप जिस लेख की बात कर रहे हैं मैं भी उसी की बात कर रहा हूँ , तो....

    1. एक पेराग्राफ और कुछ फोटोस के लिए एक लेख बनाना कुछ मुझे कुछ कम समझ में आता है

    2. देखने में वो लेख अगली श्रंखला जैसा है , ना की इसी उदेश्य के लिए बनाया गया


    मीडिया से आप जरूरत के समय कुछ उम्मीद भी रखते हैं जबकि पूरे साल उसका रवैया देखते हैं ??

    अभी कुछ समय पहले मैंने एक पोस्ट बनायी थी मैंने सिर्फ इतना कहना चाहा था की मीडिया को पूरा पक्ष दिखाना चाहिए एक तरफ़ा नहीं

    उस वक्त लोगों का व्यक्ति विशेष के प्रति बिना वजह नफरत मीडिया प्रेम जैसा प्रतीत हो रहा था पर मुझे कोई नाराजगी नहीं है उनसे इस तरह के मीडिया प्रेम पर .......... पूरा पक्ष नहीं दिखने पर ही इस तरह के लेख [एक पेराग्राफ ] का जन्म होता है क्योंकि मानव मन पूर्णता चाहता है
    सबसे बेहतरीन लेख वही है जिसमें एक छोटा सा पेराग्राफ आलोचना का भी हो पर बात फिर मानव मन की शिकायत और संतुलन की चाह पर आ जाती है
    फिर भी मामला व्यक्तिगत होता जा रहा है इसलिए ज्यादा कुछ बोलना उचित नहीं लगता
    पर इतना कहूँगा की आम आदमी के नजरिये से देखें तो इस देश में गन्दगी [एवरेज] सब जगह फैली है
    क्योंकि वो फाइव स्टार होटल में नहीं रुकता

    ReplyDelete
  10. मुझे ये कमेन्ट इसलिए करना पड़ा है क्योंकि मैं उस लेख के पक्ष में हूँ
    अगर मुझे कोई ग़लतफ़हमी हो रही है तो मेरे कमेन्ट को हटाया जा सकता है

    ReplyDelete
  11. सतीश जी आपका आलेख पढ़कर मन कुछ शान्‍त हुआ। विदेश में बसे भारतीयों को भी मौका मिल गया था यह बताने का कि देखों भारतीयों तुम कितने गन्‍दे हो। हम बड़े अच्‍छे हैं कि देश छोड़कर चले आए न‍हीं तो हमें भी इसी नरक में रहना पड़ता। मुश्किल यह है कि हम सत्‍य बात लिख ही नहीं रहे, बस देखा देखी कर रहे हैं। भ्रष्‍टाचार का मुद्दा एकदम अलग है लेकिन अपने ही देश की गन्‍दी तस्‍वीर दिखाना तो सरासर अपराध है।

    ReplyDelete
  12. @ गौरव अग्रवाल ,
    मुझे विश्वास है की मेरा मंतव्य और लेख बिलकुल स्पष्ट है ...खेद है की मुझे आपसे कहना पड़ रहा है की आप यह लेख ध्यान से पढ़ें और बिना किसी पूर्वाग्रह के पढ़ें ! चूंकि यह टिप्पड़ी आपकी है मैं एक बार अपना स्पष्टीकरण देने को विवश हूँ ...
    - मैं किसी भी पार्टी अथवा राजनितिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व नहीं करता न घर में और न बाहर ! लाल कृष्ण अडवानी और मनमोहनसिंह मेरे लिए सामान रूप से आदरणीय राज नेता हैं !
    -भ्रष्टाचार को किसी हाल में माफ़ नहीं करना चाहिए ...
    -न्यूज़ और मीडिया को जिम्मेवार होना चाहिए ...
    -देश की छवि बिगाड़ने में देशवासियों का हाथ नहीं होना चाहिए खास तौर पर जब अन्तराष्ट्रीय स्तर का मामला हो
    - बरसों बाद ऐसे आयोजन बड़े परिश्रम के बाद मिलते हैं और हमें अपनी योग्यता हर कीमत पर सिद्ध करनी चाहिए ...

    ReplyDelete
  13. बहुत सही लिखा आपने . अपने ही लोग बदनाम कररहे है अपनो को

    ReplyDelete
  14. @ आदरणीय सतीश जी

    लिखे गए टेक्स्ट से लोगों की मानसिकता को पहचानने की आपकी क्षमता अद्भुद है

    सबसे पहले बात पूर्वाग्रह की
    तो मैंने अपनी ही दूसरी टिप्पणी में और पहली टिप्पणी के शुरू में पहले ही उसका उत्तर दे दिया था क्योंकि ये मेरा पूर्वाग्रह ही है और इस बात का पूर्वाभास भी की आप इसे पूर्वाग्रह ही समझेंगे इसीलिए ये स्पष्टीकरण था [दूसरी टिप्पणी के रूप में ].. और आपके पास टिप्पणी हटाने का विकल्प भी था [जो मेरे लिए संकेत होता ]
    हाँ लेख ध्यान से पढने की जहां तक बात है उससे थोड़ा दुखी हूँ क्योंकि मैं कुछ लेखकों /लेखिकाओं [जिनमें आप भी शामिल हैं ] का सम्मान करता हूँ अतः उनके जिस लेख से सहमत नहीं होता वो लेख और उससे रिलेटेड सभी लेख २ बार पढ़ लेता हूँ [बजाय इसके की उन जिम्मेदार लेखकों के लेख की हेडिंग देख कर ही कमेन्ट कर दूँ , क्योंकि वो जिम्मेदार लेखक तो है ही ना ] , इसीलिए कुछ चुनिन्दा ब्लोग्स पर मैं नियमित रहता हूँ
    ये सिर्फ मेरी वही पुरानी तकलीफ है की "मैं कमेन्ट में अपनी बात स्पष्ट नहीं कर पाता" ये कमी है , मैं मानता हूँ :(
    फिर भी मेरे लिए इतना बहुत है की आपने उत्तर दिया [संभवतया मैं इस लायक भी नहीं हूँ ] :(
    आपके दिए स्पष्टीकरण के हर बिंदु से सहमत हूँ आपके पास टेक्स्ट [लेखन] में खुद को रिप्रजेंट करने की जो कला है वो शायद मेरे पास नहीं है इसलिए मैं स्पष्टीकरण नहीं दे सकता :(

    ४ बिंदु में बस इतना ही अंतर है की
    "खास तौर पर जब अन्तराष्ट्रीय स्तर का मामला हो " ये मैं अपनी बात में इनक्लूड नहीं करता [बाकी आपके और मेरे विचार एक से हैं ]

    ये हटा कर देखू तो आपका स्पष्टीकरण मेरा स्पष्टीकरण बन जाता है

    ReplyDelete
  15. @ आदरणीय सतीश जी

    लिखे गए टेक्स्ट से लोगों की मानसिकता को पहचानने की आपकी क्षमता अद्भुद है

    सबसे पहले बात पूर्वाग्रह की
    तो मैंने अपनी ही दूसरी टिप्पणी में और पहली टिप्पणी के शुरू में पहले ही उसका उत्तर दे दिया था क्योंकि ये मेरा पूर्वाग्रह ही है और इस बात का पूर्वाभास भी की आप इसे पूर्वाग्रह ही समझेंगे इसीलिए ये स्पष्टीकरण था [दूसरी टिप्पणी के रूप में ].. और आपके पास टिप्पणी हटाने का विकल्प भी था [जो मेरे लिए संकेत होता ]
    हाँ लेख ध्यान से पढने की जहां तक बात है उससे थोड़ा दुखी हूँ क्योंकि मैं कुछ लेखकों /लेखिकाओं [जिनमें आप भी शामिल हैं ] का सम्मान करता हूँ अतः उनके जिस लेख से सहमत नहीं होता वो लेख और उससे रिलेटेड सभी लेख २ बार पढ़ लेता हूँ [बजाय इसके की उन जिम्मेदार लेखकों के लेख की हेडिंग देख कर ही कमेन्ट कर दूँ , क्योंकि वो जिम्मेदार लेखक तो है ही ना ] , इसीलिए कुछ चुनिन्दा ब्लोग्स पर मैं नियमित रहता हूँ

    ReplyDelete
  16. ये सिर्फ मेरी वही पुरानी तकलीफ है की "मैं कमेन्ट में अपनी बात स्पष्ट नहीं कर पाता" ये कमी है , मैं मानता हूँ :(
    फिर भी मेरे लिए इतना बहुत है की आपने उत्तर दिया [संभवतया मैं इस लायक भी नहीं हूँ ] :(
    आपके दिए स्पष्टीकरण के हर बिंदु से सहमत हूँ आपके पास टेक्स्ट [लेखन] में खुद को रिप्रजेंट करने की जो कला है वो शायद मेरे पास नहीं है इसलिए मैं स्पष्टीकरण नहीं दे सकता :(

    ४ बिंदु में बस इतना ही अंतर है की
    "खास तौर पर जब अन्तराष्ट्रीय स्तर का मामला हो " ये मैं अपनी बात में इनक्लूड नहीं करता [बाकी आपके और मेरे विचार एक से हैं ]

    ये हटा कर देखू तो आपका स्पष्टीकरण मेरा स्पष्टीकरण बन जाता है

    ReplyDelete
  17. सतीश भाई

    सर्वप्रथम शुक्रिया, आपने बेहद प्रभावशाली ढंग से भावों को अभिव्यक्त किया है, प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति, आभार !

    उदय

    ReplyDelete
  18. बिलकुल सही लिखा है आपने

    यहाँ भी पधारें:-
    ईदगाह कहानी समीक्षा

    ReplyDelete
  19. सतीशजी
    बहुत आभार ऐसे समय ऐसे ही लेखो की आवश्यकता है जिनसे पढने वालो का भी नजरिया बदले |
    निंदा रस सबको अच्छा लगता है पर जिनको कुछ भी मालूम नहीं वो भी सबकी हाँ में हाँ मिलाकर इस रस का अस्वादन करने लग जाता है |
    आपकी पोस्ट के लिए यही कहूँगी
    ओढ़कर पुराने रिवाजो की जर्जर चादर
    जन्हें दिखाई देता है सिर्फ़ जर्जर समाज |
    सभ्यता और संस्क्रती के नाम पर ,
    थोपते है जो सिर्फ़ खोखले रिवाज |
    जो रहते है आलापते राग पुराने
    क्यो नही गाते नए वो गीत|
    जिन संघर्षो में तपा आज का युवा
    तुम तक उनकी आंच भी न आई |
    बहुमंजिली इमारते ,प्रगति ,
    आत्मनिर्भरता क्यो कर नकारे |
    और कब तक मुड़ कर सिर्फ़
    कुतुब मीनार निहारे |

    ReplyDelete
  20. सतीश भाई , आपकी बातों से अक्षरश : सहमत हूँ । मिडिया को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए । देश की प्रतिष्ठा को इस तरह सरे आम लज्जित नहीं करना चाहिए ।
    खेलों का आयोजन हमारा अपना फैसला है और इसे पूरा करके दिखाना है ।
    पूरा होगा , मुझे पूरा विश्वास है ।
    विकास की जो आंधी आई है , इसे जारी भी रखना है ।

    ReplyDelete
  21. उम्दा व जरूरी आलेख।
    राष्ट्रिय महत्व के इस कुंभ में भी मीडिया पीपली लाइव की तरह रोचकता ढूंढती है तो दुःख होता है।

    ReplyDelete
  22. देश की इज्जत जाये या बचे. आप लोग असली बात काहे नही समझते भाई? जरा इस लिंक पर जाकर देखें कि असली माजरा क्या था? माल मलाई का मामला हो तो देश समाज ये कहां लगता है? समझा करो भाई लोगो.:)

    रामराम.

    ReplyDelete
  23. "भारतीय मीडिया को सकारात्मक रोल अदा करना चाहिए" --सीधी,सच्ची, और सही बात । सिर्फ़ "हमेशा" लिखा जा सकता था, मेरी ओर से... आभार..

    ReplyDelete
  24. आदरणीय सर जी!

    आप के सदभाव के कायल हो गये।
    उम्मीद करते हैं कि आपके जज़्बे को सभी मीडिया जगत और ब्लोग जगत के लोग अब गम्भीरता से लेंगें। हम भी आपसे और मणिशंकर अय्यर जी से सीख लेकर इस विषय पर चुप हो जाते हैं।

    लेकिन आप भी वायदा करों कि इन खेलो में हुये " तथाकथित या कथित" भ्रष्टाचार पर निर्ममता से चोट करने के लिये आप 15 अक्टूबर के बाद कई पोस्ट लिखेंगें। इस देश की छवि सुधारने में हमेशा कि तरह आपका महती सहयोग हम सभी को प्रेरणा देता है।

    मीडिया साल के बाकी दिनों में भी देश की कोई बहुत अच्छी तसवीर पेश नहीं करता है, उसके खिलाफ भी एक मुहिम की ज़रुरत शिद्दत से महसूस आप भी करते ही होंगें।
    साधुवाद! इस प्रेरणादायक पोस्ट के लिये!

    ReplyDelete
  25. अब बन्दर बाँट अपने ही अपनों को दे और मीडियो को उससे दूर रखे तो यही होगा ना !!
    ये सारा लफड़ा मलाई न मिलने के चलते लग रहा है !

    ReplyDelete
  26. जो भला स्वयं का सम्मान करना नहीं जानता, तो वो दुनिया जहाँ से सम्मान की उम्मीद भला रखे भी तो किस बिनाह पर....

    ReplyDelete
  27. @ संवेदना के स्वर !
    आपके व्यंग्य का मैं कायल हो गया मगर मैं व्यंग्य करने पर कभी यकीन नहीं करता न ही आपसे कोई ऐसी बात कहना चाहता हूँ जिससे आपका दिल दुखे ! जहाँ तक किसी की सलाह से और किसी को खुश करने के लिए पोस्ट लिखने की बात है तो आज तक यह काम नहीं किया और अंतिम समय तक करूंगा भी नहीं !
    जब मन कुछ लिखने का करता है सिर्फ तभी लिखता हूँ ! मुझे आपकी पोस्ट से मेरे स्वाभाव के प्रति भ्रम टूटता सा लग रहा है ! मेरा यह दृढ विश्वास है कि एक बार अविश्वास के बाद उस व्यक्ति का सम्मान नहीं करना चाहिए, कृपया उचित प्रायश्चित्त करें और भविष्य में मुझे पढ़ कर अपना समय नष्ट न करें , यहाँ बेहतरीन विद्वान् कार्यरत हैं !
    हार्दिक शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  28. लोग अपने अपनों की छोटी-मोटी ग़लतियों को दूसरों के सामने उजागर नही करते बल्कि कोशिश करते है आगे से ग़लती ना हो पर हमारे देश के लोग ऐसे ही है दूसरे तो मज़े लेते ही है साथ ही साथ खुद भी अपनों की ग़लतियों पर हँसते है और सुधार के बारे में कोई नही सोचता है....बड़ी मुश्किल का दौर आ गया है...बहुत सटीक बात कही आपने आपके लेखनी के हम हमेशा कायल रहे है...प्रणाम

    ReplyDelete
  29. आदरणीय सर जी,
    हम तो आप जैसे सहृदय व्यक्ति से यही प्रार्थना कर सकते हैं कि कृपया हमारी टिप्पणी को व्यंग्य नहीं सत्य जानें. कॉमनवेल्थ खेलों के भ्रष्टाचार के विरुद्ध लिखने के लिये भी आपसे प्रार्थना इसी कारण है ताकि अनुभवी अभियंता होने के कारण, आप इन घोटालों को (यदि वे घोटाले हैं तो) ज़्यादा बेहतर समझ सकते हैं. लेकिन यदि देशहित में ऐसा करना उचित ना हो तो फिर कोई आग्रह भी नहीं.
    पुनश्चः सर जी, आप देखेंगे, हम इन खेलों के विषय में अब 15 अक्तूबर तक कुछ भी नहीं लिखेंगे. प्लीज़ सर जी! यह व्यंग्य नहीं है!!

    ReplyDelete
  30. संयोग से मैंने वो आलेख नहीं पढ़ा जिसका आपने ज़िक्र किया है, परन्तु आपका आलेख पढ़ कर और तमाम टिप्पणियों को बाँच कर जो समझ पाया हूँ उसके आधार पर मैं सिर्फ़ इतना कहूँगा की आपने सही कहा और सही तरीके से कहा .

    धन्यवाद

    www.albelakhatri.com पर पंजीकरण चालू है,

    आपको अनुरोध सहित सादर आमन्त्रण है

    -अलबेला खत्री

    ReplyDelete
  31. खुन्नस निकालने / पगड़ी उछालने और आत्मालोचन में बहुत बारीक सा अंतर है !

    आप केवल सकारात्मक पक्ष और वे केवल नकारात्मक पर फोकस करें तो इसमें असत्य कहां है ? पर जब तक आप सकारात्मकता और नकारात्मकता पर एक साथ फोकस नहीं करेंगे तब तक आप दोनों के सच अधूरे ज़रूर हैं !

    सच को स्वीकार करने में शर्म कैसी ? बशर्ते सच पूरा हो !

    ReplyDelete
  32. मैं सहमत हूँ अली भाई !
    अपने घर की कमियां देखनी चाहिए बल्कि उनका बारीकी से विवेचन भी होना चाहिए मगर हमारे बड़ों ने कहा है की समय, स्थान और परिस्थितियों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक होता है ! रंजिश और खुन्नस के साथ तो आप किसी के साथ न्याय नहीं कर पायेंगे

    ReplyDelete
  33. गंभीर चिंतन का विषय है सतीश जी, एक-एक बात सही कही है आपने. कौन रोकता है, सच्चाई पर लड़ने से? कौन रोकता है भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने से? लेकिन अपने घर का मसला खुद सुलझाने की जगह, जब मेहमान घर पर है तो हम उनका स्वागत करने की जगह राजनीतिक दलों की राजनीति में आकर एक-दुसरे पर कीचड उछालने में लगे हैं. बहुत समय है इन सब बातों के लिए.



    ज़रा यहाँ भी नज़र घुमाएं!
    राष्ट्रमंडल खेल

    ReplyDelete
  34. सतीश जी,
    आपकी बात सही है, ये वक्त मिलकर स्वागत करने का है न की देश की पगड़ी उछलने का

    पगड़ी उछलने वाले हमेशा से ही रहे हैं ओर काम करने वालों ने देश न नाम रोशन फिर भी किया है क्योकि काम का वजन ज्यादा होता है ओर काम चोरों का कम.

    राष्ट्रमंडल खेलों के स्थल की तस्वीरें

    ReplyDelete
  35. एक निवेदन !
    आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !

    - सतीश सक्सेना

    कृपया उचित प्रायश्चित्त करें और भविष्य में मुझे पढ़ कर अपना समय नष्ट न करें , यहाँ बेहतरीन विद्वान् कार्यरत हैं !
    हार्दिक शुभकामनायें !

    - सतीश सक्सेना

    ReplyDelete
  36. @ मनोज भारती ,

    अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की स्थिति को कमजोर बनाने का प्रयास बरसों से हो रहा है और हमारे कुछ पडोसी देश किसी भी मंच पर हमें नीचा दिखाने का कोई प्रयास नहीं छोड़ते! अन्तराष्ट्रीय खेलों का आयोजन भारत में हों इसका प्रयास हमारा देश बरसों से कर रहा है २८ वर्षों के बाद पहली बार कोई बड़ा आयोजन हमारे देश में हो रहा है ! हजारों विदेशियों के सामने हम अपना मज़ाक खुद न बनाएं इसका प्रयत्न होना चाहिए !

    चैतन्य और सलिल मेरे सबसे अच्छे मित्रों में से एक हैं, और यह वे लोग हैं, जिनका ब्लाग जगत में निरंतर बना रहना बेहद आवश्यक हैं , सजगता, बुद्धिमत्ता और चैतन्यता में इनकी गिनती अग्रजों में होती है और मैं इनके लिए अपने दिल से सम्मान और स्नेह करता हूँ ! हम दोनों मित्र बेहद संवेदशील भी हैं !

    यहाँ एक से एक विद्वान् कार्य कर रहे हैं मैंने उन्हें अपने से अच्छे पढने की सलाह दी है ! इससे अधिक स्पष्टीकरण इस विषय पर जिसमें मेरी भावनाएं भी जुडी हैं ,मुझसे नहीं हो पायेगा आशा है संकीर्ण समझ क्षमा कर पाएंगे !

    ReplyDelete
  37. मीडिया एक धंधा है - जो गन्दा भी है :(

    ReplyDelete
  38. कितना आसान है किसी अच्छे कार्य में बुराई निकलना
    सच कहा ।

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,