भौतिक सुविधाओं के हम किस कदर गुलाम हैं कि शायद कभी सोंचते ही नहीं कि अभी कितनी साँसे और बाकी है ?? बस याद रहता है कि मरते मरते भी कुछ सुविधाएँ और लूट लें और यह साधन जुटाने के लिए जितना गिरना पड़े .....गिरने को तैयार रहते हैं !
...एक पल भी नहीं सोंचते हैं कि कोई है जो हमें देख रहा है !
...एक पल भी नहीं सोंचते कि उसके दरवार में माफ़ी नहीं
...सजा यहीं मिलेगी !!
काश ऐसे लोग न मिलते .....