यह याद कहाँ की आई है !
लगता है कोई चुपके से
दस्तक दे रहा चेतना की
वे भूले दिन बिसरी यादें ,
क्यों मुझे चुभें शूलों जैसी !
क्यों मुझे चुभें शूलों जैसी !
लगता कोई अपराध मुझे, है याद दिलाये करमों की !
रजनीगंधा सी सुन्दरता
फूलों की गंध उठे ऐसे
उन भूली बिसरी यादों से
ये गीत सजे अरमानों के
मैं कभी सोचता क्यों मुझको,
संतोष, नहीं है जीवन में !
संतोष, नहीं है जीवन में !
यह क्यों उठती अतृप्त भूख, सूनापन सा इस जीवन में !
लगता है, जैसे इंगित कर
है ,मुझको याद करे कोई !
लगता ,कोई हर समय मेरी
भूलों पर , रोता है जैसे !
वे कोई भरी भरी आँखें ,
यादों से जुड़ी हुई ऐसे !
यादों से जुड़ी हुई ऐसे !
दिल में कैसा भी दर्द उठे, सम्मुख जीवित होती आँखें !
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