उस दिन खूब सोच के आये , घंटों बातें करनी थीं !
तुम्हें देख कर भूल गये हम, जो भी बातें करनी थी !
दिया आँख ने धोखा उस दिन, सारे बंधन टूट गये
कितने बार पिये थे आंसू, कभी तो गंगा बहनी थी ,!
कितने बार पिये थे आंसू, कभी तो गंगा बहनी थी ,!
कितने दिन से सोच रखा था जब भी तुमको देखेंगे !
कुछ अपनी बतलानी थी कुछ तुमसे बातें सुननी थीं
जब जब हमने कहना चाहा दुनियां के व्यवधानों से
मुंह पर मेरे ताला था , और बेड़ी तुमने पहनी थी !
वाह
ReplyDeleteकितने जीवन बीते हैं ऐसे कशमकश में !....कितनी छुपी कहानी हैं ।
ReplyDeleteभावों के उद्वेलन को बखूबी व्यक्त करती बहुत ही लाजवाब रचना ।
मार्मिक रचना
ReplyDeleteबहुत खूब !! लाजवाब भावाभिव्यक्ति जो पाठक को पढ़ते हुए अपनी सी लगती है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteWelcome to my new post....
वाह वाह वाह बेहतरीन
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण सृजन
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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