क्यों खुद से बातें करते हो
ऐसी भी क्यों बेरुखी रहे
गैरों सी, बाते करते हो !
इस बार पकड़ना हाथ जरा
मजबूती से, साथी मेरे !
घनघोर अँधेरी रात मध्य मैं चाँद को लाने निकला हूँ !
इस बार पकड़ना हाथ जरा
मजबूती से, साथी मेरे !
घनघोर अँधेरी रात मध्य मैं चाँद को लाने निकला हूँ !
रास्ता दुष्कर,बाधा अनगिन
विधि ने साँसे, दी गिनी हुई ,
अंजलि भर जल से क्या होगा
प्यासे की सांसें, छिनी हुई !
चुक जाए समय,अजमाने में,
ऑंखें खोलो, विश्वास रहे !
मंजिल है कोसों दूर मेरी, संजीवनि लाने निकला हूँ !
हर कष्ट सहा तुमने मेरा ,
हर रोज विदाई दी हंसकर
कष्टों में सारी रात जगीं ,
मेरे गीत सुनाये गा गाकर
विधि ने साँसे, दी गिनी हुई ,
अंजलि भर जल से क्या होगा
प्यासे की सांसें, छिनी हुई !
चुक जाए समय,अजमाने में,
ऑंखें खोलो, विश्वास रहे !
मंजिल है कोसों दूर मेरी, संजीवनि लाने निकला हूँ !
हर कष्ट सहा तुमने मेरा ,
हर रोज विदाई दी हंसकर
कष्टों में सारी रात जगीं ,
मेरे गीत सुनाये गा गाकर
मेरे दर्दीले जीवन का ,
हर गीत तुम्हारे नाम हुआ !
हर गीत तुम्हारे नाम हुआ !
अगले जन्मों में साथ रहे,नटराज मनाने निकला हूँ !
क्यों सृष्टि का उपहास करें ,
क्यों न जीवन से प्यार करें
आओ जीवन में रंग भरें ,
नीरसता को रंगीन करें !
तबले में कोई ताल नहीं,
मैं धनक उठाने निकला हूँ !
वीणा के टूटे तारों से , झंकार जगाने निकला हूँ !मैं धनक उठाने निकला हूँ !
मंजिल है कोसों दूर अभी , सन्जीवनि लाने निकला हूँ !
ReplyDeleteबहुत सुंदर मन के भाव ...!!
शुभकामनायें ....!!
वाह............
ReplyDeleteचुक जाए समय लड़ते लड़ते,गर आँख न खोल सकीं साथी
मंजिल है कोसों दूर अभी , सन्जीवनी लाने निकला हूँ !
बहुत सुंदर रचना.....
सादर.
शब्दों का चयन अनोखा है, भावो की सरिता बह निकली |
ReplyDeleteजब प्रियतम मुझे पुकार रहा, घर में मंदिर की कह निकली |
कुछ प्यास बुझाने के साधन, कुछ थाल में रख कर फल लाइ
इक प्रेम डोर लेकर आई, प्रिय दारुण दुःख सह सह निकली ||
वाह रविकर जी ......
Deleteमुक्तावली ...
शुभकामनायें
1) अंजलि में जल रुक पाए कहाँ
Deleteप्यासे की सांसें = कुछ प्यास बुझाने के साधन
2)निकला हूँ = सरिता बह निकली
3)वीणा के टूटे तारों से = इक प्रेम डोर लेकर आई
4)मेरे दर्दीले जीवन का हर गीत = प्रिय दारुण दुःख सह सह
5) वरदान प्रभु का पाने को,
रास्ता आसान बनाने को = कुछ थाल में रख कर फल लाइ
दिल वालों की भाषा के लिए आभार भाई जी....
Deletewah.....kitna sunder likhe hai.
ReplyDeleteमेरे दर्दीले जीवन का हर गीत तुम्हारे नाम हुआ !
ReplyDeleteवीणा के टूटे तारों से , झंकार जगाने निकला हूँ !waah badi acchi koshish .....jari rakhen safalta jarur milegi.....
शुक्रिया डॉ निशा ,
Deleteप्रयत्न बना रहेगा .....
हम तो सोच रहे थे कि आपको सफलता मिल चुकी है :)
Deleteबहरहाल कविता छोडिये एक्टिंग वगैरह में हाथ आजमाइए ! फोटो बहुतै ज़बर खिंचाए हैं !
Deletekhoob......jago bharat jago
ReplyDeleteमेरे दर्दीले जीवन का हर गीत तुम्हारे नाम हुआ !
ReplyDeleteवीणा के टूटे तारों से , झंकार जगाने निकला हूँ !
बहुत सुन्दर रचना...आभार!
आपका स्वागत है ....
Deleteवरदान प्रभु का पाने को,
ReplyDeleteरास्ता आसान बनाने को
है , मुझे जरूरत बस तेरी ,
जीवनभर साथ निभाने को
मेरे दर्दीले जीवन का हर गीत तुम्हारे नाम हुआ !
वीणा के टूटे तारों से , झंकार जगाने निकला हूँ !
कुछ कहते नहीं बन रहा है निशब्द हूँ ......
मैं भी ...
Deleteकिसी और कारण ...
वरदान प्रभु का पाने को,
ReplyDeleteरास्ता आसान बनाने को
है , मुझे जरूरत बस तेरी ,
जीवनभर साथ निभाने को
मेरे दर्दीले जीवन का हर गीत तुम्हारे नाम हुआ !
वीणा के टूटे तारों से , झंकार जगाने निकला हूँ !
कुछ कहते नहीं बन रहा है निशब्द हूँ ......
वरदान प्रभु का पाने को,
ReplyDeleteरास्ता आसान बनाने को
है , मुझे जरूरत बस तेरी ,
जीवनभर साथ निभाने को
sundar,badhai
वरदान प्रभु का पाने को,
ReplyDeleteरास्ता आसान बनाने को
है , मुझे जरूरत बस तेरी ,
जीवनभर साथ निभाने को
वाह ... बेमिसाल रचना है ... कितनी आशावादी .. प्रेरणा का पुट लिए ... बधाई इस रचना के लिए सतीश जी ...
वरदान प्रभु का पाने को,
ReplyDeleteरास्ता आसान बनाने को
है , मुझे जरूरत बस तेरी ,
जीवनभर साथ निभाने
so soft sweet and heart touching lines .
घनघोर तमस और तूफानों के बीच अपेक्षा और आशा का दिया!!
ReplyDeleteवरदान प्रभु का पाने को,
ReplyDeleteरास्ता आसान बनाने को
है , मुझे जरूरत बस तेरी ,
जीवनभर साथ निभाने को
मेरे दर्दीले जीवन का हर गीत तुम्हारे नाम हुआ !
वीणा के टूटे तारों से , झंकार जगाने निकला हूँ !
.... तुझको पाया है अब तक , तुझे ही पाने निकला हूँ
बहुत सुन्दर भाव समन्वय्।
ReplyDeleteवरदान प्रभु का पाने को,
ReplyDeleteरास्ता आसान बनाने को
है , मुझे जरूरत बस तेरी ,
जीवनभर साथ निभाने को
मेरे दर्दीले जीवन का हर गीत तुम्हारे नाम हुआ !
वीणा के टूटे तारों से , झंकार जगाने निकला हूँ !
आपकी कविता हमेशा की तरह शानदार है, लेकिन मुझे इसके साथ लगी फोटो ने थोड़ा कन्फ्यूज़ किया...बड़ा करने पर साफ हुआ कि पीछे कोई खंभा है...वरना मैं तो समझा था कि सतीश भाई माथे पर ये क्या रखकर कैसा संतुलन साध रहे हैं...
जय हिंद...
रास्ता दुष्कर,बाधा अनगिन
ReplyDeleteविधि ने साँसे दी गिनी हुई ,
अंजलि में जल रुक पाए कहाँ
प्यासे की सांसें गिनी हुई !
वाह बहुत ही सुंदर भाव संयोजन से सजी उत्कृष्ट रचना शुभकामनायें आपको,
समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
दिल से निकला गीत...
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteझंकार गूंज रही है..
ReplyDeleteगीत अच्छा है। पर हमें प्रभु का वरदान नहीं चाहिए।
ReplyDeleteनहिं कोउ अस जनमा जग माहीं प्रभुता पाई जाहि मद नाहीं
मेरे दर्दीले जीवन का हर गीत तुम्हारे नाम हुआ !
ReplyDeleteवीणा के टूटे तारों से , झंकार जगाने निकला हूँ !
bahut khoob sir
है प्रेम उत्स जीवन का ग़र,सर्वस्व समर्पित इसको हो
ReplyDeleteहै मिला जिसे,वह पार हुआ,ले प्रभु का आशीर्वाद अहो!
बहुत खूब कुमार राधारमण ...
Deleteआभार आपका !
ठीक ठाक रहा इस बार का गीत।
ReplyDeleteसही कहा ....
Deleteअब एक बार फिर पढ़िए :-))
मेरे दर्दीले जीवन का हर गीत तुम्हारे नाम हुआ !
ReplyDeleteवीणा के टूटे तारों से , झंकार जगाने निकला हूँ !
जीवन के कठिन क्षणों में ईश्वर,तुझे आजमाने निकला हूँ...
अद्भुत कविता, आपकी स्पष्ट छाप दिख रही है कविता में।
ReplyDeleteचुक जाए समय, आजमाने में, ऑंखें खोलो, विश्वास रहे !
ReplyDeleteसुंदर और दमदार रचना
वाह! बेमिसाल, आशावादी, दिल से निकला गीत...
ReplyDeleteइस दुनियावी-बियावान में
ReplyDeleteसंकल्प लिए मैं आया हूँ,
'जीवन-पथ में बढते रहना'
काँटों पर चलकर आया हूँ !
...प्रेरणा और उत्साह से लबरेज रचना !
इस गीत को पढ़कर उल्टे-पुल्टे खयाल आ रहे हैं। क्षमाप्रार्थी हूँ अन्यथा न लें। ये मेरे पागल मन के बकवास खयाल हैं लेकिन आ रहे हैं सो अभिव्यक्त करने से खुद को रोक भी नहीं पा रहा हूँ....
ReplyDeleteपहला बंद पढ़कर मुझे छात्र जीवन की याद हो आई जब दो मित्र मजबूती से हाथ पकड़कर चाँद की तलाश में भटकते थे....
इस बार पकड़ना हाथ जरा, मजबूती से साथी मेरे !
घनघोर अँधेरी रात मध्य मैं चाँद को लाने निकला हूँ !
दूसरा बंद पढ़कर लगा कि चाँद जिसके नूर से रोशन होता है उस सूरज ने दोनो मित्रों को ठोंक बजा कर घायल कर दिया और उनमे से एक, मृत प्रायः मित्र को जिलाने के लिए संजीवनी लाने के लिए निकल पड़ा है....
चुक जाए समय, आजमाने में, ऑंखें खोलो, विश्वास रहे !
मंजिल है कोसों दूर अभी, संजीवनि लाने निकला हूँ !
तीसरा बंद पढ़कर लगा...
अब घायल मित्र स्वस्थ हो चुका है लेकिन पिटने की याद अभी ताजा है। प्रेम में दीवाना हो अकेले ही निकल पड़ा है चाँद के प्रेम में.....
मेरे दर्दीले जीवन का हर गीत, तुम्हारे नाम हुआ !
वीणा के टूटे तारों से , झंकार जगाने निकला हूँ !
कमाल का प्रेम गीत है! छात्र जीवन में ही लिखा हुआ लगता है मगर फोटू तो अभी का है !! कुछ कनफ्यूजिया गया हूँ:)
गीत में आपकी सकारात्मक सोच साफ झलक रही है ।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ।
हर कष्ट सहा तुमने मेरा
ReplyDeleteहर रोज विदाई दी हंसकर
कष्टों में सारी रात जगीं ,
मेरे गीत सुनाये गा गाकर
मेरे दर्दीले जीवन का हर गीत, तुम्हारे नाम हुआ !
वीणा के टूटे तारों से , झंकार जगाने निकला हूँ !
बहुत जोश दिलाता गीत...
सार्थक रचना !
ReplyDeleteदर्द तो है, मगर कभी टीस भी खुशी देती है और कभी खुशी भी टीसती है। शुभकामनायें!
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