Friday, July 25, 2014

मुझको सदियों से रुलाता है कोई - सतीश सक्सेना

मुझको रातों में ,रुलाता है कोई,
रोज आकर,थपथपाता है,कोई !

करवटें , रोज़  बदलता  पाकर ,
हाथ बालों में, फिराता है कोई !

जब कभी दर्द में झपकी न लगे
नींद को, लोरी सुनाता है कोई !

जब कभी आँख भर आयी, तभी 
हिम्मतें मुझको दिलाता है कोई 

जब भी मैंने रूठ कर खाया नहीं 
एक कौरा,मुंह में दे जाता कोई !

एक बच्चे से, न जाने क्या हुआ
पूरे जीवन , रूठ जाता है कोई !

Saturday, July 19, 2014

दरवाजे पर कौन खड़ा है,इतनी रात बधाई को ! - सतीश सक्सेना

अदब कायदा रखिए भाई,देख कुएं औ खाई को
गिरना है, वो गिर के रहेगा, देगा दोष खुदाई को ! 

सारे फ़र्ज़ निभाए हमने, अब जाने का वक्त हुआ !   
दरवाजे पर कौन खड़ा है, इतनी रात बधाई को !

घर मे कीचड़ से खेले हो, गर्वीले दिन भूल गए,     
आसानी से दाग़ न जाएँ , करते रहो पुताई को !

लेना देना, रस्म रिवाजों से ही , घर का नाश करें 
बहू तो कब से इंतज़ार में बैठी मुंह दिखलाई को !

प्रतिरोपण के लिए वृक्ष की कोमल शाखा दूर हुई, 
बरगद की  झुर्रियां बताएं , कैसे सहा विदाई को !

Wednesday, July 16, 2014

अब आया हूँ दरवाजे पर,तो विदा करा कर जाऊँगा ! - सतीश सक्सेना

जाने से पहले दुनियां को,कुछ गीत सुनाकर जाऊंगा !
अनुराग समर्पण निष्ठा का सम्मान बढ़ाकर जाऊंगा ! 

श्री हीन हुए स्वर,गीतों के , झंकार उठाकर जाऊंगा !   
अनजाने कवियों के पथ में,ये फूल चढ़ाकर जाऊंगा !

निष्कपट आस्था श्रद्धा का अपमान न हों,बाबाओं से  
स्मरण कबीरा का करके,शीशा दिखलाकर जाऊँगा !

लाचार वृद्ध,अंधे,गूंगे, पशु, पक्षी की तकलीफों को !
लयबद्ध उपेक्षित छंदों में,सम्मान दिलाकर जाऊँगा !

कुछ वादे करके निकला हूँ अपने दिल की गहराई से
अब आया हूँ दरवाजे पर,तो विदा कराकर जाऊँगा !

Saturday, July 12, 2014

हमें तुम्हारी, लिखते पढ़ते , जानी कब परवाह रही है -सतीश सक्सेना

धूर्त काल के अन्धकार में ,  
हम प्रकाश ले आने वाले 

तुम गीतों के सौदागर हो
हम निर्भय हो गाने वाले !
हमको कब तुम उस्तादों की 
जीवन में परवाह,  रही है !
रचनाएं, कवियों की जग में, इकबालिया गवाह रही हैं !

सबक सिखाने की मस्ती में 
शायद, सांसें भूल गये हो !
चंद दिनों की मस्ती में ही ,
शायद मरघट भूल गए हो ! 
स्वाभिमान को पाठ पढ़ाने 
चेष्टा बड़ी , अदाह रही है !
तुम पर कलम उठाने , अपनी इच्छा बड़ी अथाह रही है !

अरे ! तुम्हारा चेला  कैसे 
तुम्हें भूलकर पदवी पाया
तुम गद्दी को रहे सम्हाले 
औ वो पद्म विभूषण पाया  !
कोई सूर बना गिरिधर का, 
कोई मीरा, रंगदार रही है !
हंस, हंस खूब तमाशा देखें , जानी कब परवाह रही है !

सबके तुमने पाँव पकड़ कर
गुरु के सम्मुख बैठ, लेटकर  
कवि सम्मेलन में बजवाकर
दांत निपोरे, हुक्का भरकर 
तितली फूल फूल इठलाकर  
करती खूब धमाल रही है !
सूर्यमुखी में महक कहाँ की ? दुनिया में  अफवाह रही है !

बड़े, बड़े मार्तण्ड कलम के
जो न झुकेगा उसे मिटा दो 
जीवन भर जो पाँव दबाये 
उसको पद्मश्री दिलवा दो !
बड़े बड़े विद्वान उपेक्षित , 
चमचों पर रसधार बही है !
अहमतुष्टि के लिए समर्पित, चेतन मुक्त प्रवाह बही है !

गुरुवर तेज बनाये रखना 
चेलों के गुण गाये रखना !
भावभंगिमाओं के बल पर 
खुद को कवि बनाये रखना !
समय आ गया भांड गवैय्यों 
को, हिंदी पहचान रही है !
जितनी सेवा जिसने कर ली, उतनी ही तनख्वाह रही है !

Thursday, July 10, 2014

कैसे कैसे लोग भी, गंगा नहाये इन दिनों ! ! -सतीश सक्सेना

अनपढ़ों के वोट से , बरसीं घटायें  इन दिनों !
साधू सन्यासी भी आ मूरख बनायें इन दिनों !

झूठ, मक्कारी, मदारी और धन के जोर पर ,
कैसे कैसे लोग भी , गंगा  नहाये इन दिनों !

सैकड़ों बलवान चुनकर , राजधानी आ गए !
आप संसद के लिए, आंसू बहायें इन दिनों !

देखते ही देखते सरदार को , रुखसत किया ,
बंदरों ने सीख लीं कितनी कलायें इन दिनों !

ये वही नाला है जमुना नाम था,जिसके लिए, 
साफ़ करने के लिए,चलती हवायें इन दिनों !

Friday, July 4, 2014

अल्लाह हर बशर को, रमज़ान मुबारक हो - सतीश सक्सेना

अल्लाह हर बशर को, रमज़ान मुबारक हो
सब को इबादतों का, अरमान मुबारक हो !


माता पिता को रखना ताउम्र प्यार से तुम !
अल्लाह का दिया ये , अहसान मुबारक हो ! 


इन रहमतों के क़र्ज़े , कैसे  अदा  करोगे ?
माँ-बाप का ये प्यारा दालान मुबारक हो !


रहमत के माह में तो कुछ काम नेक कर ले
जो दे सवाब तुम को रहमान , मुबारक हो !


मुझ को मेरे ख़ुदाया तू राहे हक़ पे रखना
तेरा अता किया  , ये ईमान मुबारक हो !

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