पाश्चात्य प्रेम का अनुकरण बड़े उत्साह के साथ करते हम लोग , आज अपने स्वाभाविक प्यार की शक्ति को, लगभग भूलते से जा रहे हैं ! अपने प्यारों को समझने और उसे अहसास करने के लिए समय ही नहीं मिलता !
अहंकार, जिसे अक्सर हम स्वाभिमान का नाम दे देते हैं, में डूबे हम लोग, अकसर अपनों से कड़वा बोलते, यह ध्यान नहीं कर पाते कि बरछी जैसे वाक्यों से, हम अपने प्यारों का दिल ही छलनी कर रहे हैं ! इस आहत दिल को देख ,पास पड़ोस के परिजन भी, मलहम लगाने की जगह, अक्सर नमक छिडकते देखे जाते हैं ! और इन ईर्ष्यालु मित्रों की बदौलत, इस आग को और भड़कने का मौका मिलता है !
इससे बेहतर तो यह होता कि अपने दिल के ज़ख्म दिखाए ही न जाएँ , शायद समय के साथ भर जाते ! एक बार सुज्ञ जी ने यह शेर, मुझे भेजा था , आज भी भुला नहीं पाया हूँ ...
क्यों दिखाते हो गहरे ज़ख्म, अपने सीने के !
लोग मुट्ठी में अक्सर , नमक लिए फिरते हैं !
याद है, एक शब्द हमारी भाषा में बहुत प्रचलित था " मनुहार " ! अक्सर हम इस शब्द का उपयोग अपने बड़ों को या उन्हें, जिन्हें देख हमारे चेहरे खिल जाते थे, को मनाने में उपयोग करते थे ! मान सम्मान के साथ, जब भी मनुहार की जाती थी, उस समय कठोर वज्र समान दिल को भी, पिघलते देर नहीं लगती थी ! मगर आज कोई मान मनुहार नहीं करता , पहले से ही, हीन ग्रंथियों से जकड़ा कमजोर मन , मान मनुहार को, दासत्व का नाम देने में, बिलकुल नहीं हिचकता !
और जुड़ने की इच्छा लिए, हम लोग और दूर होते चले जाते हैं !
सही कहा है गुरुदेव!! मनुहार बड़ा छोटा शब्द है, मगर इतने माधूर्य को समेटे है कि बस हृदय से अनुभव ही किया जा सकता है.. सचमुच लुप्त हो गई है यह मनुहार की परम्परा भी!!
ReplyDeleteसच लिखा आपने। पर आजकल मनुहार कौन करता है मान मनौव्वल मनुहार का अपना अलग ही मजा होता था ।
ReplyDeleteसतीश भाई, अपन तो आज भी करते हैं। कभी आजमा लीजिए।
ReplyDelete*
मुझे लगता है यह शब्द मन हारने से बना होगा। पर आजकल मन हारता कौन है,सब तो जीतने में लगे रहते हैं। फिर मनुहार कौन करे।
सही कहा आपने।
ReplyDeleteयह दौर मान मनुहार का नहीं रहा।
तू शेर तो मैं सवासेर।
यही चल रहा है दुनिया में।
अच्छी और मनन करने योग्य पोस्ट।
शुभकामनाएं आपको।
क्यों दिखाते हो दोस्त अपने दिल के जख्मों को लोग मुट्ठी में अक्सर , नमक लिए फिरते हैं !
ReplyDelete.
विवाह से पूर्व लड़की से राय अवश्य लें. Womens Day special
मनुहार का अपना महत्व है....
ReplyDeleteक्यों दिखाते हो दोस्त अपने दिल के जख्मों को
लोग मुट्ठी में अक्सर , नमक लिए फिरते हैं !
वाह!
एक बढ़िया चिन्तन!
बातें किसी विशेष संदर्भ और खास मनोदशा से आई जान पड़ती है, एकतरफा सी. (चुपके से- और अगर आपको समाज में मान-मनुहार नहीं दिख पा रहा है, तो ब्लॉग पर टिप्पणी और पोस्ट की मनुहार कम है क्या)
ReplyDeleteजब गुस्से में शब्दों की बरछी चल जाय तो मनुहार के अलावा कोई दूसरा मरहम दिल को टूटने से बचा नहीं सकता। मन हारे बिना मन जीता नहीं जा सकता।
ReplyDeleteएक मानिनी हैं गुमान किये बैठीं हैं सदियाँ बीत गयीं नहीं मानतीं -अब कैसे मनुहार की जाय -आप भी नए पुराने दर्द को हारा करते रहते हैं -कोई सफल मनुहार करने के गुर बताये तो बात भी बने -कम से कम यही बताया होता महराज !
ReplyDeleteसवतिया(सौत ) को लाना भी मंजूर बस मिलाना ही जुलुम हो गया -बाद में सवतिया भी खिसक ली ...
कोई बात नहीं ... दुनिया भले बदल जाय ... प्यार मुहब्बत ज़रूर रहेगा ... आप चिंता न करें ... अब मान भी जाइए !
ReplyDeletesach kaha aapne
ReplyDeleteचलो आज कुछ नया हो जाए
ReplyDeleteकिसी रूठे हुए को मनाया जाए ।
लेकिन किस को ?
सबसे पहले आपकी बात सही नहीं है कि आजकल मान-मनुहार की परम्परा खतम हो गयी है। रोज पचासों किस्से मैं देखता हूं अपने आसपास। लोग रूठते हैं, मनाते हैं धड़ल्ले से अपने मित्रों से, घर-परिवार में, दफ़्तर में,सड़क पर, कारखाने में, इधर-उधर न जाने किधर-किधर।
ReplyDeleteमानवीय संवेदनाओं के प्रकट करने के तरीके बदल रहे हैं। जहां समय कम है तो लोग जल्दी-जल्दी में रूठने-मनाने का काम करते होगे। जहां समय इफ़रात है वहां लोग तसल्ली से यह काम करते होंगे।
आपको भी पता होगा कि मनुहार के साथ ही जुड़ा शब्द है मनौना। जब कोई ज्यादा मनौना करवाने लगता है तो मनुहार करने वाले का हौसला कमजोर पड़ता है। फ़िर लोग इस गली में आने से हिचकने लगते होंगे। सूत्र रूप में इसे इस तरह समझा जाये:
१. मनौना < मनुहार (मामला पट जाता है)
२. मनौना > मनुहार (गाड़ी अटक जाती है)
शायर और कवि लोग भी दोषी हैं इस मामले में। जैसे एक शायर कहते हैं:
मुमकिन है मैं तुझे भूल भी जाऊं लेकिन
तू मेरी फ़िक्र से आजाद नहीं हो सकता।
अब देखिये जब शायर ये विश्वास दे रहा है कि मनुहार करो चाहे न करो अगला याद करेगा ही। भूलेगा नहीं तो काहे के लिये कोई मनुहार में टाइम खोटी करेगा।
एक और शायर जी कहते हैं:
मोहब्बत में बुरी नीयत से कुछ भी सोचा नहीं जाता/ कहा जाता है उसे बेवफ़ा, समझा नहीं जाता॥
अब जब बताइये शायर ही कह दिया कि मोहब्बत में बुरी नीयत से कुछ सोचा ही नहीं जाता तो काहे का गुस्सा/ काहे का मनौना?
खुश? अब तो मान जाइये। मुस्करा भी दीजिये। काहे इत्ता मनौना करा रहे हैं। :)
ये पोस्ट पढिये (
http://hindini.com/fursatiya/archives/6 )और साथ में ये शेर
मोहब्बत में बुरी नीयत से कुछ भी सोचा नहीं जाता ,
कहा जाता है उसे बेवफा, बेवफा समझा नहीं जाता.(वसीम बरेलवी)
ये जो नफरत है उसे लम्हों में दुनिया जान लेती है,
मोहब्बत का पता लगते , जमाने बीत जाते है.
अगर तू इश्क में बरबाद नहीं हो सकता,
जा तुझे कोई सबक याद नहीं हो सकता. (वाली असी)
मान मनौव्वल मनुहार का अपना अलग ही मजा होता था ।
ReplyDeleteएक बढ़िया चिन्तन!
@ राजेश उत्साही ,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया राजेश भाई , शायद मनुहार ...मन हारने से ही बना होगा और हार में जो आनंद है वह जीत में कहाँ ??
आपके स्नेह पर कोई शक नहीं !!
सादर
@ अरविन्द मिश्र ,
हम तो आप के अनुयायी हैं गुरु , इस विषय पर एक पोस्ट लिखो तो आनंद आ जाए !
@ अनूप शुक्ल ,
वाह उस्ताद आज तो बड़े अच्छे मूड में दर्शन दिए ! आनंद आ गया ....
मनौना की याद दिला आपने पोस्ट का अधूरापन समाप्त कर दिया ....हम तो मनुहार पढ़ते ही भाग खड़े होते हैं गले लगने के लिए , आजमाइएगा कभी ! मगर धोखा यहाँ भी होता है
!!
डॉ अरविन्द मिश्र के शब्दों में ...
अपनी समझ ही ससुरी इत्ती सी है....
याद करने की कोशिश कर रहा हूँ कि आखरी बार मैने कब मनुहार किया था। या किसी ने मुझे मनाया था।
ReplyDeleteकुछ याद नही आया
इस शब्द से नाता टूट गया है, चलो पहले इसे ही मनाते है
आभार
सच कहा ..मनुहार शब्द तभी कायम रह सकता है जब वाकयी मनुहार किया जाए ...
ReplyDeleteदेख रहा हूँ ऐसे हालात अपने आस पास में इधर...
ReplyDeleteवैसे वो शेर मैंने भी कभी किसी को सुनाया था..
सच मे मनुहार का अर्थ ही शायद लोग भूल गये हैं अब तो ज़ुबान से तीर ही निकलते है। ममता दया करुणा सब समाज से अलोप हो रहे हैं बस एक सूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृ्ति जन्म ले रही है। किसी का दुख दर्द बाँटना भी दिखावा मात्र रह गया है।
ReplyDeleteगये बुझाने आग जो वही दिखायें तील्
करें दिखावा शोक का दिल में ठोकें कील
सब से कर ली दोस्ती किया न सोच विचार
मतलव की दुनियाँ यहाँ कौन किसी का यार
शुभकामनायें।
क्यों दिखाते हो दोस्त अपने दिल के जख्मों को
ReplyDeleteलोग मुट्ठी में अक्सर , नमक लिए फिरते हैं !
ek to to ye sher...dusra rajesh bhaiya ka ye kathan...
मुझे लगता है यह शब्द मन हारने से बना होगा। पर आजकल मन हारता कौन है,सब तो जीतने में लगे रहते हैं। फिर मनुहार कौन करे।
dono baaten dil ko choo gayee..:)
क्यों दिखाते हो दोस्त अपने दिल के जख्मों को
ReplyDeleteलोग मुट्ठी में अक्सर , नमक लिए फिरते हैं !
ek to to ye sher...dusra rajesh bhaiya ka ye kathan...
मुझे लगता है यह शब्द मन हारने से बना होगा। पर आजकल मन हारता कौन है,सब तो जीतने में लगे रहते हैं। फिर मनुहार कौन करे।
dono baaten dil ko choo gayee..:)
aapki batonse mai sahamt hon......
ReplyDeletemanuhaar mere liye bahut kimti shabd hai....
बेमतलब का संवाद तो बढ गया है... पर दिलों में दूरियां आ गयी हैं..... बहुत प्रासंगिक और सुंदर विचार रखे आपने.....
ReplyDeleterothne manane me na kahi choot jaye
ReplyDeleteblogiyana........
dekhiye ab aap man jaeeye ...... nahi to hum rooth jayenge..........
pranam.
क्या होगा खुदा जाने, अब अगले जमाने में
ReplyDeleteये उम्र तो गुजरी है, बस उनको मनाने में
सतीश भाई आप बड़े मासूम हैं...
ReplyDeleteरोबोटों की दुनिया में मानवीय गुण ढूंढते हैं...
बशीर बद्र साहब के कहे को याद कीजिए...
कोई हाथ भी न मिलाएगा,
जो गले मिलोगे तपाक से,
ये अजीब मिज़ाज का शहर है,
ज़रा फ़ासले से मिला करो...
जय हिंद...
.
ReplyDeleteसुज्ञ जी के इकलौते शेर के मुकाबले में मेरे दो शेर :
घूमते तो हम भी हैं नमक लेकर मुट्ठी में.
जिसका कभी खाया उसे लौटाने के लिये.
मीठा खिलाकर लोग ज़हर खिला देते हैं.
इसलिये नमक पर ही ऐतबार कर.
मनुहार :
आप ऎसी आतिश हैं जो पुरानी पढ़ने पर भी तेज़ धमाका करती है.
आपके द्वितीय नाम में शक्तिशाली सेना की ताकत है.
........... चरण छूकर माफी मांगते हैं.
.
दरअसल आज की दौड़ती -भागती जिंदगी में लोगों के पास समय ही नहीं है, पत्रों की जगह ईमेल या एसेमेस ने ले ली है और मान-मनुहार में जो वक्त जायेगा उतने में तो दो चार एस एम एस लिखे ही जा सकते हैं ...
ReplyDeleteचिंतनशील पोस्ट और उस पर उतने ही मनन के साथ की गयी टिप्पणियाँ...
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़कर.
@ प्रतुल वशिष्ठ ,
ReplyDeleteऐसा न कहें प्रतुल , आप ब्लॉग जगत के गौरव शाली स्तंभों में से एक हैं जिनके कारण यहाँ अच्छा लगता है !
कहीं मुझसे तो कोई भूल नहीं हो गयी गुरुदेव ??
:-))
बहुत ही सुन्दर ।
ReplyDeleteचचा ग़ालिब का एक शेर याद आ गया. उसी के जरिएअपनी बात कहे देते हैं -
ReplyDeleteमेहरबां हो के बुला लो मुझे चाहे जिस वक्त
मैं गया वक्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूं :)
और जुड़ने की इच्छा लिए, हम लोग और दूर होते चले जाते हैं !
ReplyDeletebilkul sach kaha aapne.
पहले के शादी-समारोहों में पंगत के भोजन में मनुहार के सार्वजनिक रुप से बडे पैमाने पर दर्शन हो जाते थे जहाँ माल किसका लगता, पेट किसका फूलता, लेकिन पुरसगारी करने वाले नहीं साब एक लड्डू तो मेरे हाथ से खाना ही पडेगा की तर्ज पर थोक में मनुहार के द्वारा परिचितों को भी उपकृत कर दिया करते थे, अब बफे सिस्टम ने उस मनुहार को तो गायब करवा दिया । बची व्यक्तिगत मनुहार तो उसमें भी विकृत स्वाभिमान के रुप में अहम् ने अपनी मौजूदगी अधिक सशक्तता से दर्ज करा रखी है, जबकि मनुहार तो वैसे ही धीमे असर वाली प्रक्रिया जैसे- "जरा हौले-हौले चलो मेरे साजना, हम भी पीछे हैं तुम्हारे". की स्टाईल में चलती है और वर्तमान में हम इन्स्टन्ट युग में जी रहे हैं, इसलिये ये मानलें कि जो है जैसा है बस ठीक है ।
ReplyDelete(आज सुबह से लाईट बन्द थी और आपकी टिप्पणी मोबाईल के बस की नहीं थी)
@अहंकार, जिसे अक्सर हम स्वाभिमान का नाम दे देते हैं, में डूबे हम लोग, अकसर अपनों से कड़वा बोलते, यह ध्यान नहीं कर पाते कि बरछी जैसे वाक्यों से, हम अपने प्यार का दिल ही छलनी कर रहे हैं ! इस आहत दिल को देख ,पास पड़ोस के परिजन भी, मलहम लगाने की जगह, अक्सर नमक छिडकते देखे जाते हैं ! और इन ईर्ष्यालु मित्रों की बदौलत, इस आग को और भड़कने का मौका मिलता है ! ...
ReplyDeleteबहुत सही और यथार्थ लिख गये आप,धन्यवाद-अच्छी पोस्ट.
आज तो एक कटु सत्य कह दिया आपने. अब कुछ कहने को बचा नही है.
ReplyDeleteरामराम.
मनुहार ! मनौना !
ReplyDeleteपोस्ट तो बड़ा मनोरम हो गया है!
इसे पढ़कर तो बड़े-बड़े अंहकारी पाला बदल लेंगे।
चिंतनशील पोस्ट और उस पर उतने ही मनन के साथ की गयी टिप्पणियाँ...अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteमेरे मन की बातों को अनूप शुक्ल जी ने अपने शब्दों में कह दी उनका भी धन्यवाद.. आज आदमी के पास काम से इतनी फुर्सत नहीं है की वो अधिक देर तक मान मनुहार करेगा.
तुम्हे अपने गम से नहीं फुर्सत, हम अपने गम से कब खाली
चलो अब हो चूका मिलना , न तुम खाली ना हम खाली
ऐसे उपयोगी लेख के लिए बहुत सारी शुभ कामनाएं आपको !!
@ अनूप शुक्लः
ReplyDeleteसूत्र में यदि मनौना = मनुहार तो उस स्थिति को क्या कहा जाए! कृपया स्पष्ट किया जाये!
सुकुल चचा की बात पर मुहर रहेगी...
ReplyDeleteमनुहार तो आज भी होती है.. पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका के बीच तो मनुहार कभी खत्म हो ही नहीं सकती... शायद आपने जिस बात की ओर इशारा किया है वो ये कि आजकल छोटों में बड़े-बुजुर्गों की मनुहार करने की परम्परा कम हो चली है... इसपर पूरी सहमति है... इसलिए बुजुर्ग बेचारे ही आजकल रूठना कम कर दिए हैं...
सामायिक चिंतन/व्यथा है ....................
ReplyDeleteमान मनुहार से प्रेम और स्नेह नित बढ़ता ही है।
ReplyDeleteक्यों दिखाते हो सुर्ख आँख,अपने गुस्से के !
ReplyDeleteलोग मुट्ठी में अक्सर ,बकनी-ए-मिर्च लिए फिरते हैं:)
शुक्रिया.... नवाज़िश.... ज़र्रानवाज़ी :) :) !
मान मन्नावल में बड़ा रस है....अब तो लोग रूठे बच्चों को भी प्रेम से मनाने की बजाय उसकी अभीष्ट वास्तु देकर पिंड छुडाना चाहते हैं....
ReplyDeleteबड़े भाई,
ReplyDeleteऐसी पोस्ट बिना लेखक का या ब्लॉग का नाम दिये बगैर भी पढ़ते तो हम समझ जाते कि किसने लिखी है। आपके व्यक्तित्व के अनुरूप ही है पोस्ट।
आप जैसों के कारण यह मनुहार-मनव्वल वगैरह भावनायें जीवित हैं, इसलिये आपकी तारीफ़ कर रहे हैं, वरना सब हम जैसे हो जायें तो रूठने पर न मानें और न मनाये:)
सतीश जी आपका लेख और उस पर आयी सभी टिप्पणियां अच्छी लगी पर मासूम साहब की टिपण्णी सबसे बढ़िया है.
ReplyDeleteक्यों दिखाते हो दोस्त अपने दिल के जख्मों को लोग मुट्ठी में अक्सर , नमक लिए फिरते हैं !
इसलिए
विवाह से पूर्व लड़की से राय अवश्य लें.
क्यों दिखाते हो गहरे ज़ख्म, अपने सीने के !
ReplyDeleteलोग मुट्ठी में अक्सर , नमक लिए फिरते हैं !
kya baat hai ,man khush ho gaya padhkar ,manuhaar apnatav se ot-prot ,magar ab istemaal nahi ho paa rahi .hum aadhunik jo ho gaye hai .
इस शब्द का वाकई अनुवाद नहीं हो सकता बहुत सुंदर ढंग से आपने इस शब्द की व्याख्या किया है |
ReplyDeletebahut sach likha hai aapne ....
ReplyDeleteक्यों दिखाते हो दोस्त अपने दिल के जख्मों को
ReplyDeleteलोग मुट्ठी में अक्सर , नमक लिए फिरते हैं
सच में बहुत गहरी बात है इस शेर में सतीश जी ...
और जहाँ तक मनुहार की बात है ...वो आज कल प्रायः लुप्त ही होता जा रहा है .. तेज़ी का जमाना जो आ गया है ... बटन दबाते ही काम होना चाहिए ... और मनुहार में तो मज़ा, रूठना और लाड करना भी है ...
रूठना-मनाना तो जारी है सतीश जी, हां अब लोग ज़्यादा देर तक रूठे नहीं रहते, जानते हैं, मनाने वाले के पास समय नहीं है, कहीं मनाना ही छोड़ दे तो? एक-दो बार के बाद मनाये ही न तो?
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढके कई बातें दिमाग में आयीं..
ReplyDeleteटिप्पणी करने आ ही रहा था कि पाण्डेय जी (विचार शून्य) की टिप्पणी पर नज़र पड़ गयी....
और हँसते हँसते पेट में बल पड़ गए....
और बाकी सारा कुछ भूल गया...
इसलिए विषय पर कोई कमेन्ट नहीं कर पाया....
बुरा लगे तो कोई बात नहीं मैं आपको मना लूँगा.... और नहीं तो क्या मान-मनुहार मैं थोड़े न भूला हूँ....:D
ek dil ko chune wali post lagata hai saxena ji ke saath blogger meet karni hi hogi......
ReplyDeletejai baba banaras....
मनुहार के लिए प्रेमभरा दिल चाहिए लेकिन आज तो हम दिलों में अहंकार भरकर चल रहे हैं।
ReplyDeleteह्म्म्म... ये आप कह रहे हैं???
ReplyDeleteआप तो इस शब्द से कितने अच्छे से वाकिफ हैं... और हमें भी इसका सही अर्थ समझाया है...
पोस्ट अच्छी है... पर उन लोगों के लिए है जो लोग ये शब्द भूल गए हों...
पर अच्छा लगा... आज फ़िर कुछ सीखने को मिला...
:)
मान सम्मान के साथ, जब भी मनुहार की जाती थी, उस समय कठोर वज्र समान दिल को भी, पिघलते देर नहीं लगती थी ! मगर आज कोई मान मनुहार नहीं करता .
ReplyDeleteaaj ki sachchyee ko samne lakar khara kar diye aap.....achcha kiye shayad kuch fayeda ho jaye....
kafi kuchh sochane par majboor karta lekh.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
@ विचार शून्य,
हा हा हा हा,
इसलिए विवाह से पूर्व लड़की से राय अवश्य लें.
ली थी दोस्त, इसीलिये रोजाना मनुहार करते हैं और मनौनापन झेलते हैं... :(
और सतीश जी, कोई गलती तो नहीं हो गई मुझसे... हुई हो तो मान जाइये न... :)
...
shabdon se bane mantra ,udhharak ya
ReplyDeletesangharak bante hai ,yah vyakti par nirbhar karata hai ki vah kya chunata hai .manuhar srijanatmak path
pradan karta hai ,bas prayog to karen
sarthak bahas ke liye sadhuvad ji,saksena sahab .
manuhaar... kitna dam tha isme , kitni khilkhilati hansi thi, ab to sabkuch banawti ho chala hai , sabkuch nibhane jaisa ho gaya hai
ReplyDelete'मान-मनुहार' पुराने ज़माने की बात हो गई .अब तो अपने-अपने अहं इतने प्रबल हो गये हैं कि न मानों तो न मानो ,तुम्हारी इच्छा !
ReplyDeleteसब कुछ बहुत औपचारिक होता जा रहा है . सगे संबंध भी अब उतने सगे कहाँ ,और छोटे-बड़े की वह मर्यादा भी लोग भूलते जा रहे हैं .
शायह वह समय फिर लौटे !
मैं ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए पिछले कुछ महीनों से ब्लॉग पर नियमित रूप से नहीं आ सकी!
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सही कहा है! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! उम्दा पोस्ट!
बहुत सही कहा है की आज के दौर में मनुहार करना लगभग लुप्त हो गया है..लेकिन कभी कभी मन करता है की कोई अपना हमें मनाये और मनुहार करे...बहुत सुन्दर आलेख..
ReplyDeleteबहुत सही एवं सटीक बात कही है आपने ...आभार ।
ReplyDeleteसही कहा सतीश जी , मगर फागुन में क्या कहना !
ReplyDelete"नैन सैन चितवन चुभन , मान और मनुहार |
अँगुरी दाबे रस चुवै , गुझिया जैसा प्यार |
मनुहारों के खंडहर पर अहम की उठती मीनारें
ReplyDeleteसार्थक चिंतन है!!
आपने बिल्कुल सही कहा है| मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ| धन्यवाद|
ReplyDeleteमनुहार को लैंगिक भेदभाव के साथ वापरिये ज़मीन आसमान का फर्क नज़र आएगा :)
ReplyDeleteक्यों दिखाते हो दोस्त अपने दिल के जख्मों को
ReplyDeleteलोग मुट्ठी में अक्सर , नमक लिए फिरते हैं !
बहुत खूब... सशक्त आलेख...
सादर.