अगर किसी लेख़क के व्यवहार और व्यक्तित्व के बारे में जानना हो तो उनके कुछ लेख ध्यान पूर्वक पढ़ लें , उस व्यक्तित्व की मानसिकता और व्यवहार आपको उसके लेखन में से साफ़ साफ़ दिखाई देगा !
ब्लॉग जगत में एक से एक विद्वजन और सामाजिक विकास के प्रति समर्पित व्यक्तित्व कार्य रत हैं जिनको पढ़कर अपने आप पर गर्व होता है कि हमने भी इन्हें पढ़ा है वहीँ दूसरी और हिंदी ब्लॉग जगत से वित्रष्णा पैदा करने की क्षमता रखने वालों की भी कमी नहीं है ! कई बार इन्हें पढ़कर लगता है कि यही पढना बाकी था ?लोगों को प्रभावित करने के लिए, लिखे लेखों पर चढ़ा कवर, थोडा ध्यान से पढने पर ही उतरने लग जाता है ! अपना चेहरा चमकाने की कोशिश में लगे ये लोग, खुशकिस्मत हैं कि ब्लाग जगत में ध्यान से पढने की, लोगों को आदत ही नहीं है , अतः समाज और सद्भावी माहौल को बर्वाद करने वाले, इन लोगों की पहचान, काफी समय बाद हो पाती है !
इन स्वयंभू लेखकों को शायद यह अंदाजा नहीं है कि लेखन के जरिये जो कुछ यहाँ बो रहे हैं यह अमर है ! लेखन और बोले शब्द समाप्त नहीं होते हैं बल्कि परिवार , समाज पर गहरा असर डालते हैं ! यह कभी न भूलें कि आप जो कुछ भी लिख रहे हैं, ऐसा नहीं हो सकता कि आपके बच्चे , और परिवार के अन्य सदस्य देर सवेर उसे नहीं पढेंगे , उस समय आपको पढ़कर और जानकर वही इज्ज़त और सम्मान आपको देंगे जिसको आपका लेखन इंगित करता है !
मेरा यह विश्वास है कि आने वाला समय बेहतर होगा , हमारी नयी पीढी यकीनन प्यार ,सद्भाव में हमसे अधिक अच्छी होगी अतः आज जो हम ब्लाग के जरिये दे रहे हैं, उसे एक बार दुबारा पढ़ के ही प्रकाशित करें ! कहीं ऐसा न हो कि आपको कुछ सालों के बाद पछताना पड़े कि यह मैंने क्या लिखा था ?
aapne sahi kaha ... bolte ya likhte samay savdhani baratni chahiye !
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा सतीश भाई!!! मगर मेरा माना है कि ब्लॉग जगत भी हमारे परिवार की ही तरह है, यहाँ पर सब है... अच्छे लोग, बुरे लोग.... लड़ाई-झगडा... प्यार मुहब्बत... सास-बहु की साज़िश... और प्यारे लोगो की प्यारी-प्यारी बातें! तभी तो नशा चढ़ जाता है, अच्छे-अच्छो पर इसका... यही इसकी खूबी है!
ReplyDeleteसही सलाह!
ReplyDeletebikul sahi khahn hai aapne...............
ReplyDeleteनजरिया अपना-अपना.
ReplyDeletesatish bhai bhtrin drshn bhtrin soch gyaanvrdhk lekhn mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteएक बात और
ReplyDeleteअच्छा बुरा का द्वैत तो वैचारिक प्रक्रिया का हिस्सा ही है। धीरे धीरे सब समझदार हो जाते हैं और अपनी अपनी दृष्टि से अच्छे बुरे का विभेद कर लेते हैं।
हम तो यही चाहते हैं कि अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार खूब लिखें लोग..कोई भी विषय न छोड़ें..
निर्भीक बनें हम अपने लेखन में तो शायद हमारे समाज में भी जीवंतता आयेगी।
सतीश जी,
ReplyDeleteसही सलाह प्रस्तुत की आपने।
लेकिन जो लोग जानबूझ कर दुर्भावना फ़ैलाने के उद्देश्य से ही लिखते है,उन पर ऐसी सलाह का कोई असर नहीं होता, अधिकांश तो स्वयं नहीं जानते वे विषबीज बो रहे है। यह लेख पढकर भी उन्हें लगेगा सतीश जी बाजुवाले से कह रहे है। हम सही लिखने वाले है।
अमुमन सभी के पास विवेक और परिक्षण बुद्धि नहीं होती। तत्काल प्रथम अच्छे लगने वाले विचारों में बह जाते है। परिणाम दूरगामी होता है।
बात मात्र नासमझ या अबोधों की नहीं अच्छे अच्छे विद्वान भी विचारधाराओं के मोहजाल में फंस जाते है। पहला छोटा सा सहज अनुकूल विचार बीज ही होता है।
पढो सभी को, पर परीक्षण बुद्धि तीक्षण रखो। एक छोटी सी धारणा इस परीक्षण के लिये उपयोगी हो सकती है। किसी भी विचार का स्वागत करने के पूर्व सोचें 'आज यह विचार भले अच्छा लगे पर भविष्य में यह विचार सभ्यता, संस्कृति,नैतिकता, प्रकृति और मानवीय सम्वेदनाओं की बली तो न ले लेगा?'
बिलकुल सही कहा सतीश भाई!
ReplyDeleteसही सलाह!
सतीश जी,
ReplyDeleteबहुत सुंदर सच लिख दिया आपने तो,
आपकेही कहे शब्द रिपीट कर कर के तारीफ नहीं करूंगी आपकी ,
सहमत हूँ मै भी आपसे
सौ प्रतिशत सहमत हूँ………………हमारा लेखन हमारे व्यक्तित्व का आईना है और आने वाले वक्त की धरोहर्……………अगर इस बात को हमेशा याद रखा जाये तो कभी कोई गलत काम ना करे।
ReplyDeleteसही बात। किसी के लिखे और बोले शब्दों से ही उसके व्यक्त्त्वि की पहचान होती है।
ReplyDeleteअच्छा लिखा आपने।
सार्थक सलाह ....सच में हम सबके लिए विचारणीय बात....आभार
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteकीचड़ नहीं होगा तो कमलों की खूबसूरती का अहसास कैसे होगा...
कांटे नहीं चुभेंगे तो फूलों की शीतलता का स्पर्श कैसा होगा...
मैं भला तो जग भला...अपुन का तो बस यही फंडा है...
जय हिंद...
आदरणीय!
ReplyDeleteऔरों के लिए तो कुछ नहीं कहूंगा, पर मेरे सम्बन्ध में आपसे इतना निवेदन है की आपका मुझ पर इतना अधिकार है जितना मेरे घर के अन्य बड़ों का है, तो इस अधिकार का मान रखते हुए जब भी मुझे कुछ भी ऐसा करते पायें जो नहीं करना चाहिये तो उसी समय ताड़ना कर दीजिएगा. ब्लॉग परिवार के दूसरे बड़ों से भी यही निवेदन है की मेरे जैसे कई ब्लोगर है जो उम्र और अनुभव की कमी के कारण कुछ उंच नीच कर जाते है तो आप बड़े हमें संभाल सकतें है जिससे की आपके मौन को समर्थन ना मान कर जीवन में नीचे जाने से बच सकें.
आभार सहित
अमित शर्मा
aatm-chintan jaruri hai..:)
ReplyDeleteयदि आप को ब्लोगिंग का नशा हो गया है तो आप बस लिखेंगे. बहुत बार ऐसा होता है कि ब्लोगिंग के नशे मैं यह भी नहीं जानते कि क्या लिख रहे हैं और क्यों लिख रहे हैं. इसलिए इस को नशे कि हद तक ना ले जाएं और लिखें समाज को कुछ देने के लिए.
ReplyDelete> ........यह कभी न भूलें कि आप जो कुछ भी लिख रहे हैं, ऐसा नहीं हो सकता कि आपके बच्चे, और परिवार के अन्य सदस्य देर सवेर उसे नहीं पढेंगे, उस समय आपको पढ़कर और जानकर वही इज्ज़त और सम्मान आपको देंगे जिसको आपका लेखन इंगित करता है !..................
ReplyDeleteनिसंदेह ! उपरोक्त बातें न केवल ब्लोगर्स हेतु महत्वपूर्ण हैं अपितु फेसबुक ,ऑरकुट एवं अन्य सोशल साइटों के यूजर्स को भी ध्यान में रखनी चाहिए,आभासी दुनियां में कुछ भी कभी भी सामने आ सकता है............
जागरूक करती पोस्ट हेतु आभार.............
koshish karenge aur achha karne ki...
ReplyDeletepranam.
गुरुदेव परनाम, सही कथन है, परन्तु हम जैसे बुरबक के लिए कुछ विस्तारपूर्वक विश्लेषण करते तो अच्छा रहता...... जय राम जी की.
ReplyDeleteक्या अच्छा है और क्या बुरा ये कौन निर्धारित करेगा | किसी के लिए हास्य लेखन समय की बर्बादी है तो किसी के लिए खून बढ़ने का तरीका किसी के लिए धर्म के पक्ष में और उसके खिलाफ लिखना समाज को जागृत करना है तो किसी के लिए समाज को पीछे धकेलना सब अपनी तरफ से अच्छा ही सोच कर लिखते है ये तो हमारी पसंद न पसंद है जो लेख को अच्छा और बुरा बना देती है | जो मुझे पसंद नहीं है मै उस तरफ रुख ही नहीं करती पढ़ का अपना सर और दिमाग क्यों ख़राब करू कुछ कहूँगी तो उन्हें तो समझ में आने से रहा इसलिए अपनी पसंद के विषयों की और रुख करे |
ReplyDeleteबिलकुल ठीक बात है -
ReplyDeleteलिखते समय अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास होना चाहिए -
चिंतनपरक आलेख के लिए बधाई ,सतीश जी.
ReplyDeletebilkul sahi kaha aapne
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी ,
ReplyDeleteशत प्रतिशत सहमत हूँ आपसे | लेखन में लेखक का आचरण और मानसिकता दोनों प्रकटित होते हैं | आपकी खरी-खरी बात विचारणीय है |
बहुत सार्थक और जागरूक करने वाली पोस्ट..बहुत सही परामर्श...आभार
ReplyDelete‘उनके कुछ लेख ध्यान पूर्वक पढ़ लें , उस व्यक्तित्व की मानसिकता और व्यवहार आपको उसके लेखन में से साफ़ साफ़ दिखाई देगा !’
ReplyDelete’
क्या आप मेरे व्यक्तित्व,मानसिकता और व्यवहार पर प्रकाश डालेंगे :)
एकदम सही कहा.
ReplyDeleteतोल मोल कर ही बोलना चाहिए और तोल मोल कर ही लिखना चाहिए आपके शब्द आपके व्यक्तित्व का आइना होते हैं.
पूरी तरह सहमत
ReplyDelete@ खुशदीप,
कीचड़ के बिना भी कमल बेहद खूबसूरत होता है भाई |
गुरुदेव!
ReplyDeleteआदतें अच्छी लगती नहीं - बुरी छूटती नहीं. वही बात हर अच्छे बुरे पर लागू होती है... और जो अच्छा लिखते हैं वो वैसा ही लिखेंगे... जिन्हें खराब लिखना है, उनको कौन सुधार सकता है!!
न हम किसी की जुबां बंद कर सकते हैं, न लेखनी पर अंकुश लगा सकते हैं. शायद अंदर का सारा बुरा बाहर निकल जाए तो जो हो वो अच्छा हो!! लिखने दो उन्हें!!
सार्थक सलाह ....बिलकुल ठीक कहा है, आपने हमारे शब्द और विचार ही हमारे व्यक्तित्व की पहचान होते हैं..
ReplyDeleteसतीशजी, मैं भी आपसे अपना अनुभव बांटना चाहती हूँ, अभी कुछ ही दिन पहले एक ब्लॉग पढ़ रही थी विज्ञापनों के बारे में , कोशिश तो उस लेखक ने बहुत की थी की, अपनी सामाजिक चिंता ज़ाहिर कर सकें परन्तु उनके छिपे हुए अरमान या छिछोरे मज़ाक हर पंक्ति से झांक रहे थे| आप ही बताईये जब इतने अच्छे लेखक इस तरह से अशोभनीय लेख लिखेगे तो नयी पीढ़ी क्या गुण अपनाएगी???
ReplyDeleteअब बात कमेंट्स या पोस्ट के मिटाने की करते हैं, यह बात सच है की वह लेख/टिपण्णी उस समय नज़र नहीं आती परन्तु वह अंतरजाल में ही कहीं छिपी रहती है| यह कुछ इस तरह है जैसे हम एक पतंग उड़ाते हैं और पेंच लड़ने के बाद वह कट जाती है, उस समय तो वह नज़र नहीं आएगी पर आप नहीं जानते की किसने उस कटी हुई पतंग को पकड़ कर अपने धागे से बाँध लिया; या फिर सिर्फ मंझा ही काट कर इस्तेमाल कर लिया| अंतर जाल भी इस तरह के कई threads और cache अपने पास रखता है| हमारे देश में अभिवयक्ति की आज़ादी है पर फिर भी सभी को अपनी मर्यादा और सामाजिक मूल्यों का तो ख़याल रखना ही चाहिए|
आभार एक जागरूक पोस्ट के लिए...
बिलकुल सही कहा सतीश जी आपने!
ReplyDeleteहम यही चाहते हैं. आप ने ऐसी सार्थक सलाह दि इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद .
सही कहा आपने । अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता अगर अधिकार है तो उसके साथ कुछ साहित्यिक और कुछ सामाजिक कर्तव्य भी हैं । हालांकि लेखन पर नियंत्रण और नियमन भी शायद पूरी तरह संभव नहीं । वैसे देर-सबेर हर कोई पहचाना जाता है । ब्लॉग जगत , बाहरी विश्व की ही छोटी प्रतिकृति है । जो बाहर है वही इसमें मिलेगा , क्या करें। ये तो युग ही प्रोपोगेंडा का है । लेखक आत्मनियंत्रित हों तथा पाठक भी स्वविवेक का प्रयोग करें यही आदर्श स्थिति होगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteनेक सलाह...जो मान ले.
ReplyDeleteमुझे लगता है यही बात टिप्पणियों पर भी लागू होती है।
ReplyDeleteसौ प्रतिशत सही कहा सतीश भाई । लेकिन इस संदर्भ में मुझे दो बातें कहनी हैं । पहली ये कि यदि किसी को ये अहसास हो जाए कि वो जो शब्द आज लिख रहे हैं वो कल को उनके अपनों द्वारा भी पढे जा सकते हैं तो शायद एक जिम्मेदारी का एहसास खुद हो जाएगा । दूसरी बात ये कि आपके शब्द ही आपके व्यक्तित्व की पहचान बनते हैं ये बात भी सही है । लेकिन जैसा कि खुशदीप भाई ने कहा कि जरूरी नहीं कि सब कुछ अच्छा अच्छा ही हो ..और ऐसा संभव भी नहीं है । हां दिक्कत ये जरूर है कि जहां कोशिश ही ये हो कि अच्छा न हो तो फ़िर ...। ये विमर्श का ही समय है । सार्थक पोस्ट और बातें भी । शुभकामनाएं सभी को
ReplyDeleteइन स्वयंभू लेखकों को शायद यह अंदाजा नहीं है कि---ब्लोगिंग जब बंद ही हो जाएगी तो लिखेंगे क्या ।
ReplyDeleteअभी से संभल जाएँ तो अच्छा है । सही याद दिलाया है आपने सतीश जी ।
आपने उपर्युक्त ब्लॉग गद्यांश को पढ़ा -
ReplyDeleteअब इस अपठित के बारे में निम्न प्रश्नों का उत्तर दीजिये -
१-गद्यांश का प्रसंग और संदर्भ सोदाहरण बताईये ...
२-टिप्पणीकारों में से ऐसे स्वयंभू ब्लागरों का नाम छाटिये
३-किन किन शब्दों की वर्तनी में लेखक से भूल हुयी है?
४-लेखक का इशारा टिप्पणीकर्ताओं से दीगर किन ब्लागरों के लिए है -क्या उसमें महिला ब्लॉगर भी शामिल हैं ?
(सतीश जी यह पूरा का पूरा आप बोर्ड परीक्षा से ले लिए क्या ? )
@ डॉ अरविन्द मिश्र,
ReplyDeleteअरे बाप रे !
यह आपकी क्लास में कैसे आ गया मैं ...लगता है रास्ता भूल गया !
कृपा करें गुरुदेव , सारे प्रश्नों के उत्तर में सर खुजा रहा हूँ ....कर दो फेल और क्या करोगे ?? :-)
बात अति सार्थक है पर मुझे नही लगता कि लोग इस बात की गंभीरता को समझेंगे, समझेंगे वही जो उनको समझना है. अब आपके उदाहरणों का इंतजार रहेगा.
ReplyDeleteरामराम.
सही सलाह,सहमत हूँ मै भी आपसे !
ReplyDeleteसही कहा आपने, लेकिन जिसकी जैसी सोच है वो वैसा ही लिखेगा
ReplyDeleteअब वो तो लेखक के ऊपर बात है कि वो भविष्य मे अपनी नजरे झुका कर रखना चाहता कि उठा कर ।
धन्यवाद
लेखन और बोले शब्द समाप्त नहीं होते हैं...
ReplyDeleteअत्यंत तथ्यपरक एवं सारगर्भित लेख...
आभार.
लेखन स्वयं को अच्छा लगने के लिये हो, आक्षेप लगाना किसी को नहीं सुहाता है।
ReplyDeleteसतीश जी आज आपने मेरे ब्लोक पर दर्शन देकर इस नाचीज को इज्जत बक्शी है धन्यवाद !
ReplyDeleteयह ब्लोक जगत एक परिवार के समान है और अच्छे -बुरे लोग तो हर परिवार और समाज में रहते है ..
जाट देवता की राम राम,
ReplyDeleteमैने आपकी बात मानी, अब क्या करु , मैं तो आपबीती ही लिखता हूं। आइए फ़ैसला करो ।
सही और सार्थक बात।
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने कि
ReplyDelete'लेखन और बोले शब्द समाप्त नहीं होते हैं बल्कि परिवार , समाज पर गहरा असर डालते हैं ! यह कभी न भूलें कि आप जो कुछ भी लिख रहे हैं, ऐसा नहीं हो सकता कि आपके बच्चे , और परिवार के अन्य सदस्य देर सवेर उसे नहीं पढेंगे , उस समय आपको पढ़कर और जानकर वही इज्ज़त और सम्मान आपको देंगे जिसको आपका लेखन इंगित करता है !'
दिशा देते इस लेख के लिए आपका बहुत बहुत आभार.
'मनसा वाचा कर्मणा' पर भी आपका इंतजार है.
यहाँ तो जितने आये सभी ने अच्छा-अच्छा लिखा..! फिर वो कौन होगा....! मारो गोली यह तो अच्छा है। इसी का मजा लेते हैं।
ReplyDeleteआभासी दुनियाँ पर एक कविता लिखने का वादा करते हैं। अगली पोस्ट वही होगी।
ReplyDelete@नीरज बसलियाल
ReplyDeleteक्या कमल को कीचड़ की जगह और भी कहीं खिलते देखा है...
जय हिंद...
हर जगह अच्छे और बुरे लोग होते हैं. अगर बुरे लोगों को अकल ही आ जाए तो दुनिया स्वर्ग ना बन जाए? हमें खुद ही चाहिए कि ऐसे लोगों पर ध्यान ही ना दें, जो उल्टी-पुल्टी बातें लिखते हैं. है ना?
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा...
ReplyDeleteहम जैसे शब्द बोएंगे, वैसे ही विचार संप्रेषित होंगे.
बिलकुल सही कहा सतीश जी आपने पर मेरा मानना है कि कुछ लोग जो कि भ्रष्टाचार से परेसान होकर ही कुछ सच लोगो तक ब्लॉग के ज़रिये ही पहुचा सकते है ..क्योकि लोगो को सारा सच बताना भी ज़रूरी है ..
ReplyDeleteगुरु भाई ,
ReplyDeleteखुश रहो !
लिखा अमर हो जाता है |क्यों फ़िक्र करते हो !
इस अनपड़ की दो लाइन:-
अपने बोलने से मुकरना तो आसान है बहुत ,
अपने लिखे को झुठलाना ,समझाओ तो माने||
हमेशा सेहतमंद जीवन जियो !
अशोक सलूजा
आज देखता हूं कि गूगल बाबा के जरिए मुफ्त का एक ब्लॉगर प्लेटफार्म मिल गया तो लोग लगे चिंतन झाड़ने कि ऐसा लिखना चाहिए, वैसा लिखना चाहिए। कल को कहीं सचमुच इन चिंतकों को कोई ‘नीलकमल प्लास्टिक कुर्सी’ पर बैठने वाला भी पद मिल जाय तो इनका पैर ही जमीन पर न पड़े। तब तो आकाश क्या चीज है...... ऐसे घनघोर चिंतक अंतरिक्ष में भी बांस लेकर पहुंच जाएंगे टेका लगाने के लिये कि हम ही हैं जो अब तक थामे हुए हैं :-)
ReplyDelete"लेखन के जरिये जो कुछ यहाँ बो रहे हैं यह अमर है ! लेखन और बोले शब्द समाप्त नहीं होते हैं.... "
ReplyDeleteबिलकुल सही है.. पर क्या हम खुद ही ऐसे विवादित लेखन को बढ़ावा नहीं देते.. कभी कहीं ऐसी पोस्ट आती नहीं की अगले दो चार दिन उसी पर चर्चा और फिर उसके विरुद्ध पोस्ट शुरू हो जाती है...
मेरी समझ में ऐसे लेखन को इग्नोर करें, वो अपनी मौत खुद मर जाएगा...
यकीन मानिये, आज की तारीख में इंटरनेट पर 70% कचरा है, पर आपके विश्वास पर हमें भी विश्वास है कि आने वाला समय बेहतर होगा.. :)
सतीश जी,
ReplyDeleteमुझे पता नहीं कि मेरे पोस्ट से कोट करके और लिंक देते हुए ये उपर किसने कमेंट किया है...लेकिन जिसने भी कोट किया है बहुत समझदार बंदा / बंदी प्रतीत होता है :)
सतीश जी,
ReplyDeleteहर व्यक्ति अपनी करनी के लिये ज़िम्मेदार है। आभासी दुनिया में कई लोग इस भ्रम में रहते हैं कि आभासी बनकर वे कुछ भी कर सकते हैं। ऐसी गैरज़िम्मेदारी अक्सर चल भी जाती है क्योंकि ज़्यादातर लोग फाल्तू के पचडों में पडना नहीं चाहते। वैसे आपकी सलाह जिनके लिये है, उनके लिये तो बेकार ही है। बाकियों को शायद उसकी ज़रूरत ही न हो।
@क्या कमल को कीचड़ की जगह और भी कहीं खिलते देखा है...
खुशदीप भाई, तलछट और कीचड दो अलग-अलग शब्द हैं और अलग सन्दर्भों में इस्तेमाल होते हैं। वैसे ब्रह्मकमल भी होते हैं जिन्हें तलछट की भी ज़रूरत नहीं होती।
@ सतीश पंचम,
ReplyDeleteआपका स्वागत है ...मेरा विश्वास बना रहा भगवान् का शुक्र है ! लगता है कोई है जो मुझसे बिना मेरी भूल बताये भी मुझसे बहुत नाराज़ है :-)
आभार आपका !
आने वाला समय बेहतर ही होता है यह बात दीगर है कि हमें बस बुरी बातें ही याद रखने की आदत हो जाती है अलबत्ता...
ReplyDeleteलेखन से यह भी पता चलता है कि आपकी अध्ययनशीलता और आपके अनुभव का स्तर क्या है।
ReplyDelete
ReplyDeleteहाय.. यही तो मैं भी कहता आया हूँ,
तो लोग प्रवचनकर्ता, ड्यूअल ( स्प्लिट परसॉनेलिटी ) वगैरह तमगों से मुझे सम्मानित करने में जुट गये ।
मैं ढीठ बँदा अपनी राह से टलने वाला नहीं, मैं मॉडरेशन की मुज़म्मत के साथ साथ अपके इस पोस्ट की पूरी हिमायत करता हूँ ।
सत्य वचन।
ReplyDeleteआपकी बात से असहमति का सवाल ही नहीं उठता... मुझे तो आश्चर्य लगता है कि लोग कैसे नहीं सोचते कि ये जो लिख रहे हैं कोई अपना सगा भी पढ़ सकता है और पढके मेरे वारे में एक छवि बना सकता है...
ReplyDeleteल्ेाखक सोचते कुछ है लिखते कुछ है तो उनके लिखे से उनकी मानसिकता कैसे पता चल सकती है । सत्य है वितृष्णा पैदा करने बालों की कमी नहीं है । नहीं इनको भी ध्यान से पढा जाता है मगर क्या कीजियेगा यही सोच कर रह जाना पडता है कि जामे जित्ती बुध्दि है उत्तो देय बताय /वाकोै बुरो न मानिये और कहां ते लाय /ये भी हो सकता है कि इनके बच्चे इनके लेखेंा को पढ कर शर्मिन्दा हो और यह निश्चित है।यह आपने बहुत बढिया बात कही है दुवारा पढने की।दुवारा पढेगे तो भावावेश में लिखा ाइनका ये खुद ही संशोधित करना चाहेंगे
ReplyDeleteI read your introduction and i appreciate your concern for the society. I must say we both have some things in common. Hope to meet u sometime in Noida.
ReplyDeleteYes u r right,,,,what u write is result of your thoughts and what u think u become...so u can know a person from his writings. It's very much true.
ReplyDeleteमैं तो अब अतिवादियों से डरने लगा हूँ चाहे साइंस का हो, या धर्म का हो या किसी अन्य वाद का
ReplyDeleteबाकी तो नो कमेंट्स .. सच में लोग यहाँ हमेशा ज्ञान बांटने के मूड में रहते हैं :)
और एक बात बोलूं ? :) ये ही लोग जीतते हैं यही सच्चे विजेता हैं ..
एक बात और देखिये
ReplyDelete..... आपकी बात सबको समझ में आयी है :))
भाई सतीश जी आपने बड़े ही दमदार ढंग से अपनी बात कही है |आप बधाई के पात्र हैं |मैं आपके विचारों से पूर्णतया सहमत हूँ |
ReplyDelete"लोगों को प्रभावित करने के लिए, लिखे लेखों पर चढ़ा कवर, थोडा ध्यान से पढने पर ही उतरने लग जाता है ! अपना चेहरा चमकाने की कोशिश में लगे ये लोग, खुशकिस्मत हैं कि ब्लाग जगत में ध्यान से पढने की, लोगों को आदत ही नहीं है , अतः समाज और सद्भावी माहौल को बर्वाद करने वाले, इन लोगों की पहचान, काफी समय बाद हो पाती है !"
ReplyDeleteआपसे पूरी तरह से सहमत हूँ.
आभार.
आपकी बात सोलह आने सत्य है | मै जब भी लिखता हूँ तो इतना ध्यान जरूर रखता हूँ की मेरी बिटिया जब बड़ी होगी और वो मेरे लिखे को पढेगी तो कम से कम उस को शर्मिंदा ना होना पड़े इसलिए मै हमेशा समाज का ध्यान रख ही मर्यादित शब्दों में लिखता हूँ |
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक लेख! हमें ध्यान रखना होगा!
ReplyDelete---
आपके लिए एक जरूरी आमंत्रण @ उल्टा तीर (सिर्फ़ दो दिन शेष!)
आपके विचारों से पूरी तरह सहमत।
ReplyDeleteहम जो कुछ भी लिखते हैं वह हमारा प्रतिबिम्ब ही है।
सतीश जी , आपने सही कहा है । लेकिन इसकी सार्थकता पाठकों की टिप्पणियों द्वारा हो सकती है । मैंने कई जगह महसूस किया है कि सटीक टिप्पणियाँ बहुत कम होतीं हैं । अधिकतर लोग प्रशंसा कर औपचारिकता निभा लेते हैं । अच्छे साहित्य-सृजन में यह बाधक है । आलोचना या प्रशंसा दोनों ही आवश्यक हैं । खैर आपके ब्लाग पर विविध रंग देखे अच्छा लगा ।
ReplyDeleteसत्य वचन.
ReplyDeleteonly one-thing... thank you so much...
ReplyDeleteisse jyada kuch nahi...
सौ प्रतिशत सहमत
ReplyDeleteचिंतनपरक आलेख
आज़ का एक सच।
ReplyDeleteसुधा भार्गव
सतीश भाई,
ReplyDeleteमैं तो अब तक यही सोच कर गलती किये जा रहा था कि गलतियां इंसान से ही होती है !
लेकिन आपने जबसे पब्लिकली धोया है झेंप के मारे अगली पोस्ट लिखने की हिम्मत नहीं हो रही है !
सतीश भाई,
ReplyDeleteमैं तो अब तक यही सोच कर गलती किये जा रहा था कि गलतियां इंसान से ही होती है !
लेकिन आपने जबसे पब्लिकली धोया है झेंप के मारे अगली पोस्ट लिखने की हिम्मत नहीं हो रही है !
bilkul sahi kaha.....sirf abhivyakti hi amar hai, vo chahe kisi bhi roop me ho.........
ReplyDeletehamari abhivyakti hi hamaare charitra aur vyaktitwa ka pratibimb hoti hai.........
सही कह रहे हैं । शब्द बंदूक की गोली की तरह होते हैं जो एक बार निकलने पर वापिस नही लिये जा सकते ।
ReplyDeleteसच बताईये आपको यकीन है कि ऐसे उपदेश से कोई सुधरने वाला है? जिसके पास जो कुछ है, वह वही दे सकता है। और इन लोगों के खाद पानी हम और आप जैसे ही बनते हैं। फ़िर भी आपकी सदिच्छा सराहनीय है। आपके विश्वास के लिये ’आमीन।’
ReplyDeleteMain aapse purntah sahmat hu . shabd brahm hota hai...iska sahi upyog hona chahiye ....fir hame bhi soch samajh kar kuchh kahna chahiye ...aapko hardik dhanyvad ki aapne is par sabon ka dhyan khincha.
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत |मेरे विचार से ब्लॉग ही क्यों ?जीवन में भी हम जिनसे भी मिले यही व्यवहार रखे ताकि बरसो बाद भी मिलने वाले के दिल के किसी कोने में आपकी याद बनी रहे |
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत |मेरे विचार से ब्लॉग ही क्यों ?जीवन में भी हम जिनसे भी मिले यही व्यवहार रखे ताकि बरसो बाद भी मिलने वाले के दिल के किसी कोने में आपकी याद बनी रहे |
ReplyDeleteबिल्कुल सही --मनुष्य की लेखनी उसके व्यक्तित्व की प्रतिच्छाया ही होती है। अतः लेखनी हो या व्यवहार ध्यान से ही होनी चाहिए।
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