जनजीवन में हास्य की उपयोगिता, लगता है कम होती जा रही है ! घर में खुशिया और मुस्कान बिखेरने के लिए, पूर्वजों द्वारा व्यवस्थित उत्सव आते हैं और चले जाते हैं ! मगर हम लोग ,अपना बनाया गया अहम् प्रभामंडल, तोड़ने को तैयार नहीं !
कितने वर्षों से , शीशे के ,
सम्मुख आकर मुग्ध हुए हैं कितनी बार मस्त होकर के
अपनी पीठ ,थपथपाई है ,
इस होली पर अहम् छोड़ कर, गुरु चरणों में शीश झुकालें !
प्यार और मस्ती में डूबें , आओ अहंकार जला दें !
अक्सर इस मानव जनित अहम् को तोड़ने में , बचपन का प्यार, स्नेह और ममता भी कमजोर पड़ने लगती है, कठोर ह्रदय को भी जीत लेने में समर्थ स्नेह और प्यार , इस मानव जनित, जटिल अहम् को कमजोर नहीं कर पाता और जीत अक्सर अहम् की ही होती है !
ऐसे ख़राब माहौल में , अपने कालरों को ऊंचा उठाये ब्लोग्स के मध्य, कुछ लोग हास्य बिखेरने का प्रयत्न कर रहे हैं , यह स्वागत योग्य है ..काश लोग हँसना सीखें तो कितने घरों में, मासूमों के चेहरों पर रौनक आ जाएगी !
ब्लॉग जगत में इस हास्य रौनक की शुरुआत वंदना अवस्थी दुबे ने "अपनी बेवकूफियां बताइये " के आवाहन के साथ किया था जो बहुत कामयाब रहा ! लोगों ने ऐसी ऐसी बेवकूफ़ियाँ बतायीं कि पाठकों को यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसी भी बेवकूफी की जा सकती है ! मजेदारी यह कि वंदना ने खुद अपनी कोई बेवकूफी नहीं बताई ....
वैसे आम तौर पर लड़कियां कोई बेवकूफी करती भी नहीं ... ;-)
धूमधाम और नगाड़ों के मध्य, ब्लॉग जगत के सबसे बड़े चालबाज ताऊ रामपुरिया ने, शरीफ और सीधे साधे चच्चा पिटलिए को पिटवाने के लिए ब्लॉग जगत के मशहूर पहलवानों कनाडा से समीर लाल जी, पिट्सबर्ग वाले अनुराग शर्मा , हैदराबाद से विजय कुमार सप्पति एवं बड़ी मूंछ वाले ललित शर्मा को बुलवाकर , जर्मनी वाले राज भाटिया के नेतृत्व में पिटवाने का प्लान बनाया गया ! बेचारे चच्चा इन भयंकर और ताकतवर लोगों के सामने क्या बच पाते, सो पिटे और बुरी तरह, निर्दयता से पिटे, और जर्मनी वाली रजिया भौजी गुलाबी चुन्नी में मुस्कराती रही :-)
इस बार ब्लॉग जगत के वकील साहब भाई द्विवेदी जी भी पीछे नहीं रहे ...ताऊ रामपुरिया के बारे में उनके विचार पढ़ कर हंसी छुट गयी ! एक बानगी देखिये....
परस्पर शिकायते और वैमनस्य पालते हम लोग अगर इन प्रयासों के फलस्वरूप , भवें चढाने की जगह, मुस्करा सकें तो देखने में साधारण लगता यह कार्य, अपना महत्व बताने में कामयाब हो जायेगा !
आनंद भयो सक्सेना जी!! ऐसा समाहार कहाँ देखने को मिल सकता है?
ReplyDeleteताऊ पिटा-पिटू के चुप्पे बैठा है? कछु बोलत नाहिं ...
एकदम मस्त मजेदार पोस्ट....
ReplyDeleteहाहाहाहा .....
आप सबकी बेवकूफियां पढ़ आये हैं वंदना जी के ब्लॉग से...
निर्मल हास्य तो कहीं रहा नहीं हॉं कुटिल हास्य तो खूब है।
ReplyDeleteइस होली पर अहम् छोड़ कर, गुरु चरणों में शीश झुकालें !
ReplyDeleteप्यार और मस्ती में डूबें , आओ अहंकार जला दें !
आजकल बिना लठ्ठ खाये ना तो भाग्य बढता है और ना ही अहंकार जाता है सो हमारे लिये रजिया भौजी ने पक्का इंतजाम कर रखा है. हर साल बिना नागा चार "मेड-इन-जर्मन" ताई को गिफ़्ट मे मिल जाते हैं जो साल भर हमारा अहंकार तोडने के लिये काफ़ी है. काश सारी दुनियां में ऐसी भौजियां और ताईयां होती तो अहंकार तो नही बचता.:)
रामराम.
सचमुच यह प्रयास स्वागतयोग्य है .
ReplyDeleteऔर आप सही कह रहे है @@मजेदारी यह कि वंदना ने खुद अपनी कोई बेवकूफी नहीं बताई ....
सम्भावनाएं कम है पूर्ण सावधान होकर रचे हास्य में अहंकार निर्मूल हो जाय। फिर मानसिक उर्ज़ा के लिये खयाल अच्छा है।
ReplyDeleteशुभकामनाएं!!
सुधार…
ReplyDeleteफिर भी मानसिक उर्ज़ा के लिये खयाल अच्छा है।
वैसे आम तौर पर लड़कियां कोई बेवकूफी करती भी नहीं ... ;-)
ReplyDeleteबिलकुल सही बात कही आप ने वास्तव में लड़किया लड़को के मुकाबले कम बेफकुफिया करती है किन्तु दूसरो की बेफकुफियो पर हम हसने में कोई कंजूसी नहीं करते है | और खून बढ़ाने वाली पोस्टो का लिंक देने के लिए धन्यवाद |
सच है सतीशजी, अहंकार रूपी दानव न तो देखने वाले को आचा लगता है और ना ही करने वाले को फलता है; और फिर बड़ों ने भी कहा है न कि "थोता चना बजे घना" ! तो कुल मिला कर आजकल अहम का फैशन ही नहीं रहा, सिर्फ नासमझ ही किया करते हैं!
ReplyDeleteहोली के इस प्यारे से सन्देश के लिए धन्यवाद!
holi ki shubhkaamnayen
ReplyDeleteha..ha..ha...
ReplyDeleteleo.....apko pitne ke baad bhi hasya
sujh raha hai......aur hum kha-ma-kha
gusiyaye ja rahe the......o to bhala
ho dinesh dadda ka jo....silbatte ki
darshan kara di.....
khair, ab to agle holi ki pratiksha hi karni hogi....
pranam.
सभी खून बढ़ाने वाली पोस्ट पढ़ आये हैं :) बहुत शुक्रिया आपका
ReplyDeleteऔर वंदना जी को तो हम छोड़ेंगे नहीं :):)निकलवा कर रहेंगे उनकी बेबकूफी.:)
vandna ji ne padha diya tha ... mazedaar laga
ReplyDeleteदिल की तस्सली के लिए
ReplyDeleteझूठी चमक , झूठा निखार ,
जीवन तो सुना ही रहा
सब कहते हैं आई है बहार..............
सच कहा आपने अब लोग दिल से नहीं दिमाग से हसंते हैं ,
होली के बाद भी होली का अहसास कराती सुंदर प्रस्तुति हेतु आभार ........
पुराने साहित्यकारों और कवियों के बीच आज़ भी होली पर 'महामूर्ख सम्मेलन' परम्परा जीवित है. महामूर्खाधि-राज और शठ-ईश उपाधियाँ आज़ भी प्रचलित हैं .................. लगता है ब्लॉग-जगत के बुद्धिजीवी ब्लोगर्स को इन उपाधियों को बाँटने की नींव अपने यहाँ भी रखनी चाहिए. आपकी टीम जो भी प्रदान करेगी - सहर्ष स्वीकार होगा.
ReplyDeleteवैसे भी दोनों उपाधियों में वरिष्ठों के नाम की ध्वनि भी गुंजायमान है : 'राज' और 'सत-ईश'
आप सब गुरुजन ही इस तनाव भरते ब्लॉग-जगत में गुगुदाने की पोस्ट-थेरेपी दे रहे हैं.
satishjee Dr daral sahab ki poem aap bhool gaye.......
ReplyDeleteuse padkar to haste haste dard hone laga tha .....
वाह! क्या मस्त मस्त लिखा है आपने .अक्ल की पोटलियाँ समेट कर ताऊ आजकल अक्ल का जमींदार बन बैठा है.वाकई में ठहाके के लगाने को मजबूर किया है आपने.बहुत बहुत आभार.
ReplyDeleteइस होली पर अहम् छोड़ कर, गुरु चरणों में शीश झुकालें !
ReplyDeleteप्यार और मस्ती में डूबें , आओ अहंकार जला दें !
धन्यवाद आपकी पोस्ट पर आकर बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
प्रणाम स्वीकार करें
नोएडा से चार जर्मन लट्ठ की डिमांड श्री राज भाटिया जी के पास आई है। ये लट्ठ मुझे गंतव्य तक पहुँचाने हैं। मुझे लग रहा है आपके घर पर ही डिलिवर होंगे। :)
ReplyDeleteप्रणाम
हो...ली...के बाद भी होली...
ReplyDeleteअरे कोई चच्चा पिट लिए को बहुत सारा दही-वही खिलाओ भई...
उसके बाद ही बदन की सूजन उतारने के लिए हल्दी-दूध पिलाया जाएगा...
जय हिंद...
सतीश जी,
ReplyDelete‘आइये ठहाका लगाएं’ के जरिए आपने ठहाके लगवा ही दिए...
सब की बेवकुफिया पढ कर आया हूँ अच्छा लगा,
ReplyDeleteआपकी पोस्ट हमेशा एक नया आनन्द देती है
ताऊ जी का कहना सही कि अहम बिना लठ्ठ के नही जाता फिर चाहे वो ताई का हो या नीली छतरी वाले का
शुभकामनाये
वाह ये तो चर्चा भी हो गई :)
ReplyDeleteबहुत मजेदार पोस्ट...
ReplyDelete्वन्दना जी की वो पोस्ट पढी थी……………आपने आज उसमे हास्य का तडका लगा दिया।
ReplyDeleteऐसे आयोजनों का स्वागत होना चाहिये. निर्मल हास्य के मौके यूँ भी दुर्लभ होते जा रहे हैं.
ReplyDeleteबहुत सही कहा।
ReplyDeleteहंसी के लिए वक़्त निकालने की ज़रूरत नहीं पड़ती।
हँसना सीखें, हँसाना सीखें।
ReplyDeleteक्या बात है सतीश जी! बहुत बढिया. ज़्यादा बढिया इसलिये क्योंकि यहां मेरा ज़िक्र है, तस्वीर सहित :):)
ReplyDelete" बेवकूफ़ियां, जो यादगार बन गईं " का आयोजन भले ही मैने किया हो, लेकिन उसे क़ामयाबी मिली आप सब के सक्रिय सहयोग से.
ज़िन्दगी में हंसी-खुशी का बहुत महत्व है. ये तब और बढ जाता है जब हम जापान जैसी किसी घटना से रूबरू होते हैं. तब बड़ी शिद्दत से महसूस होने लगता है कि हम पता नहीं क्यों लड़ाई-झगड़े करते हैं? ज़िन्दगी का कोई ठिकाना ही नहीं है, आज परिचर्चा कर रही हूं, हो सकता है कल ही दुनिया से कूच कर जाऊं, तब क्यों न हंस के ज़िन्दगी गुज़ारी जाये?
बहुत बहुत धन्यवाद, यहां स्थान देने के लिये.
और हां, जल्दी ही अपनी तमाम बेवकूफ़ियं बताउंगी, अगली ही कड़ी में :)
ReplyDeleteहा हा हा हा ....तब से शुरू ....अब तक हा हा हा हा...कोई तो हँसो भी....
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ReplyDeleteआम तौर पर लड़कियां कोई बेवकूफी करती भी नहीं
@ जी करती क्यों नहीं, वह पुरुषों को दिखती नहीं तो क्या किया जाये । जब दिखने लगती है तो बहुत देर हो चुकी होती है । लीजिये एक पोपट तुकबन्दी नोश फ़रमाइये
अच्छा कुंवारा था क्यों बना पति
डूब गयी है नैया, हो गयी है दुर्गति
शादी का लडू तो खाया
शुरू शुरू में मज़ा भी बहुत आया
हौले हौले मगर बीवी ने रंग दिखाया
दो चार लप्पड़ जब उसने लगाया तब जाके ये समझ आया
अब कुछ हाल ऐसा है की अपने आँचल को बना के रस्सी
दबा देती है मेरी गर्दन
और रोज़ बेलन से करती है मेरे पिछवाड़े का मरदन
पूरा बदन उसके आतंक से काँप जाता है
बीवी जब गुस्से से देखती है तो मेरा सुसु निकल आता है
अक्ल की पोटलियाँ समेट कर ताऊ आजकल अक्ल का जमींदार बन बैठा है
@ इसमें क्या बुराई है भाई ? मेरे हरदिल अज़ीज़ पर तोहमत न लगाओ, आजकल आउटसोर्सिंग का ज़माना है । दुनिया में दो ही ज़मींदार हैं, इधर ताऊ, उधर ओबामा ! अपने ताऊ कुछ अधिक विनम्र हैं फटे में टाँग नहीं अड़ाते तो क्या अक्ल की आउटसोर्सिंग भी नहीं कर सकते ?
आज परिचर्चा कर रही हूं, हो सकता है कल ही दुनिया से कूच कर जाऊं,
@ समय रहते बता देना वँदना, उस रूट पर कुछ डॉक्टर तैनात किये गये हैं । रास्ते पर चूना और डी.डी.टी. छिड़कने की ड्यूटी मेरी ही है !
हा हा हा ! बहुत बढ़िया । हंसने के लिए तो समय निकाल ही लेना चाहिए ।
ReplyDeleteमजेदार पोस्ट....
ReplyDeleteमजेदार अनुभव दिलवाए आपने ठहाकों की तलाश में वन्दनाजी के ब्लाग तक पहुंचवाकर भी । होली तो हो ही ली । आभार सहित...
ReplyDeleteAchha Laga sabko pyar bhari bate karte dekh kar.
ReplyDeletemaza aa gaya ha ha ha ''''''''''''
ReplyDeleteबिल्कुल सही है सतीश जी हँसी का जीवन में बहुत अधिक महत्व है ,अगर डॉक्टर मरीज़ से हँस कर बात कर ले तो उसका आधा मर्ज़ तो यूंही ख़त्म हो जाता है
ReplyDeleteऔर वंदना ,,,,,,,,,उन की तो बात ही अलग है
लेकिन आज क्या हो गया तुम को वंदना ??
आज परिचर्चा कर रही हूं, हो सकता है कल ही दुनिया से कूच कर जाऊं,
तुम से ऐसी निराशावादिता की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी
आप सब को रंग पंचमी की बधाई
गुरुदेव जी, परनाम स्वीकार करें, मजबूरी में आश्रम से बहार निकलना पड़ा, पर आपका ब्लॉग तो एक से बढ़कर एक रत्न समेटे हुवे है, देखिये, वन्दना अवस्थी जी का ब्लॉग मिल गया...... आभार,
ReplyDeleteयूँ ही बेफिक्री रहे.... ये दुआ है मेरी.....
@ दीपक बाबा ,
ReplyDelete"सतीश चाचा देख लिया आज, ताऊ की दूकान पर मूंछ वाली चाचियों से मार खाते हो .... और हमरे ब्लॉग पर आके लेक्चर देते हो......."
आजकल का यही तरीका है, ऐश करने का ! जहाँ पिट लिए वहां से भाग लो ...जहाँ शरीफ आदमी दिखे वहा गुरु बन जाओ , यही दस्तूर है !
क्या दीपक बाबा ....!!!
यह सब भी तुम से ही सीखा है ......
:-))
ठीक कह रहे हो चचा खुद तो पिट पिटा गए, अब सरे बाज़ार कहते फिरते हो कि ये सब हमसे सीखा है
:) :) :)
ReplyDelete
ReplyDelete@ वंदना अवस्थी दुबे ,
जहाँ तक मैं आपको जान पाया हूँ शुरू से हंसमुख और खुशमिजाज़ हो अगर आपने यह बात सामान्यतः लिखी गयी है तो जीवन की वास्तविकता और क्षण भंगुरता देखते हुए ठीक ही कहा है कि यहाँ अगले पल की कुछ किसी को नहीं पता और अगर इसका कोई कारण भी है तब हमें झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए !
डॉ अमर कुमार आज काफी दिन बाद आये हैं ...बहादुरी के वे साक्षात उदाहरण हैं, उन्होंने कैंसर को परास्त करते हुए अपनी जीवन्तता पूरे उफान के साथ कायम रखी है और इसका उदाहरण उनके उपरोक्त कमेन्ट में देख सकते हैं ! अभी बरसों वे हमें शान के साथ जीना सिखाते रहने के लिए कृत संकल्प हैं !
इस्मत जी जवाब के इंतज़ार में हैं मैम !
सच है जीवन इतना गंभीर नहीं है जितना हम समझते है !
ReplyDeleteआपके विचारोंसे सहमत हूँ !
मजेदार पोस्ट...........:)
ReplyDeleteबहुत बढिया
ReplyDeleteवैसे आम तौर पर लड़कियां कोई बेवकूफी करती भी नहीं ... ;-)
भ्रम बना रहे
अरे अभी कुछ देर पहले ही वो वाली पोस्ट पढ़ी थी मैंने :) :)
ReplyDeleteहा हा हा
'महामूर्ख सम्मेलन' परम्परा जीवित है.
ReplyDeleteमस्त मजेदार पोस्ट....
आपके बताये पते पर पहुँच चुके हैं ....सार्थक प्रयास ..
ReplyDeleteसतीश जी बहुत मजेदार पोस्ट रही. एक बार इस पोस्ट को जो पढ़ेगा हास्य उसका पीछा नहीं छोड़ेगा.
ReplyDelete०- डॉ. साहब. ये तो आप सबसे मिलने के बहाने हैं :):)
ReplyDelete०- क्या इस्मत! तुम भी न.... मैं और निराशा? न भाई. दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है निराशा से. ऐसे ही हंसती और हंसाती रहूंगी, पक्का वादा.
०- सतीश जी, सचमुच ही ये आज की क्षण्भंगुरता के लिये चिन्ता थी. जाने का फिलहाल मेरा कोई इरादा नहीं है. अभी तो अपनी मुलाकात बाकी है :)
हमे तो फ़ोटू घणे चंगे लगे जी, पिटना पिटाना तो हम ने छोड दिया... लेकिन भाई लोगो की पिटाई देख कर मजा आ गया
ReplyDeleteमुझे गुजारिश का एक बेहद सुंदर सीन याद आ रहा है सर।
ReplyDeleteजिंदगी बहुत खूबसूरत है। फिर चाहे वो सात-सवा सौ पाउंड की है या सौ ग्राम की।
आदरणीय सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
ठहाके लगाने में हम आपके साथ हैं !
आप सुनिए तो …
हा हाऽऽ हाऽऽऽ हा ऽऽऽ ह ऽऽ हऽ ह … !
जनजीवन में हास्य की उपयोगिता तो कम होती नहीं जा रही … "अवसर कम होते जा रहे हैं …"
अच्छी प्रस्तुति के लिए आभार ! बधाई !
भारत भारती वैभवं
पर भी पधारिएगा , समय मिलने पर …
सलिल वारि अंभ नीर जल पानी अमृत नाम !
जल जीवनदाता ; इसे शत-शत करो प्रणाम !!
है सीमित , जल शुद्ध ; कर बुद्धि से उपभोग !
वर्षा-जल एकत्र कर ! मणि-कांचन संयोग !!
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आनंद दिलाने वाली पोस्ट। होली के मूड में कमेंट नहीं कर सका। यह लाइन बड़ी जोरदार लगी...
ReplyDelete...दूसरों की अक्ल की पोटलियाँ समेट कर आज कल ताऊ अक्ल का जागीरदार बना बैठा है ...."
के होया भाई जो होली में पिट पिटा लिए
ReplyDeleteदो गिलास आपकी खुशी के लिए चढा लिए
जब इतनी मजबूत भौजाईयों ने करी पिटाई
मोहल्ले में अबीर गुलाल हमने भी उड़ा लिए
राम राम
होली की बधाई और शुभकामनाएं
ह ह हा।
ReplyDeleteमजा आ गया।
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
धर्म की क्रान्तिकारी व्या ख्याa।
समाज के विकास के लिए स्त्रियों में जागरूकता जरूरी।
प्यार और मस्ती में डूबें , आओ अहंकार जला दें !jai baba banras.....
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति हेतु आभार ........
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
ReplyDeleteसही बात है।
ReplyDeleteबहुत सही कहा।
ReplyDelete...अच्छी प्रस्तुति के लिए आभार ! बधाई !
कारण चाहे जो हो,हंसने का बहाना होना चाहिए। कहीं भीतर ही थी,अब देखिए,ढूंढना पड़ रहा है इसे। कभी लाफ्टर क्लबों में,कभी बेवकूफियों में!
ReplyDeleteBahut badiya saarthak sandesh mast post....
ReplyDeleteHOLI aur RANGPANCHMI ke haardik shubhkamnayen..
Deri ke liye kshama..
saadar
क्या बात है...बहुत कुछ समेट लिया है इस पोस्ट में...हंसने के कुछ और बहाने मिल गए.
ReplyDeleteMazedar...rochak...bevkufiyon me romanch bhi....ha!ha!ha!....
ReplyDeleteरोचक और मज़ेदार पोस्ट है आपकी--सोच काबिलेतारीफ है।
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