अरुणा शानबाग पर, गिरिजेश कुमार का यह लेख प्रसंशनीय है ! शायद मेरे लेख की भी लोग तारीफ़ करेंगे मगर क्या हम लोग अरुणा के लिए कुछ भी ठोस कर पा रहे हैं ??
ऐसे मार्मिक मौकों पर, समाज ,पाठकों एवं तमाशबीनों की उपस्थिति के बाद , इतिश्री हो जाती है ! इलेक्ट्रोनिक अथवा प्रिंट मीडिया की सफलता, लेख के सफल प्रदर्शन और प्रभाव पर निर्भर करती है और हम पाठक अक्सर तालियाँ बजा कर लेख का स्वागत करते हैं !
इसके बाद दर्शक गण, मदारी की तारीफ़ करते अपने घर जाते हैं और मदारी किसी नए खेल और जमूरे के साथ किसी और भीड़ भरी जगह की तलाश में !
क्या अरुणा को बचाने के प्रयास बंद कर देना चाहिए केवल इसीलिए कि उसका साथ देने वाले परिवार जन न के बराबर है ? क्या और कुछ नहीं किया जा सकता ? सम्मिलित शक्ति के साथ, अगर हम सब थोडा समय इस जीवंत समस्या में लगायें तो शायद यह बदकिस्मत लड़की बच जाए !
क्या अरुणा को बचाने के प्रयास बंद कर देना चाहिए केवल इसीलिए कि उसका साथ देने वाले परिवार जन न के बराबर है ? क्या और कुछ नहीं किया जा सकता ? सम्मिलित शक्ति के साथ, अगर हम सब थोडा समय इस जीवंत समस्या में लगायें तो शायद यह बदकिस्मत लड़की बच जाए !
अरुणा का इलाज़ एलोपैथिक सिस्टम में संभव नहीं है ....
मगर क्या आदिमकाल से मानव, पूरे विश्व में सिर्फ एलोपैथिक सिस्टम से इलाज़ करवाता आया है ?
क्या यह विज्ञानं व्यवस्था, हमें एलोपैथिक सिस्टम के सामने घुटने टेकने के लिए मजबूर नहीं करती ?? शक्तिशाली प्रचार तंत्र के होते , बंद दिमाग लेकर चलते और जीते हम लोग, एलोपैथिक सिस्टम के आगे और कुछ सोंच ही नहीं पाते !
एलोपैथी को छोड़ अगर हम वैकल्पिक चिकित्सा पर ध्यान दें तो अरुणा को कोमा से बाहर लाया जा सकता है ! होमिओपैथी एवं विश्व की अन्य कई ऐसी विधियाँ हैं जो मृत प्राय लोगों को जिलाने की शक्ति रखती हैं !
अगर हो सके तो अरुणा के मित्र अथवा उसको मदद करते संगठन का पता लगा कर , उससे जुड़ने का प्रयत्न करें तो अभी भी कुछ हो सकता है !
मानव चाहे तो क्या नहीं कर सकता ......आवश्यकता सिर्फ सामूहिक ताकत का उपयोग करने का ही है , रास्ता निकल ही आएगा !
मानव चाहे तो क्या नहीं कर सकता ......आवश्यकता सिर्फ सामूहिक ताकत का उपयोग करने का ही है , रास्ता निकल ही आएगा !
सतीश जी,
ReplyDeleteक्या आपको उनका इलाज अब भी
संभव लगता है पिछले ३७ सालसे
वो कोमा में है और उनकी आयु
लगभग ६५ साल है !
मानव चाहे तो क्या नहीं कर सकता ......आवश्यकता सिर्फ सामूहिक ताकत का उपयोग करने का ही है , रास्ता निकल ही आएगा
ReplyDelete.
उम्मीद पे दुनिया काएम है और यह सही है की आयुर्वेद,होमिओपैथी ऐसे मरीजों के लिए अधिक कारगर हो सकती है.
@ सुमन ,
ReplyDeleteकोई भी जानकार होमिओपैथ जिसे अरुणा की जानकारी होगी , उन्हें ठीक करने में समर्थ होगा ! मुझे यकीन है कि एक विद्वान् होमिओपैथ उसे कोमा से बापस लाने में समर्थ रहेगा !
अन्य वैकल्पिक चिक्त्सायें जैसे अक्यूपंक्चर आदि में भी, इस प्रकार की बीमारी ठीक होते सुनी गयी है ! सवाल केवल जानकारों का ध्यान इस तरफ आकर्षित करने का है ! इस देश में ज्ञानिओं की कोई कमी नहीं है !
अच्छी भावना है बंधु :)
ReplyDeleteसतीश जी सही कह रहे हैं....जब एक से बात न बने तो क्यों ना दुसरे की और देखा जाये....कोशिश किया जाना चाहिए....
ReplyDeleteआदरणीय सतीश भाई जी
ReplyDeleteआपकी संवेदनात्मक अभिव्यक्ति ...जीवन के निस्वार्थ भाव से सम्बंधित है , हम किसी के लिए कुछ कर पायें ..इससे बड़ी बात क्या हो सकती है ...अरुणा के लिए किया गया आपका आह्वान सच में प्रशंसनीय है
हर संवेदनशील इन्सान के विचार यही होंगें .... पर थोड़ा मुश्किल लगता है...
ReplyDelete@मानव चाहे तो क्या नहीं कर सकता ......आवश्यकता सिर्फ सामूहिक ताकत का उपयोग करने का ही है , रास्ता निकल ही आएगा !
ReplyDeleteसही कह रहे हैं भाई साहब.
उत्तम विचार बहुत ही सार्थक चिंतन.........बहुत सही कहा आप ने हमारी शुभकामनाये आपके साथ है,
ReplyDeleteसतीश जी आपकी भावनाएं सही हैं। और यदि आप जो सोच रहे हैं उस तरीके से अरूणा के ठीक होने के यदि एक फीसदी भी चांस हो तो भी प्रयास तो करना ही चाहिए। कहते हैं न कि हिम्मते मर्दा मददे खुदा।
ReplyDeleteसतीश जी आपकी भावनाएं सही हैं। और यदि आप जो सोच रहे हैं उस तरीके से अरूणा के ठीक होने के यदि एक फीसदी भी चांस हो तो भी प्रयास तो करना ही चाहिए। कहते हैं न कि हिम्मते मर्दा मददे खुदा।
ReplyDeleteउम्मीद पे दुनिया कायम है लेकिन क्या इतना लम्बा इन्तेजार
ReplyDeleteआम आदमी के बस की बात है?
सतीशजी,
ReplyDeleteमुझे भी आपकी बात काटने की ही इसलिये इच्छा हो रही है कि यदि वैकल्पिक चिकित्सा टाईप के कोई प्रयास इस रोगी के लिये होना उपर्युक्त थे तो उन्हें सालों पहले ही अमल में लाया जाना चाहिये था । अब 37 साल से कोमा का वो मरीज जो अब इसी अर्द्धमृत स्थिति में 65 की उम्र पार कर चुका हो । ये प्रयास मुझे संभव व सार्थक दोनों ही नहीं लगते । फिर भी यदि कोई काल्पनिक मुन्नाभाई MBBS शायद ऐसा कोई चमत्कार करवा दे तो बात अलग है ।
पूरी कोशिशें करने के बाद अरुणा को आधी-अधूरी ज़िन्दगी मिल भी गई तो किस मन से कैसे जी पाएगी वह ,और कैसा होगा वह जीवन?एक विवश नारी तन को जिलाए रखना (मन उस ज़िल्लत से कैसे छुटकारा पाएगा ?) ,मुझे सोच कर भी कष्ट होता है .
ReplyDeleteअब तो वह मुक्त हो इस नरक से !
@ सुशील बाकलीवाल,
ReplyDeleteमानव बुद्धि और समझ अपरिमित है सुशील भाई ...विशाल विश्व ज्ञान में हमारी समझ, एक ज़र्रा भी नहीं ...
:-)
main nahi samajhti ki yah prayaas aruna ko zindagi degi, kis ghutan ko mahsoos karne ko wah phir hosh me aaye !!!
ReplyDeleteसतीश जी आपकी संवेदनाओं के लिए नतमस्तक.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteइतना ही कहूंगा कि
ReplyDeleteआप जैसे भावुक हृदय मानव की सुनले भगवान !
अगर एक मरते हुए व्यक्ति को नई जिंदगी मिले तो इससे ज्यादा हर्ष की बात कुछ नहीं हो सकती| अरुणा शानबाग का इलाज़ होमिओपैथी में है या नहीं मैं नहीं कह सकता| बहरहाल ऐसे प्रयास किये जाएँ तो अच्छा ही होगा|
ReplyDeleteपोस्ट के शुरू में आपने एक अच्छा सवाल उठया है क्या हमलोग अरुणा के लिए कुछ ठोस कर पा रहे हैं?? थोड़ी देर के लिये हम यह मान लेते हैं कि अरुणा स्वस्थ हो गयी, क्या हमने कुछ ठोस कर लिया? माफ करेंगे अगर आप ऐसा सोचते हैं तो मैं इससे इत्तफाक नहीं रखता| कतई सहमत नहीं हो सकता| अरुणा शानबाग किसी बीमारी की शिकार नहीं थी, हवस के वहशी दरिंदे ने उसे इस स्थिति में लाकर छोड़ दिया| मैं तो यह समझता हूँ कि समाज से इस दरिंदगी को खत्म करने के प्रयास किये जाएँ तभी कह सकते हैं हमने कुछ ठोस किया ताकि फिर कोई अरुणा जिंदा लाश की तरह किसी अस्पताल में अस्पताल कर्मचारियों के भरोसे ना पड़ी रहे|
गिरिजेश कुमार
मैने भी पारम्परिक चिकि्त्सा से कोमा से बाहर आते देखा है। वो अब अच्छे से पहले जैसे काम कर रहे हैं।
ReplyDeleteआशा से आकाश टिका है...
ReplyDeleteमार्मिक.
ReplyDeleteमुझे भी होमियोपैथी पर यक़ीन है.
मानव चाहे तो क्या नहीं कर सकता .....बस्स!!
ReplyDeleteकुदरत का चमत्कार कभी भी हो सकता है ! हमें उम्मीद की डोर नहीं छोड़नी चाहिए और अरुणा शानबाग के लिए प्रार्थना करनी चाहिए !
ReplyDeletethank you dear "voice of youth "
ReplyDeleteyours is the only comment that is worth reading and appreciating
there is no point in posting such posts and discussing issues while ignoring the cause of it all
sensitivity that benefits only one section of society is not sensitivity but selfishness
we need posts on how to remove gender bias
bhavna thik hai, kya ye sambhav hai ?
ReplyDeleteअगर ऐसा हो पाए तो बहुत अच्छा हो..
ReplyDeleteआपने कहा कि "ऐसे मार्मिक मौकों पर, समाज ,पाठकों एवं तमाशबीनों की उपस्थिति के बाद , इतिश्री हो जाती है !"
पर बेचारा आम आदमी करे तो क्या अरुणा शानबाग से बदतर हालत वाले लोग हमारे चारों ओर पड़े हैं.. अरुणा तो कम से कम एक अच्छे अस्पताल के अच्छे वार्ड में भर्ती हैं और किसी भी विधि से कम से कम उनका इलाज चल रहा है. वरना हमारे गांवों में तो लोग इलाज के अभाव में हैजा से ही मर जाते हैं... न आज तक मैंने किसी को कोमा में जाते देखा न इच्छामृत्यु की जरुरत महसूस करते. मुझे लगता है अरुणा से ज्यदा होमियोपैथी वालों को ऐसे गरीबों की करनी चाहिए..
अरुणा के साथ उनका पूरी अस्पताल है और हमें नहीं लगता कि, इस अवस्था में उन्हें अगर होम्योपैथी की गोलीयां भी दे दी जायें तो किसी हो कोई आपत्ति होगी।
ReplyDeleteपर बड़ा सवाल यह है कि चिकित्सा की सभी वैकल्पिक सुविधायें सभी को उप्लब्ध हों,चिकित्सा को एक लाभकारी धन्धा न बनाया जाये, "prevention is better than cure" ध्यान और योग को हम बड़े लोग अपनी दैनिकचर्या और आचरण में लायें।
आपकी भावना की कद्र करती हूँ लेकिन 37 साल मे तो जो तन्तू निर्जीव हो गये हैं उन्हें कैसे जीवित किया जा सकता है। लेकिन कोशिश कई बार असम्भव को भी सम्भव बना देती है। शुभकामनायें।
ReplyDelete'asha hi jivan hai' ...... abhi-abhi padha hai.....doosri baat ye vichar
ReplyDeleteapne rakhe hain......apki sadiksha
safal ho ye kamna karte hain.....
pranam.
बहुत ही सामयिक संवेदन शील मुद्दे पर विचारणीय पोस्ट ... आभार
ReplyDeleteकोई होम्योपैथी का जानकार ही इस बारे में कुछ कह सकता है।
ReplyDeleteआपकी भावनाओं को नमन
प्रणाम
सतीश जी,
ReplyDeleteआपकी जिजीविषा भरी शुभचिंतन की भावना को प्रणाम।
जहाँ 99 डूब गये वहाँ 1 का भी प्रयास करने में कोई हर्ज़ नहीं।
प्रतिकूलता से लडने का नाम ही मानव है, और उसमें सफलता ही चमत्कार है।
what type of help ..she require ..? Pl. e-mail me on shaw.lpm@rediffmail.com.We will try to give some solution as possible pl .
ReplyDeleteबहुत कुछ सोचने पर विवश करती है आपकी पोस्ट, मैं आपके इस विचार से तो सहमत हूँ की जब तक सांस है तब तक आस नहीं छोड़ना चाहिए और इस ओर प्रयास भी उचित है परन्तु क्या वो स्त्री जो जिस हालात का शिकार होकर इस स्थिति में इतने सालों से जीवित है अगर उसे ज़िन्दगी मिल भी गई तो किस मन से और कैसे जी पाएगी वह... प्रयास उस दिशा में भी हो की फिर कोई अरुणा शानबाग जैसी स्थिति में न पहुंचे और न ही उसे इस तरह के न्याय या ईलाज की आवश्यकता हो..
ReplyDeleteआपके विचार उन हजारों लोगों के लिए आशा की किरण साबित हो सकते हैं जो किसी बीमारी की वजह से कोमा में रहते हुए सालों से जिंदगी की बाट जोह रहे हैं....
kya kaha jaaye.
ReplyDelete---------
क्या व्यर्थ जा रहें हैं तारीफ में लिखे कमेंट?
आज लोग कहते हैं
ReplyDeleteबेचारी लड़की के लिये कुछ करो
भूल जाते हैं वो कि
लड़की से वृद्धा का सफ़र
तुमने अपने बिस्तर के साथ
तय कर लिया हैं
काट लिया कहना कुछ ज्यादा बेहतर होता
असली मुद्दा जब तक खत्म न हो, तब तक क्या ऐसे व्यक्तिगत मामलों पर ध्यान भी न दिया जाये?
ReplyDeleteइस विषय पर आपकी भावना के साथ हमारा भीए जुड़ाव महसूस कीजियेगा।
मानव की आशावादिता ही उसका सबसे बड़ा संबल है -आशा बनाए रखें !
ReplyDeleteआपके जज्बे को सलाम, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
आपका सुझाव अच्छा है मगर हो सकता है वैकल्पिक तरीके भी आजमाये जा चुके हों अब तक्……………इतने बडे समय अन्तराल मे इंसान सभी तरीके आजमाने की कोशिश तो जरूर करता है ………………और अगर ऐसा नही हुआ है तो जरूर आजमाये जाने चाहिये मगर एक प्रश्न है …………अब वो ज़िन्दा रहकर करेगी क्या? क्या उस पीडा से मुक्त हो सकेगी? क्या एक बार फिर उस पीडा के दंश से नही जूझेगी? आज हम सभी यही सोच रहे है कि या तो उसे मौत मिल जाये या वो ठीक हो जाये मगर सोचने वाली बात ये है कि जिसमे उसका कोई कसूर नही वो सज़ा उसने बिस्तर पर लेटे लेटे भोगीहै मगर जिसने ये कुकर्म किया वो सिर्फ़ थोडी सी सज़ा पाकर आज भी आज़ाद घूम रहा है …………क्या ये जानकर वो दोबारा कोमा मे नही चली जायेगी या फिर जो उसकी आत्मा पर दाग लगा है उससे उबर पायेगी…………क्या उसके वापस होश मे आने से इस समस्या का हल मिल जायेगा? ऐसे ना जाने कितने प्रश्न है सतीश जी जो हमारे मनो को हिलाते हैं और जिनके जवाब हमारे पास नही हैं क्योंकि हम कुछ नही कर सकते सिवाय दुखी होने के…………कुछ गलत कह दिया हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ …………दिल बहुत दुखी है आजकल के हालात से इसलिये जो दिल मे आया लिख दिया।
ReplyDeleteसतीश जी , आपके खयालात बहुत अच्छे हैं ।
ReplyDeleteलेकिन डॉक्टरों को प्राथमिकता के बारे में भी सोचना पड़ता है ।
इमरजेंसी में इसे ट्राईएज कहते हैं ।
जिजीविषा बनी रहे, राह तो निकल ही आयेगी।
ReplyDeleteउत्तम विचार....
ReplyDeleteमानव चाहे तो क्या नहीं कर सकता ...
ReplyDeleteऔर अगर न भी कर सके तो उसका खामियाज़ा अरुणा शानबाग क्यों भुगते? इच्छा मृत्यु के नाम पर कोई हृदयहीन उसकी हत्या की बात कैसे कर सकता है?
सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बात कही आपने. होम्योपैथी एक बार ट्राई की जानी चाहिए.
ReplyDeleteअरुणा के लिए पूरी हमदर्दी बरतते हुए सोचते हैं कि ऐसी दशा में क्या अरुणा का नया चोला धारण करने का समय नहीं आ गया ?हालाँकि यह फैसला करने वाले हम नहीं हैं पर शायद अरुणा भी यही चाह रही होंगी (अपने अवचेतन मन में).
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी ,
ReplyDeleteआपने बिलकुल सच लिखा है । अरुणा का बच पाना तो शायद मुश्किल हो ,परन्तु दूसरी अरुणा को बचा पाने में हम सफ़ल हो पायेंगे ,ऐसी उम्मीद तो जागती ही है ।
अरुण शानबाग के लिए आपकी पीड़ा मन को द्रवित कर गई।
ReplyDeleteआपकी सदाशयता फलीभूत हो, यही मेरी कामना है।
सही कह रहे है सतीशजी ...जब इतनी सारी इलाज पध्धति उपलब्ध है तो फिर सिर्फ elopathy पर ही क्यों निर्भर रहा जाये ?? जरूरत है अन्य पद्धति के जानकारों को आगे आने की.
ReplyDeleteधन्य हैं केईएम अस्पताल के डॉक्टर और नर्स...
ReplyDeleteउनका कहना है कि जब उन्हें अरुणा की देखभाल करने में कोई दिक्कत नहीं तो वो फिर क्यों उसके लिए इच्छामृत्यु की मांग की गई...
सतीश जी ने प्रभावशाली बात कही है जिसे अरुणा के करीबियों तक पहुंचाया जाना चाहिए...
लेकिन यहां समाज का एक कड़वा सच ये भी है कि हवस की आग में अंधा होकर कोई दरिंदा अरुणा को इस हाल में पहुंचा देता है...कुत्ते को बांधने वाली ज़ज़ीर से वो मानसिक आघात पहुंचाता है कि 38 साल बाद भी अरुणा सदमे से उभर नहीं पाती...सवाल ये भी है कि युग कोई भी हो, अरुणाओं को ऐसी स्थिति का शिकार क्यों बनना पड़ता है...
जय हिंद...
ये हादसा कितना पुराना है ? अगर कोर्ट की तारीख ना होती तो क्या हमें अरुणा ख्याल आता ?
ReplyDeleteमुझे ऐसी किसी चमत्कार के बारे में जानकारी नही है पर उम्मीद है...अगर ऐसा कुछ भी संभव है तो निश्चित रूप से एक सार्थक पहल की जानी चाहिए ताकि किसी को फिर से जीने की राह दिखे...बहुत बढ़िया विचार रखी आपने...प्रणाम
ReplyDeleteउत्तम विचार बहुत ही सार्थक चिंतन.........बहुत सही कहा आप ने हमारी शुभकामनाये आपके साथ है,
ReplyDeleteकाश कोई संजीवनी बूटी ऐसी भी हो जिसे सूंघते ही अरुणा जी होश में आ जाएँ !
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteवयस्तता के कारण यह पोस्ट पढ़ ही नहीं पाया... वाकई, एकदम सही लिखा है आपने... इस ओर कोशिश की जानी चाहिए...
सतीश जी अच्छी कोशिश की है आपने ।
ReplyDeleteहम आप का ब्लाग अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने की कोशिश करेगें ।
शयद यह उस जानकार तक पहुँच जाये जो इनका इलाज अरने में सक्षम हो ।
हर ह्रदय वाला व्यक्ति यही चाहेगा | काश हम कुछ कर पाते.....|
ReplyDeleteबात सही है कि मात्र लेख लिखकर हमें अपने कर्तव्यों की इतिश्री नहीं मान लेना चाहिए |
भाई सतीश जी सादर अभिवादन |होली की सपरिवार रंगबिरंगी शुभकामनाएं |
ReplyDeleteसतीश जी आपकी संवेदनाओं के लिए नतमस्तक.
ReplyDelete