सुबह सुबह टहलने जाते समय , अक्सर पार्क में ठहाका लगते अधेड़ उम्र के लोग मिलते हैं , उनके साथ खड़े होकर, हास्यास्पद और बनावटी हंसी, हँसते देखने पर, यकीन मानिए आपकी हंसी छूट जायेगी कि क्या हँसी है यह भी ??
हँसते समय शारीरिक व्यायाम के साथ साथ, रक्त में ओक्सिजन का बेहतर संचार और मांसपेशियों में खिंचाव बेहतर तरीके से होता है ! हाँ जबरन हँसी के साथ , मानसिक संतुष्टि शायद ही कभी महसूस कर पायेंगे ! सामूहिक हंसी से, हंसने की आदत पड़ने में अवश्य सहायता मिलती है अतः जो लोग हंसना भूल चुके हों उन्हें इस प्रकार के लाफिंग क्लास अवश्य ज्वाइन करने चाहिए !
हँसते समय शारीरिक व्यायाम के साथ साथ, रक्त में ओक्सिजन का बेहतर संचार और मांसपेशियों में खिंचाव बेहतर तरीके से होता है ! हाँ जबरन हँसी के साथ , मानसिक संतुष्टि शायद ही कभी महसूस कर पायेंगे ! सामूहिक हंसी से, हंसने की आदत पड़ने में अवश्य सहायता मिलती है अतः जो लोग हंसना भूल चुके हों उन्हें इस प्रकार के लाफिंग क्लास अवश्य ज्वाइन करने चाहिए !
मुझे लगता है कि उन्मुक्त होकर हँसने के लिए सबसे पहले, एक निर्मल और चिंतामुक्त मन चाहिए ! अगर आपने कभी बच्चों की हंसी, का दिल से आनंद लेना हो तो खिलखिलाते वक्त उनकी आँखों में झाँक कर देखें, उनमें आपके प्रति प्रगाढ़ विश्वास और प्यार भरा होगा ! यही है असली हंसी..... इस हंसी से आपका तनाव दूर भाग जाएगा और ब्लड प्रेशर कभी पास नहीं आएगा ! मनीषियों ने, इसी हँसी को सेहत के लिए आवश्यक बताया है !
खेद है, कि हम लोग हँसी का अर्थ जाने बिना,हंसने का प्रयत्न करते हैं , आइये स्वाभविक रूप में हंसने के लिए बच्चों के साथ कुछ देर खेलते हैं !
@मुझे लगता है कि उन्मुक्त होकर हँसने के लिए सबसे पहले, एक निर्मल और चिंतामुक्त मन चाहिए !
ReplyDeleteबिलकुल सही -मन चंगा तो कठौती में गंगा.
सतीश जी हम तो आपके फोटो में आपकी उन्मुक्त हँसी को देखकर ही मदमस्त हो जाते हैं और इंतजार करते रहतें हैं कि कब यह हंसमुख चेहरा मेरे ब्लॉग पर आकर अपनी हंसीं की बौछारों से मेरी पोस्टों को सराबोर करेगा.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
आपकी उन्मुक्त हंसीं को प्रणाम.
हम लोग हँसी का अर्थ जाने बिना, हंसने का प्रयत्न करते हैं !
ReplyDelete......jo ekdam galat hai......aap bilkul sahi hain.
sach kaha maasoom ki ankho me jo aanand dayak hansi hoti us se mila sukoon kahin aur nahi mil sakta.
ReplyDeleteखुशी की बात यह है कि आप मार्निंग वॉक ही नहीं करते आसपास को ध्यान से महसूस भी करते हैं।
ReplyDeleteअधेड़ वय के पुरूष बनावटी हंसी हंसते हैं। हर पल घड़ी पर ध्यान रखते हैं। उन्मुक्त हंसी नहीं हंसते। सही है मगर करें भी तो क्या करें...? कहां से लायें बच्चों सी उन्मुक्त हंसी...? बाजार में खरीदी नहीं जा सकती, दफ्तर में मिलती नहीं है वरना आज के दौर में हासिल करना क्या कठिन था! चलो अच्छा हुआ वरना बेचारे बच्चे मरहूम रह जाते इससे भी।
उन्मुक्त हंसी के लिए निर्मल और चिंतामुक्त मन चाहिए। निर्मल मन जहरीली हंसी से खिन्न हो दुःखी हो जाता है। क्या यही प्रकृति का स्वभाव है?
उन्मुक्त होकर हँसने के लिए सबसे पहले, एक निर्मल और चिंतामुक्त मन चाहिए !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर बात कही आपने. पर अफ़्सोस हालात पर काबू करना हर किसी के वश में नही होता. शुभकामनाएं.
रामराम
निर्मल मन हों,
ReplyDeleteखिलते जन हों।
सतीश जी यह गाँव और शहर का अंतर भी है ।
ReplyDeleteवहां गाँव की उन्मुक्त हवा में , किसानों के ठहाके गूंजते हैं ।
यहाँ हंसने के लिए भी लोग , लाफ्टर क्लब ढूंढते हैं ।।
सही कहा --दिल खोल कर हंसने से तनाव सहित कई विकार दूर हो जाते हैं ।
jab man nishchhal ho tabhi hansane se swasthya labh bhi hora hai.
ReplyDeleteहम लोग हँसी का अर्थ जाने बिना, हंसने का प्रयत्न करते हैं !
ReplyDeleteसच में ....
सुंदर पोस्ट
सतीश जी ,
ReplyDeleteआज कल मैं यही हंसी हर पल महसूस कर रही हूँ ..यह मासूम हंसी सच ही सारे तनाव भगा देती है .. अच्छी पोस्ट
बच्चों की मुस्कान बहुत निर्मल और निश्छल होती है। उन जैसा मन कहां है बड़ों में....
ReplyDeleteहँसते रहे इस से टेंशन भी दूर होता है. आप कि हंसी चर्चा मंच तक पहुँची
ReplyDeleteबड़ी पुराणी कहावत है कि इंसान ही एक ऐसा शख्स है जो हंस सकता है और जिसपर हंसा जा सकता है.. जानवर तक डर जाते हैं ऐसी हंसी से जो बनावटी है... और बच्चों की हंसी के पीछे तो देवता मुस्कुराते हैं!!
ReplyDeleteआजकल तो शहरी बच्चे ख़ुद तनाव में जी रहे हैं। ऐसे में तनावमुक्त बच्चा ढूंढना भी सच में एक मुश्किल काम है लेकिन यह सच है कि हंसी की वजह से चेहरे की 46 मांसपेशियां हरकत में आती हैं और दिमाग़ से तनाव दूर हो जाता है। जब असली हंसी नहीं आती है तो सभ्यताग्रस्त और पैसापरस्त सेठ अलस्सुबह कुत्ते को पॉटी कराते हुए खोखली हंसी हंसने पर मजबूर हो जाता है। लेकिन उसकी हालत देखकर कुत्तामुक्त लोगों को वास्तविक हंसी ही आती है।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पूरी तरह सामयिक समस्या को हल करती है और बेहतरीन है।
एक अच्छी और लाभकारी रचना देने के लिए आपका आभार !
हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार को
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।
आपकी किसी पोस्ट की हलचल है ६-८-११ शनिवार को नयी-पुरानी हलचल पर ..कृपया अवश्य पधारें..!!
ReplyDeleteउन्मुक्त निश्छल हसीं -क्या कहने -याद है जब हम दिल्ली में मिले हैं तो हमारे ठहाके....अब हम आत्मश्लाघा तो नहीं करेगें मगर इतना तो कहेगें ही निर्मल हंसी के लिए निर्मल मन का होना जरुरी है!
ReplyDeleteलोग यह मान कर हँसते है की हंसने से सेहत ठीक रहती है | चाहें हँसी कैसी भी हो ......
ReplyDeleteउन्मुक्त होकर हँसने के लिये
ReplyDeleteसच में निर्मल ह्रदय चिंतारहित मन का
होना बेहद जरुरी है !
True laugh narrates the state of mind & soul.some one takes its an exercise but really it shows how much we adhesive and possessive towards life .
ReplyDeleteउन्मुक्त हंसी का शायद एक तरीका है हंस कर उन्मुकत होने का प्रयास. आए या न आए गाना चाहिए, की तरह हंसी के बारे में भी सोच सकते हैं.
ReplyDeleteव्यापार और अर्थ के इस युग में लोग हंसी भी क़िस्तों में निकालते हैं ...
ReplyDeleteदरअसल भौतिक सुखों की अनंत चाह और तलाश में यह निश्छल हँसी गुम हो गई है और फेफड़े में रक्त संचार के लिए लोग बनावटी ठहाके लगाते हैं ...
ReplyDeleteउन्मुक्त हँसी। आप ने मुझे पिताजी की याद दिला दी। जब भी वे घर लौटते थे। उन के पहले उन के ठहाके की ध्वनि हमारे कानों में पड़ती थी। मुहल्ले में प्रवेश करते ही कुछ न कुछ ऐसा अवश्य होता था या वे स्वयं ऐसा अवसर प्रदान कर देते थे कि ठहाका अवश्य लगता था।
ReplyDeleteसार्थक और सटीक प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
हम लोग हँसी का अर्थ जाने बिना, हंसने का प्रयत्न करते हैं !
ReplyDeleteएक दम सही कहा
बड़े हो चुके लोगों के लिए निर्मल हँसी सबसे कठिन कार्य है.
ReplyDeleteहास्यास्पद और बनावटी हंसी, हँसते देखने पर, यकीन मानिए आपकी हंसी छूट जायेगी कि क्या हँसी है यह ?....वाकई हम अपनी हंसी खोते जा रहे हैं.
ReplyDeleteवाकई ! पार्कों में अक्सर लोग दिमाग से हँसते हैं जबकि दिल से हँसना सेहत के लिए लाभदायक हो सकता है , वैसे सर बनावती खिल-खिलाहट से भी फेफड़ों तक ताजी हवा का संचार तो होता ही है ......................
ReplyDeleteआभार उपरोक्त पोस्ट हेतु,,
P.S.Bhakuni
मासूम हंसी चिंतामुक्त कर देती है....
ReplyDeleteसुबह सुबह टहलने जाते समय , अक्सर पार्क में ठहाका लगते अधेड़ उम्र के लोग मिलते हैं , उनके साथ खड़े होकर, हास्यास्पद और बनावटी हंसी, हँसते देखने पर, यकीन मानिए आपकी हंसी छूट जायेगी कि क्या हँसी है यह ??no they are undergoing a therapy http://www.laughtertherapy.com/
ReplyDeletei know u never had an intention to be ridiculing them because u cant but still its sending a wrong signal
and yes in a childs laughter there is god
इतनी उलझनों और नाटकीयता के बीच कैसी भी हँस लें ,हँसी सबसे बड़ी नेमत लगती है .... डर सिर्फ़ इतना है कि कहीं ये नकली हँसी देखने को भी तरस न जायें..... सादर !
ReplyDeleteबिलकुल निर्दोष हसी है....कोई छल-कपट नही....
ReplyDeleteबिलकुल...बहुत बहुत सही बात!!!
ReplyDeleteसतीश भाई जी ...आपका लेख सार्थकता लिए हुए है ...शुक्रिया अपने मन के भावों को सबके साथ बाँटने के लिए
ReplyDeleteमन ही हँसीं....बस छोटे बच्चों का साथ पकडे रखो ...हँसी अपने आप ही आ जाएगी ...हँसने के लिए किसी को सोचना नहीं पड़ेगा
--
निर्मल हंसी - निर्मल मन
ReplyDeleteबिल्कुल सही आकलन किया है।
ReplyDeleteअसली बात तो यह कि रोने से ही फूरसत नहीं मिलती।
ReplyDeletebahut sahi kaha aapne.vaidya vaagbhatt ne bhi uch aisa hi kaha hai apne lekh me.
ReplyDeleteउन्मुक्त हँसी की दुर्लभता के दौर में लाफ्टर क्लब की काल्पनिक हँसी भी शरीर को थोडा-बहुत लाभ तो दिलवा ही देती है । इसीलिये ये भी जहाँ-जहाँ चल रही है सफलतापूर्वक चल ही रही है ।
ReplyDeleteउन्मुक्त हंसी के लिए अब वातावरण कहां उपलब्ध है?
ReplyDeleteयह सही है कि किसी निर्दोष बालक की हंसी देख मन आनंदित हो जाता है।
और सतीश जी,
"हास्यास्पद और बनावटी हंसी, हँसते देखने पर, यकीन मानिए आपकी हंसी छूट जायेगी कि क्या हँसी है यह ??"
यकिन मानिए वे भी एक दूसरे को बनावटी हंसी हंसते देखकर असल हंसी हंसने लगते है।
अक्सर सफ़र में रहता हूँ और हर जगह बच्चों की हंसी पर कुर्बान जाता हूँ।
ReplyDeleteशुभकामनायें!
कभी हम उनको, कभी अपने ठहाकों को सुनते हैं :-)
ReplyDeleteघर से मस्जिद है बहुत दूर,
ReplyDeleteचलो यूं कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए...
जय हिंद...
हम लोग हँसी का अर्थ जाने बिना, हंसने का प्रयत्न करते हैं !
ReplyDeleteबिलकुल सही.
Super food :Beetroots are known to enhance physical strength,say cheers to Beet root juice.Experts suggests that consuming this humble juice could help people enjoy a more active life .(Source: Bombay Times ,Variety).
ReplyDeletehttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_07.html
ताउम्र एक्टिव लाइफ के लिए बलसंवर्धक चुकंदर .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
शुक्रवार, ५ अगस्त २०११
Erectile dysfunction? Try losing weight Health
सतीश भाई उन्मुक्त और चिंता मुक्त होना तो आजकल के ज़माने में दुर्लभ है अलबत्ता हंसी अभावों और तनावों का विस्फोट भी है क्योंकि जीवन से हंसने के अवसर चुक गएँ हैं .
सही बात कही है सर आपने।
ReplyDelete--------
आपकी इस पोस्ट की हलचल आज यहाँ भी है
निर्मल-चिंतामुक्त मन वालों को कृत्रिम हंसी की ज़रूरत ही क्योंकर होगी...
ReplyDeleteमनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो हंस सकता है। प्रकृति के इस वरदान का हमें लाभ उठाना चाहिए।
ReplyDeleteहंसी और स्वास्थ्य का सीधा संबंध है।
सच कहा सतीश जी बनाबटी और दिल से निकली हंसी अलग प्रभाव छोडती है.
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने....हम लोग हँसी का अर्थ जाने बिना, हंसने का प्रयत्न करते हैं !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
sateesh bhai ji
ReplyDeletebahut hi sahi baat aapne likhi hai bade -bade manishhiyon dwra bhi khulkar hansna sehat ka raj bataya gaya hai.ek vastvik citran ke liye bahut bahut badhai
naman
poonam
सतीश जी कभी आपने भी इनके साथ हंसने की कोशिश की है बनावटी हंसते हंसते कब आप सचमुच हंसने लगते हैं पता ही नही चलता । जब आप की हंसी सच्ची हो जाती है तो मन भी प्रसन्न हो ही जाता है ।
ReplyDelete@ आदरणीय आशा जी ,
ReplyDeleteइसमें कोई शक नहीं कि समूह को हँसते देख, हंसी अवश्य आएगी ! मगर यह लेख, हास्य ग्रुप का सहारा लिए बिना, हंसने में हमारी असमर्थता बताने का प्रयत्न कर रहा है ! प्राकर्तिक हास्य के लिए साथी के प्रति स्नेह और अपनापन बेहद आवश्यक है अन्यथा हंसी ही नहीं आएगी !
दिल खोल कर हंसने से कई विकार दूर हो जाते हैं ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार......सतीश जी
bachche to masoo or komal hote hai jaise phoolo ka guldasta..
ReplyDeleteनिर्मल मन में निर्मल हास का वास होता है...सुबह सवेरे पार्क में नकली हँसी हँसते लोगों को देख कर हँसी नहीं गुस्सा आता...क्यों कि उन्हीं लोगों में से कोई राह चलते मिलने पर मुस्कान लेने से भी कतरा जाते...पीछे मुड़ कर देखने लगते और हम झेंप जाते मन में गुस्सा दबाए कि यूँही अपनी मुस्कान बर्बाद कर दी...
ReplyDeletegood presentation.
ReplyDelete