आजकल बहिन भाई का नैसर्गिक प्यार भी, दिखावे का बन कर रह गया है ! आजकल पुरुषों में संवेदनशीलता का लगभग अभाव सा हो गया है जिसमें अपनी बहन के प्रति ममत्व और करुणा कहीं नज़र नहीं आती !
अक्सर संवेदनशील बहिन मायके को याद करते, मुंह छिपा कर आंसूं पोंछते देखी जाती हैं ...! यह बेचारी किससे कहे और किसे दिखाए कि वह अपने भाई को कितना प्यार करती है ??
मा पलायनम पर डॉ मनोज मिश्र ( डॉ अरविन्द मिश्र के छोटे भाई हैं ) के हाल के लिखे लेख पर उक्त कमेन्ट देते समय मेरा अस्थिर सा हो गया सोंचा कि यह क्यों न आप सबसे चर्चा करूँ !
संवेदनशीलता और स्नेह की अवहेलना, समय के साथ हमें और समाज को बहुत महंगी पड़ेगी ! यह याद रहे कि जिस स्नेह और अपनत्व का हम तिरस्कार कर रहे हैं वही एक दिन भूत बनकर हमारे सामने होगा, कहीं ऐसा न हो घर में हमारा व्यवहार सावधानी से देख रहे , हमारे बच्चे, ब्याज समेत हमें लौटा दें और उस समय बहुत तकलीफ होगी !
हमारे जीवित रहते, माँ और बहिन की आँखों में आंसू नहीं छलकने चाहिये !
जी ज़रूर !
ReplyDeleteएक ओर सच से सामना करवा दिया ...बदलती दुनिया का सच ....खुली आँखों का सच ....जिसको हम रोज़ देखते है पर ये मन मानता ही नहीं है कि हर रिश्ता बदल रहा है
ReplyDeleteसही कहा आपने सर ! आजकल रिश्तो में वो गर्माहट ही नही रही ..जो एक दुसरे को आपस में बांधे रखती थी....
ReplyDeleteबस, मन के भाव न बदलें.
ReplyDeletesahi kaha hai .
ReplyDeleteमानों तो मैं गंगा मां हूं, न मानो तो बहता पानी...
ReplyDeleteहमारा देश दुनिया में इसी लिए अलग स्थान रखता है क्योंकि यहां बचपन से ही हमें रिश्तों की कद्र करना सिखाया जाता है...लेकिन दुनिया सिमट रही है तो हमारे मेट्रो शहरों में भी लोग मैट्रीलिस्टिक होते जा रहे हैं...ऐसा भी देखा गया है कि बचपन में एक दूसरे पर जान छिड़कने वाले भाई-भाई या भाई-बहन या बहन-बहन बड़े हो जाने पर पुश्तैनी संपत्ति के विवाद के चलते एक दूसरे का मुंह तक देखना छोड़ देते हैं...
भावनाओं की ये बातें भावनाओं वाले ही जान सकते हैं...
जय हिंद...
हमारे जीवित रहते, माँ और बहिन की आँखों में आंसू नहीं छलकने चाहिये
ReplyDeleteहमारे व्यक्तित्व पर तमाचा है, उनके आँसू।
हमारे जीवित रहते, माँ और बहिन की आँखों में आंसू नहीं छलकने चाहिये !
ReplyDeleteसबका प्रयास यही रहता है जहाँ तक मैं समझता हूँ .....!
shat pratishat sahi ab vah bat nahin
ReplyDelete@@संवेदनशीलता और ममत्व की अवहेलना, समय के साथ हमें और समाज को बहुत महंगी पड़ेगी ! यह याद रहे कि जिस ममत्व और अपनत्व का हम तिरस्कार कर रहे हैं वही एक दिन भूत बनकर हमारे सामने होगा, कहीं ऐसा न हो घर में हमारा व्यवहार सावधानी से देख रहे , हमारे बच्चे, ब्याज समेत हमें लौटा दें और उस समय बहुत तकलीफ होगी !
ReplyDeleteभाई साहब निश्चित रूप से यही होने वाला है.हम सब की तरफ एक कहावत है कि जो बोया है वही काटेंगे अर्थात बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय.
हम आज रिश्ते नातों से दूर भले ही अपनी एक अलग पहचान बना लें लेकिन अंततः सकून अपने ही लोंगो के बीच मिलने वाला है --मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे---जैसे उड़ी जहाज से पंछी फिर जहाज पे आवे......
आपकी पोस्ट समय -समय पर इसी तरह जागृति का सन्देश देती रहे यही मेरी शुभकामना है ,बहुत धन्यवाद.
राखी के दिन मैंने दो महिला को बात करते सुना जिनके भाइयो ने कोई खोज-खबर नहीं ली थी. वे एक दूसरे को कह रही थी कि चलिए आपस में ही राखी बांधा जाय और मिठाई खिलाया जाय.मेरी आँखे नम हो गयी.
ReplyDeleteव्यक्तिगत संपत्ति रक्त संबंधों और भावनात्मक संबंधों का खून कर देती है।
ReplyDeleteभौतिकतावादी युग में हम कितने संवेदनहीन हो गए हैं...हमारे लिए रिश्ते महज़ औपचारिक बन गए हैं !
ReplyDeleteबहुत बढिया ..
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा है आपने
ReplyDeleteसहमत हूँ....
संवेदनशीलता और ममत्व की अवहेलना, समय के साथ हमें और समाज को बहुत महंगी पड़ेगी ! यह याद रहे कि जिस ममत्व और अपनत्व का हम तिरस्कार कर रहे हैं वही एक दिन भूत बनकर हमारे सामने होगा, कहीं ऐसा न हो घर में हमारा व्यवहार सावधानी से देख रहे , हमारे बच्चे, ब्याज समेत हमें लौटा दें और उस समय बहुत तकलीफ होगी !
ReplyDeleteइस तकलीफ को लोंग आज नहीं देख पा रहे ... बाद में सिवाय पछताने के कुछ हासिल नहीं होगा ..
सम्वेदनाएं कुंद होती जा रही है।
ReplyDeleteनिरन्तर क्रूर स्वार्थी और मनमौजी वातावरण में पलते हम लोग करूणा प्रेम और ममत्व की भावना कहां से ला पाएंगे?
गहन चिन्तनयुक्त प्रासंगिक अभिव्यक्ति....
ReplyDeletebaat to sahi hai...
ReplyDeleteहमारे बच्चे, ब्याज समेत हमें लौटा दें और उस समय बहुत तकलीफ होगी !
ReplyDeleteहमारे जीवित रहते, माँ और बहिन की आँखों में आंसू नहीं छलकने चाहिये !
....सही कहा आपने सतीश जी
जय हिंद जय भारत
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वो प्यार वो ममता जिनसे मिले जो जो समर्पण दिए वो तो अनमोल हैं भला उन आँखों में क्यूँ आंसू लायेगे बहुत अच्छा लिखा है आपने....
ReplyDeleteलेकिन आंसू तो आ सकते हैं सर जी वो भी खुशी के प्यार भरे आंसू जो मीठे लगते हैं....:)
आंसुओ की भी भाषा होती है पर इसे कोई संवेदनशील मन ही समझ सकता है।
ReplyDeleteभाग रही है ज़िन्दगी ....कुछ सोचने समझने का वक़्त कहाँ है...?भौतिकता तो गर्त में ही गिराएगी ...हम संभल जाएँ तो बहुत अच्छा है ...!!
ReplyDeleteरिश्तों की औपचारिकता दिल दुखाती ही है !
ReplyDeleteभाई बहन का प्यार भी बदले हुए समय की तर्ज़ पर बदल रहा है .
ReplyDeleteफिर भी हमारे पर्व कहीं न कहीं हमारी परम्पराओं को जीवित रखे हुए हैं .
हालाँकि अब इनपर भी पाश्चात्य व्यवसायिक प्रभाव पड़ता जा रहा है .
मन को स्थिर रखो भाई . ये दुनिया बड़ी निष्ठुर है .
शुभकामनायें आपको .
बहन के मन के दर्द को उकेर दिया आपने।
ReplyDeleteतभी तो... तभी तो ... मनवीय मूल्यों का क्षरण हो रहा है॥
ReplyDeleteरिश्तों के प्रति संवेदनशीलता तो रखनी ही पड़ेगी. सभी को इस विषय पर सोचना चाहिये. अच्छा और सामायिक विषय.
ReplyDeleterishton ke naam pr bs mahaj oupcharikta hi nibha rahen hain hum log.....sahmat hun aapse.............
ReplyDeleteaaj bacche dekh rahe hain sabhi rishto ko pyar me tulte hue...kal vo bhi yahi tulna karenge.
ReplyDeletesamvednsheel prastuti.
कहीं ऐसा न हो घर में हमारा व्यवहार सावधानी से देख रहे , हमारे बच्चे, ब्याज समेत हमें लौटा दें और उस समय बहुत तकलीफ होगी !
ReplyDeleteप्रतिफ़लन तो पॄकॄति का अकाट्य नियम है. प्यार देंगे तो प्यार पायेंगे, नफ़रत देंगे तो नफ़रत पायेंगे.
रामराम
बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
हमारा परिवार अपवाद है, इसलिए इसपर चुप रहता हूँ!!
ReplyDeleteह्रदय से बंधे रिश्तों की डोर .......
ReplyDeleteरिश्तों का व्यवसाईकरण जो ना कराये वो कम...बहनें भी तो अपने गरीब भाइयों को भूलने में देर नहीं लगातीं...
ReplyDeletebilkul sach kaha apne
ReplyDeletelekin
ye zimmedaaree donon taraf se ho to sambandhon kee madhrta bani rahti hai
:)
ReplyDeleteaabhar.
कबीरा तेरी झोंपड़ी गल कतियाँ के पास ,करेंगे सो भरेंगे तू क्यों भयो उदास . ..भाई -बहिन के छीजते रिश्तों से मुखातिब संवेदन शील पोस्ट . August 16, 2011
ReplyDeleteउठो नौजवानों सोने के दिन गए ......http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
सोमवार, १५ अगस्त २०११
संविधान जिन्होनें पढ़ लिया है (दूसरी किश्त ).
http://veerubhai1947.blogspot.com/
मंगलवार, १६ अगस्त २०११
त्रि -मूर्ती से तीन सवाल .
अर्थप्रधान युग में रिश्तों की वास्तविक गर्माहट अपना महत्व खोती जा रही है जो वाकई चिंतनीय है ।
ReplyDeleteकहीं ऐसा न हो घर में हमारा व्यवहार सावधानी से देख रहे , हमारे बच्चे, ब्याज समेत हमें लौटा दें और उस समय बहुत तकलीफ होगी !
ReplyDeletejai baba banaras.....
WE HAVE TO BRING THE CHANGE, WE HAVE TO BE CHANGE!
ReplyDeleteआपकी बातें मन को छूती हैं .लेकिन यह बुद्धि की प्रधानता का - व्यावहारिकता का, युग है.परस्पर स्नेह बना रहे वही बहुत है !
ReplyDeleteसही है. रिश्तों में अब वो गर्माहट नहीं रही. स्वार्थ-समृद्धि यहां भी हाबी हो गयी है.
ReplyDeleteकहीं ऐसा न हो घर में हमारा व्यवहार सावधानी से देख रहे , हमारे बच्चे, ब्याज समेत हमें लौटा दें और उस समय बहुत तकलीफ होगी !
ReplyDeleteऐसा होता आया है।
हम सब को चाहिए कि हम ऐसा मौका ही न आने दें।
ऐसा होता तो है सतीश जी...ऐसी बहनें बहुत कम होंगी जिनके भाई उनकी आँखों में आँसू नहीं देख पाते..
ReplyDeleteआद. सतीश जी,
ReplyDeleteआपके चंद पंक्तियों ने सीधे दिल पर चोट किया है ! वास्तव में हम संवेदनशून्यता की बहुत बड़ी क़ीमत चुका रहें हैं ! आज बिखरते हुए मूल्यों की कराह में इसकी प्रतिध्वनि साफ़ सुनी जा सकती है !
आभार !
भावनाएँ /संवेदनशीलता रिश्तों को जोड़े रखती हैं.
ReplyDeleteइसे नहीं खोना चाहिए.
बिल्कुल सही कह रहे हैं.
ReplyDeleteबहुत सच कहा है..रिश्तों की महत्ता को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए..लेकिन आज समाज में दूसरा ही द्रश्य है.
ReplyDeleteमैं तो बस यही दुआ करता हूँ की मेरी बहनों और मेरे बीच का जो प्रेम है वो ऐसे ही बना रहे...वो सब सही में मेरी जिंदगी है..और कितने ही ऐसे तकलीफ भरे दिन में उन्होंने मुझे आगे बढ़ने का हौसला दिया..
ReplyDeleteसुंदर वैचारिक पोस्ट भाई सतीश जी बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteसुंदर वैचारिक पोस्ट भाई सतीश जी बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteसंवेदनाओं का शिथिल होते जाना चिंता की बात है...
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