थक गया था बहुत
आंख बोझल सी थी
किसकी थपकी मिली
और कहाँ सो गया !
एक अस्पष्ट चेहरा
दिखा था मुझे !
पर समझ न सका सब, अधूरा अधूरा !
आज सोया,
हजारों बरस बाद मैं ,
आंख बोझल सी थी
स्वेद पोंछे, किसी
हाथ ने, प्यार से !
हाथ ने, प्यार से !
फिर भी लगता रहा कुछ, अधूरा अधूरा !
कुछ पता ही नहीं,
कौन सी गोद थी ,कुछ पता ही नहीं,
किसकी थपकी मिली
और कहाँ सो गया !
एक अस्पष्ट चेहरा
दिखा था मुझे !
पर समझ न सका सब, अधूरा अधूरा !
आज सोया,
हजारों बरस बाद मैं ,
जाने कब से सहारा,
मिला ही नहीं ,
मिला ही नहीं ,
रंग गीले अभी,
विघ्न डालो नहीं ,
विघ्न डालो नहीं ,
है अभी चित्र मेरा, अधूरा अधूरा !
स्वप्न आये नहीं थे,
युगों से मुझे !
क्या पता ,आज
राधा मिले नींद में
स्वप्न आये नहीं थे,
युगों से मुझे !
आज सोया हूँ मुझको
जगाना नहीं !क्या पता ,आज
राधा मिले नींद में
है अभी स्वप्न मेरा, अधूरा अधूरा !
इक मुसाफिर थका है ,
इक मुसाफिर थका है ,
यहाँ दोस्तों !
जल मिला ही नहीं
इस बियाबान में !
क्या पता कोई
भूले से, आकर मेरा
भूले से, आकर मेरा
कर दे पूरा सफ़र जो, अधूरा अधूरा !
waah
ReplyDeleteआज सोया,
ReplyDeleteहजारों बरस बाद मैं ,
जाने कब से सहारा,
मिला ही नहीं ,
जीवन में जब तक एक ऐसा सहारा नहीं मिलता जिस पर पूरा विश्वास कर लें तब तक नींद आना कहाँ स्वाभाविक है .....और अगर ऐसा सहारा मिलता है तो जीवन सुखमय हो जाता है ....मनभावन रचना .....!
रंग गीले अभी, विघ्न डालो नहीं ,
ReplyDeleteहै अभी चित्र मेरा, अधूरा अधूरा !........
सुंदर अभिव्यक्ति.....आभार.
आपकी 'राधा' तो बाद में मिल सकती है पहले 'रुक्मणी' की थपकी को भी पहचान लो !!नींद अच्छी आना बढ़िया शगुन है !
ReplyDeleteप्रेम से सराबोर अभिव्यक्ति !
वाह!
ReplyDelete@ संतोष त्रिवेदी
ReplyDeleteरुकमणि सर्वव्याप्त हैं मास्साब जी और राधा तो स्नेह रूपा हैं .....
कवि के भाव का अर्थ....??
आभार !
हरदम साथ हैं
ReplyDeleteपर कभी राधा सी
कभी रुक्मणी सी ....
बेहतरीन रचना!
उनींदी कविता में प्रेम की जागृत अवस्था. वाह!
ReplyDeleteआज सोया,
ReplyDeleteहजारों बरस बाद मैं ,
जाने कब से सहारा,
मिला ही नहीं ,
रंग गीले अभी, विघ्न डालो नहीं ,
है अभी चित्र मेरा, अधूरा अधूरा !
hamesha ki tarah bahut sundar kavita
जीवन को साधना
ReplyDeleteभक्ति बना लूँ
प्रेम को मै पूजा
बना लूँ
भाव दीपों को
आरती में सजा लूँ
हे अश्रु सुमनों
प्रिय पथ सजाओ
बिखरे सुर-ताल
सितार पर संवारो
कभी द्वार आकर न
तुम लौट जाना
अभी गीत मेरा
अधुरा-अधुरा !
अभी स्वप्न मेरा
अधुरा-अधुरा !
सतीश जी,
आपके इतने सुंदर गीत के लिये
मेरे पास इससे कोई अच्छी टिप्पणी नहीं है ....
अधूरेपन का अनुभव, पूर्णता के अस्तित्व का प्रतीक है।
ReplyDeleteप्रेम और सिर्फ प्रेम .. स्वप्न ...विचार....शब्द.... इन सबके मिलन से ही जन्म हुआ है इस अद्भुत कविता का सतीश जी .. दिल से खुशी जहीर कर रहा हूँ इसे पढकर ..
ReplyDeleteधन्यवाद.
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
मनभावन रचना !
ReplyDeleteआज सोया हूँ मुझको
ReplyDeleteजगाना नहीं !
क्या पता ,आज राधा मिले नींद में
है अभी स्वप्न मेरा, अधूरा अधूरा !
बहुत ही कोमल भावों वाली अति सुन्दर रचना.
साधुवाद.
एक शेर याद आ रहा है अर्ज किया ..
ReplyDeleteबाद मुद्दत के मयस्सर हुआ माँ का आंचल,
बाद मुद्दत के हमें नींद सुहानी आयीं |
भूले से क्यों,
ReplyDeleteयाद करके आयेंगे मुसाफिर...
दो पंक्ति आपके रचना के नाम:
ReplyDeleteआज तक किसने जी है पूरी जिंदगी
हर शख्स मिलता है मुझे अधूरा अधूरा
बहुत अच्छी रचना है !
इक मुसाफिर थका है ,
ReplyDeleteयहाँ दोस्तों !
जल मिला ही नहीं
इस बियाबान में !
क्या पता कोई भूले से, आकर मेरा
कर दे पूरा सफ़र जो, अधूरा अधूरा !
संवेदनशील रचना ...
ऐसा सुकून, तो माँ की गोद में ही मिल सकता है!
ReplyDeleteचाहे सपने में ही हो ....
मुबारक हो ...
bhawbhinee.........
ReplyDeleteकुछ पता ही नहीं,
ReplyDeleteकौन सी गोद थी ,
किसकी थपकी मिली
और कहाँ सो गया !
एक अस्पष्ट चेहरा दिखा था मुझे !
पर समझ न सका सब, अधूरा अधूरा !
वह तो पूरा ही मिलता है पर हम ही डरते हैं क्योंकि पूरा मिला तो हम बचेंगे ही नहीं... खुद को बचाने की फ़िक्र में लगे हम अधूरे से ही संतोष कर लेते हैं....
स्वप्न आते नहीं थे,
ReplyDeleteयुगों से मुझे !
आज सोया हूँ मुझको
जगाना नहीं !
क्या पता ,आज राधा मिले नींद में
है अभी स्वप्न मेरा, अधूरा अधूरा !
... swapn poore ho
badee pyaree abhivykti .......
ReplyDeleteआज सोया,
ReplyDeleteहजारों बरस बाद मैं ,
जाने कब से सहारा,
मिला ही नहीं ,
बहुत ही लाजवाब.
रामराम.
जीवन के प्रति सुकून जगाते खूबसूरत भाव ....... सादर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना....
ReplyDeleteबहुत फिलोसोफिकल रचना है । लगता है आज मां की याद बहुत आ रही है ।
ReplyDeleteयादों में भी सुकून दिलाती है मां ।
जबरदस्त रचना .....आहिस्ता बोलो रोते रोते अभी सोया है लाल मेरा ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...हर दृष्टि से ,भाव और शिल्प दोनों!
आँधियों में बसेरे मिलेगें
रंग में हास फेरे मिलेगें
डूबता सूर्य यह कह गया है
फिर सवेरे सवेरे मिलेगें .....
(क्षेम )
आज सोया हूँ मुझको
ReplyDeleteजगाना नहीं !
क्या पता ,आज राधा मिले नींद में
है अभी स्वप्न मेरा, अधूरा अधूरा !
मन के शानदार भाव, शब्दों में बड़ी बेबाकी से उड़ेल दिए है सतीश जी बधाई
निशब्द करती पंक्तियाँ.... बहुत सुंदर
ReplyDeletebahut sundar..jane kyun sab paakar bhi adhurapan lgta hai ..jane kyun
ReplyDeleteबहुत उम्दा...भावपूर्ण रचना...बहुत पसंद आई.
ReplyDeleteलगता है हमराही की सख्त ज़रूरत है:)
ReplyDeleteअदभुत रचना...
ReplyDeleteगुरुदेव आज तो कम लिखे को ज़्यादा समझो आप, मैं तो बस इतना कहकर खिसकता हूँ कि
ReplyDeleteसरहाने सतीश के आहिस्ता बोलो,
अभी टुक रोते रोते सो गया है!!
आज सोया,
ReplyDeleteहजारों बरस बाद मैं ,
जाने कब से सहारा,
मिला ही नहीं ,
रंग गीले अभी, विघ्न डालो नहीं ,
है अभी चित्र मेरा, अधूरा अधूरा !
स्वप्न द्रष्टा को नींद का निहितार्थ उसकी आत्मा का अवचेतन सम्मोह है ,जो जागा तो विचलित करता है ,मजबूर करता है आत्म मंथन को ......./ सुन्दर परिकल्पना ,शुभकामनायें जी /
@ भाई उदयवीर सिंह,
ReplyDeleteइस रचना की आपके द्वारा की गयी व्याख्या अच्छी लगी, भावों को पारिभाषित करने के लिए आपका आभार !
रमानाथ अवस्थी की एक रचना याद आती है ...
"मेरी रचना के अर्थ बहुत से है
जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना"
पाठक आपने अपने हिसाब से अर्थ ढूंढते हैं , पारिभाषित करते हैं !
शुक्रिया आपका ...
इस रचना के द्वारा आपने लोगों को कई सूत्र पकड़ा दिए हैं और लोग अपने-अपने हिसाब से इसे देख रहे हैं। लगता है जड़ता को भंग कर लोगों को सोचने का नया दृष्टिकोण प्रदान किया और समाज में बदलाव के लिए आवश्यक ऊर्जा का संचार किया।
ReplyDeleteकिसी भी गंभीर रचना में यह संभावना तो रहती ही है कि समय के साथ साथ घटनाओं और संदर्भों के मायने बदल जाते हैं, उन्हें समझने और स्वीकार करने का नज़रिया बदल जाता है।
आभार मनोज भाई !
ReplyDeleteपूर्णता कहाँ मिल पाती है कभी,
ReplyDeleteजो कुछ भी मिल जाता है अधूरा-अधूरा ।
आभार सहित...
@@@
ReplyDeleteइक मुसाफिर थका है ,
यहाँ दोस्तों !
जल मिला ही नहीं
इस बियाबान में !
क्या पता कोई भूले से, आकर मेरा
कर दे पूरा सफ़र जो, अधूरा अधूरा !..
वाह,बेजोड़ लाइनें-इस आशावाद को प्रणाम .
वाह! यह गीत भी बड़ा प्यारा है।
ReplyDeleteकविता ने सिक्त कर दिया !
ReplyDeleteदेर से आई इतनी सुन्दर रचना पढ़ने - नुक्सान अपना ही किया .