Tuesday, February 25, 2014

जैसे तैसे बचा के रख्खा, लूट लिया मुस्कानों ने -सतीश सक्सेना

जिस दिन सूरज को ग़ुस्से में देखा दुनिया वालों ने, 
आसमान में अफ़रातफ़री ,पायी चाँद सितारों ने !

निज घर में ही सेंध लगाई, घर के ही मक्कारों ने
जो घर वालों से बच पाया , लूटा चौकीदारों ने !

धुएँ के छल्लों ने देखा है, मदहोशी के आलम में, 
जो कुछ साक़ी से बच पाया लूट लिया दरबानों ने ! 

ऐसे क्यों पहचान न पाये, मास्क लगाये लोगों को !
कुछ तो भावुकता ने लूटा, कुछ अपने घर वालों ने ! 

जिन जिन को ले रहे भागते, नंगे पैरों भूखे प्यासे 
जीवन भर ही लाभ लिया था, कैसे कैसे यारों ने !

15 comments:

  1. माँ से झपटा,बाप से छीना , पाई पाई जोड़ी थी !
    जैसे तैसे बचा के रख्खा, लूट लिया मुस्कानों ने !
    यही शायद आखरी दांव -------सुन्दर प्रस्तुति !
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    New post शब्द और ईश्वर !!!

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  2. धुएं के छल्लों को मालुम है,मदहोशी के आलम में,
    जो कुछ छोड़ा था साकी ने,लूट लिया मयखानों ने ..

    भाई वाह ... कुछ अलग से इस शेर की बात ही अलग है ... लाजवाब गीत की बधाई सतीश जी ...

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  3. शायद हँसी और आंसू इंसान का आखरी दांव है ...बहुत सुन्दर !
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    New post शब्द और ईश्वर !!!

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  4. माँ से झपटा,बाप से छीना, पाई पाई जोड़ी थी,
    जैसे तैसे बचा के रख्खा, लूट लिया मुस्कानों ने !
    ....वाह...क्या बात है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  5. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति...बधाई..सतीश जी..

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  6. वाह, अन्तिम पंक्तियों ने मन मोह लिया।

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  7. बलि जाऊं उन मुस्कानों की

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  8. माँ से झपटा,बाप से छीना, पाई पाई जोड़ी थी,
    जैसे तैसे बचा के रख्खा, लूट लिया मुस्कानों ने !
    फूल के बीज बोए थे, बबूल उग आया है. ऐसा
    कभी नहीं हुआ, न होगा, कही कुछ गड़बड़ है !

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  9. किसने बोला था लुटने जाओ पहले ये जानना जरूरी है बताओ बताओ :)

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  10. माँ से झपटा,बाप से छीना, पाई पाई जोड़ी थी,
    जैसे तैसे बचा के रख्खा, लूट लिया मुस्कानों ने !

    बहुत खूब,सुंदर गजल ...!

    RECENT POST - फागुन की शाम.

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  11. प्रशंसनीय प्रस्तुति ।

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  12. गहरी बात...मन मोह लिया...सतीश जी

    RECCENT POST-- खुशकिस्मत हूँ मैं

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  13. लुटते-लुटते-----सांझ हुई,घर लौटे हैं
    चादर तान--सो गये,देखें कहीं
    सपनों का भी चोर कहीम छिपा ना बैठा हो
    अपने ही दालानों--
    गनीमत है,सपने नहीं लुट सकते,आंख खुली---और वो
    अपने भी नहीं रहते.
    सुंदर प्रस्तुति.

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- सतीश सक्सेना

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